Thursday, March 28, 2024

बीजेपी कार्यकारिणी बैठक का पोस्टमार्टम

महेंद्र नाथ

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने कई संदेश दिए हैं। भुवनेश्वर में बैठक रखने के पीछे एक खास मकसद ओड़िसा में सत्ता की दावेदारी पेश करना था। साथ ही उत्तर-पूर्व में अपने विस्तार के लिहाज से भी इसका विशेष महत्व था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इसका अपने तरीके से सूत्रीकरण भी कर दिया।

शाह का नया सूत्रीकरण

उन्होंने कहा कि अब पार्टी को कांग्रेस मुक्त भारत से आगे बढ़कर विरोध मुक्त भारत के लिए काम करना होगा। जिसका राजनैतिक मतलब विपक्ष मुक्त भारत से लगाया जा रहा है। वैसे ये बयान अपने आप में लोकतंत्र विरोधी है। क्योंकि बगैर विपक्ष के किसी लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शायद जाने-अनजाने में शाह के मुंह से वो बात निकल गयी संघ और बीजेपी जिसके हिमायती हैं। दरअसल ओड़िसा और पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु समेत तमाम सूबे ऐसे हैं जिनमें कांग्रेस के इतर दूसरी विपक्षी पार्टियों की सत्ता है। लिहाजा उनको ध्यान में रखते हुए शाह ने ये नया सूत्रीकरण किया है।

पिछड़ों पर नजर

इस बैठक का सबसे बड़ा उद्देश्य जीत के बाद जनाधार को संगठित करना और उसका नये क्षेत्रों में विस्तार था। जिसकी झलक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समापन भाषण में दिखी। बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं को जीत के बाद अहंकार से बचने की सलाह दी। उनका सबसे बड़ा संदेश देश के पिछड़े तबकों के लिए था। ऐसे दौर में जबकि माना जा रहा है कि सामाजिक न्याय अपने सैचुरेशन पर पहुंच गया है। और उसकी राजनीतिक ताकतें हताश और निराश हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उनका कोई नेतृत्व नहीं है।

‘कांग्रेस पिछड़ा विरोधी’

उन्होंने पहली बार सामाजिक न्याय के एजेंडे को बीजेपी के मंच से उठाने की कोशिश की है। इस मामले में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा गठित पिछड़ा आयोग के जरिये विपक्ष खासकर कांग्रेस को निशाना बनाया। उनका कहना था कि कांग्रेस ने कभी पिछड़ों के बारे में नहीं सोचा। पार्टी हमेशा से उनकी विरोधी रही है। मोदी ने कहा कि अब जब उनकी सरकार पिछड़े तबकों के कल्याण के लिए काम करने की कोशिश कर रही है तो कांग्रेस रास्ते में टांग अड़ा रही है। इस कड़ी में उन्होंने पिछड़ा आयोग के राज्यसभा से पारित न हो पाने का हवाला दिया।

बीजेपी के लिए मौका

दरअसल राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक न्याय की ताकतें कमजोर हो गयी हैं। बीजेपी इसे अपने लिए एक मौके के तौर पर देख रही है। लिहाजा उसने इसमें घुसने की कवायद शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री मोदी का पिछड़े समुदाय से आना इस प्रक्रिया को और आसान बना देता है। ऐसे में पार्टी अपने सवर्ण आधार के साथ अगर पिछड़ों के बड़े हिस्से को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाती है तो राष्ट्रीय स्तर पर उसका एक बड़ा स्थाई आधार हो जाएगा। जिसे फिर तोड़ पाना किसी के लिए भी मुश्किल है।

दक्षिण भारत को साधने की कोशिश

इस रणनीति को एक दूसरे नजरिये से भी देखा जा सकता है। उत्तर भारत में विजय पताका बुलंद करने के बावजूद दक्षिण भारत पार्टी के लिए अभी भी अबूझ पहेली बना हुआ है। कर्नाटक तक पार्टी जरूर पहुंची है लेकिन उसके आगे की राजनीतिक जमीन को तोड़ना उसके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

उत्तर भारत में सवर्ण वर्चस्व की छवि तो चल गयी। लेकिन दक्षिण में इसके साथ आगे बढ़ना उसके लिए मुश्किल होगा। इस लिहाज से सामाजिक न्याय और पिछड़ों का एजेंडा ज्यादा कारगर साबित हो सकता है। क्योंकि दक्षिण में पेरियार से लेकर अन्ना तक के आंदोलन से बनी राजनीतिक-सामाजिक और सांस्कृतिक जमीन पर अपने विस्तार के लिए ये आवश्यक शर्त बन जाती है।

तीन तलाक के बहाने 

साथ ही प्रधानमंत्री ने मुस्लिम तबके को भी सामाजिक न्याय से जोड़कर एक नया संदेश देने की कोशिश की है। मुसलमानों के प्रति पार्टी के अब तक के रवैये को देखते हुए लोगों के जेहन में सवाल उठना लाजमी है। इसी कड़ी में उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे को भी उठाया। उनका कहना है कि सरकार मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय नहीं होने देगी। मुस्लिम महिलाओं के प्रति प्रधानमंत्री की चिंता जायज है। लेकिन इसके पीछे स्वार्थपरक राजनीति का खेल ज्यादा दिख रहा है।

पार्टी की रणनीति है कि मुस्लिम समुदाय को राजनैतिक तौर पर कई हिस्सों में बांट दिया जाए। उत्तर प्रदेश से लेकर देश के कई हिस्सों में पार्टी को इस रणनीति का फायदा भी मिला। तीन तलाक मुस्लिम समुदाय में इसी तरह के विभाजन का एक कारगर हथियार बन सकता है। जिसके आगे बढ़ने पर पार्टी को कुछ वोटों का भी फायदा हो सकता है। वरना अगर पार्टी सचमुच में महिलाओं के अधिकारों के प्रति चिंतित होती तो हिंदू समुदाय में महिलाओं की समस्याएं कम नहीं हैं। लेकिन पार्टी ने कभी किसी को आंदोलन का मुद्दा बनाया हो। ऐसा याद नहीं है।

इसी मुद्दे पर हिंदू कोड बिल का विरोध करने वाली पार्टी से महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने की आशा करना किसी विरोधाभास से कम नहीं है। अनायास नहीं सरसंघ चालक मोहन भागवत जब महिलाओं को बाहर नौकरी करने की जगह घर में खाना बनाने की बात कहते हैं तो पार्टी उसका एतराज नहीं कर पाती है।

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