जिनको अपने अधिकारों का और संविधान की प्रस्तावना का पता नहीं, उनके बारे में सोचे सरकार और न्यायपालिका : राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस के मौके पर एक भावुक संबोधन दिया जो कि पूरे देश में वायरल हो रहा है और लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जेल में बंद लोगों के बारे में सोचें। थप्पड़ मारने के जुर्म में कई सालों से बंद हैं, उनके लिए सोचिए। उनको न तो अपने अधिकार पता हैं, न ही संविधान की प्रस्तावना, न ही मौलिक अधिकार या मौलिक कर्तव्य। उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा है। उनके घर वालों में उन्हें छुड़ाने की हिम्मत नहीं रहती, क्योंकि मुकदमा लड़ने में ही उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं। दूसरों की जिंदगी खत्म करने वाले तो बाहर घूमते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली जुर्म में वर्षों जेल में पड़ा रहता है। इस पर न्यायपालिका में हरकत शुरू हो गयी है लेकिन अभी सरकार की चुप्पी बनी हुई है कि व्यवस्था में सुधर करने की उसकी मंशा है या नहीं।

संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि देश में ज्यादा जेल बनाने की बात होती है लेकिन यह विकास नहीं है। उन्होंने कहा कि जेलों के विस्तार की अपेक्षा जेलों की संख्या तो कम होते होते खात्मे की ओर जानी चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर देश की सरकारों और अदालतों को सोचने के लिए कहा है। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट में मौजूद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, समेत सभी जज, कानून मंत्री समेत सैकड़ों लोग शामिल थे।

राष्ट्रपति ने 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपने पहले संविधान दिवस संबोधन में झारखंड के अलावा अपने गृह राज्य ओडिशा के गरीब आदिवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने या व्यवस्था करने के लिए पैसे की कमी के कारण जमानत मिलने के बावजूद वे कैद में हैं।अंग्रेजी में अपने लिखित भाषण से हटकर, मुर्मू ने हिंदी में बोलते हुए न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था, यह देखते हुए कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन ये गरीब कैदी, जो किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए होंगे जेल में हैं।

मुर्मू ने इस दौरान अपने प्रारंभिक जीवन का भी जिक्र किया और बताया है कि उन्होंने किस तरह के संघर्षों का सामना किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि मैं छोटे गांव से आई, हम गांव के लोग तीन ही लोगों को भगवान मानते हैं- गुरु, डॉक्टर और वकील। गुरु ज्ञान देकर, डॉक्टर जीवन देकर और वकील न्याय दिलाकर भगवान की भूमिका में होते हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा एक भावनात्मक भाषण में जमानत मिलने के बावजूद छोटे-मोटे अपराधों में जेलों में बंद आदिवासियों की दुर्दशा को उजागर करने के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश भर के जेल अधिकारियों को नालसा को उनकी रिहाई के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने के लिए 15 दिनों के भीतर ऐसे कैदियों का विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति एसके कौल भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के साथ मंच पर बैठे थे, जब राष्ट्रपति ने अपने मूल ओडिशा में एक विधायक के रूप में और बाद में झारखंड के राज्यपाल के रूप में कई विचाराधीन कैदियों से मिलने का अपना अनुभव सुनाया।

जस्टिस कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने मंगलवार को जेल अधिकारियों को ऐसे कैदियों का विवरण संबंधित राज्य सरकारों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जो 15 दिनों के भीतर दस्तावेजों को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण को भेज देंगे।पीठ ने कहा कि जेल अधिकारियों को विचाराधीन कैदियों के नाम, उनके खिलाफ आरोप, जमानत आदेश की तारीख, जमानत की किन शर्तों को पूरा नहीं किया गया और जमानत के आदेश के बाद उन्होंने कितना समय जेल में बिताया है, इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने होंगे।

न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे अधिवक्ता देवांश ए मोहता ने कहा कि दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) के पास जमानत दिए जाने के बावजूद जेल में बंद ऐसे विचाराधीन कैदियों की सहायता करने की योजना है।

पीठ ने कहा कि दिल्ली में इस तरह के मामले कम हो सकते हैं लेकिन जहां वित्तीय साधन एक चुनौती बन जाते हैं वहां ज्यादा हो सकते हैं। पीठ ने नालसा की ओर से पेश अधिवक्ता गौरव अग्रवाल से एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने की सभी संभावनाओं का पता लगाने और इस स्थिति से निपटने और जमानत आदेशों के निष्पादन के तरीके सुझाने के लिए कहा।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 28 नवम्बर को उन लोगों के बारे में चिंता व्यक्त की, जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे जमानत बांड भरने या अदालत के समक्ष ज़मानतदार पेश करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे जेल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि यह एक नियमित घटना है जहां अभियुक्तों को जमानत दी जाती है, लेकिन वे जमानत बॉन्ड या स्थानीय ज़मानतदार पेश करने में सक्षम नहीं होते हैं। यह उचित होगा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कोई उपाय निकाले।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महालक्ष्मी पावनी ने अदालत को अवगत कराया कि बहुत कम उच्च न्यायालयों ने 9 मई 2022 के आदेश के अनुसार अपनी रिपोर्ट दायर की है, जिसके द्वारा सभी उच्च न्यायालयों को जमानत के आदेशों के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी जिनका पालन नहीं किया गया है। राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील ने अदालत को अवगत कराया कि एक रिपोर्ट दायर की जा चुकी है। कोर्ट ने मामले को 3 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया और अन्य उच्च न्यायालयों को इस बीच स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आंध्र प्रदेश की एक ट्रायल कोर्ट के जज द्वारा उसके आदेश की गलत व्याख्या की गई, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी शीर्ष अदालत द्वारा अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद भी हिरासत में रहा। 9 साल तक हिरासत में रहने के बाद आरोपी को जमानत दे दी गई थी, लेकिन आरोपी को दो साल और हिरासत में रहना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस स्थिति पर टिप्पणी की थी कि यह मामला बहुत ही खेदजनक स्थिति को चित्रित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सुधारात्मक मैकेनिज्म को स्थापित करना होगा, विशेष रूप से जहां कार्यवाही विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से शुरू की गई थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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