Friday, March 29, 2024

मुजफ्फरनगर दंगा मामले में बीजेपी विधायक दोषी करार, कोर्ट ने सुनाई 2 साल की सजा

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए भीषण दंगे के मामले में कवाल गांव के रहने वाले बीजेपी नेता और वर्तमान में खतौली विधायक विक्रम सैनी को कोर्ट ने दोषी करार देते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई है। मुजफ्फरनगर एमपी-एमएलए कोर्ट ने सैनी को यह सजा कवाल में एक समुदाय के विरुद्ध लोगों को भड़काने और सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने के अपराध में सुनाई है। मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में 27 अगस्त, 2013 को एक विवाद में दो पक्षों के तीन लोगों की हत्या हो गई थी। विक्रम सैनी इसी कवाल गांव के रहने वाले हैं और उस समय वो गांव के प्रधान थे। आरोप है कि घटना के बाद सैनी सक्रिय रूप से माहौल को अलग रंग देने में लगे थे।

बीजेपी विधायक के साथ 12 अन्य लोगों को भी सजा सुनाई गई है। दो साल की इस सजा के अलावा इन सभी को 10 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा। विक्रम सैनी वही नेता हैं जो लगातार विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं। सैनी खतौली विधानसभा से दूसरी बार विधायक हैं। हालांकि सजा सुनाने के कुछ समय बाद ही अदालत ने विक्रम सैनी को जुर्माना जमा करने के उपरांत जमानत दे दी।

विधायक विक्रम सैनी के अधिवक्ता वीर सिंह अहलावत ने बताया कि उनके और 12 अन्य ग्रामीणों के विरुद्ध यह मुकदमा पुलिस की और से 29 अगस्त को दर्ज किया गया था। इन पर एक समाज के विरुद्ध दूसरे समाज को भड़काने और हमला करने का आरोप लगाया गया था जिसमें जिन लोगों को मौके से पकड़ा गया था, उन्हें अदालत ने दोषी माना। हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं और उच्च अदालत में अपील करेंगे।

दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद विधायक विक्रम सैनी को जमानत भी मिल गई। विक्रम सैनी ने इस दौरान मुजफ्फरनगर दंगे के लिए समाजवादी पार्टी को दोषी बताया और कहा कि उनके विरूद्ध पुलिस ने रस्सी का सांप बनाकर पेश किया। वो उच्च अदालत में जाकर अपील दायर करेंगे। समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष फरहाद गाड़ा ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सपा को दोषी बताने वाले बीजेपी विधायक को अदालत दोषी सिद्ध कर रही है जिससे पता चलता है कि दंगा किसने और क्यों करवाया था।

मुजफ्फरनगर के जानसठ थाना क्षेत्र में आने वाले कवाल गांव में 27 अगस्त 2013 को एक विवाद में शाहनवाज, गौरव और सचिन की हत्या की अपराधिक घटना का सांप्रदायिकरण इस भीषण दंगे का आधार माना जाता है। विक्रम सैनी इसी कवाल गांव के रहने वाले हैं और उस समय वो गांव के प्रधान थे। आरोप है कि घटना के बाद सैनी अत्यधिक रूप से सक्रिय हो गए और माहौल को अलग रंग देने लगे। अब पास की विधानसभा क्षेत्र खतौली के विधायक हैं। दंगे की जख्मी यादों के बीच बहुत से मामलों में समझौते हो गए और बेघर हुए हजारों लोगों में से ज्यादातर वापस लौट गए। जान और माल के उस भारी नुकसान को मुजफ्फरनगर के लोग कवाल गांव से ही जोड़कर देखते हैं।

29 अगस्त को गांव में हिंसा की घटना हुई, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला हुआ। इसके बाद गांव में बढ़ती तनातनी के बीच कवाल से 2 किमी दूर नगला मंदौड़ के सरकारी स्कूल के मैदान में पंचायत हुई और हिंसा की नींव पड़ी। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद विक्रम सैनी को हिंसा के कई मामलों में जेल भेजा गया था और उनके विरुद्ध रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी। एक साल से अधिक जेल में बिताने के बाद विक्रम सैनी जमानत पर बाहर आए और जिला पंचायत सदस्य चुनाव लड़े और जीत गए।

साल 2017 में बीजेपी ने विक्रम सैनी को खतौली विधानसभा से प्रत्याशी बनाया और उन्हें विधायक चुन लिया गया। 2022 में पुनः वो बीजेपी से विधायक बने हैं। विक्रम सैनी लगातार आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए चर्चित हैं। वो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर ओछी टिप्पणी करके विवादों में बुरी तरह फंस गए थे जिसके बाद उनके खिलाफ सैकड़ों गांवों में विरोध हुआ था। मुसलमानों के विरुद्ध अधिक बच्चे पैदा करने से लेकर कई तरह के नफरतों से भरे हुए बयान विक्रम सैनी दे चुके हैं। सैनी के खिलाफ अदालत के इस फैसले के बाद उनके गांव में एक वर्ग ने दबी जबान में खुशी का इजहार किया है। गांव के इसरार अहमद का कहना है कि अदालतों में लोगों का भरोसा इसीलिए कायम है। आदमी कितना भी बड़ा हो जाए मगर वो कानून से बड़ा नहीं हो सकता है।

साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे ने देश की राजनीतिक दशा और दिशा को बदल कर रख दिया था। इस दंगे ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम एकता के समीकरणों को पूरी तरह क्षत-विक्षत कर दिया था। करीब 9 साल बाद जनता की समझ में राजनीति की चालबाजी आई तो जाटों और मुसलमानों में फिर से एकता बनी और हर हर महादेव और अल्लाह हु अकबर का नारा फिर से साथ-साथ लगने लगा।

एमपी-एमएलए कोर्ट से बीजेपी विधायक को सजा का यह निर्णय काफी अहम है और निश्चित तौर पर 9 साल बाद आए अदालत के इस फैसले से मुजफ्फरनगर में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ेंगी। यहां खास बात यह भी है कि मुजफ्फरनगर दंगे के बहुत से मुकदमे वापस भी लिए जा चुके हैं, मगर अब भी कुछ मुकदमों में सुनवाई जारी है।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles