Friday, April 19, 2024

चीन्ह-चीन्ह कर न्यायः एमपी मामले में तुरंत फैसला, मणिपुर में विलंबित

योर ऑनर क्या आपको अंदाज़ा है कि आज न्यायपालिका को किस दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है, जहां उस पर चीन्ह-चीन्ह के न्याय देने के आरोप लग रहे हैं। एक ओर राज्यों के तमाम मामलों में आप फरमान सुना देते हैं कि पहले हाईकोर्ट में जाए, जैसे दिल्ली हिंसा पर आपने दिल्ली हाईकोर्ट जाने को कहा। फिर वहां अप्रैल की तारीख लग गई।

आपके पास गुहार लगी तो आपने उसे फिर से दिल्ली हाईकोर्ट भेज दिया और तुरंत सुनने का कहा, लेकिन उस पर अभी टालमटोल चल रहा है और अप्रैल में भी सुनवाई हो जाएगी, ऐसा दिख नहीं रहा है। मध्य प्रदेश के मामले को भी आप एमपी हाईकोर्ट भेज सकते थे, पर भाजपा के सत्ता का मामला था और अगले दिन डेट लग गई फिर अगले दिन निर्णय भी सुना दिया गया। 

आपने भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को त्वरित न्याय देकर न्याय में विलंब अन्याय है का अनुपालन करके  बहुत अच्छा दृष्टान्त देश के सामने रखा, लेकिन योर ऑनर मणिपुर विधानसभा के वर्ष 2017 के दलबदल मामले में एक मंत्री को बर्खास्त करने में तीन साल का समय लिया जाना न्याय में विलम्ब है या नहीं? सवाल उठ रहा है कि क्या यह भाजपा से जुड़ा मामला था, इसलिए इतना विलंब हुआ?

पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में उच्चतम न्यायालय ने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य के कैबिनेट मंत्री टीएच श्याम कुमार को बर्खास्त कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने दल-बदल कानून के तहत विधायक को अयोग्य ठहराते हुए उनके विधानसभा में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत हासिल विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मंत्री के खिलाफ यह कार्रवाई की है। पीठ ने अब 28 मार्च को अगली सुनवाई तय की है।

मणिपुर में 2017 में 60 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस पार्टी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और भाजपा 21 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर आई थी। कांग्रेस के नौ विधायक चुनाव के बाद पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए। श्यामकुमार भी उनमें से एक थे, जिन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया।

इसके बाद अप्रैल 2017 में विधानसभा अध्यक्ष के पास कई अर्जियां दायर करते हुए दलबदल रोधी कानून के तहत श्यामकुमार को अयोग्य ठहराने की मांग की गई। मणिपुर के स्पीकर की तरफ से तय समय से ज्यादा बीत जाने के बाद भी कोई जवाब नहीं आया, तब उच्चतम न्यायालय ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर फैसला सुनाया।

जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की एक पीठ की पीठ ने अदालत के आदेश के बावजूद मणिपुर के स्पीकर द्वारा अयोग्यता याचिका पर फैसला न लेने से नाराज होकर ये फैसला दिया। पीठ ने कहा कि ऐसे हालात में अदालत संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का आह्वान कर ये फैसला ले रही है।

उच्चतम न्यायालय के पास कैबिनेट मंत्री को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेषाधिकार हासिल है। अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय का ऐसा प्रावधान है, जिसके माध्यम से जनता को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन कर सकता है।

दरअसल 21 जनवरी को एक अहम फैसले में उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर स्पीकर को कहा था कि वो अयोग्यता पर चार हफ्ते में फैसला लें। पीठ ने कहा था कि अगर स्पीकर चार हफ्ते में फैसला नहीं लेते हैं तो याचिकाकर्ता फिर उच्चतम न्यायालय आ सकते हैं। दरअसल कांग्रेसी विधायकों फजुर रहीम और के मेघचंद्र ने मंत्री को अयोग्य ठहराए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।

पीठ ने सासंदों व विधायकों की अयोग्यता पर फैसला करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के गठन की भी वकालत की। जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने फैसले में कहा था कि संसद को फिर से विचार करना चाहिए कि अयोग्यता पर फैसला स्पीकर करे जो कि एक पार्टी से संबंधित होता है, या फिर इसके लिए स्वतंत्र जांच का मैकेनिज्म बनाया जाए।

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पीठ ने कहा, “ये समय है कि संसद इस पर पुनर्विचार करे कि सदस्यों की अयोग्यता का काम स्पीकर के पास रहे, जो एक पार्टी से संबंध रखता है या फिर लोकतंत्र का कार्य समुचित चलता रहे, इसके लिए अयोग्यता पर तुरंत फैसला लेने के लिए रिटायर्ड जजों या अन्य का ट्रिब्यूनल जैसा कोई स्वतंत्र निकाय हो।

दूसरी और त्वरित न्याय के तहत मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अन्य भाजपा नेताओं की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को बहुमत साबित करने के लिए राज्य विधानसभा में शुक्रवार शाम पांच बजे बहुमत परीक्षण आयोजित करना होगा

पीठ ने कहा कि परीक्षण में मतों की गिनती हाथ खड़े करके की जानी चाहिए और कार्रवाई की वीडियोग्राफी भी होनी चाहिए। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि यदि 16 बागी विधायक बहुमत परीक्षण में शामिल होना चाहते हैं, तो कर्नाटक और एमपी पुलिस महानिदेशकों को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

उल्‍लेखनीय है मौजूदा याचिका पर बुधवार को पूरे दिन सुनवाई हुई थी। गुरुवार को भी पूरे दिन की सुनवाई के बाद पीठ ने लगभग 6.15 बजे आदेश पारित कर दिया। सुनवाई के दूसरे दिन गुरुवार को पीठ ने क्रमशः मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं डॉ. एएम सिंघवी और कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं।

उनकी दलीलों में मुख्य मुद्दा यह था कि जब विधानसभा सत्र चल रहा हो तो न्यायालय फ्लोर टेस्ट आयोजित करने का निर्देश नहीं दे सकता। अदालत ने पिछले मामलों में भी ऐसा आदेश नहीं दिया है।

कपिल सिब्‍बल ने कहा कि जब सदन नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल को सत्र बुलाने की शक्ति होती है। यदि सरकार बहुमत खो चुकी हो तो तो सदन को बुलाने के लिए एक संवैधानिक जनादेश होना चाहिए। ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सत्र चल रहा हो और राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण का आदेश दिया हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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