Friday, March 29, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: योगी के ‘आदर्श तालाबों’ में पानी तो नहीं घास चरती गायें जरूर मिलीं

सीतापुर। वह दिन दूर नहीं जब शहर वासियों की तरह गाँवों के लोग भी सरोवर किनारे सैर सपाटे का लुत्फ़ उठाएंगे। जी नहीं यह बात हम नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार कह रही है, और इसे कहने के पीछे उसका मकसद अपनी उस योजना का प्रचार-प्रसार करना है जिसमें उसने राज्य के हर जिले के 11 गाँवों के लिए मनरेगा के तहत एक “अमृत सरोवर” बनाने की बात कही है l दरअसल योगी सरकार के मुताबिक वह प्रदेश में एक नई पहल करने जा रही है। जिसके तहत भूमिगत जलस्तर सही करने की दिशा में मुहिम चलाई जाएगी। आजादी के अमृत काल में शुरू होने वाले इस अभियान के अतंर्गत प्रदेश के पूरे 75 जिलों में कुल 5625 तालाब तैयार किए जाएंगे और ये तालाब ‘अमृत सरोवर’ कहलाएंगे। सरकार के मुताबिक गिरते वाटर लेवल में सुधार लाने के लिए यह एक करागर प्रयास सबित होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश के प्रत्येक जिले में 75 तालाबों का पुनरुद्धार और खुदाई कराई जाएगी। इसके अलावा इन तालाबों को स्थानीय पर्यटन का केंद्र बनाया जाएगा। इनमें नौकायन की व्यवस्था भी की जाएगी। इससे शहर सुंदर बनेंगे साथ ही अंडरग्राउंड वाटर लेवल भी सुधरेगा।

सोनवा का इमलिहा तालाब

चलिए ये तो रही सरकार की बात, हालांकि इसमें दो राय नहीं कि सरकार का यह  ड्रीम प्रोजेक्ट यदि सफल होता है तो निश्चित ही इससे न केवल गाँवों की तस्वीर बदलेगी बल्कि गिरते भूजल स्तर को भी सुधारा जा सकेगा लेकिन यह ड्रीम प्रोजेक्ट इसलिए सवालों के घेरे में आ जाता है क्योंकि जब यही सरकार करीब चार साल पहले गाँवों के लिए “आदर्श तालाब योजना” लाई थी तब भी इस योजना का मक़सद गर्मियों में पानी की कमी को दूर करते हुए जल संचयन के उद्देश्य से पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार करना और नये तालाब खुदवाना था।

घटते भूजल स्तर पर चिन्ता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू जल संरक्षित करने और लोगों तक गुणवत्तापरक पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से करीब चार साल पहले प्रदेश में आदर्श तालाब योजना की शुरुआत की थी और अधिकारियों को इस योजना के तहत मनरेगा के अन्तर्गत हर गाँव में नये तालाब खुदवाने और पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार करने का आदेश दिया था। इन तालाबों का एक मकसद वर्षा जल संचयन भी था। इस योजना के अन्तर्गत आदर्श तालाब के इर्द गिर्द पेड़ लगाना, आस-पास के क्षेत्र का सौंदर्यीकरण करना, बेंच लगाना आदि शामिल है, लेकिन विभिन्न गाँव जाकर जितने भी तालाब हमने देखे वहाँ ऐसा कुछ नजर नहीं आया और जहाँ नजर आया वहाँ के हालात रख रखाव के अभाव में दयनीय नजर आये। कहीं तालाबों में पानी ही नहीं था तो कोई तालाब काई से पटा पड़ा था तो कहीं जल कुंभी उग आई थीं।

अस्ति गांव का सूखा पड़ा आदर्श तालाब

जल संचयन के उद्देश्य से आदर्श जलाशय योजना के तहत मनरेगा में बनाये गए तलाबों की स्थिति का जायजा लेने के लिए जब यह रिपोर्टर लखनऊ से सटे कुछ गाँवों के अलावा सीतापुर जिले में स्थित बिसवां के सकरन ब्लॉक पहुँची तो “आदर्श ” के नाम पर तालाबों की स्थिति कुछ और ही बयाँ कर रही थी। इस प्रचंड गर्मी में कहीं जलाशय खुद प्यासे दिखे तो कहीं काई और गंदगी का अंबार नजर आया, जिसका पानी इंसान तो क्या पशुओं के भी इस्तेमाल के लायक नहीं बचा था। ज़ाहिर सी बात है बारिश के अलावा तालाब खुद से तो भरेंगे नहीं, उन्हें भरवाना पड़ेगा लेकिन इस ओर अभी तक कोई कारगर प्रयास होता नहीं दिख रहा। अगर इन तालाबों में पानी रहे तो ये तालाब न केवल ग्रामीणों बल्कि पशु, पक्षियों के लिए भी बेहद उपयोगी होंगे और इस भीषण गर्मी में आवारा जानवरों की भी प्यास बुझा सकेंगे लेकिन हालात यह है कि तालाब सूखे पड़े हैं।

तो आदर्श तालाबों की स्थिति का हाल जानने के लिए सबसे पहले यह रिपोर्टर पहुँची लखनऊ से सटे इन्दौराबाग तहसील के अन्तर्गत आने वाले सोनवा गाँव। इस गाँव में जाने का एक खास मकसद यह भी था कि आदर्श तालाब का निरीक्षण करने पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय से उच्च अधिकारियों का एक दल सोनवा पहुँचा था। आदर्श तालाबों की तारीफ करते हुए अधिकारियों ने मनरेगा के तहत और तालाब खुदवाने की बात कही। सोनवा जाने के क्रम में गाँव के बाहर हमें डेहुवा और इमलिहा तालाब दिखे जो आदर्श तालाब योजना के खुदवाये गए थे। शीलापटों पर मोटे-मोटे अक्षरों से तालाब के विषय में लिखी गई बातें तो अभी भी अपनी चमक लिए हुए हैं लेकिन आदर्श तालाबों की रौनक बेदम हो चली है। तालाब जलविहीन हैं तो, तालाबों के अगल-बगल की जगहों पर गंदगी साँस ले रही थी, झाड़ियाँ उग आई हैं, तालाब तक जाने वाली सीढ़ियाँ भी दम तोड़ने लगी हैं उनमें घास उग आई है।

इमलिहा तालाब तो खर पतवार (जल कुंभी) से पटा पड़ा था। गाँव के भीतर जाने पर हमारी मुलाक़ात मनरेगा मजदूर सुनीता देवी से हुई। आदर्श तालाब योजना के तहत उसने भी काम किया था। वह कहती हैं अगर तालाबों में पानी देखना हो तो बरसात के समय आइये बाकी समय आपको इन तालाबों में एक बूंद पानी नहीं मिलेगा।” लेकिन इस प्रचंड गर्मी में जब मनुष्य से लेकर मवेशियों को प्रचुर मात्रा में पानी की जरूरत है और तब ही जल के ये स्रोत खाली हैं तो ऐसे में इन तालाबों के क्या मायने “इस पर सुनीता कहती हैं कि वही तो प्रशासन से हमारा भी सवाल है, इस गर्मी में सब बेहाल हैं, इंसान, पशु, पक्षी, सब को प्रचुर मात्रा में पानी चाहिए लेकिन यहाँ तो तालाब सूखे पड़े हैं जबकि उन्हें भरवा देना चाहिए। उन्होंने बताया कि जब भी गाँव में मनरेगा योजना आती है वह उसमें ज़रूर काम करती है हालांकि पैसा कभी समय से नहीं मिलता, जब उनके गाँव में उच्च अधिकारियों की टीम आई तो उन्होंने ग्रामीणों के पक्ष में बहुत सी बाते कहीं जिसमें मनरेगा मजदूरों को समय से उचित भुगतान करने की भी बात कही गई। सुनीता कहती हैं, यह बात तो हर अधिकारी कहता है लेकिन अमल कभी नहीं होता।

सोनवा गाँव के बाद हम मिश्रीपुर गाँव पहुँचे। वहाँ भी आदर्श तालाब का हाल बेहाल था। तालाब में नाममात्र का पानी था, जो काई और गंदगी के कारण बेहद गंदा हो चला था। वह पानी किसी भी लिहाज से मवेशियों तक के पीने के लायक नहीं बचा था। तालाब के इर्द-गिर्द कूड़े का अंबार था। तभी हमारी नजर उन दो बच्चों पर पड़ी जो तालाब के किनारे मिट्टी की खुदाई कर तसले में भरकर ले जा रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि इस मिट्टी का इस्तेमाल वह घरेलू काम के लिए करेंगे। मिश्रीपुर के बाद बारी थी अस्ती गाँव की ओर जाने की, तो हम निकल पड़े अस्ती जाने के लिए। अस्ती गांव की सावित्री अपने घर के एक कमरे में बैठी पुआल की छटाई बिनाई के काम में व्यस्त थी। अत्यंत गरीब परिवार की सावित्री का नौ लोगों का परिवार है जिसमें चार बेटे, दो बेटियाँ, एक बहू, सावित्री और उनके पति शामिल हैं। वह कहती हैं कि गरीबी के कारण बच्चों को ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं पाये अभी सब बेटे जीवन यापन के लिए मजदूरी करते हैं। सावित्री के पति भी श्रमिक हैं और स्वयं सावित्री भी मनरेगा और खेत मजदूर है।

सोनवा का डेहुआ तालाब

वह कहती खुद की खेती न होने के चलते वह दूसरों के खेतों में मजदूरी का काम करती है और जब कभी गाँव में मनरेगा योजना आती है तो उसमें भी काम कर लेती है । उदास स्वर में वह कहती हैं मनरेगा योजनाओं में भी तो अब ज्यादा काम काज बचा नहीं तो रोजगार कहाँ से मिले। सावित्री बताती हैं करीब दो साल पहले जब उनके गाँव के बाहर आदर्श तालाब योजना के तहत मनरेगा में तालाब बनाने का काम शुरु हुआ था तो उसमें उसने भी काम किया था। अब उस तालाब की स्थिति क्या है, पानी उसमें कब कब रहता है, गाँव वालों के लिए वह तालाब कितना फायदेमंद रहा, इन तमाम सवालों के जवाब में वह कहती हैं चलिए आपको वह तालाब दिखा देती हूँ आप खुद उसकी स्थिति देखकर समझ जाएंगी। हालांकि सावित्री के जवाब ने हमें तालाब की वास्तविक हालात बता दी थी फिर भी हम जिस काम के लिए आये थे वो तो करना ही था यानी “आदर्श तालाब” को देखना। तो हम निकल पड़े सावित्री के साथ तालाब का जायजा लेने। 

‌तालाब में रत्तीभर पानी नहीं था। सावित्री कहती है मशीन और मनरेगा मजदूरों की मेहनत से जलाशय तो बन गया लेकिन सिर्फ नामभर का। वह बताती है जब से यह जलाशय बना है तब से केवल मिट्टी का एक बड़ा से गड्डा ही बनकर रह गया इसको कभी तालाब की शक्ल दी ही नहीं गई। सावित्री के मुताबिक बरसात के समय थोड़ा बहुत पानी तो भरता है लेकिन मिट्टी भर जाने के कारण पानी जानवरों तक के पीने लायक नहीं रहता। अभी सावित्री से हमारी बातचीत चल ही रही थी कि गाँव की एक महिला खोदे गए तालाब से टोकरी भर मिट्टी ले जाती नजर आईं, पूछने पर उस महिला ने बताया कि यहाँ से मिट्टी वह घर और चूल्हा लीपने के लिए ले जा रही हैं। सावित्री कहती हैं सच कहें तो इस तालाब का यही इस्तेमाल भर रह गया है बस। वह हमें एक अन्य तालाब दिखाने की भी बात कहती है। सावित्री बताती हैं कि उसके गाँव में एक तालाब और है जो पानी से तो लाबालब भरा है लेकिन फिर भी न ग्रामीणों के लिए और न उनके पशुओं या आवारा जानवरों के लिए उसका कोई उपयोग है, क्योंकि उस तालाब को मछली पालन के लिए ठेके पर दे दिया गया, जबकि तालाब का निर्माण पहले ग्रामीणों और पशुओं के उपयोग के उद्देश्य से हुआ था।

सकरन ब्लाक का सूखा पड़ा सेठ तालाब

अब अस्ति गाँव से निकल कर हम पहुँचे बराखेमपुर गाँव। इस गाँव के रहने वाले मनरेगा मजदूर जुगराज बताते हैं कि सालों पहले जो तालाब खोदे गए थे उन्हीं को दोबारा मनरेगा के तहत खोदे गए हैं। वे कहते हैं कुछ में पानी रहता है कुछ सूखे ही रहते हैं। जुगराज कहते हैं आदर्श तालाब योजना एक अच्छी योजना तो है लेकिन जब तालाबों में पानी ही नहीं रहेगा तो तालाब होने का क्या लाभ। बराखेमपुर के बाद हम बगल के गाँव शिवपुरी की ओर रवाना हो गए। बराखेमपुर से निकल कर कुछ ही दूरी जाने पर हमको एक तालाब नजर आया जो काफी बड़ा था और पानी से लबालब था लेकिन यहाँ भी तालाब का वही हाल था, पानी तो था लेकिन एक दम हरा क्योंकि पानी पर पूरी काई जमी हुई थी जिसे देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता था कि लंबे समय से तालाब को साफ नहीं किया गया है।

वहाँ से गुजर रहे ग्रामीणों ने बताया कि यह तालाब इसी तरह काई से भरा रहता है जिस कारण इसके पानी का कोई उपयोग नहीं होता अलबत्ता गंदे पानी के कीड़े, मच्छर ज़रुर पनप रहे हैं जो बीमारी का कारण बन रहे हैं l जब हम अंतिम गाँव शिवपुरी पहुँचे तो वहाँ ग्रामीणों ने बताया कि उनके गाँव तक तो आदर्श तालाब योजना पहुंची ही नहीं है जिनका उन्हें भी इंतज़ार है और इंतज़ार का एक खास कारण यह था कि तालाब योजना आने पर काम से कम मनरेगा में उन्हें काम तो मिल जायेगा। इस गाँव के रहने वाले इन्दर कहते हैं आदर्श तालाबों की हालत किसी भी लिहाज से कहीं आदर्श नजर नहीं आ रही l तालाब सूखे पड़े हैं उनमें पानी नहीं भरा जा रहा। इस गर्मी में खासकर आवारा मवेशी पानी की किल्लत के मारे परेशान हैं बावजूद इसके, उनके गाँव को योजना का इंतज़ार है क्योंकि योजना आने से उन्हें रोजगार तो मिलेगा ।

बहरहाल यह तो था लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र का हाल अब जाना था सकरन ब्लॉक के भिठमनी गाँव जो सीता पुर जिले के बिसवां में था। सकरन ब्लॉक जाना इसलिए भी तय हुआ क्योंकि खबर मिली कि इस ब्लॉक के चार गाँवों के ग्रामीण अपनी विभिन्न मांगों के साथ अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं जिसमें एक प्रमुख मुद्दा करीब एक साल पहले मनरेगा में हुए तालाब खुदाई और अन्य कामों के मेहनतानों का भुगतान करना भी था। वहाँ जाने पर कई ऐसे मनरेगा मजदूरों से मुलाक़ात हुई जिन्होंने आदर्श तालाब योजना के तहत लगभग एक साल पहले ” सेठ तालाब ” बनाने का काम किया था। भिठमनी गाँव की रहने वाली मनरेगा मजदूर रेशमा ने बताया कि जब सेठ तालाब की खुदवाई का काम हो रहा था तो यह कहा जाता था कि तालाब पानी से भरा रहेगा जिसका उपयोग ग्रामीण अपने दैनिक कामों के लिए तो कर ही सकेंगे साथ ही गर्मियों में मवेशियों को भी राहत मिलेगी लेकिन न ऐसा ही हुआ और न उसमें काम करने का पैसा ही मिला।

तालाब के नाम पर हमें बस एक विशाल गड्ढा मिला जो “आदर्श ” की तस्वीर कहीं से प्रस्तुत नहीं करता था। हर तरफ धूल मिट्टी और सूखी, कंटीली घास थी। इतना बड़ा तालाब बारिश में आख़िर कितना पानी अपने में एकत्रित कर लेगा, यह सवाल मेरे ज़हन में उठने लगा क्योंकि जब तक इसे मशीन से नहीं भरा जायेगा तब तक इसमें पानी भरपाई असंभव है। अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा के स्थानीय नेता संतराम सेठ तालाब की ओर निशाना साधते हुए कहते हैं दरअसल इन तालाबों की खुदाई का मकसद जल संचयन नहीं धन संचयन है, वे आरोप लगाते हैं कि मनरेगा कार्यों के तहत आने वाले बजट का बंदरबाट किया जाता है, अधिकारी अपनी जेबें तो भर लेते हैं और मजदूर खाली हाथ ही रह जाता है।

सेठ तालाब के बाद गाँव में एक और तालाब देखने को मिला जो यमुना तालाब था। ग्रामीणों ने बताया कि इस तालाब की खुदाई जेसीबी मशीन से की गई थी। यमुना तालाब की भी हालत अन्य तालाबों के ही जैसी जलविहीन दिखी।

बहरहाल जो आदर्श तालाबों की पूरी सच्चाई निकल कर सामने आई वह यही थी कि तालाब खुदवा तो दिये गए, कहीं-कहीं तालाबों के इर्द-गिर्द पेड़ लगाने से लेकर बेंच बैठाने और तालाब परिसर तक जाने के लिए मुख्य गेट लगाने और सीढ़ियाँ बनाने तक का काम हुआ है लेकिन रख रखाव के अभाव में सब नष्ट हो रहा है। इस भीषण गर्मी में भी तालाब सूखे हैं उनमें पानी नहीं भरा जा रहा। मवेशी तालाब तक जाते हैं लेकिन उन्हें प्यासा ही लौटना पड़ जाता है। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि जल के अभाव में जलाशय खुद प्यासे ही रह जा रहे हैं।

(सीतापुर और लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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