Tuesday, April 23, 2024

झारखंड का रुझान: जनता ने सीएए और एनआरसी को नकारा

रुझानों के जरिये झारखंड की अब तक सामने आयी तस्वीर बहुत चौंकाने वाली नहीं है। जिस तरह से पूरे देश में भगवा की नफरत वाली सियासत के खिलाफ उबाल है, ऐसे में झारखंड से इस मिजाज के विपरीत नतीजे आने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। अभी तक जो रूझान आए हैं, उससे साफ तौर से जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी की सरकार बनती दिख रही है।

मोदी सरकार की मंशा के मुताबिक ही झारखंड में पांच चरणों में चुनाव हुए थे, ताकि पीएम नरेंद्र मोदी ज्यादा से ज्यादा सभाएं कर सकें। यहां मोदी ने कई सभाएं की थीं। उन्होंने सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में कपड़ों को लेकर टिप्पणी करके सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की थी। इसके बावजूद झारखंड में मोदी का जादू नहीं चला। झारखंड विधान सभा चुनाव के रूझानों में झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को बहुमत मिलता दिख रहा है। यहां 81 सीटों के लिए मतदान हुआ था। सरकार बनाने के लिए 41 सीटों की जरूरत है। बीजेपी इस जादुई आंकड़े से काफी पीछे है।

नागरिकता कानून राज्यसभा में 12 दिसंबर को पास हुआ था और उससे पहले लोकसभा से। तब झारखंड के तीन चरणों में 48 सीटों के चुनाव बाकी थे। इन 48 सीटों पर भी बीजेपी की बुरी हार हुई है। यानी यह साफ तौर पर दिख रहा है कि जनता ने लोगों के बीच नफरत और बटवारे की बीजेपी की सियासत को साफ तौर से दरकिनार कर दिया है। झारखंड में भी एनआरसी को लेकर लोगों में भय है। एनआरसी अगर लागू हुआ तो यहां तमाम आदिवासी, दलित और पिछड़े नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे।

बीजेपी ने झारखंड में भी हिंदुत्व को ही मुख्य मुद्दा बनाया था। मोदी ने अगर कपड़ों की बात उठाई थी तो गृह मंत्री अमित शाह मंदिर का मुद्दा उछाल आए थे। उन्होंने यहां एक सभा में चार महीने में राम जन्म भूमि का भव्य मंदिर तैयार हो जाने जैसे बयान भी दिए थे। यहां मुख्यमंत्री रहे रघुवरदास की सीट भी मुश्किल में दिख रही है।  

राज्य में भाजपा ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा था और 65 पार का नारा दिया था। भाजपा यहां भी हिंदू-मुस्लिम की नफरत भरी सियासत के सहारे चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती थी। देश की खस्ता आर्थिक स्थिति, छिनते रोजगार और बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और दलितों-आदिवासियों की विरोधी सरकारी नीतियों और कार्पोरेट लूट के खिलाफ यहां जनता ने वोट किया। अब तक मिले रूझानों में यहां बीजेपी 30 से 31 सीटों के आसपास सिमटती दिख रही है।

कभी पूरे देश को भगवा रंग में रंगने का दावा करने वाली भाजपा धीरे-धीरे पूरे देश से सिमटती दिख रही है। मार्च 2018 में बीजेपी या उसके सहयोगियों की 21 राज्यों में सरकार थी। दिसंबर 2019 आते-आते यह आंकड़ा सिमटकर महज 15 राज्यों पर आ गया है। पिछले एक साल में चार राज्य बीजेपी के हाथ से जा चुके हैं। हरियाणा में भी उसने जोड़तोड़ करके सरकार बना ली, वरना वहां भी उसकी स्थिति अच्छी नहीं थी।

अहम बात यह भी है कि जिन राज्यों में बीजेपी सहयोगी के तौर पर सरकार में शामिल है, वहां उसकी बहुत ज्यादा सीटें नहीं हैं। गोवा में चालीस में से 13 सीटें भाजपा के पास हैं। बिहार में 243 में से सिर्फ 53 और मेघालय में महज दो सीटें उसके पास हैं।  2018 के आखिर में बीजेपी से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्य छिन गए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो करीब डेढ़ दशक से बीजेपी सत्ता में थी। अभी बीजेपी महाराष्ट्र के सदमे से उबर भी नहीं पाई थी कि अब झारखंड उसके लिए एक और  बड़ा सदमा साबित होगा।

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