Friday, March 29, 2024

आरजेडी सांसद मनोज झा का नेहरू जी को पत्र

मैं इन बातों को लिखने की सोच रहा हूं क्योंकि हर दिन आपके और आपके प्रिय विचारों के खिलाफ मिथ्या अभियान चलाए जाते हुए देखता हूं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि जो कोई भी भारत को समझना चाहता है उसे इस काम को खुले और वैज्ञानिक दिमाग से करना चाहिए, जैसा की आपने किया। डिस्कवरी ऑफ इंडिया में, आपने लिखा है: “मैं हमेशा यह मानता रहा हूं कि यह उसके ( भारत के) विस्तृत- भूभाग नहीं थे, जो मेरी पकड़ से छूट गए, यहां तक कि यह चीज उसकी विविधता से भी नहीं थी, बल्कि आत्मा की कुछ ऐसी गहराई थी, जिसकी थाह मैं नहीं ले पाया, हालांकि मुझे कभी-कभार इसकी मनमोहनक झलक मिलती थी।

वह किसी प्राचीन पालिम्प्सेस्ट ( शिलालेख) की तरह थी, जिस पर विचार और श्रद्धा की परत दर परत अंकित की गई थी, और फिर भी कोई भी उत्तरवर्ती परत पूरी तरह से छिपी या मिटाई नहीं गई थी, जो पहले लिखी गई थी।” मुझे उम्मीद है कि आज जो छोटे कद के लोग आप पर कीचड़ उछालते हैं, वे भारत की बुनियादी सुंदरता को समझते हैं और कैसे इसने सफलतापूर्वक चुनौतियों का सामना किया है और बेहतरी के लिए विकसित हुआ है, क्योंकि प्रत्येक परत ने इसकी आंतरिक सुंदरता में इजाफा किया है।

आपकी पीढ़ी के लिए और अब भी लाखों लोगों के लिए, भारत केवल एक भौतिक इकाई नहीं रहा है, बल्कि इतिहास की लंबी यात्रा के माध्यम से लोगों और समुदायों के परस्पर जुड़े हुए जीवन रहे हैं। मुझे सच में उम्मीद है कि आज का नेतृत्व भारत की बुनावट बनाने में काम करने वाली सोच और विश्वास की प्रत्येक परत का सम्मान करना सीखेगा।

आप और आपके साथियों की समझ थी कि आभिजात्य वर्ग और आम जनता के बीच विभाजन हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन से अधिक बुनियादी है; इसलिए बापू का राम राज्य ऐसे विभाजनों से मुक्त राष्ट्र का सपना था। यह निश्चित रूप से आज का रामराज्य नहीं था, जिसकी आज के नेता बात करते हैं।

1952 में हमारा पहला आम चुनाव विभाजन और बापू की हत्या के साए में हुआ था। फिर भी, हमने चुनावी प्रक्रिया में सांप्रदायिक बयानबाजी या खुलेआम धार्मिक ध्रुवीकरण की बात कहने की किसी को अनुमति नहीं दी। आपने 1950 में सभी मुख्यमंत्रियों को संदेश दिया था कि “जब तक मैं प्रधान मंत्री हूं, मैं अपनी नीति में साम्प्रदायिकता को आकार देने की अनुमति नहीं दूंगा, न ही मैं बर्बर और असभ्य व्यवहार को सहन करने के लिए तैयार हूं।”

प्रारंभिक वर्षों की महान मानवीय त्रासदियों के बावजूद, हमने सामूहिक रूप से यह सुनिश्चित किया कि भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त करे। पाकिस्तान के जन्म के बाद, हमें यह सुनिश्चित करना था कि यह राष्ट्र हिंदू पाकिस्तान न बने। हम जानते थे कि इस तरह की प्रतिक्रियावादी भावना के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव सहिष्णुता को बढ़ावा देने में है, और हर क्षेत्र में समानता का वादा करने के अलावा, प्रत्येक धार्मिक समूह और उसकी संस्कृति की विशिष्टता की रक्षा के लिए राज्य को प्रतिबद्ध करना है।

हम एक गरीब राष्ट्र थे, लेकिन एक-दूसरे में घुली-मिली मिश्रित संस्कृति के धनी थे; हमने इसे संरक्षित किया और बढ़ावा दिया। हमने यह सुनिश्चित किया कि दुनिया इस बात पर ध्यान दे कि हम किस तरह से इस पर गर्व करते हैं और एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण में हमारे प्रयासों पर ध्यान दें, जो किसी विशेष धार्मिक पहचान को केंद्र में नहीं रखती है। आपको यह देखकर दुख हो रहा होगा कि लगभग सात दशकों के बाद आम नागरिकों के जीवन और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ा जा रहा है, बल्कि ऐसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है जो लोगों और समुदायों को स्पष्ट रूप से विभाजित करते हैं।

सबसे अधिक ध्रुवीकरण वाला चेहरा सबसे पसंदीदा चेहरा प्रतीत होता है। कुछ नेता आज यह स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि सांप्रदायिक बयानबाजी से उन्हें वोट मिल सकते हैं, लेकिन यह भारत के सार को नष्ट कर देगा जो कि इसके धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक प्रकृति का अविभाज्य हिस्सा है। त्रिपुरा में हाल की हिंसा जैसी घटनाएं इस बात का संकेतक हैं कि अल्पसंख्यकों को सांप्रदायिक निशाना बनाने से भारत की आत्मा को कितना नुकसान हुआ है।

आप पहले इस महान देश के प्रधानमंत्री और फिर एक पार्टी के नेता थे। और इतिहास आज भी आपको प्यार से याद करता है। समकालीन राजनेताओं और नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास उनके साथ न्याय करने में कठोरता से ईमानदारी बरतेगा, यह चीज उन लोगों के खिलाफ है जो आज उनके हां में हां मिलाने के दबाव में काम कर रहे हैं। नागरिकों, प्रदर्शनकारियों और असहमत लोगों को वर्षों तक हिरासत में रखे हुए, देखकर आप बहुत व्यथित होंगे। उनकी स्वतंत्रता को नकारने और उनके अनुल्लंघनीय मानवाधिकारों को छीनने के लिए राज्य की इस तरह की कठोर कार्रवाई को यूएपीए जैसे कानूनों के उपयोग से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

ये कानून अनैतिक हैं, यह इस तथ्य से साबित होता है कि इनका इस्तेमाल भारतीय समाज के सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्गों के रक्षकों के खिलाफ किया जाता है। कार्यकर्ता, छात्र, पत्रकार, वकील – ये एक जीवंत समाज और राजनीति के निर्माण के लिए सबसे अच्छे कारक हैं। तुच्छ आरोपों पर उनकी निरंतर हिरासत एक अन्याय है जिसे इतिहास में सही ठहराना मुश्किल होगा, भले ही आज की क्रूर एवं निरंकुश शक्ति उन्हें जेलों में रखे। आम नागरिकों के भीतर के गहरे आक्रोश से पैदा हुए गुस्से को दबाने के लिए मीडिया का शोर गणतंत्र की नींव पर प्रहार करता है।

जो लोग आज आपको बदनाम करते हैं, उन्हें खुद इस बात पर विचार करना चाहिए कि उन लोगों के लिए स्वतंत्रता और लोकतंत्र का क्या मतलब है, जिन्होंने अपने परिवार को कोविड कुप्रबंधन के चलते खो दिया है, जो एक विशेष धर्म से संबंधित होने के कारण मारे गए हैं, जो गरीबी में सोते हैं, और जो लोग प्रभुत्व में विश्वास नहीं करते हैं। विचारधारा और अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए पर्याप्त साहसी हैं? और हमारे किसानों के लिए आजादी का क्या मतलब है जो वर्तमान सरकार का उसी दिन से विरोध कर रहे हैं, जब से बिना उनसे सलाह लिए कृषि कानूनों का बुलडोजर उन पर चला दिया गया है?

विरोधी आवाजों वाली एक जवाबदेह संसद हमारे देश के प्रकृति को दर्शाती है। अपने पूरे कार्यकाल में आपने यह सुनिश्चित किया कि लोकतंत्र को परिभाषित करने वाली प्रक्रियाएं और संस्थाएं मजबूत जमीन पर टिकी हों। संसद में प्रचंड बहुमत होने के बावजूद, आपने कभी विपक्ष को दरकिनार नहीं किया या असहमति की आवाजों का उपहास नहीं उड़ाया।

सब कुछ के बावजूद, मैं खुद को इसके बारे में निराशावादी महसूस करने की अनुमति नहीं देता। मुझे पता है कि भारत जल्द ही उस खड्ड से ऊपर उठेगा, जिसमें उसे धकेला जा रहा है। उसके पास देशभक्तों की कमी नहीं है, जो संकट में हैं, उसे बहुत प्यार करते हैं और पहले से ही इस देश के लिए अपने प्यार के चलते एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं।

जैसा कि हम आपके जन्मदिन से पहले आपको याद करते हैं, हम ऐसा इस तरह से और इसलिए करते हैं कि आपको एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाना पसंद होगा: “यह एक ऐसा व्यक्ति ( जवाहर लाल नेहरू) था, जिसने अपने पूरे मन और दिल से भारत और भारतीय लोगों से प्यार किया। और बदले में वे लोग उस पर अपना प्रेम न्यौछावर करने लगे, और उन्होंने उसे बड़े पैमाने पर और बहुत अधिक मात्रा में अपना प्रेम दिया।”

(लेखक राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। यह लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। इसका हिंदी अनुवाद डॉ. सिद्धार्थ ने किया है।)

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