Saturday, April 20, 2024

प्रशांत अवमानना केस: जज के खिलाफ शिकायत होने पर बताने की प्रक्रिया तय करेगा सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय तय करेगा कि यदि किसी न्यायाधीश के खिलाफ किसी को कोई शिकायत है, तो उसे दर्ज़ करने या सार्वजनिक करने की प्रक्रिया क्या होनी चाहिए? किन परिस्थितियों में ऐसे आरोप लगाए जा सकते हैं? ऐसे मामलों में  किस हद तक अपनी शिकायत मीडिया या किसी अन्य विधा के माध्यम से की जा सकती है?

वर्ष 2009 के एक अवमानना मामले में भी प्रशांत भूषण के खिलाफ सुनवाई में उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने सवाल तय किए हैं। जिसमें पहला सवाल है कि यदि  न्यायिक भ्रष्टाचार पर बयान सार्वजनिक किए जाते हैं, तो वे किन परिस्थितियों में किए जा सकते हैं। दूसरा वर्तमान और सेवानिवृत्त जजों पर  सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार के ऐसे बयान दिए जाने पर अपनाए जाने वाली प्रक्रिया क्या हो? अब इस मामले की उच्चतम न्यायालय में अगले हफ्ते सुनवाई होगी। 

तरुण तेजपाल की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को बंद कर देना चाहिए। पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने सुझाव दिया कि अदालत जब फिजिकल हियरिंग में सुनवाई शुरू करे तभी मामले की सुनवाई की जानी चाहिए।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने भूषण की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. राजीव धवन से कहा कि यहां न्यायमूर्ति जेएस वर्मा का एक निर्णय है, जिसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को पहली बार में सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए, और उन्हें पहले आंतरिक जांच के लिए न्यायालय के प्रशासनिक तंत्र में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या इस तरह के आरोप उप-न्यायिक मामलों के संबंध में भी लगाए जा सकते हैं। जस्टिस मिश्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रश्न किसी व्यक्ति विशेष के संदर्भ में नहीं हैं। डॉ. धवन सहमत थे कि प्रश्न प्रासंगिक हैं और कहा कि उन पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि इस पहलू पर भी विचार किया जाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह भी कहा कि वे इस मामले पर अंतिम निर्णय करना चाहते हैं। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले को 24 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह भी कहा कि इस बड़ी पीठ के संदर्भ पर भी विचार किया जाएगा। 

जस्टिस अरुण मिश्रा ने भी सुनवाई के दौरान कहा कि वे इस मुद्दे को शांत’ रखना चाहेंगे। 10 अगस्त को अदालत ने अवमानना मामले में अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार ना करने और क्या न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर विस्तृत सुनवाई करने का फैसला किया था कि क्या ये आरोप अवमानना का गठन करेंगे ? सोमवार को डॉ. धवन ने पीठ से कहा कि ये भ्रष्टाचार के आरोप लगाना अवमानना नहीं होगा और आरोपों के संदर्भ और परिस्थितियों पर गौर करना होगा। उन्होंने कहा कि जस्टिस अरुण मिश्रा, जब वह कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, उस फैसले का हिस्सा थे जिसमें कहा गया था कि जजों के खिलाफ ममता बनर्जी द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप अवमानना करने के समान नहीं थे।

दस अगस्त को उच्चतम न्यायालय  ने प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को मंजूर करने से इनकार कर दिया  था।उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो अवमानना मामले में आगे सुनवाई करेगा कि क्या ये बयान अवमानना हैं या नहीं। इसके अलावा पीठ ने इस पर भी निर्णय लेने को कहा था कि भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अदालत की अवमानना होती है या नहीं.

भूषण के खिलाफ दर्ज अवमानना के मुकदमे का ज़िक्र करते हुए धवन ने कहा कि उस समय इनका ये कथन कोर्ट की अवमानना कैसे हो सकता है। जिसमें भूषण ने कहा था कि हाल ही में रिटायर हुए जजों में से 16 भ्रष्ट हैं। उन्होंने सेवारत जजों के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं था। राजीव धवन ने पीठ से कहा कि भ्रष्टाचार के आरोप लगाना कोर्ट की अवमानना नहीं होती है और इस पर निर्णय लेते हुए तत्कालीन परिस्थिति को संज्ञान में लिया जाना चाहिए।

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे द्वारा शिकायत किए जाने पर उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। भूषण ने तहलका मैगजीन की पत्रकार शोमा चौधरी को एक इंटरव्यू दिया था। उन्होंने कहा था कि पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे। शिकायत में यह भी कहा गया है कि भूषण ने इंटरव्यू में कहा था कि उनके पास इन आरोपों के कोई प्रमाण नहीं हैं।

साल्वे ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि भूषण ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया पर यह कहते हुए गंभीर आरोप लगाया था कि उन्होंने स्टरलाइट कंपनी से जुड़े एक मामले की सुनवाई की, जबकि इस कंपनी में उनके शेयर्स हैं।साल्वे ने यह शिकायत स्टरलाइट मामले में दायर एक आवेदन के माध्यम से की थी, जिसमें वह न्यायमित्र थे। उन्होंने कहा था कि प्रशांत भूषण ने ऐसा बयान यह तथ्य छिपाते हुए दिया कि मामले में पैरवी कर रहे वकीलों को ये बताया गया था कि जस्टिस कपाड़िया का कंपनी में शेयर है और वकीलों की सहमति के बाद जज ने मामले की सुनवाई शुरू की थी।

पहली बार छह नवंबर 2009 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन और जस्टिस एसएच कपाड़िया के सामने ये शिकायत रखी गई थीं। उन्होंने निर्देश दिया था कि ये मामला तीन जजों की पीठ के सामने रखा जाए, जिसमें एसएच कपाड़िया सदस्य न हों। इसके बाद 19 जनवरी 2010 को जस्टिस अल्तमस कबीर, जस्टिस सी. जोसेफ और जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ ने प्रशांत भूषण और तरुण तेजपाल को मामले में नोटिस जारी किया था। मई 2012 में आखिरी सुनवाई के बाद पिछली बार 11 दिसंबर 2018 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ के सामने ये मामला सूचीबद्ध किया गया था।

इसके पहले अवमानना के एक अन्य मामले में वकील प्रशांत भूषण को दोषी पाया गया है। अब सजा के बिंदु पर बहस 20 अगस्त को होगी। इधर उनके वकील राजीव धवन ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि प्रशांत भूषण शुक्रवार को दोषी करार दिए गए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। राजीव धवन ने कहा कि भूषण ने पूर्व चीफ जस्टिस पर बयान दिया था, वो अवमानना कैसे हो गया? धवन ने दलील दी कि स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले प्रशांत भूषण को दोषी तय करने वाले अपने फैसले के एक हिस्से में तो पीठ ने विवादास्पद ट्वीट्स को अवमानना बताया है लेकिन दूसरे हिस्से में उसे अवमानना नहीं माना है। ऐसे में भूषण कोर्ट के सामने पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे ताकि स्थिति साफ हो। इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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