Friday, April 26, 2024

तीन साल बाद जेल से रिहा हुईं एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज

भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद जाति हिंसा मामले में तीन साल और तीन महीने पहले गिरफ्तार की गईं वकील और एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज गुरुवार को मुंबई की भायकला महिला जेल से रिहा हो गईं।मशहूर वकील और एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज को तीन साल पहले एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था।उनके साथ ही 16 अन्य लोग भी गिरफ्तार किए गए थे।तीन साल और तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रखने के बाद गुरुवार को उन्हें महाराष्ट्र की भायकला जेल से रिहा कर दिया गया।

दो दिन पहले उच्चतम न्यायालय के बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा 1 दिसंबर को दी गई डिफॉल्ट जमानत पर रोक लगाने की राष्ट्रीय जांच एजेंसी की याचिका को खारिज करने के बाद यह कदम उठाया गया। जस्टिस यूयू ललित ने एनआईए का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अमन लेखी की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद जांच एजेंसी की अपील खारिज कर दी।

भारद्वाज को 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था। विशेष एनआईए अदालत ने बुधवार भारद्वाज की जमानत की 15 शर्तें तय कीं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारद्वाज को एक दिसंबर को डिफॉल्ट जमानत देने के बाद उनकी जमानत शर्तों पर फैसला करने के लिए विशेष अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था।

विशेष अदालत ने उन्हें 50,000/- रुपये के निजी मुचलके और 50,000/- रुपये की नकद जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्हें इतनी ही समान राशि के एक या अधिक जमानतदार की व्यवस्था करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया।

उनकी जमानत की शर्तों में कहा हैं कि मुंबई अदालत के अधिकार क्षेत्र में रहें और विशेष अदालत की अनुमति के बिना शहर न छोड़ें। अदालत और एनआईए को तुरंत मुंबई में उनके निवास स्थान और उनके संपर्क नंबरों के बारे में सूचित किया जाएगा। भारद्वाज को अपने साथ रहने वाले अपने रिश्तेदारों के संपर्क नंबर भी देने होंगे।

दस्तावेजी प्रमाण के साथ कम से कम तीन रक्त संबंधियों की सूची उनके विस्तृत आवासीय और कार्यस्थल के पते के साथ प्रस्तुत करेंगे। जमानत पर रहने के दौरान उसके आवासीय पते में कोई बदलाव होने पर एनआईए और अदालत को सूचित किया जाएगा। कम से कम दो पहचान प्रमाण-पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड, बिजली बिल, मतदाता पहचान पत्र की प्रतियां जमा करें। 6. दस्तावेज जमा करने के बाद एनआईए उनके आवासीय पते का फिजिकल या वर्चुअल सत्यापन करेगी और अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट पेश करेगी।

मुकदमे की कार्यवाही में भाग लें और देखें कि उसकी अनुपस्थिति के कारण सुनवाई लंबी नहीं है। 8. हर पखवाड़े व्हाट्सएप वीडियो कॉल के जरिए नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करें। मीडिया के किसी भी रूप प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया पर अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही के संबंध में कोई बयान नहीं दिया जाएगा। उन गतिविधियों के समान किसी भी गतिविधि में शामिल न हों जिनके आधार पर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अपराधों के लिए वर्तमान एफआईआर दर्ज की गई थी।

सह-अभियुक्त या समान गतिविधियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल किसी अन्य व्यक्ति के साथ संचार स्थापित करने का प्रयास नहीं करेंगी या समान गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति को कोई अंतरराष्ट्रीय कॉल नहीं करेंगी। ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करेंगी जो न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही के प्रतिकूल हो। व्यक्तिगत रूप से या किसी के माध्यम से अभियोजन पक्ष के गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का कोई प्रयास नहीं करेंगी।  अदालत के अधिकार क्षेत्र में आरोपी के घर में आस-पास के रिश्तेदारों के अलावा आगंतुकों का कोई भी जमावड़ा नहीं होगा।  वह अपना पासपोर्ट सरेंडर करेगी और स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सुधा को जमानत दी थी।हालांकि अभी उनकी रिहाई नहीं हो पाई थी, क्योंकि उनकी जमानत की शर्तें तय नहीं हुई थीं।हाईकोर्ट ने जमानत की शर्तें तय करने के लिए आठ दिसंबर को सुधा भारद्वाज को राष्ट्रीय जांच एजेंसी की स्पेशल कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया था। इस दौरान जांच एजेंसी ने सुधा भारद्वाज की जमानत के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।इसे उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को खारिज कर दिया था। .

भारद्वाज मामले में उन 16 कार्यकर्ताओं में पहली आरोपी हैं, जिन्हें तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दी गई है। कवि और कार्यकर्ता वरवर राव फिलहाल चिकित्सीय आधार पर मिली जमानत पर हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में आठ अन्य सहआरोपियों- सुधीर धवले, वरवर राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा द्वारा दायर डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका खारिज कर दी थीं।स्टैन स्वामी की मृत्यु जेल में ही हो गई।

अब सवाल यह है कि भीमा कोरेगाँव यलगार परिषद मामले में बाकी बचे अर्बन नक्सलों का क्या होगा? वे कब तक जेल में रहेंगे? वे स्टैन स्वामी की तरह जेल में मर जाएंगे, सुधा भारद्वाज की तरह रिहा होंगे या उनके साथ कुछ और होगा?ये सवाल सिविल सोसाइटी ही नहीं, मानवाधिकारों का सम्मान करने वालों और न्यायपालिका पर भरोसा करने वालों को भी परेशान कर रहा होगा।

जनकवि व सामाजिक कार्यकर्ता वरवर राव अकेले व्यक्ति हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव मामले में स्वास्थ्य के आधार पर ज़मानत मिली, हालांकि एनआईए ने उनकी ज़मानत का भी विरोध किया था। राव 81 साल के हैं, कई तरह के रोगों से पीड़ित हैं, फ़िलहाल ज़मानत पर हैं और एक निजी अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं। बंबई हाई कोर्ट ने फ़रवरी में उन्हें स्वास्थ्य आधार पर छह महीने की सशर्त ज़मानत दी थी, जो अगस्त में ख़त्म हो जाएगी। उनके स्वास्थ्य में मामूली सुधार है, उन्हें अभी लंबे इलाज की ज़रूरत है, लेकिन अगस्त में उन्हें एक बार फिर जेल की कोठरी में लौटना पड़ सकता है। उनकी बेटी पावना राव ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि उन्हें एक बार फिर जेल लौटना पड़ सकता है जबकि वे अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए है ।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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