Tuesday, March 19, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: कैमूर के आदिवासियों ने भरी हुंकार, कहा- बाघ अभ्यारण्य नहीं बनने देंगे

कैमूर। ‘‘जल-जंगल-जमीन हम आपका, नहीं किसी के बाप का’’, ‘‘जल-जंगल-जमीन हमारा है, वन विभाग की जागीर नहीं’’, ’‘ ये धरती सारी हमारी है, जंगल-पहाड़ हमारे हैं’’, ‘‘ लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊपर ग्रामसभा’’, ‘‘बाघ अभ्यारण्य को हटाना है, जल-जंगल-जमीन को बचाना है’’ आदि जोशीले नारे से 28 मार्च को बिहार के भभुआ में स्थित कैमूर जिला मुख्यालय गूंजायमान हो गया। मार्च के अंत में ही मई-जून वाली चिलचिलाती धूप में जब हजारों आदिवासी-मूलवासी महिला-पुरुष अपने परम्परागत हथियारों से लैस होकर भभुआ शहर की सड़कों पर निकले, तो घंटों तक शहर थम-सा गया। शहर के लोग अपने घरों की छतों व खिड़कियों से, तो दुकानदार व ग्राहक दुकान के बाहर आकर जुलूस को देख रहे थे। इन सभी का मौन समर्थन भी प्रदर्शनकारियों को हासिल था। 

पदयात्रा निकालते आदिवासी

जनता के जोश व तेवर को देखते हुए जुलूस के गुजरने वाले तमाम चौक-चौराहों पर महिला-पुरुष पुलिस तैनात थे, जो जुलूस के लिए रास्ते खोल रहे थे, साथ ही कैमूर पुलिस की 5 गाड़ी जुलूस के आगे-आगे चल रही थी। जुलूस का अंतिम ठिकाना कैमूर समाहरणालय था, बावजूद इसके समाहरणालय से कुछ दूर पहले ही लिच्छवी भवन पर पुलिस ने जुलूस को रोकने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। पुलिस चाहती थी कि लिच्छवी भवन के पास ही ये लोग धरना-प्रदर्शन करें, लेकिन प्रदर्शनकारियों के तेवरों को देखते हुए पुलिस को पीछे हटना पड़ा। 

समाहरणालय के सामने प्रदर्शनकारी और पुलिस के जवान

प्रदर्शनकारी चाहते थे कि समाहरणालय के अंदर के कैम्पस में उन्हें धरना-प्रदर्शन करने दिया जाय, लेकिन पुलिस ने समाहरणालय के गेट को बंद कर दिया और सैकड़ों महिला-पुरूष पुलिस ने अपने दर्जनों पदाधिकारियों के साथ मिलकर उन्हें समाहरणालय के गेट पर ही रोक दिया और अपना धरना-प्रदर्शन वाहन स्टैंड पर करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर दबाव बनाया जाने लगा। दोनों तरफ से काफी देर तक नोक-झोंक होती रही और प्रदर्शनकारी पुलिस के इस रवैये से क्षुब्ध होकर पुलिसिया गुंडागर्दी के खिलाफ नारे लगाने लगे। आखिरकार प्रदर्शनकारियों ने घोषणा कर दी कि हम लोग समाहरणालय के गेट को जाम कर धरना व सभा की कार्यवाही प्रारंभ करेंगे।

‘ले मशालें चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के’ गीत से सभा की कार्यवाही प्रारंभ हो गयी, अब प्रशासन का हाथ-पांव फूलने लगा क्योंकि गीत व भाषण के जरिए जनता का तापमान बढ़ रहा था, तो वहीं समाहरणालय के अंदर कैमूर जिले के तमाम बीडीओ के साथ एसडीओ व डीएम बैठक कर रहे थे। बैठक खत्म होने के बाद उन्हें अपने प्रखंड मुख्यालय भी जाना था, इसलिए समाहरणालय गेट के बगल में स्थित शेड में प्रदर्शनकारियों को जगह दी गयी ताकि समाहरणालय के अंदर से पदाधिकारी बाहर निकल सकें।

वहां पर मौजूद स्थानीय मीडियाकर्मियों का कहना था कि कई सालों के बाद इस जगह कोई संगठन धरना-प्रदर्शन करने में सफल हुआ है, यह आदिवासी-मूलवासी जनता के तेवर व प्रदर्शनकारियों की अधिक संख्या के कारण ही संभव हो पाया।

28 मार्च को आखिरकार कैमूर समाहरणालय पर प्रदर्शन करने के लिए हजारों आदिवासी-मूलवासी जनता को क्यों मजबूर होना पड़ा? यह जानने के लिए इस आंदोलन की पृष्ठभूमि भी जाननी होगी। दरअसल कैमूर मुक्ति मोर्चा नामक संगठन ने कैमूर पठार से वन जीव अभ्यारण्य और बाघ अभ्यारण्य को तत्काल खत्म करने, वनाधिकार कानून 2006 को तत्काल प्रभाव से लागू करने, कैमूर पहाड़ का प्रशासनिक पुर्नगठन करते हुए पांचवीं अनुसूची क्षेत्र घोषित करने, छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम को लागू करने, पेसा कानून को तत्काल प्रभाव से लागू करने, बिना ग्रामसभा की अनुमति के गांव के सिवान में घुसना बंद करने, वन विभाग द्वारा आदिवासियों से जंगल में टांगी (कुल्हाड़ी) छीनना बंद करने, खेती की जमीन से लोगों को उजाड़ना और उसमें वृक्ष रोपना बंद करने, हमारे वन उत्पाद पर रोक लगाना बंद करने, जनता पर लादे गए सारे फर्जी मुकदमे वापस लेने व वन विभाग के द्वारा जनता से लकड़ी छीनना बंद करने की मांग के साथ 26 मार्च से अधौरा से कैमूर समाहरणालय तक लगभग 52 किलोमीटर की तीन दिवसीय पदयात्रा का ऐलान किया था। 

कैमूर मुक्ति मोर्चा के ऐलान के मुताबिक 26 मार्च की सुबह अधौरा से लगभग 70-80 आदिवासी-मूलवासी महिला-पुरूषों ने अपनी मांगों से संबंधित बैनर व कैमूर मुक्ति मोर्चा के लाल झंडे के साथ पदयात्रा प्रारंभ की, पदयात्रियों के पीछे एक ट्रैक्टर में खाने का कच्चा सामान व एक पानी का टैंकर वाला ट्रैक्टर भी था। खाने का कच्चा सामान व बनाने का सामान उन्होंने गांव में चंदा कर जुटाया था। 26 मार्च की दोपहर में पदयात्री ताला पहुंचे, वहां पर खाना बनाए, खाये, आराम किये और फिर 3 बजे शाम में वहां से चल दिये, रात्रि विश्राम करर में किया गया। 27 मार्च की सुबह जब वे लोग पदयात्रा के लिए करर से निकले, तो उनकी संख्या लगभग 200 तक पहुंच गयी। 27 की दोपहर में सुअरा नदी के पास स्कूल के प्रांगण में इन्होंने डेरा जमाया, यहां पर पदयात्रियों के लिए दूसरे समर्थक संगठनों ने खाना बनाया था। 

सुअरा नदी के किनारे पदयात्री भोजन करते हुए

इन पंक्तियों का लेखक भी 27 मार्च को पदयात्रियों को खोजते-खोजते सुअरा नदी के पास के इनके ठिकाने पर पहुंच गया। जब मैं पहुंचा, तो वहां पाया कि सैकड़ों पुरुष वृक्ष के नीचे प्लास्टिक की दरी पर बैठे हुए हैं, कुछ लोग लेटे हुए हैं और स्कूल के बरामदे में एक तरफ महिलाएं व बुजुर्ग बैठे हुए थे, तो दूसरी तरफ खाना पक रहा था। उस समय दिन के एक बजे थे। अभी खाना बनने में समय था। दो दिन से चिलचिलाती धूप में चलने के कारण पदयात्री थके जरूर लग रहे थे, लेकिन उनके जोश व तेवर में कमी नहीं थी। 

यहां मेरी मुलाकात कैमूर मुक्ति मोर्चा के सचिव राजालाल सिंह खेरवार से हुई। उन्होंने बताया कि कैमूर पहाड़ को 1982 में ही सरकार ने वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया था। उस समय यहां छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम लागू था, जिसके अनुसार कोई भी गैर-आदिवासी न तो आदिवासियों की जमीन खरीद सकता है और न तो बेच सकता है। लेकिन कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य बनाने के बाद सरकार ने विभिन्न तरह के प्रतिबंध जंगलों पर लगाने शुरू कर दिए। सबसे पहले यहां सरकार ने तेंदू पत्ते का टेंडर खत्म करके तेंदू पत्ता के व्यापार पर रोक लगाकर आदिवासियों की जीविका को छीन लिया। रोड, बिजली पर भी कुछ हिस्से में रोक लगा दिया गया, जिसकी वजह से मूलभूत आवश्यकताओं की चीजें भी कैमूर के आदिवासियों को नसीब नहीं हुईं।

कैमूर मुक्ति मोर्चा के सचिव राजालाल खेरवार

वे आगे बताते हैं कि कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य से तो यहां जनता पहले से आक्रांत थी ही, लेकिन 14 अगस्त, 2020 से कैमूर बाघ अभ्यारण्य बनाने को लेकर होने वाली सुगबुगाहटों से वे और भी भयभीत हो गए। 14 अगस्त, 2020 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैमूर व रोहतास जिले के आला अधिकारियों से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये बात की और कैमूर टाईगर प्रोजेक्ट (कैमूर बाघ अभ्यारण्य) का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव पर अमल करते हुए जिले के पदाधिकारियों से सहमति बनाकर तत्कालीन डीएफओ विकास अहलावत ने 19 अगस्त को ही केंद्र सरकार को भारत का सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य कैमूर पहाड़ को बनाने का प्रस्ताव भेज दिया। 

वे बताते हैं कि शायद सरकार की यह योजना पुरानी ही थी, क्योंकि इस प्रस्ताव पर आनन-फानन में जिला से लेकर केंद्र तक सभी तुरंत सक्रिय हो गये। संसद के मानसून सत्र (सितंबर 2020) में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार के अध्यक्ष भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने कैमूर बाघ अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा, जो कि पास भी हो गया। 

कैमूर मुक्ति मोर्चा के 7 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों में से एक विनोद शंकर बताते हैं कि ऐसा नहीं था कि कैमूर बाघ अभ्यारण्य के प्रस्ताव पर कैमूर पहाड़ पर रहने वाले आदिवासी-मूलवासी जनता में हलचल नहीं थी। हम लोग आसन्न खतरे को समझ रहे थे, इसीलिए 18 अगस्त, 2020 को ही हमने अधौरा प्रखंड मुख्यालय पर धरना दिया और अधौरा बीडीओ के माध्यम से डीएम को एक ज्ञापन भेजकर कैमूर बाघ अभ्यारण्य के राज्य सरकार के प्रस्ताव का विरोध किया। जब हमें पता चला कि 2020 के मानसून सत्र में कैमूर बाघ अभ्यारण्य का प्रस्ताव लाया जा सकता है और पास कराया जा सकता है, तो कैमूर मुक्ति मोर्चा ने 10-11 सितम्बर, 2020 को अधौरा बंद का आह्वान करते हुए प्रखंड मुख्यालय पर दो दिवसीय धरना-प्रदर्शन की घोषणा की। इस धरने में लगभग 5-6 हजार आदिवासी-मूलवासी जनता गोलबंद हुई।

धरना एक दिन चलने के बाद दूसरे दिन यानी 11 सितंबर, 2020 को भी जब कोई भी पदाधिकारी हमसे मिलने नहीं आया, तो हम लोगों ने बीडीओ, सीआई, फाॅरेस्टर आदि के कार्यालयों में तालाबंदी कर दी। फलस्वरूप प्रशासन ने सैकड़ों की संख्या में बीएमपी के जवानों को बुलाकर हमारे कार्यकर्ताओं पर लाठी व गोली चलवायी, जिसमें हमारे 8-10 कार्यकर्ता घायल भी हो गये और चफना गांव के रहने वाले आदिवासी युवक दीपक अगरिया के बायें कान को छेदते हुए गोली पार कर गयी। प्रत्युत्तर में हमारी तरफ से भी कुछ युवाओं ने पुलिस पर ईंट-पत्थर चलाये थे। फाॅरेस्टर ने 32 प्रदर्शनकारियों पर नामजद व 400 अज्ञात पर मुकदमा दर्ज कर दिया, जिसमें आर्म्स एक्ट व 307 जैसी संगीन धाराएं भी शामिल थीं। उसी दिन 7 प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी हुई, आगे चलकर लगभग सभी नामजद लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। सभी लोगों को 15 से 60 दिनों तक जेल में रहना पड़ा, बाद में सभी जमानत पर रिहा हुए।

परंपरागत हथियार लिया एक प्रदर्शनकारी

विनोद शंकर बताते हैं कि अभी 8 मार्च, 2022 को कैमूर व रोहतास के डीएफओ ने अधौरा प्रखंड में सभी पंचायत जनप्रतिनिधियों की बैठक की और कैमूर बाघ अभ्यारण्य के प्रति अपनी सहमति देने का दबाव बनाया, लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी सहमति देने को तैयार नहीं हुआ। डीएफओ के द्वारा बैठकों का सिलसिला प्रारंभ करने व वन विभाग के द्वारा पहाड़ की जनता पर अत्याचार बढ़ने के बाद हमने 11 मार्च, 2020 को अधौरा प्रखंड मुख्यालय पर प्रदर्शन किया और अब यह पदयात्रा कर रहे हैं। कैमूर बाघ अभ्यारण्य को नहीं बनने देने के लिए जो भी करना होगा, हम लोग करेंगे। कैमूर बाघ अभ्यारण्य को नहीं बनने देना, जल-जंगल-जमीन को बचाना है।

मालूम हो कि बिहार के कैमूर व रोहतास जिले के लगभग 1342 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कैमूर बाघ अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव लोकसभा से पास किया गया है। जानकारी के मुताबिक लगभग 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कोर एरिया व लगभग 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को बफर एरिया बनाने का प्रस्ताव है। कोर एरिया में लगभग 52 गांव व कुल मिलाकर 131 गांव के निवासी प्रभावित होंगे। इसमें कैमूर जिले के अधौरा, चैनपुर व भगवानपुर प्रखंड एवं रोहतास जिले के रोहतास, नौहट्टा, चेनारी, शिवसागर व तिलौथू प्रखंड के गांव शामिल हैं। इसमें लगभग 50 हजार परिवार के प्रभावित होने की आशंका है। इन 131 प्रभावित गांवों में आदिवासी समुदाय के खेरवार, चेरो, उरांव, अगरिया, कोरबा, दलित समुदाय के तुरिया, पासवान, हरजिन, मुसहर, रजक व ओबीसी समुदाय के यादव व बनिया जाति के साथ-साथ मुस्लिम आबादी भी है, लेकिन 70 प्रतिशत आबादी सिर्फ खेरवार आदिवासियों की ही है। बाकी 30 प्रतिशत में अन्य आदिवासी समुदाय एवं अन्य जाति के लोग हैं। 

प्रदर्शन के बाद प्रशासन को दिया गया ज्ञापन

कोर एरिया में रहने वाले लोगों को प्रति परिवार 10 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का प्रस्ताव भी है। वन विभाग का कहना है कि कैमूर बाघ अभ्यारण्य से किसी को भी विस्थापित नहीं किया जाएगा। इस पर पदयात्रा में शामिल कदहर कलां गांव के रहने वाले बुजुर्ग जगदयाल सिंह खेरवार कहते हैं कि बाघ अभ्यारण्य बनाने का मतलब ही है कि यहां पर बाघ रखे जाएंगे। बाघ और इंसान साथ कैसे रह सकता है? बाघ से इंसान के जीवन को खतरा है। हमारी फसल को खतरा है। वन विभाग व सरकार की बात पर हमें भरोसा नहीं है, क्योंकि अभी से ही वन विभाग का अत्याचार हम पर प्रारंभ हो गया है।

पदयात्रा में शामिल कई लोग बताते हैं कि जंगल के वनोत्पाद से (जैसे महुआ, पियार, जंगी, सूखी लकड़ी, आंवला, तेंदू पत्ता, लासा, पौरेया व विभिन्न तरह की जड़ी-बूटी) उनकी आय का 90 प्रतिशत आता है, लेकिन अब वन विभाग वाचर व केतलगाड की मदद से सूखी लकड़ी लेने व वनोत्पाद लेने से रोकता है। जंगल में जाने पर हमारी कुल्हाड़ी को छीन लिया जाता है। हमारी महिलाओं के साथ भी वन विभाग के सिपाही बदतमीजी करते हैं। विरोध करने पर वन विभाग के द्वारा कई आदिवासियों पर फर्जी मुकदमे लाद दिए गए हैं।

पदयात्रा में शामिल अधौरा प्रखंड के भिफोर गांव के रहने वाने हरि राम मुझे कोर्ट का एक नोटिस दिखाते हैं और कहते हैं कि हमारे गांव के 8 लोगों को ऐसा नोटिस मिला है, जबकि हमें पता भी नहीं है कि हम पर कब मुकदमा हुआ है। यह तो सरासर अन्याय है ना?

गुदरी के रहने वाले नारायण चेरो, शिवपूजन चेरो, रामबली चेरो, दीनानाथ चेरो, रामसूरत चेरो, सतेन्द्र चेरो आदि बताते हैं कि कैमूर पहाड़ पर रहने वाले लोगों को पहले से ही कई सुविधाओं से वंचित रखा गया है, अगर अब हमारे जंगल को भी बाघ को दे दिया जाएगा, तो हम कहां जाएंगे?

नौहट के रहने वाले राजकुमार तुरिया, गौरीशंकर तुरिया, शिवसागर तुरिया आदि कहते हैं कि हम किसी भी कीमत पर अपने घर को बाघ का घर बनने नहीं देंगे, चाहे इसके लिए हमें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। 

27 मार्च की शाम 4 बजे जब सुअरा नदी के किनारे से पदयात्रा निकली, तो पदयात्रियों की संख्या लगभग 300 हो गयी थी, इसमें अधौरा प्रखंड के जिला परिषद् सदस्य समेत कई पंचायत प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे। यहां से ही पदयात्रा में झारखंड से समर्थन देने पहुंचे मजदूर संगठन समिति के केंद्रीय संयोजक बच्चा सिंह, मेहनतकश महिला संघर्ष समिति की नेत्री सुमित्रा मुर्मू, झारखंड जन संघर्ष मोर्चा की संयोजक प्रोफेसर रजनी मुर्मू व अंजनी विशु भी शामिल हुए। पदयात्रा जब भगवानपुर बाजार पहुंची, तो वहां पर भाकपा (माले) लिबरेशन के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने शर्बत पिलाकर पदयात्रियों का स्वागत किया व उनकी मांगों के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की।

27 मार्च की रात्रि में पदयात्रियों के रुकने का इंतजाम भभुआ शहर के मुहाने पर स्थित सीवों के एक मैदान में किया गया था। यहां पर भी कई संगठनों ने मिलकर खाने का इंतजाम किया था। यहां पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़े कई छात्र-छात्राएं, उत्तर प्रदेश के मजदूर किसान एकता मंच के कन्हैया जी के साथ कई कार्यकर्ता, हमारा मोर्चा के संपादक कामता प्रसाद भी पहुंचे हुए थे। 27 की रात को पदयात्री महिलाओं व बीएचयू के छात्रों ने क्रांतिकारी जनवादी गीत से रात का समां ही बदल दिया। रात में कई पदयात्री महिलाएं पुरुष पदयात्रियों से अपने घरों की महिलाओं को पदयात्रा में नहीं लाने के लिए उलाहने भी देती नजर आयीं।

मैंने आदिवासी-मूलवासी जनता पर वन विभाग के द्वारा किये जा रहे अत्याचार के आरोप पर वन विभाग का पक्ष जानने के लिए कैमूर व रोहतास के डीएफओ प्रदुम्न गौतम से उनके सरकारी मोबाईल नंबर पर संपर्क करने की कई बार कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

28 मार्च की सुबह में पदयात्रियों की संख्या हजारों में पहुंच गयी, जिसने कैमूर जिला मुख्यालय पर अपनी मांगों के पक्ष में व्यापक जन समर्थन हासिल किया। जिला मुख्यालय पहुंचते-पहुंचते पदयात्रियों में कई वामपंथी दलों के कार्यकर्ता व कई पंचायत प्रतिनिधि भी शामिल हो चुके थे। 

कैमूर बाघ अभ्यारण्य के विरोध में तीन दिवसीय पदयात्रा का समापन करते हुए कैमूर मुक्ति मोर्चा के सचिव राजालाल सिंह खेरवार ने ऐलानिया स्वर में कहा कि बिहार की भाजपा-जद(यू) सरकार हम आदिवासियों की दुश्मन बन चुकी है। हम प्रकृति पूजक हैं व प्रकृति के रक्षक भी हैं। हमें प्रकृति से, जंगल से दुनिया की कोई भी ताकत अलग नहीं कर सकती है। कैमूर पहाड़ की आदिवासी-मूलवासी जनता सदियों से लड़ती आयी है और आगे भी लड़ती रहेगी, लेकिन बाघ अभ्यारण्य जैसे आदिवासी विरोधी प्रोजेक्ट को कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।

(कैमूर से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

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Jaya
Jaya
Guest
1 year ago

Stop dancing on the floor of Missionaries!..The jungle is the first property of the animals!!!

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