Friday, March 29, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: कुपोषित बच्चों की राजधानी बन गया है पीएम का संसदीय क्षेत्र वाराणसी

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कई पोषण-राशन योजनाओं के होने के बाद भी शहर में 55 हजार बच्चे कुपोषित हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें 3,500 बच्चे अतिकुपोषित और इनमें भी एक हजार मासूम गंभीर स्थिति में हैं। अकेले बनारस में हजारों की तादात में मिल रहे कुपोषित बच्चों को सुपोषित बनाने के लिए तमाम सरकारी योजनाएं नौकरशाही के लचर रवैये से भ्रष्टाचार की शिकार हो गई हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने दशक भर पहले पोषण पुनर्वास केंद की स्थापना की। इससे लाखों नागरिकों में उम्मीद की किरण और राहत की आस जगी थी, लेकिन करें भी तो क्या ? जब व्यवस्था ही कुपोषित हो जाए। इसकी जानकारी मिलते ही डीएम बनारस का माथा ठनक गया है। आनन-फानन में स्वास्थ्य अधिकारियों संग बैठकर उन्हें जमकर लताड़ लगाई और कुपोषित बच्चों को भर्ती कराने पर ही वेतन रिलीज करने का निर्देश भी दे डाला।    

गोद में अपने कुपोषित बच्चे को लिए हुए आलिया

दहकती दुपहरी और दमघोंटू उमस में हुकुलगंज निवासी 58 बसंत पार कर चुकी शकीना की नाराजगी आंगनबाड़ी संचालिका से सिर्फ इसलिए है कि आंगनबाड़ी सहायिका मोहल्ले में चेहरा देखकर लोगों के बच्चों को मिलने वाले फूड फैकेट को बांटती हैं। शकीना जनचौक से कहती हैं कि सिस्टम की लापरवाही के चलते मेरा नाती बीमार हुआ फिर कुपोषण ने उसे अपना शिकार बना लिया। आंगनबाड़ी में कभी मेरे बेटे के बच्चों को मानक के अनुरूप पोषण पैकेट नहीं मिले हैं। कभी-कभार पैकेट मिलते हैं तो सिर्फ एक या दो बच्चों का ही राशन मिलता है। कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।’ शकीना की छोटी बहु आलिया का बच्चा क्रिटिकल कुपोषण है और वह अपने बच्चे को लेकर वाराणसी के पांडेयपुर स्थित जिला अस्पताल के कुपोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती हैं।

हुकुलगंज बन गया है कुपोषण जोन

बनारस का हुकुलगंज बहुत तंग इलाका है। इस इलाके में बस्तियों की बसाहट इतनी घनी है कि लोगों का साइकिल और बाइक से तंग गलियों से गुजरना किसी मुसीबत से कम नहीं है। तिस पर गली और नुक्कड़ कूड़े के ढेर से निकल रही बदबूदार हवा समूचे वातावरण को दूषित करती है। पास में पार्क या खेल का मैदान नहीं होने से बच्चे इन्हीं गन्दी गलियों में खेलते हैं। दक्षिण में वरुणा नदी तो उत्तर में पांडेयपुर-पहाड़िया रोड हुकुलगंज की चौहद्दी को सील कर देते हैं। इसी हुकुलगंज के पांच बच्चों का इलाज कुपोषित वार्ड में चल रहा है। राबिया के घर के पास में ही रहने वाली आशिमा को भी सरकार द्वारा मिलने वाले पोषण आहार में लापरवाही हो रही है। वह कहती हैं कि ‘मेरे बच्चों को मानक के अनुरूप पोषण नहीं मिलता। अब तक सिर्फ दो बार ही राशन आया है। आंगनबाड़ी से सबको राशन मिलता है, हमें दाल और मूंग मिला है। घी व तेल नहीं मिला है। बच्चों का नाम बराबर लिख-पढ़कर ले जाते हैं, लेकिन पोषक पदार्थ देने में हीला-हवाली करते हैं। बहुत दिक्कत में हैं साहब हम लोग। कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।’

सारनाथ के पंचकोसी निवासी दुर्गा कन्नौजिया अपने नौ महीने के कुपोषित बच्चे के साथ

सिस्टम में ईमानदारी नाम की कोई चीज बची नहीं है?

कुपोषित बच्चे को लेकर भर्ती आशिया के हुकुलगंज निवासी पति मुश्ताक बताते हैं कि ‘राबिया (05 साल), आलिया (04 ) और जैनब (3 साल) के हमारे तीन बच्चे हैं। सरकार के अनुसार ये तीनों बच्चे आंगनबाड़ी से मिलने वाले पोषण पदार्थ के लाभार्थी होने चाहिए। लेकिन सर दो बच्चों को ही पोषण सामग्री मिलती है। इसमें भी कभी-कभार तो वह भी आधा-अधूरा ही मिलता है। मैं मजदूरी करता हूं, महंगाई इतनी बढ़ गई है कि मजदूरी की कमाई से परिवार का पेट भरना मुश्किल हो रहा है। कई बार शिकायत करने के बाद ही एक बच्चे का नाम दर्ज किया जा सका है। जब पोषक पैकेट बांटे जाते हैं तब मेरे बच्चे को यह कहते हुए पैकेट नहीं दिए जाते कि आपके बच्चों का नाम सूची में दर्ज नहीं है। मैं थककर शिकायत करना छोड़ चुका हूं। अब लगता है सिस्टम में ईमानदारी नाम की कोई चीज बची नहीं है।

क्यों नहीं मिलता है नियमित रूप से पोषण पैकेट

पोषण पुनर्वास केंद में भर्ती आरती की बेटी भी कुपोषण का शिकार है। शिवपुर के कोलवा की संध्या के पति बढ़ई हैं। संध्या कहती हैं कि ‘मेरा बच्चा कमजोर है। सही से खाना नहीं खा पाता है। आंगनबाड़ी से गाय-भैंस को खिलाने वाला दरुआ (ओट्स) मिलता है, तो हमने मना कर दिया है कि दरुआ नहीं चाहिए। मेरा बच्चा नहीं खाता है। पोषण सामग्री बहुत लेट-लतीफी से मिलती है। सारनाथ के पंचकोशी से अपने कुपोषित बच्चे को लेकर जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में भर्ती दुर्गा कन्नौजिया ने बताया कि ‘मेरा बच्चा नौ महीने से अधिक का हो गया है। वह बैठ नहीं पाता है। डॉक्टर ने बताया है कि बच्चे को कुपोषण हुआ है। आंगनबाड़ी से पोषण पैकेट लगातार नहीं मिल रहा है। तीन महीने पहले दरुआ, चने की दाल और एक पैकेट रिफाइन तेल मिला था”।

शिवपुर के कोइलवा की संध्या का बच्चा भी कुपोषण का शिकार। इलाज के लिए जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में भर्ती है

कुपोषित बच्चों की दूसरी-तीसरी सूची भी है तैयार

बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) डीके सिंह ने बताया कि ‘हाल में कुपोषण वार्ड में कुल 12 नौनिहालों को  सुपोषित करने का काम किया जा रहा है। डॉक्टर और नर्सेज की टीम काफी मुस्तैदी से जुटी हुई है। बाल विकास परियोजना अधिकारी जिले में युद्धस्तर से अभियान चलाकर कुपोषित बच्चों को खोजने और इनकी सूची बनाने में जुटे हुए हैं। यहां भर्ती 12 कुपोषित बच्चों को इलाज के बाद सुपोषित घर भेजा जाएगा। इसके बाद तैयार दूसरी सूची के कुपोषित बच्चों को एनआरसी में भर्ती कर ट्रीटमेंट दिया जाएगा। वाराणसी के दीन दयाल उपाध्याय जिला चिकित्सालय स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में कुल दस बेड हैं, फिलवक्त दो अतिरिक्त बेड जोड़े गए हैं। इन बेडों पर 12 कुपोषित नौनिहालों का इलाज किया जा रहा है। जबकि, जिले के अन्य कुपोषितों बच्चों को इंतज़ार है, उनको कब इलाज मिलेगा ?

सवालों के घेरे में सार्वजनिक वितरण प्रणाली

गरीबी, कुपोषण और पसमांदा वर्ग के उत्थान के लिए काम करने वाली संस्था ‘मानवाधिकारी जन निगरानी समिति’ के लेलिन रघुवंशी बताते हैं कि ‘ वाराणसी जैसे शहर में, जो कि पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है, कुपोषण के बढ़ते आंकड़े सम्बंधित विभागों की लापरवाहियों की कलई खोल रहे हैं। निःसंदेह वाराणसी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में सैकड़ों की तादाद में मिल रहे कुपोषित बच्चों ने लोगों को चौंका कर रख दिया है। कुपोषण की रोकथाम और जागरूकता के लिए केंद्र, राज्य सरकार, महिला बाल विकास कल्याण समेत कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी काम कराती हैं, फिर भी ये हाल है। इसके लिए सीधे तौर पर आंगनबाड़ी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्य महकमा जिम्मेदार है। यदि सही और सुव्यवस्थित रूप से तीनों विभाग काम करें तो चार से छह महीनों में ही कुपोषण को कंट्रोल किया जा सकता है।

लेनिन आगे कहते हैं ‘कई बार शिकायतें सुनने और मीडिया रिपोर्ट्स में देखने को मिलती है कि जिनके खेत, मकान, दुकान और साधन सम्पन्न हैं, ऐसे अपात्र लोगों को पात्र बनाकर राशन योजना का लाभ दिया जा रहा है। सिस्टम को चाहिए कि इस मामले को गंभीरता से ले और अपात्रों पर कार्रवाई करते हुए पात्र और जरूरतमंदों को लाभ दिया जाए। साथ मॉनिटरिंग भी की जाए, जिससे कि अनाज योजना और पोषक फूड पैकेट उन बच्चों को प्राप्त हो सकें, जो मानक के अनुरूप पोषणयुक्त आहार नहीं मिलने से कुपोषित हो रहे हैं। इस संबंध में जिला फूड अथॉरिटी को पत्र लिख जरूरतमंदों तक राशन पहुंचवाने की मांग करूंगा।’

कुपोषण को बहुत ही गंभीर विषय करार देते हुए यूनिसेफ के अफसर अंजनी बताते हैं कि “पहले से तेजी से काम किया जा रहा है। कुपोषण के खिलाफ युद्धस्तर पर अभियान छेड़कर बनारस के शहरी और ग्रामीण इलाकों से कुपोषित बच्चों को चिंहित किया जा रहा है। इसके लिए शहरी इलाके में 990 आँगनबाडी सेंटर संचालित हैं। आंगनबाड़ी और आशा कार्यकत्री नौनिहालों को पोषक आदि की मॉनिटरिंग करती रहती हैं। कुपोषण के लक्षण मिलने पर अभिभावकों को कुपोषण पुर्नवास केंद्र लाकर इलाज के लिए कहा जाता है। देखा गया है कि कई मामलों में जागरूकता के अभाव में माता-पिता अपने बच्चों का समुचित इलाज में लापरवाही बरतते हैं। फिर भी हम लोग जुटे हुए हैं और जनपद वाराणसी समेत चंदौली, गाजीपुर व जौनपुर में युद्धस्तर पर अभियान चलाया जा रहा है।

चला रहे सर्च अभियान !

जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि ‘कुपोषण, आईसीडीएस का प्रोग्राम है। हमारा विभाग सर्च अभियान चला रहा है। जो बच्चे मिल रहे हैं, उनको भर्ती कर चिकित्सीय इलाज किया जा रहा है। इनके पोषण आदि की सुविधा प्रदान करने की जिम्मेदारी आईसीडीएस के तहत सीपीओ व सीडीपीओ की है। यह अच्छी बात है कि समय पर इलाज के लिए अधिक से अधिक कुपोषित बच्चों को इलाज अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा है। वैसे भी अभी स्लम और पिछड़े इलाके में रहने वाले आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों में कुपोषण के बारे अधिक जागरूकता नहीं है।” बहरहाल, सरकार, केंद्रीय स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास विभाग समेत आधा कार्य दर्जन से अधिक महकमा कुपोषण मुक्त करने में जुटा हुआ है। इन कार्यों पर सरकार करोड़ों-अरबों रूपए पानी की तरह बहाती है, लेकिन इनके प्रयासों की जमीनी हकीकत सबके सामने है। वाराणसी में बढ़ते कुपोषण के आंकड़े सभी को डरा रहे हैं।

घनी आबादी और तंग गलियों बसा हुकुलगंज इलाका

आंगनबाड़ी केंद्र के मानक हासिये पर 

गांव-शहर के विकास का दंभ भरने वाली डबल इंजन की सरकार अपने आंकड़ों में ही फंसकर रह गई है। बची-खुची कसर लापरवाह नौकरशाही पूरी कर दे रही है। स्थानीय देवेश बताते हैं कि ‘मोहल्ले में बहुत से आंगनबाड़ी केंद्र सरकार के नियमों को ताक पर रखकर संचालित किए जा रहे हैं। जिले समेत हुकुलगंज में चलने वाले कई आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवन में चलते हैं। इनके पास न हवादार कमरा और न ही इनके दीवारों को बाल मनोविज्ञान से जुड़े चित्र और प्रदर्शनियां बनाई गई हैं। केंद्र के सामने बच्चों और बच्चियों के खेलने-टहलने के स्थान का भी अभाव है। तंग इलाके में चारों तरफ से घिरे स्थान पर आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया जा रहा है, जो सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है। इनके खेलने, शौच और अन्य अभ्यास के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई है। इससे बच्चों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहां की दीवारों पर आंगनबाड़ी का पता नाम, डाइट, अधिकारियों के मोबाइल नंबर, बच्चों के अधिकार और अन्य आवश्यक सूचनाओं की नहीं लिखवाया गया है। अव्यवस्थित तरीके और लापरवाही में आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन कई सवालों को जन्म देते हैं।’

अति कुपोषित बच्चों को कराया जा रहा भर्ती

बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) डीके सिंह ने बताया कि ‘बाल विकास परियोजना अधिकारियों (सीडीपीओ) द्वारा किए गए प्रयास से बच्चों को एनआरसी तक लाया जा रहा है। इसके साथ ही अति कुपोषित बच्चों के अभिभावकों को एनआरसी में भर्ती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इन बच्चों को 14 दिन तक चिकित्सक एवं समस्त स्टाफ की देखरेख में पूरी देखभाल की जाएगी। पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उन्हें एनआरसी से डिस्चार्ज किया जाएगा। इन सभी बच्चों के डिस्चार्ज होने बाद कुपोषित बच्चों की दूसरी सूची भर्ती कराने के लिए तैयार है ।” बता दें कि पिछले माह यानी अप्रैल में 20 बच्चों के सापेक्ष केवल 14 बच्चे भर्ती हुए थे। इस लापरवाही को देखते हुए जिलाधिकारी कौशल शर्मा ने नाराजगी व्यक्त कर जिम्मेदार अधिकारीयों को फटकार भी लगाई थी।’

आलिया की सास अपनी माली हालत दिखाते हुए

दावे कब बनेंगे हकीकत ?

जिला अस्पताल के एनआरसी प्रभारी डॉ सौरभ सिंह बताते हैं कि पोषण पुनर्वास केंद्र एक ऐसी सुविधा है, जहां 06 माह से 05 वर्ष तक के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे, जिनमें चिकित्सकीय जटिलताएं होती हैं। इनको चिकित्सकीय सुविधाएं मुफ्त में प्रदान की जाती हैं। इसके अलावा बच्चों की माताओं को बच्चों के समग्र विकास के लिए आवश्यक देखभाल तथा खान-पान संबंधित कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस केंद्र में छह माह से पांच साल तक के कुपोषित बच्चों का इलाज किया जाता है । यहां शुरुआती दौर में 14 दिन रखकर बच्चों का इलाज व पोषक तत्वों से युक्त आहार दिया जाता है। यह भोजन शुरुआती दौर में बच्चे को दो-दो घंटे बाद दिया जाता है। यह प्रक्रिया रात में भी चलती है। इसके अलावा बच्चे के साथ आने वाली बच्चे की मां या अन्य परिजन को भोजन के अलावा पचास रुपये रोजाना भत्ता भी दिया जाता है। इस दौरान 100 फीसदी बच्चे इस वार्ड से स्वस्थ होकर निकले हैं। इसके अलावा इलाज कराकर गए बच्चों का पुन: जांच के लिए लेकर आने पर भी उनको भत्ता दिया जाता है। यदि वह 15 दिन में इलाज का फॉलो अप कराने आते हैं तो उन्हें 140 रुपये मिलते हैं। यह भत्ता उन्हें दो महीने तक मिलता है।”

‘ऊपर से ही कम आता है पोषण राशन’

हुकुलगंज इलाके के आंगनबाड़ी सेंटर की सहायिका शर्मीला ने बताया कि “मेरे आंगनबाड़ी सेंटर में कुल 65 बच्चे पंजीकृत हैं। इनके राज्य और केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाला पोषण आहार सिर्फ 35 बच्चों के लिए आता है। कभी-कभार इसमें से पोषण आहार के पैकेट और मात्रा कम मिलती है। कई बार तो कम पोषण आहार मिलने से नाराज अभिभावक केंद्र पर आकर विवाद करते हैं। कम राशन और बच्चों की संख्या के मामले के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया गया है। फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। सुधार और मानक के अनुरूप पोषण आहार के नहीं मिलने से हमलोगों को भी वितरण में बहुत परेशानी होती है।’

(जनचौक के लिए वाराणसी से युवा स्वतंत्र पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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