Thursday, April 25, 2024

पीएम को एकालाप के बजाय करनी चाहिए प्रेस कांफ्रेंस

आज अभी से कुछ देर बाद सुबह 9 बजे पीएम देश को पुनः सम्बोधित करेंगे। विषय कोरोना आपदा ही होगा। इसी विषय पर वे पहले भी, देश को सम्बोधित कर चुके हैं। पर मेरा एक सुझाव है कि, प्रधानमंत्री को अब एक प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए। हालांकि 2014 से जारी अपने कार्यकाल में वे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने एक भी खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है। जन नेता का जनता से इस प्रकार की संवादीय दूरी अनुचित ही नहीं बल्कि जनतंत्र की स्थापित मान्यता और पारदर्शिता के सिद्धांत के भी विपरीत है। 

प्रधानमंत्री जी को अब एकालाप छोड़ कर चाहिए कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए गठित मंत्री समूह और विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस करें। जिसमें सभी महत्वपूर्ण मीडिया संस्थानों, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों के कुछ चुनिंदा पत्रकार हों। विषय केवल यह महामारी हो। सरकार उन कदमों की जानकारी दे और साथ ही उठते सवालों का उत्तर भी। सवालों और प्रेस वार्ता की समय सीमा, विषय सीमा तय हो। कोई ज़रूरी नहीं कि पीएम ही खुद सवालों के जवाब दें, बल्कि पीसी में जो भी उपस्थित महानुभाव हैं वे पीएम की अनुमति से सरकार का पक्ष रखे। यह प्रेस वार्ता लाइव हो। 

एकालाप प्रधानमंत्री की चिंता से रूबरू तो कराता है, पर वह जनता से  मिले फीड बैक पर सरकार द्वारा लिए गए कदमों की जानकारी नहीं देता है। ऐसे कठिन समय में सरकार और जनता के बीच रोजना संवाद होना चाहिए और यह एक नियमित प्रेस वार्ता से ही सम्भव है। अब पीएम या कोई भी मंत्री तो रोज पीसी नहीं कर सकता है, अतः कम से कम सरकार का ही कोई वरिष्ठ अधिकारी जो कोरोना आपदा से जुड़े सभी विभागों का समन्वय कर रहा हो, वह एक नियमित प्रेस वार्ता कम से कम जब तक 21 दिनी लॉक डाउन चल रहा है, तब तक कर ही सकता है। इससे न केवल लोगों को सही सूचनाएं और जानकारियां मिलेंगी बल्कि लोग सरकार की गंभीरता को समझ कर इन प्रतिबंधों को गंभीरता से स्वीकार भी कर लेंगे। 

ऐसी नियमित प्रेस वार्ताएं जब नोटबंदी हुयी थी और उसके क्रियान्वयन में जब शिकायतें मिलनी शुरू हुयी थीं, तब सरकार के ही व्यय सचिव, शशिकांत दास जो आजकल आरबीआई के गवर्नर हैं करते थे और सरकार द्वारा उठाये गए कदमों की जानकारी देते थे। ऐसी ही प्रेस वार्ताएं चुनाव के समय निर्वाचन आयोग के आयुक्त या उप आयुक्त करते हैं। यह एक पारदर्शी शासन व्यवस्था का स्वरूप है जो जनता में सरकार के प्रति एक भरोसा उत्पन्न करता है और उसे बढ़ाता है। गंभीर कानून व्यवस्था की परिस्थितियों में भी नियमित प्रेस कांफ्रेंस की जाती रही हैं। 

प्रेस को लेकर इस सरकार के ऊहापोह बहुत बार सामने आ गए हैं। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिपक्वता का अंदाज़ा उस देश में प्रेस की आज़ादी के स्तर से लगाया जा सकता है। प्रेस की आज़ादी का केवल यही मतलब नहीं कि प्रेस को कुछ भी लिखने, बोलने और दिखने की आज़ादी हो, बल्कि उसका इससे भी एक महत्वपूर्ण मतलब यह है कि प्रेस जिन जन समस्याओं और और बिन्दुओं को उठा रहा है सरकार उन पर भी ध्यान दे। अभी हाल ही में द वायर वेबसाइट के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने एक मुक़दमा दर्ज कर लिया है क्योंकि उसने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से जुड़ा एक समाचार छापा है। यह सबको ज्ञात है कि ऐसे मुक़दमे से वायर का कुछ नहीं होगा और जो किरकिरी होगी वह अंततः सरकार की ही होगी, पर सत्ता का नशा और अधिकार सुख बड़ा मादक होता है, यह बात सत्ता से उतरने के बाद ही अक्सर पता चलती है। सत्ता जिस आभा मंडल का निर्माण कर देती है वह अक्सर दूर की चीजें नहीं देखने देती हैं या धुँधलाहट के साथ देखती है। 

यूपी के ही एक जिला मिर्जापुर में एक स्थानीय पत्रकार को मिड डे मील में नमक रोटी परोसने का एक वीडियो प्रसारित करने पर वहां के डीएम ने उक्त पत्रकार के खिलाफ न केवल मुक़दमा दर्ज कराया बल्कि उन्हें जेल भेज दिया। डीएम ने मिड डे मील की जांच कराई या नहीं यह बात तो गौण हो गयी पर मिड डे मील में जो भ्रष्टाचार उक्त स्थानीय पत्रकार ने उजागर किया था, और जिसका निराकरण होना चाहिए था, वह नेपथ्य में चला गया और इस भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला अभियुक्त, दोषी अलग ही ठहरा दिया गया। क्या इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि इस भ्रष्टाचार में सारा तंत्र ही मिला है ? 

इसी प्रकार की एक और घटना वाराणसी में घटी है। बनारस के देहात के इलाके में एक गरीब मुसहर परिवार के लड़के एक हानिकारक वनस्पति जो घास के नस्ल की होती है वह खा रहे थे। डीएम बनारस ने उक्त पत्रकार को इस खबर का खंडन छापने को धमकाया लेकिन इस बात की जांच नहीं कराई कि घटना वास्तव में क्या थी। कहा गया वे होरहा जो चने का होता है, उसे खा रहे थे। प्रेस में गलत खबरें भी छपती हैं और किन्ही उद्देश्यों से गलत खबरें छपवायी भी जाती हैं लेकिन उसके लिये प्रेस कॉउंसिल आदि फोरम हैं जहां इन सब बातों का संज्ञान लिया जा सकता है। पुलिस के दम पर या धमकी से प्रेस को हांकना अभिव्यक्ति की आज़ादी के विपरीत है और यह गलत परिपाटी है। 

कोविड 19 के बारे में विशेषकर उसके इलाज को लेकर रोज़ कुछ न कुछ अफवाह कट्टर धार्मिक संगठन जो हिंदू और मुस्लिम दोनों ही हैं फैला रहे हैं। अफवाहें भी फैल रही हैं। इसे लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और उसने प्रेस को नियंत्रित करने में सुप्रीम कोर्ट से मदद मांगी। सुप्रीम कोर्ट से सरकार ने यह अनुरोध किया है कि सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश सभी मीडिया प्रतिष्ठानों को जारी करे कि, कोई भी मीडिया संस्थान कोविड 19 के संबंध में कोई भी समाचार बिना तथ्यों की पुष्टि के न तो प्रसारित करे और न ही प्रकाशित करे। 

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह प्रार्थना, प्रवासी कामगारों के पलायन और लॉक डाउन से उत्पन्न समस्याओं के संबंध में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के संबंध में अपना पक्ष रखते हुए किया। स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए, देश के गृह सचिव ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे निर्देश के औचित्य पर अपना तर्क देते हुए जो कहा वह इस प्रकार है, 

“देश के समक्ष इस अभूतपूर्व स्थिति में, जैसा इस बीमारी की प्रकृति है, कोई भी मिथ्या या गलत तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग जो इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, सोशल मीडिया या वेब पोर्टल पर, भले ही, चाहे वह जानबूझकर की जाए या अनजाने में, इससे समाज के एक बड़े वर्ग को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

इस संक्रामक रोग की संक्रमण प्रकृति को देखते हुए, जिससे आज पूरी दुनिया लड़ रही है, समाज के किसी भी हिस्से, से अपुष्ट तथ्यों के आधार पर उठने वाली किसी भी खबर की समाज के एक बड़े हिस्से में प्रतिक्रिया हो सकती है और इससे पैनिक फैल सकता है। 

न्याय के दृष्टिकोण से ही अदालत ने इस जनहित याचिका को विचारार्थ स्वीकार किया है। अतः अदालत से अनुरोध है कि वह व्यापक जनहित में यह निर्देश, जारी करे कि, कोई भी इलेक्ट्रॉनिक / प्रिंट मीडिया / वेब पोर्टल या सोशल मीडिया बिना तथ्यों की पुष्टि किये इस आपदा के संबंध में कोई भी खबर न तो प्रसारित करे या न प्रकाशित करे। खबरों की पुष्टि के लिये सरकार एक व्यवस्था बनाने के लिये तैयार है। “

हालांकि किसी भी प्रकार की सनसनी या पैनिक फैलाना डिज़ास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में एक दण्डनीय अपराध है। लेकिन कानून की इस शक्ति के रहते हुए भी सरकार को अदालत से यह अनुरोध क्यों करना पड़ा, इसे स्पष्ट करते हुए सरकार ने कहा है कि, 

” इस कानूनी शक्ति और अधिकार के रहने के बावजूद, अगर देश के सर्वोच्च न्यायालय से इस प्रकार का निर्देश निर्गत हो जाता है तो, समाज के कुछ लोगों द्वारा षड्यंत्र करके फैलाये गए पैनिक और सनसनी से उत्पन्न आपदा से देश और समाज को बचाया जा सकेगा। “

सरकार ने उन कदमों का भी उल्लेख किया जो उसने इस महामारी आपदा में व्यवस्था बनाने के लिये उठाये हैं। 

सरकार ने आज तक सुप्रीम कोर्ट से या न्यूज़ चैनलों से यह अनुरोध नहीं किया कि वे साम्प्रदायिकता फैलाने वाले नैरेटिव और अपुष्ट खबरें न प्रसारित करें। 2014 के बाद कुछ टीवी चैनलों का यह एक पसंदीदा शगल हो गया है कि वे हर खबर हिंदू-मुस्लिम के एंगल से ही देखते हैं और परोसते हैं। लेकिन सरकार को कोई आपत्ति इस पर नहीं है क्योंकि वे प्रकारांतर से सरकारी दल भाजपा और उसके सिद्धान्तकार आरएसएस के ही एजेंडे पर यह विभाजन कारी प्रोग्राम चलाते है। 

चाहे मुस्लिम साम्प्रदायिकता फैलाने वाले लोग या संगठन हों या हिंदू साम्प्रदायिकता फैलाने वाले लोग या संगठन हों इन दोनों ही धार्मिक कट्टरता से सड़े हुए लोगों और संगठनों का विरोध अनिवार्य ही नहीं बल्कि देश और देश की अस्मिता की सबसे बड़ी सेवा है। 

इसी बीच आईसीएमआर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कहा है कि वह दो बार दिन में कोविड 19 के बारे में अधिकृत आकड़े जारी करेगी ताकि इसने कोई भ्रम न हो। पहले यह आंकड़े सरकार को बताए जाएंगे फिर सरकार इसे जारी करेगी। 

आज कल लॉक डाउन उल्लंघन के संदर्भ में दिल्ली स्थित तबलीगी जमात के मरकज का नाम पिछले तीन दिनों से बहस के केंद में है। तबलीगी जमात या हर कट्टरपंथी धार्मिक संगठनों के मैं विरुद्ध हूँ जो तर्कवाद के विपरीत हैं और अन्धानुगामी समाज को प्रतिगामी बनाने की जुगत में लगे हैं। लेकिन जिस तरह से टीवी चैनलों ने केवल साम्प्रदायिकता के जुनून में निज़ामुद्दीन की इस घटना को तूल दिया उसका उद्देश्य ही लॉक डाउन के पक्ष में जन जागृति फैलाना नहीं था बल्कि संघी एजेंडे के अनुसार हिंदू मुस्लिम खाई को और बढ़ाना है। 

लॉक डाउन उल्लंघन के कुछ इन उदाहरणों पर भी गौर कीजिए। 

● मौलाना साद, और उनकी तबलीगी जमात देश भर में घूम-घूम कर कोरोना फैला रहे हैं। 

● मौलाना और सात अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज है। वह फरार है। पुलिस छापेमारी कर रही है। 

● रात में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजित डोभाल मरकज पहुंच कर मौलाना से मिलते हैं। उन्हें समझाते हैं। 

● 28 और 29 मार्च की आधी रात एनएसए डोभाल निजामुद्दीन मरकज गए और मरकज प्रमुख मौलाना साद से वहां मौजूद सभी लोगों का टेस्ट कराने और निकालने के लिये कहा था।

● यही मौलाना हैं जो फरमा रहे थे कि कोरोना एक साजिश है और अगर मरना ही है तो मस्जिद सबसे उत्तम जगह है। आज न जाने कहाँ पर क्वारन्टीन हैं। 

● यह भी सत्तर सालों में पहली बार हो रहा है कि दंगों को शांत करने का मामला हो या मौलाना साद को समझाने का, हर बार अजित डोभाल सर ही सामने आते हैं। 

● अब मौलाना के बारे में टीवी पर उनका इंटरव्यू और वीडियो क्लिपिंग चल रही हैं, और यह खबर कि, वे अभी क्वारन्टीन में हैं और शाम चार बजे नमूदार होंगे। 

● मौलाना और जमात का वैसे भी न कुछ बिगड़ने वाला है और न अब भी बहुत कुछ बिगड़ेगा। 188/ 269/ 270 आईपीसी के मुकदमे दर्ज हैं। ये वैसे भी संगीन धाराएं नहीं हैं। संज्ञेय तो हैं पर जमानतीय भी हैं। 

● अब जो जो कोविड19 को लेकर घूम रहे हैं, उन्हें राज्य सरकार ढूंढ रही है। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग निरंतर उनको ढूंढ कर पकड़ रहा है। पर वे कई जगहों पर आए डॉक्टरों औप पुलिस पर थूक दे रहे हैं। यह स्थिति बहुत निंदनीय है। बल प्रयोग ही ऐसी स्थिति में काम करेगा। 

● टीवी का मक़सद न मौलाना और जमात थी, बल्कि उनका मकसद केवल इस मामले को सांप्रदायिक रंग देना था। 

● मेरे लिये यह पचा पाना मुश्किल है कि सरकार और पुलिस को कुछ पता नहीं था। अगर 100 मीटर दूर एक संगठन का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय हो, जहां बराबर विदेशी नागरिकों की आमदरफ्त हो वहां के बारे में अगर थाने को नहीं पता, आईबी को नहीं पता और लोकल इंटेलिजेंस को नहीं पता तो यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों की विफलता है। 

● लॉक डाउन में में दिल्ली के इंडिया गेट पर बस में विदेशी टूरिस्ट घूम रहे हैं। पुलिस ने रोका तो पता लगा उनके पास हैं। इस लॉक डाउन में टूरिस्ट पास दिल्ली सरकार क्यों जारी कर रही है ?

● इस प्रोफेशनल विफलता की जिम्मेदारी गृह विभाग के ऊपर है जिसके अंतर्गत दिल्ली पुलिस आती है। 

● इंदौर में तबलीगी जमात मरकज़ से लौटे लोगों की तलाश में गई पुलिस और स्वास्थ्य कर्मी टीम पर ‘हिंसक भीड़’ ने पथराव किया।

● मुज़फ़्फ़रनगर के मोरना में लॉकडाउन तोड़ रहे लोगों को रोकने गई पुलिस टीम पर ‘ग्रामीणों’ ने हमला कर दिया। चौकी प्रभारी लेखराज सिंह गंभीर रूप से घायल हुए, तीन हमराह सिपाही भी। मोरना में पकड़े गये ग्रामीणों में प्रधान नाहर सिंह भी शामिल हैं।

● महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में अक्कलकोट तालुका के वागदरी में पुलिस की धार्मिक भीड़ के साथ मुठभेड़ हुई जिसमें ग्रामीणों ने सीधे हमला किया और पुलिस पर पत्थरबाजी की। एक पुलिस निरीक्षक एक पुजारी सहित तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए। 

यह उल्लंघन न केवल मुस्लिम तबलीगी जमात के लोगों ने ही किया बल्कि पंजाब में एक अत्यंत सम्मानित ग्रन्थी ने भी किया, सोलापुर में रथयात्रा के मेले में लोगों ने किया और हर जगह से जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार, यह लॉक डाउन अब टूट गया लगता है और इसे लागू कराने में पुलिस को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। 

एक खबर भाजपा के ही एक पूर्व सांसद की पढ़ लें जो इस लॉक डाउन में फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। ऐसा एक मामला पूर्व भाजपा के सांसद बिश्वमोहन कुमार से जुड़ा हुआ है, जिनके घर फिल्म की शूटिंग होने के दौरान वहां सैकड़ों लोग मौजूद थे। घटना का एक वीडियो भी सामने आया है। हालांकि पुलिस ने पूर्व सांसद के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। यह स्थिति असल में बहुत डराने वाली है। जिन जन प्रतिनिधियों और प्रबुद्ध लोगों को समाज में मिसाल कायम करना चाहिए, उनकी ओर से ऐसा बर्ताव किया जाना चौंकाने वाला है । 

अफवाहें न फैले, लोगों का संवाद सरकार से निरंतर बना रहे और सरकार जनता के लिये क्या कर रही है और वह जनता से कैसी अपेक्षा रखती है यह सब एकालाप से सम्भव नहीं है। सरकार और जनता के बीच संवाद जनता के मन में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति भरोसा बढ़ायेगा। ऐसे कठिन समय में निरन्तर जन संवाद आवश्यक है। 

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles