Friday, March 29, 2024

हरियाणा में मुर्दे कर रहे हैं मनरेगा की मज़दूरी!

नूंह (मेवात)। हरियाणा के मेवात जिले में मनरेगा स्कीम का करीब 500 करोड़ का घोटाला सामने आया है। मरे हुए लोगों को मजदूर दिखाकर उन्हें उनसे कराए गए काम का भुगतान कर दिया गया। इस घोटाले में कई-कई गांवों के सरपंच से लेकर सरकारी अधिकारी तक शामिल हैं। 

इस संबंध में पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली की बेंच के सामने एक जनहित याचिका पेश की गई, जिस पर चीफ जस्टिस की बेंच ने जनहित कमेटी व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य केस में आदेश दिया कि इसकी जांच नूंह के डीसी से कराई जाए। जांच के दौरान डीसी याचिकाकर्ताओं से भी बात करेंगे और अपनी रिपोर्ट उन्हें दिखाकर भेजेंगे। 

मेवात के याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील इम्तियाज हुसैन खेड़ला ने बताया कि चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा है कि अगर याचिकाकर्ता डीसी जांच की उस रिपोर्ट से संतुष्ट और सहमत नहीं होंगे तो वे उसके खिलाफ अदालत में फिर से अपील कर सकते हैं।  

मनरेगा में मरे हुए लोगों के नाम पर सरकारी पैसे के भुगतान का यह मामला सिर्फ़ मेवात का है। राज्य के हर ज़िले में कमोबेश यही स्थिति है।

क्या है पूरा मामला

नूंह (मेवात) जिले में 317 ग्राम पंचायतों के लिए वित्तीय वर्ष 2017-2018, 2018-19, 2019-20, 2020-21, 2021-22 के दौरान 500 करोड़ रुपये मनरेगा स्कीम के तहत आए। ये ग्राम पंचायतें पिनगवां, पुन्हाना, तावड़ू, इन्डरी, फिरोजपुर झिरका और नूंह ब्लॉकों के तहत आती हैं। 

मनरेगा के तहत विभिन्न गांवों में काम कराया गया। इस काम में कहीं सड़क बनाना शामिल था, कहीं मिट्टी डालना, कहीं नाली बनाना, कहीं खड़ंजा बिछाना जैसे काम थे। 

सरपंचों ने जेई की मदद से मरे हुए लोगों के नाम मस्टर रोल पर लिखा दिए। इन्हीं लोगों का फर्जी या डुप्लीकेट जॉब कार्ड बना हुआ है। सरपंचों ने ब्लॉक अधिकारियों की मदद से फर्जी खाते तक बैंकों में खुलवा दिए हैं। 

एक-एक मरे हुए आदमी के 9-9 जॉब कार्ड बने हुए हैं। किसी के 8, किसी के 7, किसी के 6 और कम से कम दो जॉब कार्ड तो सभी के बने हुए हैं। कुछ में नाम बदले हुए हैं। किसी में आधे नाम पर कई जॉब कार्ड बनाए गए हैं। असलियत में भी मनरेगा के तहत मजदूरी कर रहा है, उसके नाम से किसी न किसी घपलेबाजी के जरिए सरकारी पैसे हड़पे जा रहे हैं। इसी तरह असंख्य लोगों के फर्जी और डुप्लीकेट जॉब कार्ड महज उम्र बदलकर बनाए गए हैं।  

सरकारी पैसे को ठिकाने लगाने के लिए एक ही नाम वाले शख्स को चार-चार बार पैसे का भुगतान किया गया है। अकरम, दीन मोहम्मद, रुकैया, मामराज, ईसाब, मुकीम, शहनाज को कई-कई बार पैसे का भुगतान किया गया। ये वो कुछ नामों में से चंद नाम हैं जिनके जॉब कार्ड बार-बार बनाकर पैसे ले लिए गए। 

काग़ज़ों में मज़दूरी 

मेवात में तमाम लोग मरने के बाद भी पूरे खानदान के साथ मजदूरी कर रहे हैं। हालांकि यह असंभव है लेकिन मेवात में सब कुछ संभव है। आइए जानते हैं कुछ नाम जिनकी मौत हो चुकी है लेकिन वे मजदूरी कर रहे हैं। ये हैं – रिसाल गांव हसनपुर, इनकी पत्नी मिसकीना, जमील गांव शिकरावा। मिहरू को गांव मोहम्मदपुर, गांव ख्वाजलीकलां और गांव झिमरावट में एक साथ काम करते हुए कागजों में पाया गया। 

शिकरावा गांव के सरपंच सुरेंद्र ने गांव में जोहड़ की चारदीवारी बनवाने के लिए मनरेगा में काम करवाने के दस्तावेज जमा कराए हैं लेकिन मौके पर कोई काम नहीं पाया गया। इसी गांव में जल संरक्षण के नाम पर, पीडब्ल्यूडी रोड से वॉटर सप्लाई रोड तक काम के दावे, मौके पर कोई काम नहीं पाया गया। ये उदाहरण के तौर पर बताया गया। इस संबंध में शिकायत डीसी नूंह के पास पहुंची लेकिन डीसी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि लोगों ने इस संबंध में हलफनामे लगाकर शिकायतें की थीं। 

इसी तरह गांव ख्वाजलीकलां की सरपंच अरजीना के खिलाफ शपथपत्रों के साथ डीसी से शिकायत की गई। जिनमें अरजीना पर आरोप लगाया गया कि उसने मरे हुए लोगों के नाम मस्टररोल पर चढ़ाए। उनका फर्जी जॉब कार्ड बनाया और उनके नाम पर सारे पैसे हड़प लिए। ऐसी ही शिकायत ऊंटका गांव के सरपंच आरिश के खिलाफ की गई है। इसने कई जगह गांव में काम कराने के दावे किए लेकिन मौके पर कोई काम नहीं मिला।

हर बैंक में खाते

मनरेगा की ग्रांट के खाते लगभग हर बैंक में खोले जाते हैं। लेकिन मेवात के बेईमान सरपंचों ने बैंकों से कहा कि वे जिन भी लोगों का खाता खुलवाएंगे, उन्हें खोलना पड़ेगा। उसकी कोई जांच पड़ताल नहीं होगी। मात्र सरपंच के अनुमोदन के आधार पर ऐसे खाते खोलने होंगे। सरकारी ही नहीं प्राइवेट बैंकों ने भी मेवात के सरपंचों की बात मान ली और उन्होंने धड़ाधड़ मरे हुए लोगों के खाते भी खोल दिए।

सरपंचों ने वहां से पैसा निकालकर या तो अपने खाते में रख लिया या फिर उन्हें कैश लेकर बांट दिया। ये खाते – सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक, एसबीआई, आईसीआईसीआई बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया, जिला केंद्रीय कोआपरेटिव बैंक, कोटक महेन्द्रा बैंक, एचडीएफसी बैंक, हरियाणा ग्रामीण बैंकों में खोले गए। बैंक को भारी संख्या में खाते और पैसे का ट्रांजैक्शन चाहिए होता है, इसलिए उन्होंने मेवात में जमकर खाते खोले। 

पैसा कैसे आता है औऱ बंटता है

भारत सरकार से यह पैसा राज्य तक आने में किसी भी तरह के घोटाले का शिकार नहीं होता। जब यह पैसा ग्रामीण विकास विभाग के अतिरिक्त सचिव से आगे पंचायत विभाग के वित्तीय सचिव को मिलता है। वहां से इसकी बंदरबांट शुरू होती है। कुल ग्रांट का दो फीसदी चंडीगढ़ में ही ले लिया जाता है, अन्यथा ग्रांट आगे भेजने में दिक्कत खड़ी हो जाती है। वहां से डायरेक्टर पंचायत विभाग, वहां से जिले के डीसी, एसडीएम को, वहां से डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम कोआर्डिनेटर को, वहां से जिला परिषद के सीईओ को, फिर बीडीओ, बीडीपीओ, एबीपीओ, पंचायत सचिव, जेई और सरपंच के जरिए अंत में मनरेगा की मजदूरी करने वाले मजदूर को मिलना चाहिए। लेकिन सरपंच के बाद यह पैसा मजदूर तक नहीं पहुंचता। 

अगर कहीं पहुंचता है तो वह बहुत मामूली और उसमें भी बिना कमीशन दिए पैसा नहीं मिलता। जहां कहीं भी ईमानदारी से मनरेगा में काम हुआ, उन गांवों में बदलाव भी आया है। लेकिन इनकी तादाद बहुत कम है। हरियाणा में मेवात की परिस्थितियों की वजह से सारा पैसा हड़प लिया जाता है।

इतनी लंबी चेन के बावजूद मनरेगा का सबसे ज्यादा पैसा डीसी, एसडीएम, डीपीओ, बीडीओ, एबीपीओ, पंचायत सचिव, जेई और सरपंच खाते हैं। यानी अगर जांच एजेंसियां सिर्फ इन पर नजर रखें तो मनरेगा की रिश्वतखोरी का पर्दाफाश हो सकता है। डीसी के सारी फाइलों पर महज साइन होते हैं लेकिन उसी साइन के बदले डीसी को दो फीसदी पैसा पहुंच जाता है। फरीदाबाद में कथित तौर पर ईमानदार कहलाने वाले कई पूर्व जिला उपायुक्तों तक मनरेगा का दो फीसदी पैसा पहुंचता रहा है।   

सबसे ज्यादा घोटालेबाज सरपंच

रुबिया गांव दोहा, शाहिद गांव नंगला, शाकिर खान गांव नीमखेड़ा, संजय कुमार गांव दुधौली कलां, निदा आजाद गांव डुंगरान शहजादपुर, जय सिंह गांव हींगनपुर, परवीन गांव खेड़ी कलां, सगीर अहमद गांव रनियाला पातकपुर, रूमशीदा खान गांव बिसरू, अंजुम गांव बिछोर, संजीदा गांव हाजीपुर, अनीसा गांव इंदाना, शब्बीर अहमद गांव लफूरी, भावर सिंह गांव नई, अकबर गांव थेक, संजीदा गांव जेहटाना, सुरेन्द्र गांव शिकरावा, अरजीना गांव ख्वाजलीकलां, मोहम्मद शरफुद्दीन गांव हसनपुर, नाजिर गांव मोहलाका, जुबैर अहमद गांव नांगल मुबारिकपुर, आमिर खान गांव रानिका, शाइस्ता गांव उमरा, मोहम्मद आरिश गांव उन्तका, फकरुद्दीन गांव टैन, अब्दुल जब्बार गांव बेरी तावड़ू, नाजरीन गांव धुलावट, हसन मोहम्मद गांव मलहाका। इस सूची में जहां कहीं भी महिला सरपंचों के नाम आए हैं, दरअसल सरपंची की भूमिका में उनके पति, भाई या पिता होते हैं। महिला सरपंच बेचारी घूंघट की आड़ में बस साइन कर देती हैं।

कौन हैं ये युवक

मुस्लिम बहुल मेवात को हरियाणा सरकार ने सबसे पिछड़ा जिला बना रखा है। किसी भी पार्टी की सरकार आए, मेवात की तरक्की से उसे कोई लेना देना नहीं है। लेकिन सरकारी स्कीमों के पैसों को हड़पने का यह मुलायम चरागाह है। ज्यादातर आबादी अनपढ़ है। उन्हें न स्कीमों की जानकारी होती है और न ही ग्रांट की।

नतीजा यह निकलता है कि सारा सरकारी पैसा खुर्द-बुर्द कर दिया जाता है। किसी को उसकी हवा तक नहीं लगती। हाल ही में यहां के कुछ पढ़े-लिखे युवकों ने जनहित कमेटी बनाकर ऐसी स्कीमों और मेवात को मिले पैसे की जानकारी जुटानी शुरू की। इसमें कुछ जिला कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस भी कर रहे हैं। उसी कमेटी के सदस्यों ने मनरेगा के इस घोटाले का पर्दाफाश किया है। 

जनहित कमेटी के अध्यक्ष एजाज अहमद, उपाध्यक्ष मोहम्मद अब्बास, महासचिव वसमुल्ला के अलावा जाकिर हुसैन, आकिब हुसैन, एहसान ने इस जनहित याचिका के सबूतों को जुटाने में अहम भूमिका निभाई। इन्हें हाई कोर्ट में इम्तियाज हुसैन एडवोकेट का साथ मिला। वकील इम्तियाज हुसैन की तारीफ पूरी जनहित कमेटी ने की है, जिन्होंने केस दायर करने का एक भी पैसा नहीं लिया। इम्तियाज भी मेवात के खेड़ला गांव के रहने वाले हैं।  

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।) 

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles