यूपी के 24 जिलों में सरकार के आधिकारिक आंकड़ों से 43 गुना ज्यादा हुईं हैं कोविड से मौतें

नई दिल्ली। यूपी के 24 जिलों में 31 मार्च, 2021 के बाद के नौ महीनों के दौरान कोविड-19 की मौत के आधिकारिक आंकड़ों से 43 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं। भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले इस सूबे की मौतों के आंकड़े से यह बात सामने आयी है।

इस सर्वे में यूपी के 75 में से उन 24 जिलों को चुना गया था जहां मीडिया रिपोर्ट्स और Covid19india.org. के आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 की पहली वेव यानी जून, जुलाई, अगस्त और अक्तूबर, 2020 के दौरान सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं।

इन दिलों में 1जुलाई, 2020 और 31मार्च, 2021 के बीच सरकार द्वारा पेश किए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुकाबले 10 से लेकर 335 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य की कोविड-19 की स्थिति को बेहद कारगर तरीके से नियंत्रित किया है।

इस बात में कोई शक नहीं कि सभी ज्यादा मौतों को कोविड-19 के हवाले नहीं किया जा सकता है। और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को कोविड-19 के इलाज में डायवर्ट करने से भी दूसरी मौतों की संख्या में बढ़ोत्तरी की संभावना है। लेकिन महामारी के एक हिस्से में औसत सामान्य मौतें और ज्यादा मौतें मार्च 2021 के अंत में यूपी के आधिकारिक कोविड मौतों के 4537 के आंकड़े पर सवाल खड़े कर देती हैं।

 Article 14 के रिपोर्टर ने इस दस्तावेज को राइट टू इनफार्मेशन एक्ट 2005 के तहत हासिल किया है। जिसमें बताया गया है कि गैर महामारी के दौरान यानी 1जुलाई, 2019 और 31 मार्च, 2020 के बीच इन 24 जिलों में तकरीबन 178000 मौतें हुईं। उसी दौरान 2020-2021 में इन मौतों में 110% की वृद्धि हो गयी जो बढ़कर 375,000 हो गयी यानी कि 197000 की बढ़त।

मुजफ्फरनगर, सीतापुर, हरदोई, चंदौली और बदायूं समेत 20 जिलों में 2019-20 के मुकाबले 2% से लेकर 48% तक मौतों में गिरावट देखी गयी। मौतों के रजिस्ट्रेशन और बहुत सारे जिलों में आंकड़ों के इकट्ठा किए जाने में देरी को देखते हुए आखिरी नतीजे में बदलाव की पूरी संभावना है। किसी भी हालत में मौतों की संख्या में वृद्धि निश्चित है।

हमारी गिनती क्यों कम है

मौतों के आधिकारिक आंकड़े जिसे इस पत्रकार ने हासिल किया है, अनुमानित संख्या से कम होने के पीछे साफ तौर पर दो कारण हैं: वो दूसरी वेव के दौरान होने वाली मौतों को नहीं लिए हैं जो अब तक महामारी के दौरान हुईं कुल मौतों का तकरीबन 60 फीसदी है; और मौतों के आंकड़ों को ही कम करके दिखाया गया है।

अशोका यूनिवर्सिटी में बायोफिजिक्स के प्रोफेसर और पीएचडी गौतम मेनन का कहना है कि पेश किए जा रहे आधिकारिक आंकड़ों के मुकाबले कोविड से होने वाली वास्तविक मौतें शायद बहुत ज्यादा हों। उन्होंने इस बात को चिन्हित किया कि ज्यादातर भारतीय घर पर मरे और केवल 20 फीसदी मौतों का ही उनके कारणों के साथ रजिस्ट्रेशन हो पाया।

आदित्यनाथ की विपक्ष और खुद अपनी पार्टी द्वारा इस आधार पर आलोचना की गयी कि उन्होंने महामारी को ठीक से नियंत्रित नहीं किया। और खास कर दूसरी वेव के दौरान होने वाली बड़े स्तर की मौतें देखकर -और जब लाशें गंगा में तैरने लगीं और किनारों पर दफनाई जाने लगीं- यह बात बिल्कुल साफ हो गयी कि ये मौतें सरकार के आंकड़े में नहीं शामिल हैं।

मुरादाबाद, रामपुर, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, बरेली, पीलीभीत, खीरी, उन्नाव, लखनऊ, कानपुर देहात, कानपुर नगर, झांसी, प्रतापगढ़, अमेठी, बलरामपुर, बस्ती, बलिया, गाजीपुर और सोनभद्र जिलों में मौतों के आंकड़े उसके अनुमान की संख्या से कम होने की पुष्टि करते हैं।

इस मामले में आर्टिकल14 ने यूपी के मेडिकल और हेल्थ सर्विसेज के निदेशक देवेंद्र सिंह नेगी से टिप्पणी लेने की कोशिश की लेकिन उन्होंने लगातार फोन करने और ईमेल भेजने के बावजूद उनका कोई जवाब नहीं आया।

पत्रकारों ने पहली और कोविड की दूसरे वेव के दौरान आंध्र प्रदेश, एमपी, असम, गुजरात, तमिलनाडु, बिहार तथा हैदराबाद, चेन्नई और कोलकाता जैसे मुख्य शहरों में बहुत ज्यादा मौतों की रिपोर्टिंग की थी।

यूपी में गंगा में बहने वाली लाशों और यह सच्चाई कि हजारों मौतों को गिना भी नहीं जा रहा है, वैश्विक स्तर पर इस तरफ ध्यान उस समय गया जब दैनिक भास्कर के रिपोर्टर ने नदी के किनारे की 1000 किमी की यात्रा की। यूपी का आधिकारिक मौतों का आंकड़ा अभी तक सामने नहीं आ पाया है।

उदाहरण के लिए पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के नजदीक यूपी के पूर्वांचल जिले गाजीपुर, जहां गंगा में लाशों को तैरते पाया गया था, में 1 जुलाई 2020 और 31 मार्च 2021 के बीच तकरीबन 19700 लोग मौत के शिकार हुए। यह इसी दौरान 2019-20 के काल में हुई 1600 मौतों का लगभग 1136% ज्यादा है।

और यह 2019-20 के दौरान हुई मौतों के मुकाबले 18000 ज्यादा है। और सरकार द्वारा मुहैया कराए गए 192 के आधिकारिक आंकड़े से 197 गुना ज्यादा है।

यूपी में 10 मौतों में 4 नहीं गिनी गयीं

दूसरे राज्यों की तरह यूपी में भी माना जाता है कि सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) जन्म और मौतों का रजिस्टर करेगा। लेकिन जैसा कि रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया की 2019 की रिपोर्ट ने इस बात को चिन्हित किया है कि सभी अनुमानित मौतों में से यूपी ने केवल उसके 63.3% को ही रजिस्टर किया है।

यानी 10 में से यूपी में तकरीबन 4 मौतों का रजिस्ट्रेशन हुआ ही नहीं। और तकरीबन 31 फीसदी का रजिस्ट्रेशन मौत के तकरीबन एक महीने बाद हुआ।

आरटीआई के जरिये हासिल किए गए हमारे आंकड़े का भी आरजीआई की रिपोर्ट पुष्टि करती है। जिसमें इस बात को दिखाया गया है कि कोविड19 की पहली वेव के कम हो जाने के बाद भी नवंबर 2020 तक मौतों के रजिस्ट्रेशन में बढ़ोत्तरी होती रही। क्योंकि मौतों और उनके रजिस्ट्रेशन में देरी रही है। हम यह मानकर चलते हैं कि चार महीने दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच की मौतों की पहले पर्याप्त गिनती नहीं हो सकी है।

मेनन ने कहा कि कोविड को लेकर सामाजिक दाग और इस बात की स्वीकारोक्ति कि कोई इससे मर सकता है ने मौत के असली कारणों को छुपाने में बड़ी भूमिका निभायी है। यह और इसके अलावा समुचित रिपोर्टिंग इन ज्यादा हुई मौतों के पीछे प्रमुख कारण रहे हैं। यह इस बात की तरफ शायद इशारा करता है कि हमें कोविड 19 की मौत के आंकड़े को बड़े स्तर पर ऊपर ले जाने की जरूरत है।

मेनन और उनके सहयोगियों ने जून 2021 के अपने एक अध्ययन में बताया था कि भारत में मौतें आधिकारिक आंकड़ों से 2.2 गुना ज्यादा हो सकती हैं। उनका अनुमान है कि दूसरी वेव में यह कई गुना ज्यादा हो सकती है।

जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि इन 24 जिलों में 1 जुलाई 2020 और 31 मार्च 2021 के बीच हुईं मौतें आधिकारिक आंकड़ों के मुकाबले 10 से 335 गुना ज्यादा हो सकती हैं।   

यहां छह जिलों का अलग-अलग आंकड़ा दिया जा रहा है

  • गाजीपुर के नजदीक बलिया में 7300 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गयीं जो उसी दौरान 2019-20 की हुई मौतों से120 फीसदी ज्यादा हैं और कोविड19 से हुई मौत के आधिकारिक आंकड़े 107 से 68 गुना ज्यादा।
  • उन्नाव में 10400 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गयीं जो 2019-20 से 134 फीसदी ज्यादा हैं। और 90 के दर्ज किए गए आधिकारिक आंकड़े से 117 गुना ज्यादा।
  • कानपुर देहात में 4040 ज्यादा मौतें दर्ज की गयीं। यह 2019-20 के मुकाबले 134 फीसदी ज्यादा हैं। और 38 के आधिकारिक मौत से 106 गुना ज्यादा है।
  • अमेठी में सामान्य के मुकाबले 13000 लोगों की मौतें दर्ज की गयीं। 2019-20 के मुकाबले 1700फीसदी ज्यादा हैं। और आधिकारिक आंकड़े 39 से 335 गुना ज्यादा है।
  • राजधानी लखनऊ में 30200 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गयीं जो 2019-20 के मुकाबले 524 फीसदी ज्यादा हैं। और आधिकारिक रूप से दर्ज किए गए 1211 के मुकाबले 25 गुना ज्यादा है।
  • बरेली में 12000 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गयीं जो 2019-20 के मुकाबले 72 फीसदी ज्यादा हैं और 166 के आधिकारिक आंकड़े के मुकाबले 73 गुना ज्यादा है। दूसरी वेव के दौरान केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार जो बरेली से बीजेपी के सांसद हैं, ने आदित्यनाथ को पत्र लिखकर राज्य में महामारी प्रबंधन में होने वाली लापरवाही पर गहरी चिंता जाहिर की थी।
  • आगरा जहां इस पत्रकार ने 12 मई 2021 को बड़े स्तर पर कम रिपोर्ट होने की बात देखी। यहां 10000 ज्यादा मौतें दर्ज की गयी हैं जो 2019-20 के मुकाबले 103 गुना ज्यादा हैं। और आधिकारिक मौत के आंकड़े 178 के मुकाबले 56 गुना ज्यादा है।

इन 24 जिलों के अलावा दूसरे ज्यादातर जिलों में 2019-20 के मुकाबले 20 फीसदी से लेकर 150 फीसदी तक ज्यादा मौतें दर्ज की गयी हैं। और कोविड के दर्ज आधिकारिक आंकड़ों के मुकाबले 5 से 100 गुना ज्यादा रही हैं।  

कोविड19 मौतों की कम गिनती

भारत का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य, घनत्व के लिहाज से बड़े राज्यों में चौथा और देश के कुछ सबसे बदतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं वाला राज्य- 2020 में ग्रामीण यूपी में प्रायमरी हेल्थ सेंटर और कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में 51 फीसदी की कमी और सरकारी आंकड़ों में भारत के निचले तीन राज्यों में शामिल है- होने के बावजूद कोविड से हुई मौतों में पांचवें स्थान पर है जो 19 जून, 2021 के मुताबिक 22081 है।

कोविड मौतों की ज्यादा उदार परिभाषा के विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के बावजूद बहुत सारे राज्यों ने जानबूझ कर बेहद कड़ा रुख अपनाया और केवल उन्हीं की गिनती की जो कोविड-19 में पाजिटिव आए थे और फिर उनकी हास्टिपल में मौत हुई थी। इंडियास्पेंट ने 1 जुलाई, 2020 को इसकी रिपोर्टिंग की थी।

लेकिन बहुत सारे लोगों की बगैर किसी डायगनोसिस, जांच या फिर गिनती के घर पर ही मौत हो गयी। खासकर ग्रामीण इलाकों में। जिसका नतीजा है कि 20जून, 2021 को जारी आधिकारिक मौत के आंकड़े 386785 से वास्तविक मौतें तीन से 10 गुना ज्यादा हो सकती हैं।

19 जून को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कोरोना वायरस से हुई मौतों के मामले में एक एफिडेविट के माध्यम से कहा कि बगैर इस बात को देखे कि मौतें कहां हुई हैं उन्हें कोविड मौत के तौर पर दर्ज किया जाना चाहिए। उसने इस बात का वादा किया है कि इस नियम को न मानने वाले डाक्टरों के खिलाफ वह कार्रवाई करेगी।

कोविड19 से हुई मौतों को लेकर हीलाहवाली पर देश के एक बड़े डाक्टर ने भी अपनी चिंता जाहिर की है। एम्स के डायरेक्टर रनदीप गुलेरिया ने एनडीटीवी को बताया कि कोविड से संबंधित मौतों को लेकर भारत में हुई गिनती की लापरवाही को हल करने के लिए मौतों की आडिट जरूरी है। जिससे कोविड19 और थर्ड वेव, जिसकी उन्होंने अगस्त में आने की भविष्यवाणी की है, के खिलाफ लड़ाई की रणनीति को विकसित करने में मदद मिलेगी।

सीआरएस डाटा मौतों की निश्चित संख्या जानने में मदद करता है। सभी राज्यों में जन्म और मृत्यु के जिला स्तरीय रजिस्ट्रारों का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक महीने उनके द्वारा जारी मौतों के सर्टिफिकेट को राज्य के चीफ रजिस्ट्रार के पास भेज दे। फिर भी यह डाटा सार्वजनिक पहुंच से बाहर है। और अगर वो होते तो भारत को अच्छे से तैयारी करने का मौका मिल जाता।

बायोफिजिक्स के प्रोफेसर मेनन ने कहा कि कोविड 19 मौतों की अप्राप्यता भविष्य में देश की इस महामारी से लड़ने में एक गंभीर नकारात्मकता का प्रभाव डालेगा।

मेनन ने कहा कि अगर असंभावित रूप से इस तरह की कम मौतों की दरों की राज्य सरकारों द्वारा अपने आधिकारिक आंकड़ों में रिपोर्टिंग की जाएगी तो हमें इस बात का खतरा बना रहेगा कि लोग इस बीमारी की गंभीरता के संदेश को ग्रहण नहीं कर पाएंगे। और खास कर भविष्य के लिहाज से। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया कोई भी आंकड़ा उसकी सटीकता के लिए चेक किया जाना चाहिए यहां तक कि अगर यह सरकार पर कोई नकारात्मक प्रभाव भी डालता है तब भी। क्योंकि इस तरह के आंकड़े से ही सार्वजनिक नीतियां और योजनाएं तैयार की जाती हैं।   

(आर्टिकिल 14 से साभार लेकर उसका यहां अनुवाद किया गया है।) 

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