Friday, April 26, 2024

कानून मंत्री ने जजों की नियुक्ति को लेकर संसद में कॉलेजियम पर फिर निशाना साधा

केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच जजों की नियुक्तियों को लेकर चल रही बयानबाजी के बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में कॉलेजियम पर एक बार फिर निशाना साधते हुए कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए नई व्यवस्था जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के जज चाहते हैं कि कॉलेजियम प्रणाली जारी रहे और उनकी नियुक्ति जज ही करें और उसमें सरकार का दखल नहीं हो। लेकिन सरकार चाहती है कि कॉलेजियम सिस्टम बदले।

दरअसल जब से एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया तब से जस्टिस रमना के चीफ जस्टिस के कार्यकाल तक सरकार ने चुप्पी साध रखी थी लेकिन जब यह सुनिश्चित हो गया कि जस्टिस चंद्रचूड नये चीफ जस्टिस होंगे तब से सरकार ने कॉलेजियम प्रणाली पर हल्ला बोल कर दिया है, क्योंकि उसे लगता है कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड के कार्यकाल में दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों की न्यायपालिका में नियुक्ति असम्भव होगी ।

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है कानून मंत्री किरेन रिजिजू बड़ी संख्या में लंबित मामलों पर संसद में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि देश भर में पांच करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। मंत्री ने कहा कि इसके पीछे मुख्य कारण जजों की नियुक्ति है।

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा कि जब तक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव नहीं होता, उच्च न्यायिक रिक्तियों का मुद्दा उठता रहेगा। देश भर में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के लिए न्यायिक रिक्तियों को जिम्मेदार ठहराते हुए, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सरकार के पास न्यायिक रिक्तियों को भरने की सीमित शक्ति है, हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है कि वे गुणवत्तापूर्ण जजों के नामों की सिफारिश करें।

रिजिजू ने कहा कि सरकार ने केसों की लंबित स्थिति को कम करने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन जजों के रिक्त पद भरने में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है । कॉलेजियम नामों का चयन करता है, और इसके अलावा सरकार को जजों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है ।

उन्होंने कहा कि सरकार ने अक्सर भारत के मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को जजों के नाम भेजने के लिए कहा था जो गुणवत्ता और भारत की विविधता को दर्शाते हों और जिसमें महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिलता हो । उन्होंने कहा कि, लेकिन मौजूदा व्यवस्था ने संसद या लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं किया। उन्होंने कहा कि मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि ऐसा लग सकता है कि सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप कर रही है, लेकिन संविधान की भावना कहती है कि जजों की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है। यह 1993 के बाद बदल गया।

रिजिजू ने 2014 में लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम का भी उल्लेख किया, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। कानून मंत्री ने कहा कि जब तक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव नहीं होता, रिक्त उच्च न्यायिक पदों का मुद्दा उठता रहेगा ।

कानून मंत्री ने कहा कि संविधान के अनुसार, जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया अदालतों के परामर्श से सरकार के दायरे में थी । आज न्यायिक रिक्तियों को भरने के लिए सरकार के पास बहुत सीमित शक्ति है। जिन नामों को सरकार की मंजूरी के लिए भेजा जाता है, उनके अलावा नए नामों का प्रस्ताव करने की कोई अन्य शक्ति नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों पर नाराजगी व्यक्त की है।न्यायिक नियुक्तियों के मामलों में समय-सीमा का उल्लंघन करने के आरोप में केंद्र के खिलाफ बैंगलोर एडवोकेट्स एसोसिएशन ने एक अवमानना याचिका दायर की है, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों पर नाराजगी जाहिर की थी । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि कॉलेजियम प्रणाली “देश का कानून” है, जिसका “पूरी तरह पालन” किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा सिर्फ इसलिए कि समाज के कुछ वर्ग हैं जो कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ विचार व्यक्त करते हैं, इससे इसका देश का कानून होना समाप्त नहीं हो जाता।

गौरतलब है कि इस मामले में 28 नवंबर को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ कानून मंत्री की टिप्पणियों पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से न्यायिक नियुक्तियों के संबंध में कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का पालन करने के लिए केंद्र को सलाह देने का भी आग्रह किया था। सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया था कि कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नाम केंद्र के लिए बाध्यकारी हैं और नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए निर्धारित समय सीमा का कार्यपालिका द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है।

क़ानून मंत्री ने संसद को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसंबर तक 34 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद हैं, लेकिन 27 न्यायाधीश नियुक्त हैं। उच्च न्यायालयों में 1,108 की स्वीकृत पद हैं लेकिन 777 न्यायाधीश काम कर रहे हैं। और 331 पद यानी क़रीब 30 फ़ीसदी पद खाली हैं।

कानून मंत्री ने यह भी कहा कि भारत के लोगों के बीच यह भावना है कि अदालतों को मिलने वाली लंबी छुट्टी न्याय चाहने वालों के लिए बहुत सुविधाजनक नहीं है” और यह उनका दायित्व और कर्तव्य है कि वे इस सदन के संदेश या भावना को न्यायपालिका तक पहुंचाएं।

अदालतों के कार्य दिवसों की संख्या पर राज्य सभा में कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के एक सवाल का जवाब देते हुए , रिजिजू ने कहा कि देश में लंबित मामलों की संख्या 5 करोड़ के करीब थी, जो 4.90 करोड़ तक पहुंच गई थी।मंत्री के लिखित उत्तर में कहा गया है कि 12 दिसंबर, 2022 तक उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों की स्वीकृत शक्ति 25,011 थी और कार्य शक्ति 19,192 थी।

छुट्टियों के मुद्दे पर मंत्री के जवाब में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के पास क्रमशः 2019, 2020 और 2021 में 224, 217 और 202 कार्य दिवस थे। इसी तरह, सभी उच्च न्यायालयों में आमतौर पर साल में औसतन 210 कार्य दिवस होते हैं।

एक पूरक प्रश्न में, भाजपा सांसद सुशील मोदी ने मंत्री से पूछा कि क्या सरकार मुख्य न्यायाधीश से बात करेगी कि वे पूरे न्यायालय के लिए छुट्टियों से लेकर व्यक्तिगत न्यायाधीशों के लिए वर्ष के अलग-अलग समय पर छुट्टियां लें।इसके जवाब में कानून एवं न्याय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अपने कार्य दिवस खुद तय करते हैं और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती, लेकिन बात करने में कोई बुराई नहीं है।

कांग्रेस सांसद विवेक तनखा के इसी तरह के सुझाव के जवाब में, रिजिजू ने कहा कि निश्चित रूप से, भारत के लोगों में यह भावना है कि अदालतों को मिलने वाली लंबी छुट्टी न्याय चाहने वालों के लिए बहुत सुविधाजनक नहीं है। कानून मंत्री के रूप में निश्चित रूप से यह मेरा भी बाध्य कर्तव्य और कर्तव्य है कि मैं इस सदन के संदेश या भावना को न्यायपालिका तक पहुंचाऊं। निश्चित तौर पर यह सुनिश्चित करेंगे कि छुट्टियां होने पर भी अदालत का कामकाज बंद नहीं होना चाहिए ।

उन्होंने कहा कि 1 मई 2014 से 5 दिसंबर, 2022 तक उच्चतम न्यायालय में 46 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है। जवाब में कहा गया कि अदालत की अपनी वेबसाइट के अनुसार, 1 दिसंबर, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट में 69,598 मामले लंबित थे और उच्च न्यायालयों में 59.56 लाख मामले लंबित थे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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