Wednesday, April 24, 2024

अरुंधति रॉय को शांति के लिये दक्षिण कोरिया का ली होशुल साहित्यिक पुरस्कार

ख्यातिलब्ध लेखिका अरुंधति रॉय को आज दक्षिण कोरिया के ‘ली-होशुल लिटरेरी प्राइज फॉर पीस’ से नवाजा गया। कोविड प्रोटोकॉल के चलते पुरस्कार समारोह में केवल 50 लोगों को शामिल होने की अनुमति दी गई। गौरतलब है कि इस पुरस्कार के लिये अरुंधति रॉय के नाम की घोषणा पिछले साल 20 नवंबर 2020 को ही कर दी गई थी। और पुरस्कार समारोह मॉर्च-अप्रैल में ही होना था लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे नवंबर तक टाल दिया गया था। 

‘शांति के लिये ली-हो-शुल साहित्यिक पुरस्कार’ ग्रहण करने के बाद रंगारंग कार्यक्रम को संबोधित करते हुये अरुंधति रॉय ने कोरोना महामारी का जिक्र किया। उन्होंने कहा- “पिछले 2 साल में लोगों ने अपनों को खोया है। नौकरी खोया है। कोरोना केवल एक महामारी नहीं बल्कि इसने दुनिया की तमाम सामाजिक बीमारियों को उजागर किया है। 1947 में दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय विस्थापन भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय दुनिया ने देखा। उसके बाद पिछले साल भारत के प्रधानमंत्री द्वारा रात आठ बजे अचनाक लॉकडाउन घोषित करने के बाद 1.2 अरब लोग लॉकडाउन हो गये। बड़े शहरों में लोग कैद होकर बेरोज़गार हो गये। जहां वो काम की तलाश में विस्थापित होकर आये थे। और फिर रिवर्स माइग्रेशन के लिये विवश होकर करोड़ों लोग पैदल ही हजारों मील दूर अपने गांवों को चल पड़े और पुलिस द्वारा रास्ते में पीटे गये। जानवरों की तरह उन पर कीटनाशकों का छिड़काव किया गया। ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाइयों की कमी से लाखों लोग बेमौत मरे। नदियों में हजारों लाशें तैरती देखी गईं।”

उन्होंने आगे कहा कि बहुत से लोग शिक्षा नहीं ग्रहण किये और पढ़ नहीं सकते। वो अपनी पुरस्कार राशि उनके लिये दान करेंगी। उन्होंने कहा कि नफ़रत और सांप्रदायिकता हमें फिर से शिकार बना रही है। मुसलमानों से नफ़रत बढ़ी है। भारत में 15 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भय में है। हिंदुत्ववादी सरकार की नीतियां मुस्लिम विरोधी हैं। नफऱत और घृणा से भरे सांप्रदायिक फेक न्यूज़ भारत की मीडिया ओर सोशल मीडिया में भरे पड़े हैं। मुस्लिम समाज का सामाजिक और आर्थिक बॉयकाट, मॉब लिचिंग ने उनके लिये स्थितियां दुरूह कर दी हैं। अभी हाल ही में क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत को चीयर करने पर सैकड़ों लोगों पर देशद्रोह धारा चार्ज किया गया।

अरुंधति रॉय ने अपने भाषण में आगे कहा कि हिंदुत्ववादी सोच की सत्ता मुस्लिम नाम वाली सड़कों, इमारतों, स्टेशनों, स्थानों के नाम बदल रही हैं। जर्मनी के यहूदियों का सा हाल है। आरएसएस भारत में सबसे शक्तिशाली संगठन है जिसके देश भर में लाखों शाखायें चलती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार के अन्य वरिष्ठ मंत्री आरएसएस संगठन से संबंध रखते हैं जो कि देश की हिंदुत्व सुप्रीमेसी वाली संगठन है।

मोदी सरकार ने सीएएए क़ानून लाया जो कि मुस्लिम के ख़िलाफ़ है। उन्होंने देश के एक प्रांत में एनआरसी लागू किया और पूरे देश पर थोपने की दिशा में काम कर रहे हैं। जो बिल्कुल जर्मनी के सिटीजन क़ानून के समान है। वो लोगों से उनके लिगेसी पेपर मांग रहे हैं।

ये रिफ्यूजी मैनुफैक्चरिंग पोलिसी है। सरकार देश में बड़े डिटेंशन कैम्प बना रही है। मुस्लिम महिलाओं और छात्रों द्वारा इन का विरोध किया गया।पिछले साल डोनाल्ड ट्रंप के भारत आगमन के समय विरोध करने पर छात्रों को जेल भेज दिया गया। इलेक्टोरल इंडेक्स, ग्लोबल हंगर इंडेक्स और मीडिया फ्रीडम इंडेक्स में भारत सबसे नीचे है। इंडिया और पाकिस्तान के संबंध बिल्कुल उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया की तरह लगातार परमाणु बम की धमकी पर रहती हैं।आज कश्मीर विश्व का सबसे सैन्यीकृत क्षेत्र है। जहां सारे मानवाधाधिकार निलंबित हैं।

उन्होंने कहा कि न्यूक्लियर युद्ध हमारे दिमागों कोलोनाइज करते हैं, हमारे सपनों, खुशियों को नष्ट करते हैं। उन्होंने आखिर में दक्षिण कोरिया को धन्यवाद किया जो लगातार साहित्य और मनुष्यता को पुरस्कृत कर रही है। जो युद्ध के नहीं बल्कि प्रेम के पक्ष में खड़ी है।

शांति के लिए ली-हो-शुल साहित्यिक पुरस्कार

शांति के लिए ली-हो-शुल साहित्यिक पुरस्कार की चयन समिति (एलएलपीपी) और यूपाइपॉन्ग-गार्ड (Eunpyeong-gu) डिस्ट्रिक्ट ऑफिस ने अरुंधति रॉय को साल 2020-21 के ग्रैंड लॉरेट के रूप में चुना था।

एलएलपीपी एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार है जो कोरिया गणराज्य में शांति को बढ़ावा देने के लिए पहचान करके सालाना दिया जाता है। इसमें दो तरह के पुरस्कार हैं: मुख्य ली-हो-शुल शांति के लिए साहित्यिक पुरस्कार, और एक विशेष पुरस्कार जो एक युवा और भावी कोरियाई लेखक को दिया जाता है। मुख्य पुरस्कार विजेता को 50 मिलियन की मौद्रिक राशि और विशेष पुरस्कार विजेता को 20 मिलियन की पुरस्कार राशि दी जाती है।

ली होशुल लिटरेरी प्राइज़ फॉर पीस की स्थापना साल 2017 में लेखक ली हो-शुल (Lee Ho-chul) के सम्मान में दक्षिण कोरिया के सियोल के जिला कार्यालय में सियोल के डिस्ट्रिक्ट ऑफिस यूपाइपॉन्ग-गार्ड द्वारा किया गया। Lee Ho-chul एक प्रतीकात्मक हस्ती हैं जिनका साहित्यिक कार्य दो कोरियाई लोगों के शांति और सद्भाव के लिए एक गहरी लालसा को दर्शाता है।

इस साल का कोरियाई ग्रैंड लॉरेट पुरस्कार जीतेन वाली अरुंधति रॉय ने अपने पहले उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्माल थिंग’ के लिए साल 1997 में बुकर पुरस्कार जीता था। उन्होंने तब से धार्मिक भेदभाव और वर्ग संघर्ष और दुनिया भर में सत्ता और पूंजी के आतंक के खिलाफ़ नागरिक आंदोलनों और नॉन फिक्शन लेखन पर ध्यान केंद्रित किया है। उनके दूसरे उपन्यास लगभग 20 साल बाद ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पिनेस’ आया था। डेब्यू के 20 साल बाद प्रकाशित, ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पिनेस’ में अरुंधति रॉय ने भेदभाव की आलोचना की और एलएलपीपी की चयन समिति ने चयन का कारण बताते हुए कहा, कि अरुंधति रॉय की साहित्यिक भावना लेखक ली हो शुल के अनुरूप है, वो भारत के इतिहास में भयंकर समस्या चेतना के साथ लगातार शांति की मांग करती आ रही हैं।

Eunpyeong-gu (Gu Mayor Kim Mi-kyung) ने अरुंधति के साथ मंगलवार 10 नवंबर को 14:00 बजे एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया था। और पुरस्कार समारोह को कोविड-19 के चलते एक साल के लिये स्थगित कर दिया गया था।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं।)

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