Thursday, April 25, 2024

मोदी जी! आप रवांडा नहीं, भारत के प्रधानमंत्री हैं

देश का हरा-भरा लोकतंत्र देखते-देखते सर्विलांस स्टेट में तब्दील हो गया है। अभी पेगासस स्नूपिंग के मामले को सामने आए दो दिन नहीं बीते थे कि सरकार ने एक और कांड कर डाला। जब उसने कल अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले दो मीडिया घरानों ‘दैनिक भास्कर’ और यूपी के ‘भारत समाचार’ चैनल के ठिकानों पर रेड डाल दिए। ऐसा तो देश में सिर्फ इमरजेंसी के समय हुआ था। जब ‘इंडियन एक्सप्रेस’ पर रेड डाली गयी थी। लेकिन यहां तो यह काम लोकतंत्र की खुली दोपहरी में हो रहा है। मीडिया का तो पहले से ही 99 फीसदी हिस्सा सरकार का बाजा बजा रहा है। यह घटना बताती है कि सरकार को अब एक फीसदी हिस्से के भी अपने खिलाफ होना बर्दाश्त नहीं है। वह किसी भी कीमत पर उसका मुंह बंद कराना चाहती है। ‘दैनिक भास्कर’ और ‘भारत समाचार’ पर रेड को इसी के हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिए। हालांकि इसकी शुरुआत उसने ‘न्यूज़क्लिक’ पर रेड के जरिये कर दी थी। और आने वाले दिनों में अगर कुछ और छोटे मीडिया घरानों पर रेड पड़े या फिर किसी और तरीके से उन्हें परेशान किया जाए तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। क्योंकि देश में अब रेड राज की शुरुआत हो चुकी है।

यह बात हर सोचने समझने वाले शख्स को परेशान कर रही है कि एक समय जबकि सरकार पेगासस पर चौतरफा घिर चुकी है और उसके पास बचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। और दूसरी तरफ संसद का मानसून कालीन सत्र चल रहा है। जहां उठायी गयी एक भी बात चंद मिनटों में पूरे देश में फैल जाती है। उस समय यह हरकत सरकार क्यों कर रही है? यह घटना बताती है कि मोदी काल अब दूसरे फेज में बहुत चुका है। उसको अब न तो अपनी छवि की चिंता है और न ही प्रतिष्ठा की। राजा नंगा हो गया है यह बात किसी बच्चे को कहने की जरूरत नहीं है। वह खुद ही चीख-चीख कर अपने नंगे होने का ऐलान कर रहा है। उसने अपनी सारी शर्म और हया के कपड़े उतार फेंके हैं।

बेशर्मी किस चिड़िया का नाम होता है उसको जानने और समझने का उसने विवेक भी खो दिया है। अब वह महज एक तानाशाह है। अभी मित्र शशिकांत ने कल ही बताया कि किसी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च पेपर में भारत को ‘सिक मैन आप द एशिया’ बताया गया है। यह संज्ञा कभी टर्की को दी गयी थी जब उसे ‘सिक मैन आफ द यूरोप’ कहा जाता था। और हां, यह बात उसने देश की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कही है। यह घटना बताती है कि भारत की अर्थव्यवस्था कहां पहुंच गयी है। और दूसरे पैमानों पर सरकार ने देश को पहले ही रवांडा और हैती की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। ऐसे में इसकी तार्किक परिणति तानाशाही ही बनती है। जिस तरफ देश तेज गति से अग्रसर है।

सामान्य स्थितियों में भी कोई पार्टी या सरकार कोई भी कदम उठाने से पहले अपने राजनीतिक लाभ और नुकसान का गणित लगा लेती है। लेकिन सरकार के कल के कदम से किसी लाभ की तो गुंजाइश नहीं दिखती है। ऐसे समय में जबकि चंद महीनों बाद ही यूपी का चुनाव होने वाला है और सबको पता है कि वह केंद्र की सत्ता का रास्ता साफ करेगा। तब यूपी समेत देश के पैमाने पर मीडिया घरानों के ये छापे मोदी सरकार के लिए किस तरह से मददगार साबित होंगे यह किसी के लिए भी समझ पाना मुश्किल है। लेकिन जैसा कि इस सरकार की मोडस आपरेंडी रही है। यह समस्या हल करने में विश्वास नहीं करती है। बल्कि जनता अगर किसी एक समस्या से जूझ रही है तो उसे हल करने की जगह वह उसके सामने उससे भी बड़ी समस्या लाकर खड़ी कर देती है। जिसका नतीजा यह होता है कि जनता अपनी पुरानी समस्या भूल जाती है और इस तरह से नयी समस्या पर देश में बहस शुरू हो जाती है। पिछले सात सालों से यही सरकार का काम करने का तरीका रहा है।

इस बात में कोई शक नहीं कि पेगासस मामला इतना बड़ा है कि एकबारगी उसके खिलाफ तूफान खड़ा हो सकता है और फिर उसमें मोदी तो क्या बड़ी-बड़ी सरकारें फना हो सकती हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका जैसे महाबली देश के तत्कालीन तेजतर्रार राष्ट्रपति निक्सन को वाटरगेट निगल गया था। मोदी को इसी बात का डर सता रहा है। और जो हालात बन गए हैं उसमें मौजूदा सरकार बेहद कमजोर हो गयी है। और कोई भी कमजोर आदमी अपनी पूरी ताकत से हमला करता है। सरकार के इस हमले को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। इसने पेगासस के भूत को रेड के मंत्र से मारने की कोशिश की है। लेकिन यह मोदी सरकार की भूल है। न पेगासस अब खत्म होने वाला है। और न ही किसानों का मुद्दा। न ही राफेल को लोग भूलेंगे। न ही महंगाई जिसने हर नागरिक का जीना दूभर कर दिया है। ऐसे में रेड मामलों को खत्म नहीं करेगी बल्कि वह इन तमाम समस्याओं से जुड़कर सरकार के खिलाफ जारी मोर्चेबंदी को और तेज कर देगी।

इसका एक दूसरा पक्ष भी हो सकता है। हालांकि सरकार की दिशा तो पहले से ही वही है। लेकिन वह इतनी जल्दी उसका आगाज कर देगी यह किसी को मालूम नहीं था। हालात जो बन रहे हैं उसमें यह बात साफ होती जा रही है कि अब किसी सामान्य चुनावों के रास्ते बीजेपी के लिए अपनी सरकारें बनाना मुश्किल है। पिछले दिनों पांच राज्यों के चुनावों ने भी यही संकेत दिए हैं और यूपी में पंचायत चुनावों का पहला चरण भी यही बताया है। लिहाजा ट्रेलर सामने आ चुका है। और सरकार ने भी इस बात को समझ लिया है। और यूपी में जिस तरह से पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में धांधलेबाजी और शक्ति की आजमाइश के जरिये सीटों को हासिल किया गया। अब बीजेपी के पास सत्ता में पहुंचने का वही एक मात्र रास्ता है। लिहाजा उसने उसी रास्ते पर आगे बढ़ने का मन बना लिया है। इस लिहाज से न केवल सरकार खुद की तैयारी कर रही है बल्कि अपने समर्थक हिस्सों को भी उसके लिए पहले से तैयार कर रही है। मीडिया घरानों पर पड़े इस रेड और हर मसले पर सरकार की जनविरोधी पहलों को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। ऐसे में आगे आने वाले यूपी चुनाव में अगर बीजेपी जीतती हुई नहीं दिखी तो चुनाव और सत्ता पर कब्जे का जो मंजर सामने आएगा उसको शायद देश ने भी कभी नहीं देखा होगा।

दरअसल यह एक लुटेरी सरकार है और उसने इस बात को कभी छिपाया भी नहीं। अब उसके बाद भी कोई भ्रम में रहे तो अपनी बला से। पिछले सात सालों से इस देश में जनता के लूट का कारोबार चल रहा है। कभी किसानों की जमीन लूटी जा रही है। तो कभी आदिवासियों के वनों पर कारपोरेट को कब्जा दिलाया जा रहा है। कहीं रेल की संपत्ति को हड़पने का रास्ता साफ किया जा रहा है। तो कहीं डिफेंस की जमीन निशाने पर है। सरकार तो संसद में ऐलान कर चुकी है कि वह एक भी सार्वजनिक क्षेत्र का मालिकाना अपने पास नहीं रखेगी। सभी को औने-पौने दामों पर कारपोरेट के हवाले कर दिया जाएगा। कहने को तो ये राष्ट्रवादी हैं। और सेना के नाम पर हमेशा सीना फुलाए रहते हैं। लेकिन शहरों में सबसे पॉश इलाकों में स्थित कैंट की जमीनें भी अब इनकी तिरछी नजर से नहीं बची हैं। उनको भी बेचने की तैयारी शुरू कर दी गयी है।

आखिरी बात कुछ बहुजनवादियों के लिए। कुछ बहुजन बुद्धिजीवी खुद को बहुत समझदार बताते हैं लेकिन कई बार ऐसा देखा गया है कि उनका रुख सरकार को फायदा दिलाता हुआ दिखता है। और एक ऐसे समय में जबकि सरकार सामाजिक न्याय के नारे तक को इस्तेमाल करने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है ऐसे में इन बुद्धिजीवियों की छोटी भी गलती सरकार के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हो सकती है। ‘दैनिक भास्कर’ पर लिया गया उनका स्टैंड भी उसी में से एक है। इस कड़ी में उन्होंने कभी ‘दैनिक भास्कर’ के बीजेपी के साथ रहने वाले दौर की होर्डिंग्स निकाले हैं जिसमें अखिलेश और मायावती के खिलाफ नारे लिखे गए हैं। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि राजनीति एक जगह खड़ी नहीं रहती है। वह चलायमान है। और मौजूदा दौर में स्टैंड आज की परिस्थितियों और उसमें लोगों के रुख को ध्यान में रखते हुए लेना होगा। आज अगर कोई जनता के साथ खड़ा होकर सरकार की मुखालफत कर रहा है तो उसे क्यों नहीं अपने साथ खड़ा किया जाना चाहिए?

क्या वह सरकार के विरोध का खतरा नहीं उठा रहा है? वह सच को सामने लाकर न केवल जनता को जागरूक कर रहा है बल्कि लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में खुले तौर पर शरीक भी है। जैसा कि उसने कोविड के दौरान गुजरात में मौतों के वास्तविक आंकड़ों और गंगा में बहती लाशों को सामने लाने के जरिये किया। ऐसे में संकट के समय उसका साथ देना न केवल हमारा नैतिक कर्तव्य है बल्कि यह इस दौर की राजनीतिक जरूरत भी बन जाती है। और हां, यहां यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि जिस होर्डिंग को दिखाकर उसके खिलाफ विषवमन किया जा रहा है। अगले यूपी के चुनाव में होर्डिंग पर न सही लेकिन ‘दैनिक भास्कर’ के पन्नों पर अखिलेश और मायावती के पक्ष में ही बातें लिखी होंगी जो उनकी जीत में बड़ी मददगार साबित हो सकती हैं। ऐसे में इस मौके पर दैनिक भास्कर का विरोध कर अगर आप उसके सरकार के दबाव में झुकने या फिर उसके खत्म होने का रास्ता साफ करते हैं तो दूसरी तरह से आप अखिलेश और मायावती को भविष्य में उससे मिलने वाले लाभ से वंचित भी करते हैं। कुल मिलाकर कहें तो अंत में आप अपना ही नुकसान कर रहे होंगे। अब आपको तय करना है कि आपका यह स्टैंड कितना बहुजन विरोधी है और कितना बहुजन पक्षधर।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)

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