नई दिल्ली/नागपुर। महाराष्ट्र में जारी सत्ता संघर्ष के बीच सूबे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को एक बड़ा झटका लगा है। चुनावी हलफनामे में अपने दो केसों को छुपाने के मामले में नागपुर की स्थानीय कोर्ट ने सम्मन जारी किया है। जिसमें उसने फडनवीस को 4 दिसंबर को कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था जहां सुनवाई के बाद उसने इसे निचली अदालत के पास भेज दिया था।
एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता सतीश यूके द्वारा दायर यह याचिका अब फडनवीस के लिए नई मुसीबत बन गयी है। मुख्यमंत्री के वकील उदय डाबले ने टाइम्स आफ इंडिया को बताया कि मुख्यमंत्री को उस दिन व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहना जरूरी नहीं है। और वह अगली कोई तारीख मांग सकते हैं। लेकिन उन्हें जमानत लेने के लिए व्यक्गित तौर पर कोर्ट में हाजिर होना होगा। और यह कोई ऐसी तारीख हो सकती है जो उनके लिए सुविधाजनक हो।
सतीश यूके द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान पेश किए गए अपने चुनावी हलफनामे में फडनवीस ने अपने खिलाफ चल रहे दो मामलों को छुपाया था। शिकायत में मुख्यमंत्री फडनवीस को आरोपी के तौर पर दर्ज किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि सम्मन जारी होने के पहले तक मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों के लश्कर को इसकी जानकारी तक नहीं थी।
हालांकि इसके पहले बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने मामले में फडनवीस को क्लीन चिट दे दी थी। उसके बाद यूके ने सुप्रीम कोर्ट में उसको चुनौती दी जहां से कोर्ट ने मामले को निचली अदालत में चलाने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच ने 23 जुलाई के अपने आदेश में कहा था कि वह इस मामले को केवल इस विषय तक सीमित करना चाहते हैं कि इस मामले में लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए का उल्लंघन हुआ है या नहीं। यूके ने सबसे पहले 2014 में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (जेएमएफसी) के सामने इस मामले को दायर किया था। लेकिन 7 सितंबर 2015 को जेएमएफसी ने उसे खारिज कर दिया। हालांकि बाद में सेशन कोर्ट ने जेएमएफसी के फैसले को रद्द करते हुए मामले को फिर से उसी के पास भेज दिया।
उसी के तुरंत बाद फडनवीस ने सेशन कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में अपील की। 3 मई 2018 को जेएफएमसी के सितंबर 2015 के फैसले को बहाल करते हुए सेशन कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर यह मामला जिंदा हो गया है। और सेशन कोर्ट द्वारा जारी सम्मन उसी का नतीजा है।