Friday, March 29, 2024

रायगढ़ स्पेशल: जंगल और ज़िंदगी पर माइनिंग का दंश

रायगढ़। रायगढ़ जिले में 1991 में खनन के क्षेत्र में जिंदल के प्रवेश के बाद अब तक सैकड़ों कॉर्पोरेट ने लाखों हेक्टेयर जल, जंगल और जमीन पर प्रशासन की गैर कानूनी मदद से, सारे नियम कायदे व न्यायालय निर्देशों की अवहेलना करते हुए कब्जा जमा लिया है। तब से लेकर आज तक की स्थिति में सैकड़ों गांव और लाखों ग्रामीण आदिवासी विस्थापन, पुनर्वास, मुआवजा बेरोजगारी, संस्कृति की लूट व प्रदूषण की समस्या झेल रहे हैं।

जनचौक ने रायगढ़ जिले के अधिकांश खनन क्षेत्रों के गांव का अध्ययन करके जिले में प्रशासन और उद्योगों की मिलीभगत और साथ में एनजीटी के नियमों के अनुपालन नहीं किए जाने का मामला प्रत्यक्ष रूप से देखा है। जनचौक के प्रतिनिधि के तौर पर इन पंक्तियों का लेखक जब जंगल और आदिवासियों की जिंदगी पर माइनिंग के दंश का असर जानने पहुंचा तो जो कुछ सामने आया, वो बेहद परेशान करने वाला और भयावह था। इन सारी समस्याओं को धारावाहिक तरीके से जनचौक प्रकाशित करेगा। इस कड़ी में पहला लेख प्रदूषण पर केंद्रित है।

जिले के खनन क्षेत्र के सभी रोड में हर 10 मीटर के अंतर में एक भारी वाहन। जबकि एनजीटी व कोर्ट के निर्देश के अनुसार आपस में दूरी कम से कम 100 मीटर की होनी चाहिए

प्रदूषण रायगढ़ की सबसे बड़ी समस्या है। उसने न केवल जिंदगियों को दूभर कर दिया है बल्कि लोगों के लिए जानलेवा भी साबित हो रहा है। सड़कों से हो रहे कोयले का अवैध व वैध ट्रांसपोर्टेशन और उद्योगों की वजह से पूरा क्षेत्र प्रदूषण से घिर गया है। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स रियल टाइम पोल्यूशन रैंकिंग 363 पर पहुंच गई है जो जीवन के लिए काफी खतरनाक है।

फैक्ट्री के सामने लगी ट्रकों की कतार

इन पंक्तियों का लेखक भी अपने ढाई सौ किलोमीटर की मोटरसाइकिल यात्रा के दौरान अनेक खनन क्षेत्रों व अनेक गांवों से होकर गुजरा। इस दौरान उन गांवों के तालाबों और नदी-नालों की स्थिति को उसको देखने का मौका मिला। जिनमें खदान और अन्य कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट को डाला जा रहा है। इसके व सड़क के धूल के चलते रास्ते में पड़ने वाली सारी चीजें प्रदूषित हो चुकी हैं।

राख व अवशिष्ट से प्रदूषित नाले, नदी और तालाब

प्रदूषण किस कदर भयानक रूप ले चुका है सड़कों के किनारे लगे पेड़ उसकी खुली बयानी कर रहे थे। रास्ते में पड़ने वाला शायद ही कोई पेड़ हरा भरा बचा था। सबने धूल की चादर ओढ़ रखी थी। ग्रामीणों के अनुसार “क्षेत्र के तालाब और नदी नालों में मछलियां तक मर जा रही हैं और सुबह होने पर तलाब में कम से कम आधा सेंटीमीटर का डस्ट जमा हो जाता है। नहाने योग्य भी नहीं होने के बाद भी लोग इन्हीं प्रदूषित तालाबों का उपयोग करने के लिए बाध्य हैं”।

प्रदूषण का स्तर

मुझे रास्ता दिखाने वाले एक ग्रामीण सज्जन जो खुद भी लोगों को जागरूक करने और आंदोलनों में आगे रहे हैं, राजेश कुमार गुप्ता ने बताया कि मेरी जानकारी में क्षेत्र में 8 कोल माइंस (कोल ब्लॉक) हैं जबकि और कई खोले जाने हैं। और यह क्षेत्र हाथी विचरण क्षेत्र भी है। प्रदेश सरकार द्वारा हाथी के लिए बनाए जा रहे गोमर्दा अभ्यारण्य भी रायगढ़ जिले में ही है मगर सरकार को उसकी कोई परवाह नहीं है। 8 कोल ब्लॉक के अलावा, 50 से ज्यादा बड़े कार्पोरेट, 100 से ज्यादा प्रेशर प्लांट, कई टायर जलाने के कारखाने, एनटीपीसी और जिंदल के बड़े पावर प्लांट के अलावा 10 से ज्यादा प्लांट पहले से ही हैं। जबकि अभी एक और बड़ा प्लांट लगने वाला है। इन पावर प्लांट से निकलने वाले राख को भी जबरदस्ती रोड के किनारे या किसी के भी खेत या जमीन पर डम्प कर दिया जाता है।

जानकारी के मुताबिक जिले की सड़कों पर रोज कोयला ट्रांसपोर्टेशन करने वाली 4000 से ज्यादा गाड़ियां चलती हैं। जिनके कारण सड़कें तो लगातार खराब हो ही रही हैं साथ में प्रदूषण भी बढ़ रहा है। रायगढ़ जिले में लंबे समय से काम कर रहे जन चेतना से जुड़े समाजसेवी राजेश त्रिपाठी का कहना है कि “प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है और 2014 के बाद से ही रायगढ़ पूरे देश में प्रदूषण के मामले में सबसे ऊंचे स्थान पर है। त्रिपाठी जी के अनुसार आईआईटी खड़कपुर की रिपोर्ट कहती है कि तराईमाल, जामगांव तमनार, चुनचुना, पूंजीपथरा घरघोड़ा सहित जिले के 90% से ज्यादा ज्यादा सड़कें पूरी तरह से उखड़ चुकी हैं और सड़कों में केवल डस्ट जमा है जो सीधे उड़ कर रहवासियों के घरों में प्रवेश कर रही है और आने जाने वाले लोगों को प्रभावित कर रही है”।

छत्तीसगढ़ में प्रदूषण के मामले में रायगढ़ जिला दूसरे नंबर पर आता है। पहला स्थान कोरबा का है। चाहे वह जल प्रदूषण हो, चाहे वायु प्रदूषण हो या फिर धन प्रदूषण। हर मामले में रायगढ़ सुर्खियों में रहता है। यहां पीएम 2.2 व पीएम 10 की मात्रा सामान्य से कई गुना ज्यादा है जिसके चलते यहां ढेर सारी बीमारियां पैदा हो गयी हैं। टीवी, दमा, फेफड़े का कैंसर आदि बीमारियों के काफी मामले सामने आ रहे हैं। इन बीमारियों ने रायगढ़ को अपना घर बना लिया है। हर दूसरे परिवार का कोई न कोई सदस्य इन बीमारियों से पीड़ित है। हालांकि लोग इसकी कई बार प्रशासन से शिकायत कर चुके हैं लेकिन सत्ता और कारपोरेट का दबाव प्रशासन पर भारी पड़ रहा है।

जनचेतना संस्था के आंदोलन और प्रयास के बाद कुछ गांव में लगा क्लोराइड शोधन यंत्र

इन प्लांटों के बगल में स्थित मोरा गांव की 90% आबादी फ्लोरोसिस से प्रभावित है। इसके चलते कई लड़के और लड़कियों के हाथ-पैर टेढ़े हो गए हैं। नतीजतन अब उनकी शादी तक नहीं हो पा रही है।

अभी इसी साल 5 जनवरी को हुई फर्जी जनसुनवाई जिसमें 5000 से ज्यादा लोगों को कोरोना वायरस के नियमों का उल्लंघन कर इकट्ठा किया गया जिसमें अधिकांश बाहरी तत्व थे। जबकि प्रभावित गांव के लोगों की नहीं सुनी गई। अब उनके गांव ही एक तरफ से घिर गए हैं और अपने खेत और रायगढ़ जाने के लिए उन्हें 5 से 10 किलोमीटर अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी। कंपनी ने इनके खेत और गांव जाने के रास्ते में घेराबंदी शुरू कर दी है

रायगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार नितिन सिन्हा जो वर्षों से खनन से होने वाले प्रदूषण और ग्रामीणों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ खबर कर रहे हैं वह बताते हैं कि “पोल्यूशन लोगों की जिंदगियों का दुश्मन बन गया है। उसकी बढ़ती मात्रा का नतीजा यह है कि जिले में फेफड़े से संबंधित बीमारियों से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है”। वे दावा करते हैं कि कोयला के परिवहन को लेकर एनजीटी व न्यायालय द्वारा निर्देशित नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है जिसके कारण रहवासी क्षेत्रों से भारी वाहन गुजर रहे हैं। जो न केवल प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक साबित हो रहे हैं बल्कि उनके चलते सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ गयी है।

बीमारियों से मरने वाले कुछ नाम

पर्यावरण विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं। क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी एसके वर्मा का कहना है कि रायगढ़ शहर के आस-पास बहुत सारे उद्योग स्थापित और संचालित हैं। उद्योगों की स्थापना की वजह से भारी वाहन का आवागमन होता है जो शहर के मध्य से होकर जाते हैं और विभिन्न कस्बों और गांवों से भी इनका गुजरना होता है। हालांकि उनका कहना है कि उसको कम करने का प्रशासन उपाय जरूर करता है। उन्होंने बताया कि जिन प्रवासी बस्तियों से इन भारी वाहनों का गुजरना होता है वहां समय-समय पर जल छिड़काव किया जाता है ताकि डस्ट से कोई दिक्कत ना हो। हालांकि यह बात कितनी जुबानी है और कितनी जमीन पर उतरती है उसका अंदाजा वहां के प्रदूषण से लगाया जा सकता है।

इस मामले को लेकर जब इस संवाददाता ने डाक्टरों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की। और इसके चलते होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को विस्तार से बताया। रायगढ़ जिला चिकित्सालय के डॉक्टर राघवेंद्र बहीदार का कहना था कि “जिले में अचानक पिछले 15-16 वर्षों से फेफड़े वह सांस की बीमारियों में काफी वृद्धि आई है और हर साल काफी मौतें हो रही हैं। यह बात सच है”। 

धुंआ उगलता जिंदल प्लांट

वे जिले में बढ़ते प्रदूषण के लिए बढ़ते कोल माइंस और प्रदूषण के नियमों का पालन ना करने वाले अनेक कारखानों को जिम्मेदार बताते हुए कहते हैं कि “जिले का जेल और वायु दोनों ही प्रदूषित हो चुके हैं और इस पर नियंत्रण के लिए खनन और परिवहन तथा धूल और धुआं उड़ाने वाले उद्योगों पर नियंत्रण की तत्काल जरूरत है”।

छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार के कई नेता और स्वयं मुख्यमंत्री भी पिछली सरकार में होने वाली नियम विरुद्ध जनसुनवाई के विरुद्ध आवाज उठाते थे और परेशान ग्रामीणों का साथ देने का वादा करते थे। मगर वर्तमान सरकार भी अभी पूरी तरह से कारपोरेट के साथ दिखती है। इसका सीधा उदाहरण यह है कि कोरोना काल के 2 साल के भीतर बिना नियमों की परवाह किए और धारा 188 और 144 का स्वयं उल्लंघन करते हुए सरकार ने 26 जन सुनवाई करवा डाली। इन फर्जी जनसुनवाईयों में भाग लेने के लिए स्थानीय प्रभावितों की जगह कारपोरेट के दलाल और गुंडों को भारी संख्या में उपस्थित होने और अपनी बात रखने का मौका तो दिया मगर प्रभावित गांव के लोगों को मौका नहीं मिला।

(रायगढ़ से वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles