Thursday, March 28, 2024

सुप्रीमकोर्ट में हठधर्मिता के बाद सरकार की पलटी

उच्चतम न्यायालय में आज एक बार फिर मोदी सरकार और उच्चतम न्यायालय के बीच तकरार देखने को मिला जब एनसीएलएटी के कार्यवाहक अध्यक्ष के पद से जाने को जस्टिस अशोक इकबाल सिंह चीमा की चुनौती पर चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही थी। उच्चतम न्यायालय में सरकार की शुतुरमुर्गी चाल कायम है। इसमें फंस जाने पर सरकार एकाएक पलटी मार देती है। आज भी जब पीठ ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 पर स्वत: रोक लगाने की चेतावनी दी तो अटॉर्नी-जनरल केके वेणुगोपाल ने जस्टिस चीमा को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में 20 सितंबर को उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख तक बहाल करने के लिए एकबारगी उपाय के रूप में सहमति व्यक्त की और कि वह अपने पास लंबित निर्णय सुना सकते हैं।

एनसीएलएटी के पूर्व चेयरपर्सन जस्टिस अशोक इकबाल सिंह चीमा के समय से पहले रिटायरमेंट को लेकर पैदा हुआ विवाद आज समाप्त हो गया। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि एनसीएलएटी के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस चीमा को 20 सितंबर तक पद पर बने रहने दिया जाएगा। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब तक चीमा फैसले सुनाने के लिए पद पर बने रहते हैं, तब तक एनसीएलएटी के निवर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष जस्टिस एम वेणुगोपाल अवकाश पर रहेंगे।

अटॉर्नी जनरल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि केंद्र सरकार ने जस्टिस चीमा को 20 सितंबर तक राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल करने पर सहमति व्यक्त की है, ताकि वह लंबित निर्णय सुना सकें।

जस्टिस चीमा ने 10 सितंबर से अपनी सेवाएं समाप्त करने के केंद्र द्वारा जारी आदेश से व्यथित होकर उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी, हालांकि वह अपने मूल नियुक्ति आदेश के अनुसार 20 सितंबर तक के कार्यकाल की उम्मीद कर रहे थे। वह 20 सितंबर को 67 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर रहे हैं।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि समाप्ति आदेश जारी किया गया था क्योंकि हाल ही में पारित ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 ने सदस्यों की अवधि 4 साल तय की थी (जस्टिस चीमा को 11 सितंबर, 2017 को एनसीएलएटी सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था)। इसलिए, एजी ने कहा कि सरकार के पास समाप्ति आदेश जारी करने की शक्ति है।

बहरहाल, एजी ने कहा कि सरकार 11 सितम्बर, 2021 से 20 सितम्बर 2021 तक की अवधि को उनके सेवानिवृत्ति लाभों के प्रयोजनों के लिए न्यायमूर्ति चीमा के लिए निरंतर सेवा के रूप में मानने के लिए तैयार थी।

इस पर पीठ ने जोर देकर कहा कि न्यायमूर्ति चीमा को वास्तव में 20 सितंबर तक अपने कार्यालय की शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने 5 मामलों में निर्णय सुरक्षित रखा है। पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि वह ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 पर स्वत: रोक लगा देगी।

पीठ की कड़ी टिप्पणियों के बाद, अटॉर्नी जनरल ने निर्देश प्राप्त करने के लिए पास-ओवर का अनुरोध किया। जब 30 मिनट के बाद मामले को फिर से लिया गया, तो अटॉर्नी जनरल ने जस्टिस चीमा को शेष दिनों के लिए कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की अनुमति देने के लिए स्वीकार किया, और कहा कि वर्तमान पदाधिकारी को छुट्टी पर जाने के लिए कहा जाएगा।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मैंने निर्देश ले लिया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने निर्णय लिखने और 20 तारीख से पहले उन्हें सुनाने के लिए 31 अगस्त से 10 सितंबर तक छुट्टी ली थी। इसलिए उन्हें निर्णय लेने के उद्देश्य से बहाल किया जा सकता है और मौजूदा सज्जन को छुट्टी पर जाने के लिए कहा जाएगा।

पीठ  ने आदेश में कहा कि विद्वान अटॉर्नी जनरल ने निष्पक्ष रूप से माना कि प्रार्थना सी की अनुमति देने और याचिकाकर्ता को 20 सितंबर तक अपने निर्णय देने की अनुमति देने में कोई आपत्ति नहीं है। एक बार प्रार्थना सी स्वीकार हो जाने के बाद, परिणामी निर्देश पारित किए जाएंगे। उपरोक्त सबमिशन के मद्देनजर रिट याचिका का निपटारा किया जाता है।

इस दलील को दर्ज करते हुए पीठ ने याचिका का निस्तारण कर दिया। मामले के निपटारे के बाद चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने समस्या का समाधान किया। इसके लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं।

गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस चीमा को 11 सितंबर, 2017 को एनसीएलएटी में एक सदस्य (न्यायिक) के रूप में नियुक्त किया गया था। जनवरी 2021 में, केंद्र सरकार ने जस्टिस चीमा के कार्यकाल को एनसीएलएटी में न्यायिक सदस्य के रूप में 67 साल की उम्र तक संशोधित किया था। आयु तक या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो। जस्टिस चीमा 19 अप्रैल, 2021 से एनसीएलएटी के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं। वह 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 20 सितंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे। याचिकाकर्ता के अनुसार, केंद्र सरकार ने उन्हें 10 सितंबर को अचानक एक पत्र भेजकर सूचित किया कि यह उनका आखिरी दिन है क्योंकि उनका 4 साल का कार्यकाल समाप्त हो गया है।

यह बताया गया है कि जस्टिस चीमा की नियुक्ति ट्रिब्यूनल रूल्स 2017 के तहत की गई थी, जिसे 2019 में उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया था। रोजर मैथ्यू के मामले में उस फैसले के अनुसार, जो पहले से ही सेवा में थे, उन्हें उनके मूल अधिनियम द्वारा शासित किया जाना था। इसलिए, 2017 के नियमों से पहले की गई नियुक्तियां मूल अधिनियमों और नियमों द्वारा शासित थीं, जिन्होंने संबंधित ट्रिब्यूनल की स्थापना की, जिसके अनुसार जस्टिस चीमा को 67 वर्ष की आयु में 20 सितंबर, 2021 को सेवानिवृत्त होना था।

हालांकि, नए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 के तहत मौजूदा मामले में केंद्र की ओर से 4 साल के कार्यकाल को लागू किया जा रहा है। अधिनियम की धारा 5, अध्यक्ष और सदस्य के कार्यकाल को चार वर्ष के कार्यकाल के लिए निर्धारित करती है।

इस साल 14 जुलाई को मद्रास बार एसोसिएशन केस में उच्चतम न्यायालय ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स ऑर्डिनेंस के प्रावधानों को रद्द कर दिया, जिसमें सदस्यों की अवधि 4 वर्ष निर्धारित की गई थी और जिसमें सदस्यों की नियुक्ति की न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित की गई थी।हालाँकि, वही प्रावधान ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट में शामिल हैं।

मद्रास बार एसोसिएशन और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश द्वारा दायर याचिकाओं में इस प्रावधान की वैधता और ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की संवैधानिक वैधता पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दे रखी है। आक्षेपित अधिनियम की धारा 5 को इस हद तक चुनौती दी गई है कि यह अध्यक्ष और सदस्य के कार्यकाल को चार साल के प्रकट रूप से छोटे कार्यकाल के लिए निर्धारित करता है और न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। याचिका में कहा गया है धारा 5 भी कम से कम पांच साल के लिए नियुक्तियों का कार्यकाल तय करने के इस माननीय न्यायालय के निर्देशों के खिलाफ चलती है, जैसा कि रोजर मैथ्यू में है।

दरअसल ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 उच्चतम न्यायालय और केंद्र सरकार के बीच टकराव का एक बिंदु बन गया है, क्योंकि कोर्ट नाखुश है कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स अधिनियम उन्हीं प्रावधानों के साथ पारित किया गया जो मद्रास बार एसोसिएशन मामले में रद्द कर दिए गए थे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

  

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles