Saturday, April 20, 2024

अमरोहा-2: प्रबंधक ने सफाई में सारी चीजों के लिए दलित अध्यापक को ठहरा दिया जिम्मेदार

प्रबंधक ने बच्चों को भड़काकर डीएम ऑफिस भेजा

सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि स्कूल में केवल दो सेक्शनों की मान्यता है। जबकि मैनेजमेंट चाहता था कि तीसरा सेक्शन भी चलाया जाये। हमने कहा जब दो ही सेक्शनों की मान्यता है तो हम तीसरा सेक्शन कैसे चला दें। या तो कोई अथॉरिटी हमें लिखकर दे दे। डीआईएस लिखकर दे दे, मैनेजमेंट कमेटी लिखकर दे दे। उसके आधार पर छात्र संख्या अधिक होने के नाते हम कंसीडर कर लेंगे। लेकिन लिखित में देने के बजाय सेक्शन को लेकर मैनेजमेंट ने छात्रों के मेरे ख़िलाफ़ भड़काया और छात्रों को भड़काकर डीआईएस ऑफिस और डीएम ऑफिस भेज दिया बिना हमारी (प्रिंसिपल) परमिशन के। सोचिये यदि उन बच्चों के साथ कोई घटना हो जाती तो। स्कूल से 20 किलोमीटर दूर है डीएम ऑफिस। हाईवे है। कोई बात हो जाती तो जिम्मेदारी प्रधानाचार्य की होती। ऐसी चीजें उनके द्वारा मेरे विरुद्ध करवायी गईं।  

इस घटना के बाबत सतीश कुमार कहते हैं कि बच्चे हर क्लास में ज़्यादा हैं लेकिन कमरे उतने नहीं हैं। कई भवन तो जर्जर हो चुके हैं। ऐसे में कैसे सेक्शन बढ़ाया जा सकता है। वो आगे बताते हैं कि स्टाफ रूम में बैठने के लिये दलित शिक्षकों को टूटी कुर्सियां दी जाती हैं।   

सुरेंद्र कुमार को हटाकर मैनेजर के समधी बने प्रिंसिपल

कॉलेज प्रबंधक धर्मवीर सिंह ने सुरेंद्र कुमार को प्रिंसिपल के पद से डिमोशन करके अपने सगे समधी सुरजीत सिंह को कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त कर दिया। सुरजीत सिंह कॉलेज में लेक्चरर थे और इसी साल यानि मार्च 2022 में रिटायर हो गये। सुरजीत सिंह पर 16 साल की लड़की भगाने, 376 आदि का मुक़दमा चल रहा है।  तथ्य छुपाकर वेतन निकाला है कॉलेज से, उसके ख़िलाफ़ हम लोगों ने डीआईएस और उच्च अधिकारियों को लिखा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने उस समय का वेतन भी लिया और कार्रवाई भी नहीं हुई। 

ओबीसी शिक्षक ने भरी क्लास में दलित बच्चों को कहा गंदी नाली का कीड़ा

स्कूल में सिर्फ़ सवर्ण स्टॉफ ही नहीं पिछड़े वर्ग के शिक्षक भी दलित बच्चों से नफ़रत और उनका जातीय उत्पीड़न करते हैं। सतीश कुमार बताते हैं कि पिछड़े वर्ग के एक शिक्षक हैं, जय प्रकाश कश्यप। उन्होंने भरी क्लास में दलित समुदाय के बच्चों को गंदी नाली का कीड़ा कहा। बच्चों ने घर जाकर अपने माता-पिता अभिभावकों से बताया। अगले दिन जब अभिभावक अपनी शिकायत लेकर स्कूल आये तत्कालीन प्रिंसिपल सुरजीत सिंह ने पुलिस बुलाकर गार्जियन की पिटाई करवाई और मुक़दमा करवाया। 

प्रबंधक की सफाई

जनचौक संवाददाता से 38 मिनट के टेलीफोनिक बातचीत में स्कूल प्रबंधक धर्मवीर सिंह अपने ऊपर लगे आरोपों पर सिलसिलेवार सफाई देते हैं। वो कहते हैं सुरेंद्र कुमार इंग्लिश विषय के प्रवक्ता, सतीश कुमार सहायक अध्यापक इंग्लिश, हीरालाल हाईस्कूल इंग्लिश, सूरज सिंह सामाजिक विषय के शिक्षक हैं। सुरेंद्र कुमार इंग्लिश के लेक्चरर हैं जबकि हमारे यहां ऐसा कोई पद ही नहीं है। नागरिक शास्त्र का पद है। चयन बोर्ड ने इन्हें ग़लत चयनित करके हमारे यहाँ भेज दिया। जबकि हमारे यहां से ज्ञापन गया था नागरिक शास्त्र का। 

प्रबंधक धर्मवीर सिंह आगे कहते हैं कि वित्तीय अनियमितता और अनुशासनहीनता आदि के आरोपों में 4 मार्च 2019 को सुरेंद्र कुमार का सस्पेंसन हुआ था। इसके बाद 4 अप्रैल, 2019 को इनके टर्मिनेशन का प्रस्ताव हुआ था। वो चयन बोर्ड को गया फिर हाईकोर्ट चला गया। डीआईएस ने 29 अप्रैल, 2019 को मैनेजमेंट के प्रस्ताव को डिसअप्रूव कर दिया। मैनेजमेंट हाईकोर्ट गया और वहां डीआईएस का ऑर्डर क्विज हो गया। धर्मवीर सिंह आरोप लगाते हैं कि अपने सस्पेंशन के दौरान सुरेंद्र कुमार ने ढाई लाख रुपये छात्रनिधि से चार चेक निकाले। हाईकोर्ट द्वारा डीआईएस के ऑर्डर को क्विज करने के बाद उन्होंने एक चेक से 55 हजार रुपये निकाले। । फिर तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानाचार्य सुरजीत सिंह द्वारा सुरेंद्र कुमार के ख़िलाफ़ एफआईआर कराया गया। 

प्रबंधक ने कहा-सुरेंद्र कुमार की ज्वाइनिंग ग़लत

प्रबंधक धर्मवीर बताते हैं कि साल 2005 में सुरेंद्र कुमार की ज्वाइनिंग के बाद डीआईएस ने एक ऑर्डर दिया था मैनेजमेंट को कि आपने इन्हें ग़लत ज्वाइन करा दिया। विषय नागरिक शास्त्र का था आपने इंग्लिश विषय का प्रवक्ता ज्वाइन करा दिया। आप इनकी नियुक्ति निरस्त करके तीन दिन के अंदर अवगत करायें। और जब तक नागरिक शास्त्र का प्रवक्ता न आये किसी अन्य विषय पर कार्यभार न ग्रहण करायें। अन्यथा आप (मैनेजमेंट) के विरुद्ध नियम के अनुसार कार्यवाही की जायेगी।

धर्मवीर सिंह के मुताबिक 20 अक्टूबर, 2005 का पत्र है ये। डीआईएस जेपीनगर का। इस पर इन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की 68261 /2005 सुरेंद्र कुमार बनाम स्टेट ऑफ यूपी आदि। उनकी इस याचिका पर हाईकोर्ट ने डीआईएस के ऑर्डर पर स्थगन आदेश दिया। उसी स्थगन आदेश के बल पर सुरेंद्र कुमार विद्यालय में अब तक कार्यरत थे। फिर इनकी वो याचिका 26 फरवरी, 2020 को हाईकोर्ट ने ख़ारिज़ कर दी। 

प्रबंधक के मुताबिक जब हाईकोर्ट का स्थगन आदेश खारिज़ हो गया तो डीआईएस जेपीनगर का 20-10-2005 का ऑर्डर प्रभावी हो गया। तो मैनेजमेंट ने इन्हें नोटिस दिया कि आपके पास किसी कोर्ट का कोई स्थगन आदेश हो या कोई विभागीय आदेश हो तो प्रस्तुत करें। इन्होंने उसका संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। तो हमने नोटिस दिया कि आपकी नियुक्ति निरस्त कर दी जाएगी। मैनेजमेंट ने डीआईएस के 20-10-2005 के ऑर्डर के अनुपालन में 28 फरवरी 2021 को इनकी नियुक्ति निरस्त करने का प्रस्ताव पारित कर दिया और 1 मार्च 2021 को सुरेंद्र कुमार को विद्यालय से कार्यमुक्त कर दिया। डीआईएस ने 9 मार्च को इनके दूसरे नंबर के हस्ताक्षर को प्रमाणित किया और चयनबोर्ड को भेज दिया। सुरेंद्र कुमार ने फिर हाईकोर्ट में याचिका दी, जो अभी भी पेंडिंग है। 

प्रबंधक धर्मवीर सिंह सुरेंद्र कुमार पर संगीन आरोप लगाते हुये कहते हैं कि फिर इन्होंने चयनबोर्ड में साठ-गांठ की। जिससे चयनबोर्ड से एक ऑर्डर पास हुआ जिसमें चयनबोर्ड ने कहा कि- “कार्यभार ग्रहण करने के बाद समायोजन का केस नहीं बनता है।” धर्मवीर सिंह का आरोप है कि डीआईएस इनकी जाति (दलित) के थे तो उन्होंने चयनबोर्ड के उस लेटर की आड़ में उन्होंने 24 जुलाई 2021 को इन्हें कार्यभार ग्रहण करने का ऑर्डर पास कर दिया। 1 मार्च 2021 से इनकी नियुक्ति निरस्त हो गई और 24 जुलाई 2021 को डीआईएस ने कार्यभार ग्रहण करने का ऑर्डर दिया। 

मैनेजमेंट के प्रस्ताव के ख़िलाफ़, डीआईएस के ऑर्डर के ख़िलाफ़ इनकी याचिका हाईकोर्ट में पेंडिंग है। एक अधिवक्ता की तर्ज़ पर प्रबंधक दलील देते हैं कि 1 मार्च 2021 से 24 जुलाई 2021 तक सुरेंद्र कुमार संस्था से बाहर रहे। फिर जब 24 जुलाई 20211 को डीआईएस ने इन्हें कार्यभार ग्रहण करने का ऑर्डर दे दिया तो इन्होंने कार्यभार ग्रहण कराने के संदर्भ में कोई प्रार्थनापत्र मैनेजमेंट को नहीं दिया। 14 सितंबर 2021 को डीआईएस ने इन्हें लेटर जारी किया और कहा कि प्रार्थनापत्र दें और मैनेजमेंट से संपर्क करें। इन्होंने संपर्क तो नहीं किया लेकिन 15 सितंबर 2021 को प्रार्थनापत्र भेजा ज्वाइन करने के लिये। मैंने ज्वाइन करा दिया। फिर इन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाली कि वेतन नहीं दिया जा रहा है। हाईकोर्ट ने डीआईएस को दिशा-निर्देश दिया तय करने के लिये।

प्रबंधक के मुताबक डीआईएस साहेब का ऑर्डर है इस प्रकरण पर कि 28 सितंबर 2021 को याची सुरेंद्र कुमार की वेतन भुगतान के संदर्भ में उपस्थिति की जांच हेतु तीन राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाध्यापकों की एक जांच कमेटी नियुक्त कर 3 सप्ताह के अंदर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को निर्देश दिया गया। कमेटी में दिनेश कुमार चिकारा ( प्रधानाचार्य राजकीय इंटर कॉलेज अमरोहा), पवन कुमार त्यागी प्रधानाचार्य राजकीय इंटर कॉलेज धनौरा, राजेंद्र सिंह प्रधानाचार्य राजकीय इंटर कॉलेज मिट्ठीपुर कला अमरोहा शामिल हैं।

प्रबंधक महोदय टेलीफोन पर डीआईएस के ऑर्डर के 9 वें अंक को पढ़कर सुनाते हैं जिसमें कहा गया है कि याची का वेतन 1-3-2021 से 23-7-2021 का वेतन याची द्वारा योजित याचिका संख्या 68261/ 2005 में पारित माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 26-2-2020 के विरुद्ध योजित रिस्टोरेशन प्रार्थनापत्र एवं रिट याचिका 5836/2001 में पारित होने वाले माननीय उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश के अधीन/ निर्णय के अधीन होगा। और फिर इसकी बुनियाद पर दलील देते हैं कि ये 6 महीने का वेतन दिये जाने का प्रश्न ही नहीं है। तो याचिका के अधीन हो गया। जो ऑर्डर होगा, जब होगा तब देखा जाएगा। इसमें मैनेजमेंट कहां दोषी है। 

अपने बचाव में मे कॉलेज प्रबंधक धर्मवीर सिंह शिक्षा विभाग पर सवाल खड़े करते हुये कहते हैं शिक्षा विभाग सुरेंद्र कुमार को वेतन दिलाकर ग़लत कर रहा है। क्योंकि जिला विद्यालय जेपीनगर के आदेश 20-10 -2005 का ऑर्डर किसी कोर्ट या विभाग से स्थगित, निरस्त नहीं है और वो आज भी प्रभावी है। सुरेंद्र कुमार की नियुक्ति निरस्त करने के मैनेजमेंट के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ न तो किसी कोर्ट से न विभाग से कोई ऑर्डर नहीं है न निरस्त का, न स्थगन का। तो विभाग इन्हें वेतन ग़लत दिला रहा है। इसके ख़िलाफ़ हमने डायरेक्टर को लिखा है। कि अगर कहीं किसी जांच में यह बात आती है तो हमारा कोई दोष नहीं होगा, इसका दोषी विभाग और संबंधित अधिकारी होंगे। 

अपने ऊपर स्कूल की ज़मीन क़ब्ज़े को आरोप पर प्रबंधक कहते हैं इस पर प्रधानाचार्य और पुलिस द्वारा जांच की गई और तहसील द्वारा जांच की गई। तहसीलदार की जांच आदेश में मुझे बेकसूर पाया गया। वो आगे बताते हैं कि चारों दलित शिक्षकों द्वारा ज़मीन के मसले को विधान परिषद में उठवाया गया। सुरेश कुमार त्रिपाठी विधान परिषद सदस्य द्वारा जनता इंटर कॉलेज की ज़मीन बेचे जाने के संदर्भ में पूछे गये प्रश्न के संबंध में तहसीलदार ने स्थलीय वन अभिलेखीय जांचकर मुझे बेक़सूर बताया। जांच में बताया गया कि जनता इंटर कॉलेज द्वारा कोई बैनामा पंजीकृत नहीं पाया गया। स्कूल के ज़मीन में कृषि कार्य हो रहा है। किंतु गाटा संख्या 245 क्षेत्रफल .263 हेक्टेयर पर विद्यालय द्वारा खेल के मैदान के रूप में विकसित कर लिया गया है। प्रत्येक वित्तीय सत्र में शेष गाटों की नीलामी प्रबंध कमेटी द्वारा की जाती है जिसमें उत्तम बोली लगाने वाले काश्तकार को भूमि कृषि कार्य हेतु दी जाती है। विद्यालय के ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके अवैध निर्माण कराने के आरोप पर तहसीलदार द्वारा जांच की गई और बताया गया कि आरोप झूठा है। 

सहायक अध्यापक सतीश कुमार द्वारा समाजिक विज्ञान की शिक्षिका को रखने और पदोन्नति देने के आरोप पर प्रबंधक कहते हैं – हाईस्कूल स्तर पर ऐसा कोई नियम प्रावधान माध्यमिक शिक्षा अधिनियम में नहीं है। ये चारों अपने घर से बनाकर लाते हैं नियम। तीन एसटी शिक्षक और हैं विद्यालय में कार्यरत उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। ये तो इन्हें राजनीति करनी है, कुछ काम नहीं करना , षडयंत्र रचते हैं विद्यालय के ख़िलाफ़ यहीं से वेतन पा रहे हैं और इसी के जड़े खोद रहे हैं विद्यालय में। 

प्रबंधक महोदय बताते हैं कि कॉलेज में कुल 17 स्वीकृत पद हैं सहायक अध्यापक के, दो लेक्चरर पद हैं। 12 एलटी ग्रेड में और 1 लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं। इन लोगों का प्रमोशन इसलिये नहीं किया क्योंकि अनुशासनहीनता है, छात्र एवं संस्थाओं के हित मे इनका कार्य व्यवहार अच्छा नहीं है। जबकि जय प्रकाश सरोज (हिंदी), राजेंद्र कुमार (गणित) मुनीर कुमारी (फोर्थ क्लास) एससी हैं और स्टाफ में किसी को कोई दिक्कत नहीं है। इन्हें पढ़ाना न पड़े विद्यालय में, विवाद रहना चाहिये, इन्हें आराम से आज़ादी रहेगी पढ़ाई लिखाई आती ही नहीं। इनका यही पेशा है। रोज़ नये आरोप लगाते रहते हैं। इन चारों ने एक बाबू के ख़िलाफ़ भी हाईकोर्ट में याचिका डाल दी कि इसकी नियुक्ति गलत है, प्रमोशन ग़लत है। एक अध्यापक के ख़िलाफ़ याचिका डाल दी कि इसकी नियुक्ति ग़लत हुई है। आरती की पदोन्नति ग़लत है। उसका कार्य व्यवहार अच्छा है विद्यालय के प्रति। तुम्हारा को कार्य व्यवहार की अच्छा नहीं है।        

तुम तो अनुशासन हीन हो। विद्यालय से वेतन पा रहे है और इसकी जड़े खोद रहे हो विद्यालय की। छात्रों का पढ़ाते नहीं। उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर नहीं करते। शिक्षण नहीं करते। मान लीजिये मैनेजमेंट वेतन दे देता और विभाग पूछ लेता कि उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर नहीं किया, शिक्षण कार्य नहीं किया तो आपने वेतन किस आधार पर दे दिया। तो मैनेजमेंट क्या जवाब देता। कोई जबर्दस्ती वेतन थोड़े ही काट देगा। कई बार जांच कमेटी गठित हुई प्रिंसिपल की। लेकिन कभी किसी कमेटी ने इनकी वेतन देने को नहीं कहा नहीं तो हम दे देते। हमें क्या। वेतन के संबंध में हाईकोर्ट में 17268/2021 सतीश कुमार एंड अदर्स जो पेंडिंग है। हाईकोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया जांच कमेटी ने नहीं दिया तो मैनेजमेंट कैसे वेतन दे दे।  

बच्चों की गंदी नाली का कीड़ा कहने वाले शिक्षक के बचाने के संदर्भ में प्रबंधक ने कहा कि इसकी कई बार जांच हो चुकी है। उल्टा वो सतीश कुमार पर ही आरोप मढ़ते हुये कहते हैं कि इसका ससुराल है यहां लोकल में खालसा में इंटर कॉलेज के पास। इसने पंचायत करके दलित वर्ग के लोगों को शिक्षकों की बेइज्जती कराने के लिये बुलाये थे। 

जिन लोगों को इन लोगों ने बुलाया था वो सब बदमाश थे, उनमें से किसी का बच्चा स्कूल में नहीं पढ़ता था। जब शिक्षकों की बेइज्जती की नौबत आई तो उन्होंने 112 पर कॉल करके पुलिस बुला लिया। 112 नंबर पर 2-3 पुलिस वाले आये तब इन्होंने उनके साथ भी बदतमीजी की। फिर थाने की पुलिस आई। और सबका धारा 151 में चालान किया। थाने पर उनकी ज़मानत हुई। ये खुद को दलित कहते हैं हम नहीं कहते। मैनेजर के ख़िलाफ़ इन्होंने दिल्ली एससी-एसटी आयोग को लिखा। उसकी जांच सीओ स्तर पर हुई और झूठी पाई गई। फिर कोर्ट में डाल दिया कि मुझे एससी कहा। गाली दिया।  

   (जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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