Saturday, April 20, 2024

वे हमें पूरे समाज से खत्म कर देना चाहते हैं: हिंदुत्ववादियों के बारे में एक ईसाई किसान

एक ईसाई किसान ने हिंदू चरमपंथियों के बारे में कहा कि “वे हमें समाज से बाहर कर देना चाहते हैं।” ईसाइयों पर बढ़ते हमले भारत में एक व्यापक बदलाव का हिस्सा हैं, जिसमें अल्पसंख्यक कम सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

इंदौर, भारत – जब भीड़ ने दरवाजे पर लात मारी तो ईसाई लोग भजन गा रहे थे।

भगवा कपड़े पहने पुरुषों का झुंड अंदर आ गया। वे मंच पर कूद पड़े और हिंदू वर्चस्ववादी नारे लगाने लगे। उन्होंने पादरी के सिर में घूंसा मारा। उन्होंने महिलाओं को जमीन पर पटक दिया, भयभीत बच्चे अपनी कुर्सियों के नीचे छिपने लगे।

यह हमला 26 जनवरी की सुबह इंदौर शहर के ‘सत्प्रकाशन संचार केंद्र’ नाम के ईसाई केंद्र में हुआ। पुलिस जल्द ही आ गई, लेकिन अधिकारियों ने हमलावरों को नहीं छुआ। इसके बजाय, उन्होंने उन पादरियों और चर्च के अन्य बुजुर्गों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, जिनके सिर मुक्कों की चोट से अभी भी चकरा रहे थे। इन ईसाइयों पर धर्म-परिवर्तनों को रोकने के लिए बनाये गये एक नए कानून को तोड़ने का आरोप लगाया गया। भारतीय ईसाइयों के खिलाफ भीड़ की हिंसा में वृद्धि को प्रेरित करने वाले कम से कम एक दर्जन उपायों में से एक यह क़ानून भी है।

पादरी डेविड ने बताया कि वहां वे किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं कर रहे थे। लेकिन उनके चर्च के खिलाफ संगठित हमला एक बढ़ते ईसाई-विरोधी उन्माद से प्रेरित था जो इस विशाल राष्ट्र में फैल रहा है, जबकि इस राष्ट्र में एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े ईसाई समुदायों में से एक रहता है, जिसके 3 करोड़ से अधिक अनुयायी हैं।

ईसाई-विरोधी निगरानी समितियों के लोग गांवों में घूम रहे हैं, गिरजाघरों पर धावा बोल रहे हैं, ईसाई साहित्य जला रहे हैं, स्कूलों पर हमला कर रहे हैं और उपासकों पर हमला कर रहे हैं। कई मामलों में पुलिस और भारत की सत्ताधारी पार्टी के सदस्य उनकी मदद कर रहे हैं। सरकारी दस्तावेजों और दर्जनों साक्षात्कारों से ये बातें सामने आयी हैं। धर्म की स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद एक-एक करके सभी चर्चों में पूजा का काम खतरनाक हो गया है।

कई हिंदू चरमपंथियों के अनुसार ये हमले, धर्म-परिवर्तन को रोकने के एक साधन के रूप में उचित हैं। उन्हें आशंका है कि एक छोटी ही संख्या सही, अगर कुछ भारतीय हिंदू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लेते हैं, तो यह भारत को एक शुद्ध हिंदू राष्ट्र में बदलने के उनके सपने के लिए एक खतरा होगा। कई ईसाई तो इतने भयभीत हो गए हैं कि वे खुद को बचाने के लिए हिंदू होने की कोशिश कर रहे हैं।

इस साल हमले का शिकार हुए एक ग्रामीण चर्च को उदास निगाहों से देखते हुए एक ईसाई किसान अभिषेक निनामा कहते हैं कि, “मुझे समझ में नहीं आता है कि, “हम ऐसा क्या करते हैं जिससे वे हमसे इतनी नफरत करते हैं?”

मध्य प्रदेश के एक गांव बिलावर कला गांव में प्रार्थना सभा की तैयारी।

मध्य और उत्तरी भारत में यह दबाव सबसे अधिक है, जहां प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी पार्टी का मजबूत नियंत्रण है, और जहां धर्मप्रचारक ईसाई समूह धीमे-धीमे निम्न-जाति के हिंदुओं में अपनी स्वीकार्यता बढ़ा रहे हैं। पादरी रात में गुप्त समारोह आयोजित करते हैं। वे गुप्त बपतिस्मा करते हैं। वे छोटे ट्रांजिस्टर रेडियो की तरह दिखने वाले ऑडियो बाइबिल बांटते हैं ताकि अनपढ़ किसान अपने खेतों की जुताई करते समय भी गुप्त रूप से धर्मग्रंथों को सुन सकें।

इंदौर का सत्प्रकाशन केंद्र। फरवरी में हिंदू कट्टरपंथियों ने पुलिस की मदद से इस पर हमला किया था।

1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से ही, भारत लोकतंत्र के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग रहा है। कभी-कभी, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं, जो अक्सर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच होती हैं, धार्मिक बहुलवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का परीक्षण भी करती है, लेकिन फिर भी आमतौर पर अधिकारी इन्हें दबाने की कोशिशें करते हैं, हालांकि कभी-कभी वे बहुत धीमी चाल से ये कोशिशें करते हैं।

एक गांव में आयोजित एक गोपनीय जगह की प्रार्थना सभा में भाग लेतीं महिलाएं।

हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में धर्म-परिवर्तन का मुद्दा खास तौर पर एक संवेदनशील विषय है, जिसने देश को वर्षों से परेशान किया है। यहां तक कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने भारत के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों की जमकर रक्षा की, इस मुद्दे ने उनका भी ध्यान आकर्षित किया था। पिछले कुछ वर्षों में मोदी और उनकी हिंदूराष्ट्रवादी पार्टी भारत को उस बुनियाद से बहुत दूर तक खींच कर ले गये हैं, जिसे कई भारतीय नेहरू द्वारा निर्मित बहुसांस्कृतिक बुनियाद के रूप में देखते हैं। ईसाई, जो आबादी का लगभग 2 प्रतिशत हैं, उन पर बढ़ते हमले, भारत में एक ऐसे व्यापक बदलाव का हिस्सा हैं, जिसमें अल्पसंख्यक कम सुरक्षित महसूस करने लगे हैं।

अपने समर्थकों पर लगाम लगाने और मुसलमानों और ईसाइयों के उत्पीड़न को रोकने के लिए मोदी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव लगातार बढ़ रहा है। ‘अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग’, जो अमरीका का एक सरकारी निकाय है, उसने सिफारिश की है कि अमरीका भारत को “धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन” के लिए अपनी लाल सूची में रखे। मोदी प्रशासन ने इस आरोप को दृढ़ता से खारिज कर दिया है।

लेकिन पूरे भारत में, ईसाई-विरोधी ताकतें आज दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही हैं। उनके कई चेहरे हैं, जिनमें वकीलों और क्लर्कों की एक सफेदपोश सेना भी शामिल है, जो ईसाई संगठनों के खिलाफ कानूनी शिकायतें दर्ज करते रहते हैं। वे दूर-दराज के गांवों में अलग-थलग पड़े ईसाइयों के खिलाफ उनको बेबस कर देने वाले सामाजिक बहिष्कार की भी योजना बनाते हैं। व्यापक पैमाने पर किये गये साक्षात्कारों के अनुसार, हिंदूराष्ट्रवादियों ने ईसाइयों को सामुदायिक कुओं से पानी लेने से रोक दिया है, उन्हें हिंदू घरों में जाने से रोक दिया है और ग्रामीणों को यीशु में विश्वास करने के लिए बहिष्कृत कर दिया है। पिछले साल एक क़स्बे में उन्होंने क्रिसमस पर लोगों को इकट्ठा होने से रोक दिया था।

एक प्रमुख उत्पीड़न-विरोधी समूह, ‘इंटरनेशनल क्रिश्चियन कन्सर्न’ के विधिक निदेशक माटियस पर्टुला कहते हैं कि “जिस तरह से ईसाइयों को दबाने, उनके साथ भेदभाव और उनके उत्पीड़न का स्तर बढ़ता जा रहा है, ऐसा भारत में पहले कभी नहीं हुआ, जबकि हमलावर हर बार मुक्त घूमते रहते हैं।”

‘वे हमें समाज से हटा देना चाहते हैं’

एक छोटे से मध्य भारतीय क़स्बे, अलीराजपुर में, एक फोटोकॉपी की दुकान के पीछे एक कार्यालय में दिलीप चौहान बैठे हैं। उनकी मांसल बाहें उनकी छाती पर मुड़ी हुई हैं। उनके पीछे दीवार पर एक आदिवासी योद्धा का पोस्टर फैला हुआ है। चौहान ईसाई-विरोधी ताकत के बढ़ते नेटवर्क का हिस्सा हैं।

ईसाइयों के नाम मात्र से ही वे मुंह सिकोड़ लेते हैं, मानो उन्होंने कोई नींबू चाट लिया हो।

चौहान मध्य प्रदेश के मध्य वाले इलाक़े में रहते हैं। मध्य प्रदेश ने इसी वर्ष एक धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून पारित किया है, जिसके अनुसार अवैध रूप से धर्मांतरण कराने का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है, जबकि यह क़ानून स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। इस कानून से उत्साहित 35 वर्षीय चौहान और कई अन्य युवा हिंदूराष्ट्रवादियों ने अनेक गिरजाघरों पर धावा बोल दिया है। इनमें से कुछ छापों के समाचार प्रसारित भी हुए, जिनमें अपनी पीठ पर एक बन्दूक के साथ एक चर्च में जबरन घुसते हुए चौहान की फुटेज भी शामिल है।

उनका कहना है कि उन्होंने अपनी पीठ पर केवल “फैशन” के लिए बंदूक टांगी हुई थी, और उस क्षेत्र के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि इस पर कोई आरोप नहीं बनता। जबकि इसके उलट, जैसा कि इंदौर मामले में हुआ था, जिन चर्चों में तोड़फोड़ की गयी थी उनके कई पादरियों को अवैध धर्म-परिवर्तन के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। पुलिस अधिकारियों ने उनके खिलाफ साक्ष्य बताने से इनकार कर दिया।

चौहान का कहना है कि उनका समूह चर्चों पर हमले की योजनाओं के लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल करता है, और उनके समूह के 5,000 सदस्य हैं। यह समूह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित देश भर में हिंदूराष्ट्रवादी संगठनों के एक नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें मोदी की भारतीय जनता पार्टी के भी अनेक सदस्य हैं।

मध्य प्रदेश में भाजपा के एक युवा नेता गौरव तिवारी का कहना है कि उनकी “पार्टी वास्तव में इस मुद्दे में लंबे समय से शामिल है।”

उनके भाजपा कार्यकर्ताओं ने पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में हाल ही में कई ईसाई-विरोधी जुलूस निकाले, जिसमें वे धर्म-परिवर्तन करने वालों को जूते मारने का जोर-जोर से आह्वान कर रहे थे। सितंबर में, उन्होंने ठीक वैसा ही किया। इन्हीं भाजपा कार्यकर्ताओं का एक युवा समूह छत्तीसगढ़ पुलिस थाने में जबर्दस्ती घुस गया और ठीक पुलिस अधिकारियों के सामने दो पादरियों पर जूते फेंके और उनकी पिटाई की।

दिलीप चौहान ईसाई विरोधी हिंदी दस्ते का एक सदस्य है।

बिलावर कलां में ईसाइयों के सामाजिक बहिष्कार के बारे में पूछे जाने पर गांव के भाजपा के एक सदस्य मेष लाल चंचल को बिल्कुल खेद नहीं था। उनका कहना था कि “हम उन्हें समाज में वापस लाने के लिए यह जबर्दस्ती कर रहे हैं।”

34 वर्षीय ठेकेदार और भाजपा युवा प्रकोष्ठ का एक पदाधिकारी राहुल राव डींग मारते हुए बताता है कि  “मैंने उस पादरी को पाँच या छह बार थप्पड़ मारे, यह बेहद संतोषजनक था।”

इस मामले में, पुलिस अधिकारियों ने राव को आरोपित किया है, जिसकी अन्य भाजपा सदस्यों ने जमानत करा ली। लेकिन ज्यादातर मामलों में अधिकारी भी भीड़ का ही पक्ष लेते हैं।

बिलावर कलां गांव के बाहर बैठे सुखलाल कुमरे औऱ उनका परिवार।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के एक शीर्ष पुलिस अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थों को लिखा हुआ एक पत्र लीक हो गया। इसमें लिखा गया है कि “ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखें।”

बीजेपी का एक सदस्य इन चीजों के लिए कतई शर्मिंदा नहीं है।

पिछले साल उत्तर प्रदेश के बागपत में एक जिला प्रशासक का भी एक पत्र लीक हो गया था। इस पत्र द्वारा ईसाइयों को एक चर्च में क्रिसमस मनाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। और कुछ ही हफ्ते पहले, एक मशहूर हिंदू पुजारी ने एक मंच से, जिस पर भाजपा सदस्य भी थे, धर्म-परिवर्तन कराने वालों का सर काट देने का सार्वजनिक रूप से आह्वान किया।

केरल और गोवा जैसे राज्यों में जहां काफी बड़े और ऐतिहासिक ईसाई समुदाय हैं,  वहां उन्हें शायद ही किसी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता हो।

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों वाले राज्य

लेकिन परंपरा से बंधे ग्रामीण इलाकों में, जहां ईसाई अत्यंत कम संख्या में हैं और समुदाय ही सब कुछ होता है, वहां दबाव बहुत ज्यादा है। मध्य प्रदेश में बिलावर कलां गांव है, जो छोटे घरों और जर्जर सड़कों का एक झुंड है। वहां के बुजुर्गों ने हाल ही में घोषणा की है कि जो भी परिवार अपने घर में किसी ईसाई को घुसने देगा, उसे 1000 रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा। इसके साथ ही वे वहां के थोड़े से ही ईसाई परिवारों को हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं। वे यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो न तो उनके बच्चों की शादी होने दी जाएगी, न कोई उनके अंतिम संस्कार में शामिल होगा, न ही बाजार में कोई दुकानदार उन्हें कोई सामान बेचेगा।

गाँव के ठीक बाहर एक खेत में लकड़ी के सूखे कुन्दे पर बैठे हुए सुख लाल कुमरे, जो एक साधारण किसान और एक ईसाई हैं, कहते हैं कि “वे हमें समाज से ही हटा देना चाहते हैं।”

बिलावर कलां के बुजुर्गों से जब ईसाई परिवारों के सामाजिक बहिष्कार की उनकी घोषणा के बारे में पूछा गया तो बात करते समय न तो उनमें कोई हिचक थी, न ही उन्हें कोई खेद था।

“हम उन्हें समाज में वापस लाने के लिए ऐसा कर रहे हैं,” मेष लाल चंचल ने समझाया, जो गांव के शीर्ष भाजपाइयों में से एक हैं। वे कहते हैं कि “अगर हमने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो वे अब तक इस पूरे इलाक़े का धर्म-परिवर्तन करा चुके होते।”

‘अधार्मिक, राष्ट्र-विरोधी और शत्रुतापूर्ण’

रायगढ़, जो उस समय आज के छत्तीसगढ़ की एक छोटी रियासत थी, वहां की शाही अदालत ने 1936 में भारत का पहला ज्ञात धर्मांतरण-विरोधी कानून पारित किया, जिसमें किसी को भी धर्म बदलने से पहले सरकार की अनुमति प्राप्त करना जरूरी कर दिया गया था। आज की तरह ही, उस समय भी ईसाई धर्म के तेजी से हो रहे प्रसार की चिंता थी, जिसे पुरानी व्यवस्था के लिए खतरा माना जा रहा था।

उस दौर के मिशनरियों ने समाज के निचले स्तरों को लक्ष्य बनाया था, जिसमें निम्न जातियों के हिंदू और आदिवासी शामिल थे। वे उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाते थे और उन्हें जाति व्यवस्था पर सवाल उठाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसने जमींदारों और महाराजाओं को क्रोधित कर दिया, जो निचली जातियों के श्रमिकों के शोषण पर निर्भर एक सामंती पदानुक्रम के शीर्ष पर होते थे।

लगभग उसी समय, 1920 के दशक में स्थापित एक हिंदूराष्ट्रवादी समूह, आरएसएस के नेताओं ने भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने के अपने सपने को स्पष्ट करना शुरू कर दिया था, जिसमें ईसाइयों और मुसलमानों को किनारे कर देना था। आरएसएस को मोदी की पार्टी का वैचारिक स्रोत माना जाता है।

आरएसएस के शुरुआती नेताओं में से एक, एम. एस. गोलवलकर ने ईसाइयों के बारे में लिखा, “उनकी गतिविधियां न केवल अधार्मिक हैं, बल्कि वे राष्ट्र-विरोधी भी हैं।” उन्होंने आगे कहा: “वे यहां शत्रुतापूर्ण बने रहेंगे और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता रहेगा।”

राज्य जहां धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित हुए हैं।

ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता के बाद, ईसाई नेताओं ने भारत के संविधान के निर्माताओं को संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के लिए सुरक्षा शामिल करने के लिए राजी करने में मदद की, जबकि हिंदूराष्ट्रवादी धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों को पारित कराने की कोशिशें करते रहे। जब 1955 में संसद में इस पर बहस शुरू हुई, तो भारत के प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री नेहरू ने ऐसे धर्म-परिवर्तन विरोधी कानूनों के खिलाफ तर्क देते हुए यह आशंका व्यक्त की कि वे “उत्पीड़न का अस्त्र बन सकते हैं।”

उसके बाद के दशकों में भी, हिंदूराष्ट्रवादी धर्म-परिवर्तन को प्रतिबंधित करने की कोशिशें करते रहे। नेहरू की कांग्रेस पार्टी के धर्मनिरपेक्षतावादियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्य, जहां हिंदूराष्ट्रवादियों को लंबे समय से व्यापक समर्थन प्राप्त है, उन्होंने अपने स्वयं के धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून पारित किए, लेकिन इन क़ानूनों का प्रवर्तन सीमित और अनियमित था।

2014 में, वह सब बदल गया।

मोदी सत्ता में आए। उनकी घोषणाओं का एक हिस्सा आर्थिक सुधार और वैश्विक मंच पर एक अधिक शक्तिशाली भारत के उनके वादे थे। लेकिन काफी भारतीय  आरएसएस जैसे हिंदूराष्ट्रवादी समूहों में मोदी की गहरी जड़ों के कारण भी उनकी ओर आकर्षित हुए।

मोदी युग के पहले शिकार मुसलमान बने। गायें, जिन्हें काफी हिंदू पवित्र मानते हैं, उनकी रक्षा करने का दावा करने वाले हिंदू चरमपंथियों द्वारा दर्जनों मुसलमानों को सार्वजनिक रूप से पीट-पीट कर मार डाला गया।

फिर ईसाइयों के खिलाफ हमले शुरू हो गए। ‘इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया’ का कहना है कि 2014 के बाद से ईसाई-विरोधी घृणाजनित अपराध दो गुने हो गए हैं। इसी तरह आर्थिक बहिष्कार के आंदोलन भी। हिंदूराष्ट्रवादी वकीलों और कार्यकर्ताओं ने ‘लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी’ नाम के संगठन के माध्यम से ईसाई धर्मार्थ संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों की झड़ी लगा दी है, जिसके कारण उनके पास धन की कमी हो गयी है और कई को तो बंद कर देना पड़ा है।

ईसाई किसान अभिषेक निनामा कहते हैं कि “मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि हम ऐसा क्या करते हैं जिससे वे हमसे इतनी नफरत करते हैं?”

कुछ साल पहले, राजधानी नई दिल्ली में कैथोलिक चर्चों में तोड़फोड़ के बाद, ईसाई नेताओं ने मोदी से मदद की गुहार लगाई। दिसंबर 2014 में प्रधान मंत्री के आवास पर एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने वाले तीन पादरियों के अनुसार, मोदी इस विषय में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे, उनका मज़ाक उड़ा रहे थे और हमलों के विषय में कोई बात ही नहीं कर रहे थे।

दिल्ली कैथोलिक चर्च के एक पूर्व पदाधिकारी फादर डोमिनिक इमैनुएल, जो अब वियना में रहते हैं, बताते हैं कि मोदी का रवैया “किसी डॉन जैसा था।”

बैठक के बारे में पूछे जाने पर, मोदी के एक प्रवक्ता ने कहा कि ये “निराधार आरोप” थे और एक भाषण की ओर इशारा किया जिसमें मोदी ने कहा था कि वह “बहुसंख्यकों या अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी भी धार्मिक समूह को दूसरों के खिलाफ घृणा भड़काने की अनुमति नहीं देंगे और उनकी सरकार सभी धर्मों को समान सम्मान देती है।”

अक्टूबर में, मोदी ने वेटिकन में पोप फ्रांसिस से मुलाकात की और उन्हें भारत आने के लिए आमंत्रित किया। कुछ विश्लेषकों ने इसे प्रगति के रूप में देखा। दूसरों ने इसे कैथोलिक वोटों के लिए एक सनकी चाल के रूप में खारिज कर दिया।

फादर इमैनुएल नहीं मानते कि पोप की यात्रा से बहुत कुछ बदल जाएगा। पिछले कुछ महीनों में ये हमले और तेज हो गए हैं और दक्षिणी राज्य कर्नाटक में फैल गए हैं। चरमपंथियों का कहना है कि वे अवैध धर्म-परिवर्तन को रोकने के लिए काम कर रहे हैं। ईसाई नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ भीड़ को भड़काने का एक बहाना है।

फादर इमैनुएल कहते हैं कि “जैसे उनके पास मुसलमानों को हराने के लिए आतंकवाद है, उसी तरह उनके पास ईसाइयों को हराने के लिए धर्म-परिवर्तन है।”

वे कहते हैं कि “मैं चिंतित और बहुत दुखी हूं कि इस खूबसूरत देश में, एक प्यारी संस्कृति के साथ, जहां हम सदियों से एक साथ रहे हैं, बहुसंख्यकवाद प्रबल हो रहा है और लोगों को धर्म के आधार पर एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है।”

‘इस गांव में हर कोई हमारे खिलाफ है’

‘इंदौर ईसाई केंद्र’ के अंदर पीटे गए और गिरफ्तार किए गए पादरी डेविड ने कहा कि जेल में उनकी पहली रात भयानक थी। उनसे बार-बार पूछताछ की गई और भोजन-पानी भी नहीं दिया गया और वकील से मिलने से भी रोक दिया गया। उन्होंने और आठ अन्य प्रोटेस्टेंट बुजुर्गों ने दो महीने जेल में बिताए और अभी भी गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं।

वे कहते हैं कि “लगता है कि पुलिस के पास केवल एक तरफ के कान हैं।”

इंदौर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संतोष दुधी ने कहा कि उनके अधिकारियों ने एक युवती की शिकायत पर कार्रवाई की थी, जिसने अपने माता-पिता और चर्च के नेताओं पर उस पर ईसाई धर्म थोपने का आरोप लगाया था।

जब इंदौर के बाहरी इलाके में उसके घर पर पता लगाया गया, तो उस युवती शालिनी कौशल ने पुलिस के इस दावे से इनकार कर दिया। उसने बताया कि “मैंने कभी नहीं कहा कि मेरे माता-पिता जबरन मेरा धर्म-परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे थे।”

ईसाई नेताओं का कहना है कि आरोपों का गढ़ा जाना आम बात है। मानवाधिकार समूहों का अनुमान है कि इस साल 100 से अधिक ईसाइयों को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। ईसाइयों के सहयोगी बहुत कम हैं। धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करके आबादी के 80 प्रतिशत हिंदुओं का बहुमत हासिल करने के लिए धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून भाजपा की रणनीति का प्रिय हिस्सा है। जबकि शीर्ष भाजपा पदाधिकारी किसी भी व्यापक ईसाई-विरोधी पूर्वाग्रह से इनकार करते हैं, फिर भी उनमें से कुछ लोग धर्मप्रचार की गतिविधियों के बारे में काफी संदेह रखते हैं।

मोदी की पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि “अगर कोई धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो कोई बात नहीं, लेकिन ऐसा क्यों है कि केवल सबसे अनपढ़ और गरीब ही धर्मांतरित होते हैं? क्या आप मुझे बता सकते हैं कि जो व्यक्ति यीशु का ‘य’ भी नहीं लिख सकता, वह उस पर विश्वास कैसे करने लगता है?”

कम से कम एक दर्जन भारतीय राज्यों, जिनकी कुल आबादी 70 करोड़ (देश की आधी आबादी) से अधिक है, उन्होंने या तो धर्मांतरण-विरोधी कानून पारित कर दिये हैं, या अदालती आदेश जारी करा लिये हैं या किसी न किसी तरह के अन्य उपाय अपना रहे हैं। इन उपायों का इस्तेमाल कुछ हद तक मुसलमानों को सताने के लिए भी किया जा रहा है। कई दर्जन मुसलमानों को इस आरोप में जेल में डाल दिया गया है कि उन्होंने अपनी पत्नियों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया।

नए कानून स्पष्ट रूप से ईसाई धर्म या इस्लाम का उल्लेख नहीं करते हैं, लेकिन वे स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने वाले लोगों को निशाना बनाने के लिए तैयार किये गए हैं, जबकि इनमें उन लोगों को छूट दी गई है जो हिंदू धर्म में “फिर से वापस” आना चाहते हैं। ये क़ानून बल, छल या प्रलोभन के आधार पर किए गए धर्म-परिवर्तनों को प्रतिबंधित करते हैं। कुछ राज्यों का आदेश है कि जो कोई भी धर्म-परिवर्तन करना चाहता है, उसे 60 दिन पहले सरकारी अनुमति के लिए आवेदन करना होगा। ये कानून अक्सर इतने अस्पष्ट रूप से लिखे गये हैं कि इनके आधार पर तो किसी भी चर्च की लगभग सभी गतिविधि को अवैध माना जा सकता है।

बिहार के एक गांव में ईसाईकरण का एक दृश्य।

एक ईसाई व्यक्ति, जो सुरक्षा कारणों से अपनी पहचान नहीं बताना चाहता था, बताता है कि “आपको किसी को आइसक्रीम देने के लिए भी जेल में डाल दिया जा सकता है।”

यह स्थिति काफी पादरियों के लिए खतरनाक बन गयी है। उत्तर प्रदेश में एक ईसाई धर्म-प्रचारक बलराम बताते हैं कि उन्हें और एक रिश्तेदार को अगस्त 2020 में अवैध धर्मांतरण के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। पादरी बलराम ने कहा कि गिरफ्तारी के समय वे सिर्फ चाय पी रहे थे।

मध्य प्रदेश के एक गांव में हमले के बाद ध्वस्त हुई छत।

उन्होंने कहा कि पुलिस स्टेशन में अधिकारियों ने उन्हे कमर में घूंसा मारा, उन पर डंडे बरसाये और उनके बाल उखाड़ लिये। वे बताते हैं कि एक अधिकारी ने धातु की भारी चूड़ी पहनी थी जिससे उनके रिश्तेदार के सिर पर वार करता रहा। बलराम बताते हैं कि “उनके सिर में अभी भी दर्द होता है।”

इस बारे में पूछने पर एक पुलिस अधिकारी सुनील कुमार सिंह ने मामले की पुष्टि तो किया लेकिन उन्होंने पादरी बलराम पर ही दोष मढ़ा और उनके साथ किसी भी दुर्व्यवहार से इनकार किया। सुनील सिंह का कहना था कि “वह धर्मांतरण कर रहा था और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रहा था।”

अन्य प्रचारकों को और भी बदतर हालात का सामना करना पड़ा है। एक छोटे उत्तरी क़स्बे संगोही में एक पेंटेकोस्टल पादरी को जून में पीट कर मार डाला गया था। पुलिस अधिकारियों ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वह पादरी पर क्रोधित हो गया था और उसने पादरी पर प्रेम प्रसंग होने का आरोप लगाया था। पादरी के परिवार ने इसे सख्ती से खारिज कर दिया।

अभिषेक कुमार। हमलों से त्रस्त।

उनकी पत्नी सुनीता रानी का कहना है कि “यह एक सुनियोजित हत्या थी। इस गांव में हर कोई हमारे खिलाफ है।”

‘मेरी वजह से हर कोई तुमसे नफरत करेगा’

मध्य प्रदेश के पेंटेकोस्टल प्रचारक विनोद पाटिल हार नहीं मान रहे हैं। जिस तरह हिंदू चरमपंथी मानते हैं कि हिंदू धर्म से धर्म-परिवर्तन को रोकना उनका कर्तव्य है, पादरी पाटिल का मानना है कि उनका धार्मिक कर्तव्य ईसाई धर्म का प्रसार करना है। वे इन दिनों एक गुप्तचर की तरह काम करते हैं।

वह अपना घर चुपचाप छोड़ देते हैं और कभी भी समूह में नहीं रहते। वह होंडा की एक छोटी मोटरसाइकिल पर चलते हैं और छोटे क़स्बों और गेहूं के खुरदुरे खेतों से होकर चलते रहते हैं, बाइबिल उनकी जैकेट के अंदर छिपी रहती है। मोटरसाइकिल के दर्पणों में वे लगातार पीछे देखते रहते हैं कि कहीं उनका पीछा तो नहीं किया जा रहा है।

वे कहते हैं कि “संविधान हमें खुले तौर पर प्रचार करने का अधिकार देता है, फिर भी, आपको सावधान रहना होगा।”

हिंदू चरमपंथियों ने पादरी पाटिल को चेतावनी दी है कि अगर वे उन्हें उपदेश देते हुए पकड़ेंगे तो उन्हें मार डालेंगे। इसलिए पिछले साल उन्होंने अपने ‘लिविंग होप पेंटेकोस्टल चर्च’, जिसके 400 सदस्य थे, उसे बंद कर दिया और अब वे आमतौर पर रात में छोटी गुप्त बैठकों के माध्यम से अपना काम करते हैं।

वह जानते हैं कि निगरानी करने वाले उनकी तलाश कर रहे हैं। लेकिन वह जोर देकर कहते हैं कि वह कानून का पालन कर रहे हैं और उनकी बैठकों में आने वाला हर व्यक्ति स्वेच्छा से आता है।

मैंने कभी नहीं कहा कि मेरे माता-पिता ने मुझे जबरन धर्म बदलने के लिए मजबूर किया- शालिनी कौशल।

वे बताते हैं कि “इससे पहले, जब हमें कोई समस्या होती थी, तो हम पुलिस के पास जाते थे, लेकिन अब सरकार भी  ईसाई-विरोधियों के साथ है। ईसाई-विरोधी लोग चारों तरफ हैं।”

गोपनीयता काफी भारतीय ईसाइयों को आपस में जोड़ती है। वे यीशु की शिक्षाओं में गहरा विश्वास रखते हैं। पादरी पाटिल बताते हैं कि “आपको यह ऊर्जा ईशु के नाम के बारे में सोचने से मिलती है।” लेकिन वे यह भी जानते हैं कि सार्वजनिक रूप से अपनी मान्यताओं को व्यक्त करना जोखिम भरा है।

बिहार के गरीब राज्य में एक खेत पर काम करने वाली निचली जाति की महिला मुत्तुर देवी ने दो साल पहले ईसाई धर्म अपनाया था। फिर भी, हर सुबह, वह अपने माथे पर एक बिंदी चिपकाती हैं, और सिंदूर लगाती हैं। वे हिंदू धर्म छोड़ने की बात छिपाये रखने के लिए ऊपरी तौर पर इन हिंदू प्रतीकों का सहारा लोती हैं।

अपनी बिंदी को छूते हुए वे बताती हैं कि “अगर मैं इसे उतार दूँ तो पूरा गाँव मुझे परेशान करेगा।”

पिछले जाड़े की एक सर्द रात में, पादरी पाटिल एक अज्ञात फार्महाउस में एक गुप्त प्रार्थना सत्र के लिए गए। उन्होंने जल्दी से अंदर कदम रखा। भेड़ की तरह महकने वाले धूल भरे कालीन पर, दो दर्जन पेंटेकोस्टल ईसाई उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वहां पर ज्यादातर निचली जातियों के किसान थे। जब भी कोई कुत्ता बाहर भौंकता था, तो एक महिला इधर-उधर देखते हुए फुसफुसाती थी, “कहीं कोई है तो नहीं?”

पादरी पाटिल ने महिला को आश्वस्त किया कि वह कुछ भी गलत नहीं कर रही है और भगवान सब कुछ देख रहे हैं। उन्होंने अपनी पुरानी हिंदी भाषा की बाइबिल को खोला और ल्यूक 21 पर अपनी उंगली टिका दी, जो उनके इस संकटग्रस्त समूह के लिए एक रास्ता दिखाने वाला था। उन्होंने कांपती आवाज में इबारत पर अपनी उंगलियां सरकाते हुए पढ़ा, “वे तुम्हें पकड़ लेंगे और तुम्हें सताएंगे,… तुम्हें माता-पिता, भाइयों, बहनों, रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा भी धोखा दिया जाएगा, …वे तुम में से कइयों को मार डालेंगे। मेरी वजह से हर कोई तुमसे नफरत करेगा।”

जमीन पर बैठे और सो रहे अपने बच्चों को गोद में संभाले किसान उन्हें ध्यान से देख रहे थे।

उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए खिड़कियों की भी जाँच की कि कोई आ तो नहीं रहा है!

(न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित इस लेख का हिंदी अनुवाद शैलेश ने किया है।)

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