जिग्नेश को जमानत, असम पुलिस को मिली फटकार

बरपेटा/अहमदाबाद। शुक्रवार को चर्चित विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवानी को बरपेटा सेशन कोर्ट ने एक हज़ार रुपये के मुचलके पर ज़मानत दे दी है। बरपेटा सेशन कोर्ट के न्यायाधीश ने पुलिस को झूठी प्राथमिकी दर्ज करने और कोर्ट और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए फटकार भी लगाई। इसके साथ ही कोर्ट ने असम पुलिस को मुश्किल से मिले लोकतंत्र को एक पुलिस स्टेट में बदल देने के लिए चेतावनी भी दी। कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम आदेश में न्यायालय ने एक-एक धारा पर टिप्पणी की है।

बरपेटा जिला और सत्र न्यायाधीश अपरेश चक्रवर्ती ने गुवाहाटी हाईकोर्ट से अपील की कि वह पुलिस बल में सुधार के लिए निर्देश जारी करे। कोर्ट ने कहा कि “मुश्किल से मिले हमारे लोकतंत्र को पुलिस स्टेट में बदलने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है और अगर असम पुलिस इस तरह से कुछ सोचती है तो वह बेहद बुरा ख्याल है।”

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को सीधे सभी पुलिस कर्मियों जो कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के काम में संलग्न हैं, को आरोपी को गिरफ्तार करते समय या फिर उसे किसी सामान की रिकवरी के लिए किसी स्थान पर ले जाते समय बॉडी कैमरा पहनने, गाड़ियों में सीसीटीवी कैमरा लगाने और सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्देश देना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के उपायों के जरिये मौजूदा प्रकार की गलत प्राथमिकियों को रोका जा सकता है। जैसा कि इस मामले में पुलिस के वर्जन के तौर पर सामने आया है।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश की एक कॉपी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास भी भेज दी जानी चाहिए जिससे वो उसे चीफ जस्टिस के सामने पेश कर सकें। कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस “इस पक्ष को देख सकें और उस पर यह विचार कर सकें कि क्या इस मामले को पीआईएल के तौर पर लिया जा सकता है जिससे राज्य में पुलिस की जारी ज्यादती को कम किया जा सके।”

कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा, “ महिला पुलिस सब इंस्पेक्टर द्वारा की गई प्रथिमिकी सेकंड एफ.आई.आर. है क्योंकि पीड़ित ने घटना की जानकारी सबसे पहले अपने वरिष्ठ अधिकारी को दी थी। अधिकारी के दिशा निर्देश पर प्राथमिकी दर्ज की गई। इसलिए इसे तत्काल प्राथमिकी नहीं कहा जा सकता। इसलिए रखने योग्य नहीं लगती, प्राथमिकी की तथ्यता मेरिट के आधार पर देखना ज़रूरी है”।

कोर्ट ने कहा “ जब पीड़ित ने घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी को दी तो अधिकारी ने प्राथमिकी दर्ज न कर CrPc की धारा 154 का उल्लंघन किया है”।

इस मामले में जो प्राथमिकी बरपेटा रोड पुलिस ने दर्ज की है। उसमें IPC की धारा 294 भी है। भद्दी भाषा का उपयोग के लिए प्राथमिकी में यह नहीं लिखा है कि आरोपी ने क्या शब्द कहे हैं। इसलिए धारा 294 में केस दर्ज नहीं होना चाहिए था। कोर्ट ने पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा सरकारी वाहन जिसमें आरोपी को ले जाया जा रहा था। उसमें आरोपी, पीड़ित महिला और दो अन्य पुरुष पुलिस कर्मी हाजिर थे। सरकारी वाहन पब्लिक प्लेस के श्रेणी में नहीं आता है।

आरोपी द्वारा पुलिस कर्मी को डराने के लिए अंगुली दिखाने से और शक्ति का उपयोग कर महिला पुलिस कर्मी को कुर्सी पर बैठा देना ताकि वह अपनी ड्यूटी का निर्वाहन न कर सके। प्रथम दृष्टि में यह सब 353 की धारा को नहीं स्थापित करता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि दो अन्य पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में शील भंग का भी केस नहीं बनता है। एक आरोपी दो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में महिला पुलिस कर्मी के साथ शील भंग कैसे कर सकता है। न ही जिग्नेश मेवानी का भूतकाल में ऐसा कोई रिकॉर्ड है। कोर्ट ने राम दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का हवाला देते हुए धारा 354 (शील भंग) में भी क्लीन चिट दे दी।

धारा 323 पर कोर्ट ने कहा, “आरोपी में शक्ति का उपयोग करते हुए महिला पुलिस कर्मी को जबरन सीट पर बैठा दिया जिससे पीड़ित को पीड़ा हुई यह आईपीसी की धारा 323 के तहत दंडनीय अपराध है| हालांकि आरोपी इससे इनकार करता है। यह एक ज़मानातीय अपराध है।

कोर्ट ने मेवानी को 1000 रु. के व्यक्तिगत निजी मुचलके पर छोड़ने का आदेश दे दिया। आपको बता दें 20 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राज्य गुजरात के दौरे पर थे। दौरे से दो दिन पहले 18 अप्रैल को जिग्नेश मेवानी ने प्रधानमन्त्री को संबोधित करते हुए ट्वीट किया था|

मेवानी ने ट्वीट में लिखा, “गोडसे को अपना अराध्य देव मानने वाले नरेंद्र मोदी 20 तारीख से गुजरात दौरे पर हैं। उनसे अपील है कि गुजरात में हिम्मतनगर, खंभात और वेरावल में जो कौमी हादसे हुए उसके खिलाफ शांति और अमन की अपील करें। महात्मा मंदिर के निर्माता से इतनी उम्मीद तो बनती है।’’

20 अप्रैल को असम के कोकराझार पुलिस ने मेवानी को पालनपुर के सर्किट हाउस से उठा लिया था। मेवानी पर असम पुलिस ने 120B 153B 295A 504 505(A)(B)(C)(2) IPC और आईटी एक्ट 66 की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। मेवानी की गिरफ़्तारी के बाद अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के ऑफिस पर रेड कर कंप्यूटर सीपीयू और संगठन इंचार्ज कमलेश कटारिया के मोबाइल को सीज़ किया था। मेवानी के दोनों मोबाइल असम पुलिस ने गिरफ़्तारी के समय ही अपनी कस्टडी में ले लिया था। मेवानी को पिछले सोमवार को ट्वीट विवाद केस में ज़मानत मिलते ही दोबारा बरपेटा पुलिस ने महिला शील भंग मामले में गिरफ्तार कर लिया था। मेवानी की गिरफ़्तारी के बाद गुजरात, असम और देश के कई हिस्सों में मेवानी की गिरफ़्तारी के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए थे जो अब भी जारी हैं।

वर्ष के अंत में गुजरात विधानसभा चुनाव भी हैं। मेवानी की गिरफ़्तारी को चुनाव से जोड़ते हुए देखा जा रहा है। गुजरात की राजनीति के जानकार मानते हैं कि मेवानी की गिरफ़्तारी से भाजपा अपने परंपरागत वोट बैंक जो सवर्ण हैं। उन्हें खुश करना चाहती है। मेवानी ने गुजरात के गावों से छुआछूत को समाप्त करने के लिए अभियान चलाया था। अभियान के तहत मेवानी ने राज्य के उन मंदिरों में जबरन प्रवेश किया था। जिन मंदिरों में दलितों का प्रवेश वर्जित है। मेवानी राज्य के उन खानपान की दुकानों पर जबरन बैठकर खानपान की वस्तुओं को दुकानदार की प्लेट में दलितों के साथ खाया जिन दुकानों पर दलितों को खाने पीने की अनुमति नहीं थी। उन दुकानों पर दलितों को पार्सल लेकर अपने घर जाकर खाना पड़ता था। क्योंकि सवर्ण जातियां नहीं चाहती थीं कि होटल की प्लेटों में दलित भी खाएं जिसमें सवर्ण जाति के लोग खाते हैं। मेवानी की गिरफ़्तारी से भाजपा सवर्ण वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है।

(अहमदाबाद से जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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