Wednesday, April 24, 2024

उत्तराखण्ड में मोदी मैजिक और साम्प्रदायिक एजेंडा काम आ गया भाजपा के

उत्तराखण्ड की जनता द्वारा बारी-बारी से सरकार बदलने का मिथक इस बार टूटता नजर आ रहा है। इसके लिये प्रदेश में एक बार फिर मोदी मैजिक कारगर हो रहा है। अब तक के रुझानों में सत्तारूढ़ भाजपा विपक्षी कांग्रेस से काफी आगे नजर आ रही है। अगर यही ट्रेंड मतगणना के अंतिम दौर तक चलता रहा तो भाजपा को एक बार पुनः राज्य में स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार नजर आ रहे हैं। राज्य में एण्टी इन्कम्बेंसी और बार-बार मुख्यमंत्री बदले जाने का कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है।

राज्य विधानसभा के चुनाव में दोपहर तक चली मतगणना में भाजपा 40 से अधिक सीटों पर आगे चल रही है। जबकि सत्ता की प्रमुख दोवदार कांग्रेस 30 के अंक से भी दूर नजर आ रही है। प्रदेश में बहुमत का जादुई अंक 36 है। जिसे फिलहाल भाजपा पार कर चुकी है और कांग्रेस उससे काफी दूर है। अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो भाजपा शानदार जीत की ओर बढ़ती दिख रही है। हालांकि उसके लिये पिछली बार का 57 सीटों का अंक काफी दूर है। मतदान के बाद कई क्षेत्रों में कांग्रेस के जो दिग्ग्ज आगे माने जा रहे थे, वे मतगणना में पिछड़ रहे हैं। कुछ दिग्ग्ज कभी आगे तो कभी पीछे चल रहे हैं। स्वयं मुख्यमंत्री पद के दावेदार हरीश रावत भी लालकुंआ सीट पर शुरू से पिछड़े हुये हैं। मुख्यमंत्री धामी भी खटीमा में पीछे चल रहे हैं। इस बार कुमाऊं मण्डल में कांग्रेस को भाजपा पर भारी माना जा रहा है। लेकिन मतगणना में भाजपा काफी आगे है।

भाजपा की इस सफलता के लिये पार्टी की वर्तमान सरकार को नहीं बल्कि केन्द्र सरकार और खास कर मोदी मैजिक को श्रेय दिया जा सकता है। प्रदेश में बड़ी संख्या में सेवारत और पूर्व सैनिकों को भी भाजपा के अग्रणी होने का श्रेय दिया जा सकता है। एक रैंक एक पेंशन तथा पाकिस्तान के बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी के प्रति उत्तराखण्ड की जनता का भरोसा बढ़ाया है। इस बार राज्य में 94 हजार सर्विस वोटर थे जो भाजपा के पक्ष में जाते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मोदी का भाषण और केन्द्र सरकार का राशन भी उत्तराखण्ड में भाजपा के काम आ गया।

ऋषिकेश-कर्णप्रयषग रेल, ऑल वेदर चारधाम रोड सहित कई केन्द्रीय योजनाओं का भाजपा को सीधा लाभ मिलता नजर आ रहा है। इस चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकर का भी काफी असर रहा है। चुनाव के दौरान मंहगाई, बेरोजगारी, गैरसैण राजधानी, भूमि कानून, पलायन और लोकायुक्त जैसे मुद्दे गौण हो गये थे जबकि मुस्लिम यूनिवर्सिटी, लव जेहाद, जमीन जेहाद और समान नागरिक संहिता जैसे काल्पनिक मुद्दे प्रचार अभियान में छा गये थे। चुनाव में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है। जबकि आप पार्टी की परफार्मेंस खुद बहुत निराशाजनक नजर आ रही है।

राज्य गठन से लेकर 2017 के चुनाव तक उत्तराखण्ड में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सरकार बनाती रही हैं। वर्ष 2002 में हुये पहले चुनाव में कांग्रेस ने 36 सीटें हासिल कर राज्य में सरकार बनायी थी। जबकि भाजपा 19 सीटों पर अटक गयी थी। उससे पहले भाजपा की ही अंतरिम सरकार थी। 2007 के चुनाव में भाजपा को बहुमत से दो कम 34 सीटें और कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं थीं। सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला और भुवनचन्द्र खण्डूड़ी मुख्यमंत्री बने थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में ही बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया था। उसके बाद 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 32 और भाजपा को 31 सीटें मिलीं थी। सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला तो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिन्होंने अपने कार्यकाल में ही बहुमत जुटा लिया था। हालांकि 2014 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा और हरीश रावत मुख्यमंत्री बन गये। 2017 के चुनाव चुनाव में भाजपा ने 57 सीटें हासिल कर अभूतपूर्व सफलता हासिल की और कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गयी।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत का विश्लेषण।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles