Friday, April 19, 2024

बेरोजागर युवाओं के संघर्ष का गवाह बना लखनऊ का इको गार्डन

लखनऊ। एक तरफ उत्तर प्रदेश का विधान सभा सत्र चल रहा है तो दूसरी ओर लखनऊ का इको गार्डन प्रदेश भर से अपने रोजगार के सवाल को लेकर आये हजारों छात्र छात्राओं के संघर्ष का गवाह बना हुआ है। परीक्षा, साक्षात्कार सब में सफल होने के बावजूद किसी को केवल अपनी नियुकति पत्र का इंतज़ार है तो कहीं लंबे समय से बिना कारण लटका अंतिम परिणाम जारी होने का इंतज़ार तो कोई सरकार से इस जवाब की उम्मीद में धरने पर बैठा है कि इतनी जाँच पड़ताल और सुरक्षा के बावजूद आख़िर प्रतियोगी परीक्षा (दरोगा भर्ती परीक्षा नवंबर – दिसंबर2021) में धांधली कैसे हुई। सबका अपना-अपना संघर्ष और आन्दोलन है पर सवाल सबका सरकार से एक ही है, आख़िर उन्हें रोजगार कब मिलेगा? आख़िर प्रतियोगी परीक्षाओं में हो रही धांधलियों पर कब रोक लगेगी? भर्तियों में पारदर्शिरता कब आएगी? इन सारे सवालों के साथ हजारों छात्र छात्रायें आन्दोलनरत हैं तो आईये इनके मुद्दों को समझने के लिए चलते हैं इनके पास….

अन्तिम परिणाम जारी करने के लिए संघर्ष करते छात्र

साल 2016 के दिसंबर में परीक्षा के लिए विज्ञापन जारी होता है, 2019 में जाकर लिखित परीक्षा होती है और फिर उसके भी दो साल बाद यानी 2021 के जनवरी और सितंबर-अक्टूबर में टाइपिंग टेस्ट और साक्षात्कार संपन्न होता है लेकिन हद तो तब हो जाती है जब साढ़े पाँच साल चली लंबी प्रक्रिया के बाद भी अंतिम परिणाम जारी नहीं किया जाता और आखिरकार हालात यहाँ तक पहुँच जाते हैं कि थक हार कर अभ्यर्थियों को अनिश्चित कालीन धरने और आमरण अनशन पर बैठ जाना पड़ता है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं कनिष्ठ सहायक भर्ती 2016 की।

पहले दिन से ही अनिश्चित कालीन धरने और अब आमरण अनशन पर बैठे देवरिया के मारुत कुमार सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अन्तर्गत विज्ञापन संख्या 26-परीक्षा 2016 कनिष्ठ सहायक भर्ती दिसंबर 2016 में विज्ञापित हुई। यह भर्ती कुल तीन चरणों मे पूरी होनी थी – लिखित परीक्षा, टाइपिंग टेस्ट और साक्षात्कार। इसकी लिखित परीक्षा 31 मई, 2019 को हुई।  टाइपिंग टेस्ट 13 जनवरी से 23 जनवरी 2021 के बीच और साक्षात्कार 15 सितंबर 2021 से 12 अक्टूबर 2021 के मध्य संपन्न हुआ परंतु साक्षात्कार के 6 माह बाद भी अ़ब तक इसका अंतिम परिणाम जारी नहीं किया गया। आयोग से हर माह एक नया आश्वासन मिलता है परंतु अंतिम परिणाम नहीं मिलता।

वे कहते हैं हमको समझ नहीं आता कि आख़िर आयोग अन्तिम परिणाम क्यों नहीं दे रहा जबकि अन्य परीक्षाओं की तरह न तो इसमें कोई technical fault है न मामला कोर्ट में लंबित है न ही धांधली का कोई मुद्दा है बस मुद्दा है तो सिर्फ आयोग की लापरवाही का। उनके मुताबिक जब से साक्षात्कार संपन्न हुआ है यानी October 2021 से, इन 6 महीनों के दौरान उनके नेतृत्व में कई बार धरना प्रदर्शन हो चुका है, विधायकों, सांसदों से लेकर उपमुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री तक के नाम पत्र दिया गया लेकिन कहीं से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। मारुत कहते हैं 536 पदों के लिए करीब 2000 अभ्यर्थी अपने अंतिम परिणाम का इंतज़ार कर रहे हैं। मारुत सिंह कहते हैं अब यह ठान लिया जब तक अन्तिम परिणाम जारी नहीं होता तब तक आन्दोलन जारी रहेगा। आमरण अनशन में बैठने के कारण मारुत सिंह बेहोश भी हुए जिस कारण उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा बावजूद इसके वे अभी भी आन्दोलन में बने हुए हैं उनके नेतृत्व में आन्दोलन चल रहा है।

सरकार हमें नयुक्ति दे या मुक्ति दे

” माननीय मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करे बेसिक शिक्षा विभाग 6800 चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति दे सरकार, दो साल से मानसिक प्रताड़ना झेल रहे हैं….. “

6800 शिक्षक भर्ती के लिए आंदोलनरत अभ्यर्थी

इको गार्डन के एक कोने में युवाओं का लगा यह बैनर साफ बता रहा था कि यहाँ तो चयन होने के बावजूद भी सरकार नियुक्ति नहीं दे रही। इसलिए बेहद प्रताड़ित होकर अब ये अभ्यर्थी यह कहने पर मजबूर हो गए हैं कि बस बहुत हो गया अब सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे। दरअसल यह मसला 6800 शिक्षक भर्ती का है। पूरा मामला कुछ यूँ है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018-19 में प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 69000 सहायक शिक्षक भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था।

प्रदेश सरकार ने इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा तो किया लेकिन आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई। अभ्यर्थियों का आरोप है कि आरक्षण लागू करने में धांधली की गई है। इस भर्ती के लिए अनारक्षित की कटऑफ 67.11 फीसदी और ओबीसी की कटऑफ 66.73 फीसदी थी। इसको लेकर चयनित अभ्यर्थी धरने पर बैठे हैं। अभ्यर्थियों ने कहा कि इस नियमावली में साफ है कि कोई ओबीसी वर्ग का अभ्यर्थी अगर अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक नंबर पाता है तो उसे ओबीसी कोटे से नहीं बल्कि अनारक्षित श्रेणी में नौकरी मिलेगी। यानी वह आरक्षण के दायरे में नहीं गिना जाएगा।

आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों द्वारा विरोध दर्ज कराने के बाद राज्य सरकार ने माना कि उससे  आरक्षण लागू करने में गड़बड़ी हुई और आचार संहिता लागू होने से पहले 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति करने का आदेश जारी कर दिया। राज्य सरकार ने बीती 5 जनवरी को 6800 अभ्यर्थियों की एक अतिरिक्त सूची जारी की लेकिन आरक्षित वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों के मुताबिक चुनाव से ठीक पहले सूची जारी करना सरकार का महज चुनावी स्टंट था क्योंकि यदि सरकार की मंशा सही होती तो भर्ती में शुरू से ही आरक्षण लागू करने में धांधली नहीं होती और केवल सूची जारी की गई पोस्टिंग के लिए जिला आवंटित नहीं हुआ और जैसे ही सूची जारी हुई उसके कुछ दिन बाद आचार संहिता लग गई और नियुक्ति का मामला लटक गया और जैसा हर भर्ती के मामले में होता आया है मामला कोर्ट पहुँच गया।

ओबीसी, एससी संगठित मोर्चा के अध्यक्ष /प्रवक्ता अमरेन्द्र सिंह का कहना है कि 6800 चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति के सम्बन्ध में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है। फरवरी में हुई  सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ स्पष्ट कर दिया कि यह स्थिति सरकार ने उत्पन्न की है, सरकार चाहे तो कोर्ट के बाहर इस मामले का हल निकाल सकती है कोर्ट के आदेश के बावजूद भी सरकार इस पूरे प्रकरण को लेकर खामोश बैठी है। अब अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी जिसमें सरकार को अपना पक्ष रखना है।

एसआईटी गठन को लेकर छात्रों का धरना

इन दिनों उत्तर प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा छाया हुआ है और वह है दरोगा भर्ती परीक्षा में हुई बेहिसाब धांधली का और इसी धांधली के खिलाफ़ परीक्षा देने वाले छात्र छात्रायें करीब 45 दिनों से इको गार्डन में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं और इनकी छात्रों की केवल एक ही माँग है DV/PST यानी डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और फिजिकल टेस्ट पर रोक लगाते हुए सरकार इस पूरी धांधली की उच्चस्तरीय जाँच के लिए एसआईटी (SIT)  का गठन करे और चूंकि यह मामला पुलिस विभाग से जुड़ा है इसलिए इस जाँच से पुलिस को दूर रखा जाये।

दरोगा भर्ती के अभ्यर्थी

पूरा मामला इस प्रकार है- मार्च 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी पुलिस दरोगा भर्ती का ऐलान किया इसके बाद 1 अप्रैल 2021 से 15 जून 2021 तक 12 लाख बच्चों ने फॉर्म भरे। कुल 9,534 पदों पर भर्ती होनी थी। मार्च में ऐलान के बाद अप्रैल 2021 में भर्ती के लिए विज्ञापन जारी हुआ और सितंबर में कोरोना के चलते परीक्षा की तारीख बदल दी गई। इसके बाद 12 नवंबर से 2 दिसंबर तक परीक्षा ऑनलाइन मोड में संपन्न हुई। कुल 54 शिफ्ट हुए। 7.61 लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी। 8 जनवरी 2022 को आचार संहिता लागू हो गई इसलिए यह तय हो गया कि परिणाम नई सरकार बनने के बाद आएंगे।

प्रदेश सरकार ने परीक्षा करवाने की जिम्मेदारी एक ऐसी एजेंसी, NSEIT को दे दी जो पहले से ही 6 राज्यों में प्रतिबंधित है और जबकि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने धांधली के ही एक मामले में इस एजेंसी पर साढ़े तीन करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। अब छात्रों का योगी सरकार से यह सवाल है कि जब यह एजेंसी 6 राज्यों में Black listed थी और इसमें जुर्माना भी लग चुका है तो आख़िर इसे परीक्षा कराने की जिम्मेदारी किस आधार पर दी गई जबकि यह एजेंसी हर स्तर पर भ्रष्टाचार में लिप्त है।

14 अप्रैल 2022 को मेरिट जारी कर दी गई। इस मेरिट लिस्ट में कुल 36,170 सफल अभ्यर्थियों के नाम थे। लेकिन जब अभ्यर्थियों को डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया गया तो परीक्षा के दौरान बड़े पैमाने पर हुई धांधली का भांडाफोड़ हुआ और तस्वीर सामने आई कि कई छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने पहला एक घंटा तो कुछ नहीं किया और बाद में मात्र 9 से 10 मिनट में 160 में से 150 से लेकर 158 तक सवाल हल कर दिये जबकि कुछ ऐसे छात्र भी थे जिन्होंने दो घंटे का पेपर जादुई तरीके से महज तीन मिनट में हल कर दिया।

जब ऐसे अभ्यर्थियों को पकड़ा गया और जांच हुई तो पता चला इनका कम्प्यूटर बाहर से मैनेज किया जा रहा था। जैसे जैसे अभ्यार्थी डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन और शारीरिक परीक्षण के लिए आते गए वैसे वैसे परीक्षा में हुई बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा होता गया जो अभी तक जारी है। 15 मई को  ख़ुलासा होता है कि देहरादून और ग्वालियर की कंपनियों ने 10-10 लाख रुपए में परीक्षा पास करवाने की गारंटी ली थी और कुछ लड़कों को पास करवाया भी। उस कंपनी ने एक आईटी कंपनी की मदद ली और परीक्षा केंद्र प्रबंधकों से मिलकर कम्प्यूटर ही हैक करवा लिया।

कनिष्ठ सहायक भर्ती के अभ्यर्थी

विभिन्न परीक्षा केन्द्रों से ऐसे लोगों को भी गिरफ्तार किया गया जो सेंटर के बाहर बैठकर अंदर बैठे अभ्यर्थी को ब्लूटूथ के जरिए सही जवाब बता रहे थे तो वहीं परीक्षा के दौरान ऐसे साइबर एक्सपर्ट भी पकड़ में आये थे जो परीक्षा केंद्र के मास्टर कम्प्यूटर को हैक कर लेते थे और रिमोट के जरिए एक्सेस करते थे। इन लोगों ने परीक्षा पास करवाने के लिए 8 से 10 लाख रुपए लिए थे। इस परीक्षा में ऐसे सॉल्वर गैंग भी पकड़े गए थे जो दूसरे की जगह परीक्षा दे रहे थे। जांच के आधार पर अब तक कई अभ्यर्थी गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं और अभी भी ऐसे छात्रों की धड़पकड़ जारी है। कई जगह परीक्षा केन्द्र व्यवस्थापकों के खिलाफ़ भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। इस पूरे फर्जीवाड़े के खिलाफ़ दरोगा भर्ती परीक्षा देने वाले छात्र छात्रायें करीब करीब 45 दिन से धरने पर हैं। इनमें से कुछ छात्र ऐसे भी हैं जो बहुत कम अंतर से सफल अभ्यर्थियों की श्रेणी में आने से चूक गए लेकिन इनका आन्दोलन इस उम्मीद में भी जारी है कि शायद इनकी मेहनत का आकलन ईमानदारी से किया जाये। छात्रों का सरकार से यही सवाल है कि सुरक्षा के कड़े इंतजाम का दावा करने के बावजूद अखिर धांधली कैसे हुई? तो यदि सरकार की नीयत साफ है तो उसका भांडाफोड़ करने के लिए SIT का गठन करे।

दो सरकारों के पेंच में फसा अभयर्थियों का जीवन

इको गार्डन के हर तरफ आवाजे हैं, नारों की गूँज है, हाथों में तख्तियाँ हैं बैनर हैं और सरकार की तरफ उछलते सवाल हैं कि परीक्षा में सफल होने और सीटें खाली होने के बावजूद हमें नौकरी क्यों नहीं दी जा रही। ऐसा ही एक मामला 12460  शिक्षक भर्ती का है जिसमें अभ्यर्थियों द्वारा लंबी जद्दोजेहद के बाद चार साल पहले करीब 6500 अभ्यर्थियों को तो नौकरी मिल जाती है लेकिन बाकी बचे अभ्यर्थी आज तक नौकरी का इंतज़ार कर रहे हैं और सरकार से पूछ रहे हैं आख़िर हमारा कसूर क्या है मुख्यमंत्री जी। मामला पूरा यह है कि–

15 दिंसबर 2016 को शिक्षकों के 12460 पदों पर सपा सरकार द्वारा भर्ती का विज्ञापन जारी किया गया था। मार्च 2017 में भाजपा की सरकार बनते ही समीक्षा के नाम पर भर्ती रोक दी गई थी। समीक्षा के दौरान भर्ती सही पाई गई। अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा जीत लिया। इसके बाद भी सरकार ने भर्ती शुरू नहीं की तो अभ्यर्थी सडक़ पर उतर आए। 18 अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीधे इस मामले की दखल दी तो भर्ती शुरू हुई तकरीबन 6512 लोगों को नियुक्ति भी मिल गई, लेकिन इस बीच भर्ती फिर से कोर्ट की प्रक्रिया में उलझ गई और 5948 अभ्यर्थियों का नियुक्ति पत्र अधर में लटक गया।

सभी 5948 अभ्यर्थियों के दस्तावेज संबंधित जनपद के बीएसए ऑफिस में जमा हैं। उन्हें स्कूल भी आवंटित हैं, लेकिन नियुक्ति नहीं मिल रही। अभ्यर्थियों का आरोप है कि प्रदेश सरकार इस मामले में कोर्ट में पैरवी करने में लापरवाही बरत रही है क्योंकि इस शिक्षक भर्ती का विज्ञापन सपा सरकार के कार्यकाल में निकला था इसलिए लगता है कि सरकार नियुक्ति देना ही नहीं चाहती। अभ्यर्थियों की मांग है कि मुख्यमंत्री उनकी पीड़ा को समझें और इस समस्या का निराकरण शीघ्र कराएं।

पद खाली लेकिन भर्ती नहीं निकालती सरकार

जरा सोचिए और उस स्थिति का आकलन कीजिए कि जब कोई छात्र अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए किसी विश्वविद्यालय से दो साल तीन महीने का कोर्स यह सोचकर करता है कि सरकार उसके द्वारा किये गए कोर्स से संबंधित विभाग में खाली पड़े पदों पर भर्ती निकालेगी तो इनके लिए सरकारी नौकरी का रास्ता बनेगा लेकिन होता बिल्कुल इसके उल्ट है सालों से न भर्ती निकलती है न ऐसी कोई मंशा सरकार जाहिर करती है तो अब छात्र करें तो क्या करें। जी हम बात कर रहे हैं मथुरा वेटेरनिरी विश्वविद्यालय से डिप्लोमा इन वेटनरी फार्मेसी एवं डिप्लोमा इन लाइवस्टाक एक्सटेंशन के डिप्लोमाधारी छात्रों की जिनके लिए सरकारी नौकरी करने की गुंजाइश तो छोड़िये सरकार इनके कोर्स के पंजीकरण तक की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पा रही है जिसके चलते सरकारी क्षेत्र में इनके लिए रोजगार के अवसर नहीं बन पा रहे हैँ

वेटनरी फार्मेसी के अभ्यर्थी।

जबकि छात्रों के मुताबिक पूरे राज्य में इस तरह का कोर्स कराने वाला यह एकमात्र विश्वविद्यालय है। 2013 में इस कोर्स की शुरुआत हुई थी और 2015 में यहाँ से पहला बैच निकला था और तब के बैच के निकले छात्र आज तक बेरोजगार है क्योंकि न तो इन डिप्लोमाधारी छात्रों का पशु पालन विभाग में पंजीकरण ही हो पाया और न ही इतने सालों से वेटनरी फार्मासिस्ट और पशुधन प्रसार अधिकारी के पद के लिए कोई वैकेंसी निकली जबकि छात्रों के मुताबिक प्रदेश में स्थापित पशु अस्पतालों में सालों से ढेरों पद खाली हैं जिनके चलते बीमार होने वाले पशुओं को समय पर उचित इलाज और दवायें नहीं मिल पा रहीं। छात्रों का आरोप है कि पशु पालन विभाग की घोर लापरवाही और सरकार की उदासीनता के चलते छात्रों का भविष्य खराब हो रहा है। पशुपालन विभाग ने इन आठ सालों में अभी तक इनकी नियमावली तक तैयार नहीं की है।

कुल मिलाकर यह पूरी तस्वीर इतना बताने के लिए काफी है कि किस कदर  प्रदेश में रोज़गार के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं लेकिन सरकार है कि 100 दिन में दस हजार नौकरियां देने का ढिंढोरा पीट रही है। तीन साल, पाँच साल से अभ्यर्थी केवल नियुक्ति पत्र का इंतज़ार कर हैं तो कभी परीक्षा का विज्ञापन जारी होने के बाद परीक्षा ही स्थगित हो जा रही है। न जाने कितने तो ऐसे उम्मीदवार हैं जो सरकार के इस लचर रवैये के कारण तय आयु सीमा भी पार कर चुके हैं। या ओवर एज होने वाले हैं तो ऐसे में इनके पास सड़क पर उतर कर आंदोलन और अनशन के सिवा क्या रास्ता बच जाता है।

(लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।

Related Articles

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।