रोटेशन में मिली जी-20 की अध्यक्षता को विश्व गुरू की कुर्सी समझ बैठे हैं पीएम मोदी

उम्मीद है कि आप सभी को आज का अखबार खोलते ही संपादकीय पृष्ठ पर मुख्य आलेख भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का देखने को मिला होगा। मेरे लिए भी यह एक सुखद आश्चर्य था। फिर दिमाग में कौंधा कि देखते हैं यदि अंग्रेजी में लिखा है तो हिंदी के अख़बारों में भी होना चाहिए। देखा तो पता चला कि क्या हिंदी क्या अंग्रेजी, लगभग सभी अखबारों में नरेंद्र मोदी जी आज छाये हुए हैं।

कल देश एनडीटीवी के औपचारिक अडानी के अधिग्रहण से उबरने-डूबने में गोता खा रहा था, और उसका हैंगओवर खत्म होने में अभी भी कुछ समय लगने वाला है, लेकिन सुबह-सुबह सभी समाचार पत्रों में भी मोदी जी की तस्वीर के साथ संपादकीय कालम में जगह देखने से कई सवाल मन में कौंधना स्वाभाविक है। 

विषय पर आने से पहले बता दें कि सभी लेखों की विषय वस्तु एक ही है, जी-20 समूह की अध्यक्षता अब भारत के हाथों में है, और अगले एक साल तक भारत इसका सिरमौर रहने वाला है। इस बारे में आगे चर्चा करने से पहले एक नजर उन अखबारों की कर लेते हैं, जिनमें आज नरेंद्र मोदी का यह लेख छपा है।

अंग्रेजी अखबारों से शुरू करते हैं। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की हेडिंग है, जी-20 एंड बियॉन्ड, इंदौर और भोपाल से एक साथ निकलने वाले फ्री प्रेस जर्नल ने इसका शीर्षक दिया है, ‘जी-20 टू बेनिफिट ह्यूमैनिटी एज अ होल’, कोलकाता से मिलेनियम पोस्ट ने शीर्षक दिया है, ‘फ्लैगबियरर ऑफ़ हारमनी’। इसी प्रकार बिजनेसलाइन टुडे, इंडिया कॉम्मेंस इट्स जी-20 प्रेसीडेंसी’, हिंदुस्तान टाइम्स ने ‘अ प्रेसीडेंसी ऑफ़ होप, हारमनी एंड हीलिंग’ नाम दिया है, पायनियर अखबार ने ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’, तो इकॉनोमिक टाइम्स ने ‘अ प्रेसीडेंसी ऑफ़ होप’ शीर्षक के साथ एक तस्वीर उकेरी है, जिसमें दुनिया विनाश और कोरोना महामारी से लड़ते हुए भारत को स्पाइडरमैन की वेशभूषा में दर्शाया गया है। बिजनेस स्टैण्डर्ड भला क्यों पीछे रहे, उसका शीर्षक है, ‘टुडे, इंडिया कॉम्मेंस इट्स जी-20 प्रेसीडेंसी’, टाइम्स ऑफ़ इंडिया का शीर्षक बड़ा है और इसमें नरेंद्र मोदी को इण्डोनेशियाई समकक्ष के हाथों बैटन लेते हुए दिखाया गया है। ट्रिब्यून अखबार ने अपने ओप-एड का शीर्षक, ‘इंडिया’ज जी-20 एजेंडा विल बी इंक्लूसिव, डेसासिजिव’ रखा है, और वसुधैव कुटुम्बकम् के नारे के साथ एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य के नारे को हाईलाइट किया है। 

अब हिंदी के अखबारों को देख लेते हैं। नवभारत टाइम्स ने इस संपादकीय पृष्ठ के लेख का नाम रखा है, ‘मानवता के कल्याण की खातिर बदलेंगे सोच’, जनसत्ता ‘आज से भारत के हाथों में जी-20 की अध्यक्षता’, अमर उजाला, ‘भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी’,हिंदी पायनियर में, ‘भारत की जी-20 अध्यक्षता की नई पारी’ दैनिक जागरण ‘भारत के हाथों में जी-20 की अध्यक्षता’, बिजनेस स्टैण्डर्ड हिंदी में, ‘आज से भारत के हाथों में जी-20 की अध्यक्षता’ शीर्षक दिया गया है।

इसलिए बिना किसी लाग लपेट के कहा जा सकता है कि जो लोग अभी भी मन की बात, 15 अगस्त के भाषण और हर छह महीने में चुनावी भाषणों से बचकर निकल गये होंगे, उनके हाथों में आज कहीं न कहीं चाय की टपरी पर बैठते हुए भी, भारत के जी-20 की अध्यक्षता अर्थात मोदी युग में भारत के शक्तिशाली बनने की भनक लग गई होगी, या लगने वाली है। कुछ संपादकों में यह बूता रहा हो कि उन्होंने इस संपादकीय पृष्ठ पर जगह देने की जरूरत नहीं समझी तो उसे ज़रूर अवगत करायें, लेकिन ऊपर जिन अखबारों का जिक्र किया गया है, उनके हेड लाइंस देखकर ही इसे लिखा गया है। बड़े समाचार पत्रों में अपवाद स्वरूप सिर्फ द हिंदू और टेलीग्राफ में इसे जगह नहीं मिल पाई है, इंडियन एक्सप्रेस ने इसे संपादकीय पृष्ठ की जगह द आइडिया पेज में ‘वन अर्थ, वन फॅमिली, वन फ्यूचर’ लेख की सूरत में छापा है। 

यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है कि आज गुजरात में पहले दौर का मतदान भी है। गुजराती भाषा के अखबारों में यह संपादकीय तो अवश्य होना चाहिए, इसलिए दिव्य भास्कर के सूरत संस्करण में जाकर देखने पर पता चलता है कि वहां पर भी संपादकीय में स्थान दिया गया है, जो पढ़ने में ‘आज से भारत के हाथों में जी-20 के प्रमुख का पद’, जैसा जान पड़ता है। 

कुल मिलाकर इतना ही समझ में आता है कि फिलहाल ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों को गुजरात चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत में कैसे तब्दील किया जाये, के लिए किया जा रहा है। भाजपा की जीत का एकमात्र अर्थ है नरेंद्र मोदी का डंका बजना। आज गुजरात में बड़े अंतर से जीत का अर्थ है, विपक्षी जुगलबंदी की उम्मीदों में एक और पलीता लगाना और राहुल गाँधी के ‘भारत जोड़ो पद यात्रा’ को एक बार फिर से बेवकूफाना, बचकाना, राजनीति का क ख ग के विद्यार्थी के रूप में आम जनमानस के भीतर फिर से बैठा देने का। 

अगर भारत के लिहाज से विचार करें तो मौजूदा भू-राजनैतिक परिस्थिति में, संयुक्त राष्ट्र संघ, सुरक्षा परिषद, जी-7, जी-20 और ब्रिक्स जैसे समूहों के बीच में उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण समूह कोई दिखता है तो वह है ब्रिक्स। ब्रिक्स समूह जो अभी एक दशक पहले तक विकासशील देशों की एक औपचारिक कवायद नजर आती थी, आज जी-7 समूह के बरक्श एक सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी बनता जा रहा है, जिसको लेकर धनी पश्चिमी देशों का चिंतित होना बेहद स्वाभाविक है। 

जी-20 देशों की अध्यक्षता कोई भाग्य से छींका फूटना नहीं है, बल्कि यह एक रोटेशन में सबको बारी-बारी से मिलता रहता है। इसमें कुल जमा 20 सदस्य हैं, जिसमें 19 देश हैं अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। यूरोपीय संघ को 20 वें देश के रूप में रखा गया है और  स्पेन इसमें स्थायी अतिथि के तौर पर है, और हर वर्ष इसका आयोजन किया जाता है।

जी-20 की अध्यक्षता मिलने से किसी को गफलत में रहने की जरूरत नहीं है। जी-20 समूह असल में जी-7 का ही एक विस्तार है, और इसे अंजाम देने वाला देश अमेरिका ही है, जिसकी सरपरस्ती में दुनिया के धनी देश जी-7 और नाटो के तहत समूची दुनिया का ठेका संभाले हुए हैं। असल में जी-20 की शुरुआत तो वित्त मंत्रियों की बैठक से हुआ करती थी, जिसे बाद में स्थानापन्न कर देश के मुखियाओं ने ले ली है। 1999 में इसकी शुरुआत हुई और 2008 में आई आर्थिक मंदी से इसे राष्ट्राध्यक्षों के द्वारा अधिग्रहीत कर लिया गया। इसकी अध्यक्षता बारी-बारी से की जाती है, लेकिन अमेरिका पहले ही दो बार इसकी अध्यक्षता कर चुका है।

सबसे पहले पहली बार 2008 में जार्ज डब्ल्यू बुश के द्वारा 14-15 नवंबर को वाशिंगटन में और इसके बाद अगले ही वर्ष 2009 में सितंबर माह में पीट्सबर्ग में बराक ओबामा ने इसकी अध्यक्षता की थी। वर्ष 2009 को ही पहले छमाही में इसकी अध्यक्षता 2 अप्रैल को ब्रिटेन के हाथों में थी। 2011 से इसे वार्षिक आयोजन करार दिया गया और फ़्रांस ने इसकी अध्यक्षता की थी। अभी तक लगभग सभी देशों ने इसकी अगुआई हासिल कर ली है। विकासशील देशों में अब सिर्फ भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की बारी है, जो उन्हें क्रमशः  2023, 24 और 25 में मिलनी है। इसके बाद से चक्का फिर से घूम जायेगा। इसलिए इसको लेकर कुछ बड़ा सोचने की बात करना मूर्ख बनाने से अधिक नहीं है। 

उल्टा, ध्यान से देखेंगे तो इन जी-20 देशों में भारत सबसे गरीब है। जीडीपी के आधार पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में 2022 में भारत की आय जहाँ 2,466 डॉलर के साथ सबसे कम है, वहीं सबसे अमीर अमेरिकी है, 75,120 डॉलर। यहाँ तक कि 4691 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ इंडोनेशिया भी भारत से दुगुनी मजबूती से खड़ा है। दक्षिण अफ्रीका प्रति व्यक्ति आय 6,739 डॉलर, ब्राजील 8857, तुर्की 9961, चीन 12,970  और रूस की 14,665 डॉलर प्रति व्यक्ति आय है। बाकी देशों की प्रति व्यक्ति आय तो भारत की तुलना में दसियों गुना अधिक है। ऊपर से जी-20 बनाया ही अपने हित साधन के लिए है, तो इसमें भारत को सदारत मिलती है तो वह इससे क्या हासिल कर सकता है, यह सहज बुद्धि से समझा जा सकता है।

वहीं दूसरी तरफ ब्रिक्स समूह की स्थापना इसके ठीक उलट है। ब्रिक्स समूह की स्थापना भी जी-20 के साथ-साथ 2009 में हुई थी। अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने 2001 में BRIC को उन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के रूप में नाम दिया था, जिनके बार में अनुमान है कि 2050 तक ये देश सामूहिक रूप से दुनिया को निर्णायक दिशा देने की स्थिति में पहुँच जायेंगे। इसका अर्थ है मौजूदा दौर में जो काम जी-7 देश और नाटो कर रहे हैं, वह काम अगले 20 वर्षों में ब्रिक्स देशों को हस्तगत होने जा रहा है। इस हस्तांतरण में भारत भी एक बड़ा हिस्सेदार है। उसके पास तब दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होगी, सबसे बड़ी संख्या में युवा होंगे। अब तक तीन बार भारत के पास ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता करने का अवसर मिल चुका है। 

भले ही शुरू-शुरू में इसे हल्के में लिया गया, लेकिन हाल के वर्षों में ब्रिक्स ने सेंटर स्टेज लेना शुरू कर दिया है। दुनिया में आर्थिक प्रभुत्व अभी भी धनी उत्तरी ध्रुवीय देशों के हाथों में बना हुआ है, लेकिन यह छीजता जा रहा है और तेजी से एशिया उसे स्थानापन्न करता जा रहा है। यह 250 वर्षों से अधिक समय से उत्तरी गोलार्ध की चौधराहट, औपनिवेशिक युग और उत्तर औपनिवेशिक युग के चंगुल से मुक्ति का अवसर है, जिसमें वैश्विक स्तर पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। कोविड-19 महामारी ने जहां एक बार फिर से वैश्विक जनमत को स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि सामूहिकता, भाईचारे और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही मनुष्य अब जीवित रह सकता है, वहीं ग्लोबल वार्मिंग लगातार अपनी चेतावनी को उच्चतर स्वर में हमारे सामने पेश कर रहा है। 

लेकिन हम सभी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि जैसे शेर शाकाहारी नहीं हो सकता है, उसी प्रकार शोषण पर परजीवी की तरह अभी तक जी रहे साम्राज्यवादी देशों के लिए अबाध लाभ की स्थिति से अचानक से अश्वेतों और औपनिवेशिक दक्षिणी गोलार्ध के बराबर या पीछे चले जाने की स्थिति नाकाबिले बर्दाश्त होने वाली है। ऐसे में, जी-20 देशों की अध्यक्षता सिर्फ टोकन मात्र है, जिसके बारे में यदि हम खामख्याली पालते हैं, तो भारत का ही अहित होने जा रहा है। आज से 10 वर्ष पहले तक ब्रिक्स देशों के समूह में चीन के बाद भारत और ब्राजील को ही देखा जाता था। लेकिन आज स्थिति बदल गई है।

आज चीन ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली है, साथ ही रूस भी बड़ी तेजी से उभरा है। कल को ब्राजील फिर से लूला डी सिल्वा के राष्ट्रपति बनने से खुद को मजबूत स्थिति में रख सकते हैं। ब्रिक्स देशों के समूह में शामिल होने के लिए सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, अर्जेन्टीना ने अपनी-अपनी अर्जी दे दी है। उगते सूरज को सलाम करने वाले लोग कभी कम नहीं होंगे। मुख्य सवाल है कहीं हम जो उसके मुख्य प्रवर्तक थे, उस सफर में अपनी गलती से उतरकर कल पैदल घिसट न रहे हों।

(रविंद्र सिंह पटवाल लेखक और टिप्पणीकार हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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