Saturday, April 20, 2024

हम भारत के लोगों का पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य

लगभग दो सदियों की अंग्रेजों की गुलामी के बाद भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी तो अवश्य मिली मगर यह देश सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन लोकतांत्रिक गणराज्य 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान लागू करने के बाद ही बन सका था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी  पूरे 29 महीनों तक भारत पर अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी 1935 की राज व्यवस्था चलती रही और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार साम्राज्ञी की पदवी तो समाप्त हो गयी थी मगर 26 जनवरी 1950 तक उनके प्रतिनिधि के रूप में गवर्नर जनरल भारत का भी राष्ट्र प्रमुख बना रहा। इसलिए हम कह सकते हैं कि ‘‘हम भारत के लोगों का सम्प्रभुता सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य’’ की जीवन यात्रा शुरू हुई। यह बात दीगर है कि कुछ लोग अपनी संकीर्ण साम्प्रदायिक सोच से इस ‘‘हम’’ की भावना को खण्डित करने पर तुले हुये हैं।

आजादी के बाद भी अंग्रेजों की राज व्यवस्था चली

सदियों के संघर्ष के बाद जब 15 अगस्त 1947 को देश ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आजाद तो हुआ मगर भारत के पास राजकाज चलाने के लिये अपना कोई संविधान नहीं था। इतने विशाल और विविधताओं से भरपूर देश की शासन व्यवस्था चलाने के लिये रातोंरात एक संविधान नहीं बनाया जा सकता था। इसलिये ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा 5 जुलाई 1947 को पारित और राजशाही द्वारा 18 जुलाई, 1947 को अनुमोदित ‘भारत स्वतंत्रता अधिनियम’ में नया संविधान बनने और उसके लागू होने तक ‘भारत सरकार अधिनियम 1935  या भारत राजव्यवस्था अधिनियम 1935 के अनुसार शासन व्यवस्था चलाये रखने का प्रावधान किया गया था। सन् 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गयी। प्रांतीय विषयों पर विधि बनाने का अधिकार प्रांतों को दिया गया था। केन्द्रीय सरकार का कार्य एक प्रकार से संघात्मक होता था। प्रांत की कार्यपालिका शक्ति गवर्नर में निहित थी तथा वह इसका प्रयोग ब्रिटिश सरकार की तरफ से करता था। भारत स्वतंत्रता अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नये राष्ट्र का शासन भले ही भारतीय नेता जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया गया था और साम्राज्ञी की पदवी समाप्त कर दी गयी थी लेकिन गवर्नर जनरल का पद जारी रखा गया जो कि ब्रिटिश राजशाही या साम्राज्ञी का ही प्रतिनिधि होता था। इसलिए कहा जा सकता है कि देश के आजाद होने के बाद भी 29 महीनों तक भारत पर अंग्रेजों का ही शासन विधान चलता रहा।

अनुच्छेद 395 से मिली उपनिवेशवाद से पूर्ण मुक्ति

26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान जब लागू हुआ तो उसके अनुच्छेद 395 के प्रावधानों तहत ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित भारत सरकार अधिनियम 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 का निरसन या उन्हें समाप्त कर दिया गया। इसके साथ ही गवर्नर जनरल की जगह राष्ट्रपति ने ले ली। इसी तरह पाकिस्तान के संविधान की धरा 221 के तहत भारत सरकार अधिनियम 1935 समाप्त कर दिया गया। देखा जाय तो इसी के बाद भारत एक सम्प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र बन पाया। क्योंकि इसके बाद न तो ब्रिटिश संसद द्वारा बनाया गया कानून और ना ही साम्राज्ञी का प्रतिनिधि गवर्नर जनरल राष्ट्र का मुखिया रह गया था। भारत का संविधान दुनिया के सभी संविधानों में सबसे बड़ा होने के साथ ही हस्तलिखित संविधान है। हमारा संविधान 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भागों में बंटा हुआ है। इस संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। संविधान सभा द्वारा विश्व का सबसे बड़ा और सबसे लचीला हस्तलिखित संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ।

10 बज कर 18 मिनट पर इंडिया हुआ भारत

26 जनवरी 1950 की सुबह ठीक 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करते हुये भारत के अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) के दरबार हॉल में आयोजित एक भव्य समारोह में अपने अंतिम संबोधन में कहा था कि- ‘‘और जबकि उक्त संविधान द्वारा घोषित किया गया है कि भारत एक राज्यों का संघ होगा जिसमें भारतीय राज्य एवं मुख्य आयुक्तों के अधीन प्रान्त शामिल होंगे।’’

‘‘एतद् द्वारा घोषित किया जाता है कि 26 जनवरी 1950 को तथा इस तिथि से इंडिया जो कि भारत है, सम्प्रभुता सम्पन्न, लोकतांत्रिक गणतंत्र होगा और संघ तथा इसकी राज्य इकाइयां उक्त संविधान के प्रावधानों के अनुसार सरकार और प्रशासन की सभी शक्तियों और दायित्वों का प्रयोग करेंगी।’’

गवर्ननर जनरल की जगह राष्ट्रपति

देश के इतिहास के उस अभूतपूर्व क्षण में गवर्नर जनरल की घोषणा के ठीक 6 मिनट बाद 10बज कर 24 मिनट पर स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने हिन्दी में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो एवं कई देशों के राजनयिक सहित 500 से अधिक अतिथि इस ऐतिहासिक घड़ी के गवाह बने।

चार शेर मुख वाला अशोक स्तम्भ बना राजचिन्ह्न

26 जनवरी को भारत का अपना संविधान लागू होने के साथ ही उसी दिन दरबार हाल में पहली बार राष्ट्रीय प्रतीक (चार मुख वाले शेर अशोक स्तम्भ) को भारत का राज चिन्ह अपनाया गया और उस स्थान पर रखा गया जहां ब्रिटिश वायसराय बैठा करते थे। पहली बार ही वहां सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। यह चिन्ह भारत में वाराणसी सारनाथ संग्रहालय में संरक्षित अशोक लाट से भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया। यद्यपि अशोक के राजचिन्ह में ‘‘सत्यमेव जयते’’ नहीं था जिसे राजचिन्ह पर नीति वाक्य के रूप में स्थान दिया गया। यह वाक्य भारत का आदर्श वाक्य बना। यह मुण्डक उपनिषद से लिया गया था जिसका हिन्दी अनुवाद 1911 में आबिद अली द्वारा किया गया था और मदन मोहन मालवीय द्वारा इसे प्रचारित किया गया था।

पहले राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी

वर्तमान में गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रघ्वज फहराने के बाद राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। लेकिन पहली बार पहले राष्ट्रपति को पहले गणतंत्र दिवस समारोह में 31 तोपों की सलामी दी गयी। चूंकि इससे पूर्व राष्ट्र प्रमुख के रूप में वायसरॉय और गवर्नर जनरल को 31 तोपों की सलामी दी जाती थी और राष्ट्रपति ने गवर्नर जनरल का स्थान लिया था इसलिये वह भी 31 तोपों की सलामी के हकदार हो गये थे। आजादी के बाद भी कुछ देशी रियासतों को प्रोटोकॉल के तहत 21 तोपों तक की सलामी का प्रावधान था, इसलिये राष्ट्रपति को उनसे ऊपर का प्रोटोकाल देने के लिये 31 तोपों की सलामी जारी रही। लेकिन 1971 में जब इंदिरा गांधी के शासन में देशी रियासतों के पूर्व शासकों के प्रीविपर्स जैसे विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गये तो उनसे तोपों की सलामी का प्रोटोकॉल भी छिन गया। तब से राष्ट्रपति को 31 के बजाय 21 तोपों की सलामी दी जाने लगी।

न्याय, स्वतंत्रता, समता और धर्मनिरपेक्षता का संकल्प

26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के पहले संबोधन के ये अंश आज के संदर्भ में और भी अधिक समीचीन हो गये हैं। देश में धर्म, जाति और भाषा के नाम पर वोटों का धुव्रीकरण करने के साथ ही जबरन हर एक नागरिक को हिन्दू बताया जा रहा है।

इस अवसर पर प्रथम राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा था कि, ..‘‘हमारे गणराज्य का उद्देश्य है इसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समता प्राप्त करना तथा इस विशाल देश की सीमाओं में निवास करने वाले लोगों में भ्रातृ-भाव बढ़ाना, जो विभिन्न धर्मों को मानते हैं, अनेक भाषाएं बोलते हैं और अपने विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। हम सभी देशों के साथ मित्रता करके रहना चाहते हैं। हमारे भावी कार्यक्रमों में रोग, गरीबी और अज्ञान का उन्मूलन शामिल है।’’ दरअसल यही मूल मंत्र लेकर भारत का सम्प्रभु, समाजवादी, पन्थ निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र ने अपनी जीवन यात्रा शुरू की थी।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और देहरादून में रहते हैं।)

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