Friday, March 29, 2024

फिर सामने आया राफेल का जिन्न, सीएजी ने कहा- कंपनी ने नहीं पूरी की तकनीकी संबंधी शर्तें

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से राफेल सौदे विवाद का जिन्न एक बार फिर सतह पर आ गया है और कांग्रेस ने बिना समय गंवाए तंज भी कस दिया है कि ‘मेक इन इंडिया’ नहीं, ‘मेक इन फ्रांस’ हो गया और मोदी जी कहेंगे- सब चंगा सी!

2019 लोकसभा चुनाव में राफेल विमान सौदे का मुद्दा छाया रहा। राहुल गांधी ने इस पर हल्ला बोल कर दिया और  ‘चौकीदार चोर है’ का नारा बुलंद कर राफेल का महंगा सौदा करने समेत ऑफसेट में धांधली का आरोप लगाया। लेकिन तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मोदी सरकार को इस मसले पर क्लीनचिट दे दी, जिसके पुरस्कार स्वरूप रंजन गोगोई आज राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं। सीएजी यूपीए-2 की तरह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की सीएजी रिपोर्ट आनी शुरू हो गयी है और एक के बाद एक सरकारी कथित गेमचेंजर योजनाओं की पोल खुलना तय है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 4.5 पीढ़ी के राफेल विमान देने वाली दसॉल्ट एविएशन कंपनी और यूरोपीय हथियार निर्माता कंपनी एमबीडीए अपने ऑफसेट वादे पर खरा उतरती नहीं दिख रही है। इस कंपनी के बनाए उपकरणों का इस्तेमाल राफेल विमानों में किया गया है।

संसद में बुधवार को पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े पैमाने पर विदेशों से हथियारों की खरीद करता है। रक्षा खरीद नीति के तहत 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान लागू किए गए हैं। इसके तहत विदेशी कंपनी को 30 फीसदी रकम भारत में निवेश करनी होती है। इसके साथ ही घरेलू स्तर पर तकनीक की मदद से संबंधित क्षेत्र में विकास करना होता है। राफेल के सौदे की ऑफसेट नीति के तहत दसॉल्ट एविएशन ने सौदे में ऑफसेट वादे पर डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव दिया था।

कैग रिपोर्ट के दसॉल्ट एविएशन ने विमानों की सौदे के वक्त 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान के बदले डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था।  डीआरडीओ को यह तकनीक अपने हल्के लड़ाकू विमान के इंजन कावेरी के विकास के लिए चाहिए थी, लेकिन दसॉल्ट एविएशन ने आज तक अपना वादा पूरा नहीं किया। कैग ने कहा कि हथियार बेचने वाली कंपनियां कांट्रेक्ट पाने के लिए तो ऑफसेट का वादा करती हैं लेकिन बाद में उसे पूरा नहीं करती हैं।

इसके चलते ऑफसेट नीति बेमानी हो रही है। इसी सिलिसले में राफेल विमानों की खरीद का भी जिक्र किया गया है, जिसमें 2016 में राफेल के ऑफसेट प्रस्ताव का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट में भारत की ऑफसेट नीति की क्षमता पर भी सवाल उठाए गए हैं। कैग का कहना है कि उसने अभी तक एक भी मामला ऐसा नहीं देखा है जिसमें विदेशी कंपनी ने भारतीय उद्योग को उच्चस्तरीय तकनीक हस्तांतरित की हो। साथ ही यह भी कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मामले में रक्षा क्षेत्र का स्थान कुल 63 क्षेत्रों में से 62वां है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2018 के बीच रक्षा सौदों में कुल 46 ऑफसेट कांट्रेक्ट किए गए जिनका कुल मूल्य 66427 करोड़ रुपये था, लेकिन दिसंबर 2018 तक इनमें से 19223 करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट ही पूरे हुए। रक्षा मंत्रालय ने इसमें भी 11396 करोड़ के क्लेम ही उपयुक्त पाए, बाकी खारिज कर दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 55 हजार करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट अभी नहीं हुए हैं। तय नियमों के तहत इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है।

ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है। जैसे देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिये, निशुल्क तकनीक देकर तथा भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाकर। इस व्यय के जरिये उत्पाद के पा‌र्ट्स को भारत हासिल करता है या फिर शोध एवं विकास इकाइयों को स्थापित किया जाता है। ऑफसेट मानकों के तहत आयात के जरिये 300 करोड़ रुपये से अधिक की पूंजीगत खरीद की जाती है। एफडीआई के जरिये भी ऑफसेट बाध्यताओं को पूरा किया जा सकता है। इसमें भारतीय कंपनियों को तकनीक का हस्तांतरण और भारतीय कंपनियों के बनाए उत्पादों की खरीद भी इसमें शामिल है।

पांच राफेल विमानों की पहली खेप की आपूर्ति फ्रांस की कंपनी कर चुकी है। 29 जुलाई को मिसाइलों से सुसज्जित यह विमान भारत पहुंच गए थे। करीब चार साल पहले भारत सरकार ने फ्रांस से अंतर-सरकारी सौदा किया था। इसके तहत 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल युद्धक विमान भारत को सौंपे जाने हैं। भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को अनिवार्य रूप से भारत से करार की कुल लागत का तीस फीसद हिस्सा भारत में खर्च करना होता है। 

कैग ने कहा कि वर्ष 2005 से लेकर मार्च, 2018 तक विदेशी कंपनियों के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के कुल 48 ऑफसेट करार हुए हैं। दिसंबर, 2018 तक कंपनी को 19,223 करोड़ के ऑफसेट करार की भरपाई करनी थी। हालांकि अभी तक केवल 11,396 करोड़ का काम हुआ है जो कुल करार का 59 फीसद है। करार के तहत बाकी विमान 55,000 करोड़ रुपये के 2024 तक दिए जाने हैं। ऑडिटर का कहना है कि ऑफसेट करार के तहत निर्माता कंपनियां इन बाध्यताओं को पूरा करने में विफल रही हैं। चूंकि करार का अधिकांश समय निकल चुका है इसलिए इस देरी में निर्माता कंपनी को ही फायदा होता है।

एमआई-17 हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में हुई देरी पर कैग ने रक्षा मंत्रालय की आलोचना की है। आपूर्ति की समय सीमा में निरंतर देरी के कारण इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में केवल दो साल का समय बचा है। इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने का प्रस्ताव वर्ष 2002 में रखा गया था। लेकिन 18 साल बाद भी इन्हें उन्नत नहीं बनाया जा सका है। इसीलिए इन हेलीकॉप्टों के उड़ने की क्षमता बेहद सीमित हो गई है।

कैग ने कहा कि 2005 से 18 तक विदेशी कंपनियों के साथ 48 अनुबंध साइन किए गए थे जो कि कुल 66,427 करोड़ के थे। दिसंबर 2018 तक 19,223 करोड़ का ऑफसेट ट्रांसफर होना था लेकिन केवल 11,223 करोड़ का ही ट्रांसफर किया गया। यह वादे का केवल 59 प्रतिशत है।

कैग ने कहा कि चूंकि ऑफसेट नीति के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं, इसलिये रक्षा मंत्रालय को नीति व इसके कार्यान्वयन की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मंत्रालय को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय उद्योग को ऑफसेट का लाभ उठाने से रोकने वाली बाधाओं की पहचान करने तथा इन बाधाओं को दूर करने के लिये समाधान खोजने की जरूरत है। कैग ने कहा कि 2005 से मार्च 2018 तक विदेशी विक्रेताओं के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के 48 ऑफसेट अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए गए थे। इनमें से दिसंबर 2018 तक विक्रेताओं द्वारा 19,223 करोड़ रुपये के ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन किया जाना चाहिये था, लेकिन उनके द्वारा दी गई राशि केवल 11,396 करोड़ रुपये है, जो कि प्रतिबद्धता का केवल 59 प्रतिशत है।

रिपोर्ट पर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने गुरुवार को एक ट्वीट कर तंज कसा कि इस मामले में ‘मेक इन इंडिया’ की जगह ‘मेक इन फ्रांस’ हो गया है। उन्होंने एक ट्वीट कर लिखा कि ‘सबसे बड़े रक्षा सौदे की क्रोनोलॉजी सामने आ रही है। कैग की नई रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि राफेल के ऑफसेट में ‘टेक्नोलॉजी ट्रांसफर’ की बात को ताक पर रख दिया गया है। पहले ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक इन फ्रांस’ हो गया। अब डीआरडीओ  के टेक ट्रांसफर को किनारे कर दिया गया है। और मोदी जी कहेंगे कि- सब चंगा सी!

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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