Friday, April 19, 2024

ज्ञानवापी में अब मुस्लिम वजू भी करेंगे,नमाज भी पढ़ेंगे और यदि शिवलिंग मिला है तो उसकी सुरक्षा डीएम करेंगे

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ज्ञानवापी में अब मुस्लिम वजू भी करेंगे,नमाज भी पढ़ेंगे और यदि शिवलिंग मिला है तो उसकी  सुरक्षा डीएम करेंगे। मस्जिद का सर्वे कराने के वाराणसी कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्देश जारी किया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि परिसर में जिस जगह शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखा जाए और लोगों को नमाज अदा करने से रोका न जाए।

पीठ ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि शिवलिंग के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए। मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से न रोका जाए और सिर्फ 20 लोगों के नमाज पढ़ने वाला ऑर्डर अब लागू नहीं होगा।

पीठ ने संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मस्जिद के अंदर जिस स्थान पर ‘शिव लिंग’ पाए जाने की सूचना है, वह सुरक्षित रहे। हालांकि पीठ ने आदेश दिया कि इससे मुसलमानों के नमाज अदा करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने आदेश दिया कि जिस क्षेत्र में शिवलिंग (आदेश में दर्शाया गया) पाया गया है, उसे संरक्षित किया जाए। उपरोक्त आदेश किसी भी तरह से नमाज़ या धार्मिक अनुष्ठानों के लिए मुसलमानों के मस्जिद में प्रवेश को प्रतिबंधित या बाधित नहीं करेगा।

पीठ ने यह स्पष्टीकरण देखने के बाद पारित किया कि अदालत के आदेश से ऐसा लगा कि वादी द्वारा दायर आवेदन को अनुमति दी गई है, हालांकि अदालत के द्वारा जारी विशिष्ट निर्देश स्पॉट को सील करने और सीलबंद स्थान की रक्षा करने और लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए था। हालांकि, वादी द्वारा दायर आवेदन में कई राहत की मांग की गई थी, जैसे कि नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में प्रवेश करने वाले मुसलमानों की संख्या को प्रतिबंधित करना। बेंच को लगा कि इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी से कहा कि हमने आवेदन में मांगी गई तीन राहतों को बाहर कर दिया है। हमने उस स्थान की रक्षा की है जहां शिवलिंग मिला और हमने स्पष्ट किया है कि यह मुसलमानों के अधिकारों को सीमित नहीं करेगा। मुझे लगता है कि यह एक संतुलन है। पीठ मामले की सुनवाई 19 मई को करेगी।

पीठ प्रबंधन समिति अंजुमान इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें कुछ हिंदू भक्तों द्वारा दायर एक मुकदमे पर मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी में एक दीवानी अदालत द्वारा पारित आदेशों को चुनौती दी गई थी।

वाराणसी कोर्ट ने सोमवार (16 मई) को सर्वेक्षण के दौरान अदालत द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर द्वारा यह बताने पर कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर एक शिव लिंग पाया गया है, परिसर में एक स्थान को सील करने का निर्देश दिया था। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष शुक्रवार को वर्तमान एसएलपी को तत्काल लिस्ट करने की मांग की गई थी। मस्जिद कमेटी के वकील, सीनियर एड्वोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने सर्वेक्षण के खिलाफ यथास्थिति के आदेश के लिए मौखिक अनुरोध किया था, तो सीजेआई ने कहा था कि उन्होंने अभी फाइलें नहीं देखी हैं। शुक्रवार शाम को इस मामले को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश पारित किया गया।

अहमदी ने दलील दिया कि कोर्ट कमिश्नर को पूरी तरह से पता था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहा है और इसे आज सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि कमिश्नर द्वारा सर्वेक्षण के बाद कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई, वादी द्वारा एक आवेदन दायर किया गया था कि कमिश्नर ने वज़ूखाने के पास एक शिवलिंग देखा। उन्होंने कहा कि यह बेहद अनुचित है क्योंकि कमिश्नर की रिपोर्ट को दायर किए जाने तक इसे गोपनीय रखा जाना चाहिए था। दुर्भाग्य से निचली अदालत आवेदन पर विचार करती है और उस क्षेत्र को चिन्हित करती है जिसे सील किया जाना है।

अहमदी ने तर्क दिया कि अब, कमिश्नर की कार्यवाही की आड़ में और वादी की मौखिक याचिका के अनुसार, जो उसने देखा, मस्जिद में प्रवेश को अदालत ने प्रतिबंधित कर दिया है और शिवलिंग के कथित स्थान को सील कर दिया है। उन्होंने कहा कि, कृपया देखें कि आदेश किस तरीके से पारित किया गया है। यह तब पारित किया गया, जब पक्षकार कमीशन के निष्पादन के लिए आए और किसके कहने पर? कमीशन की रिपोर्ट पर नहीं, वादी द्वारा एक आवेदन पर। क्या यह कुछ तत्व नहीं दिखते जिनमें निष्पक्षता की कमी है। उन्होंने बताया कि आवेदन पर दूसरी ओर कोई नोटिस नहीं तामील किया गया।

वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद 3 दिन में सर्वे का काम पूरा हुआ है। वहीं, तीसरे दिन सोमवार को सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर के अंदर शिवलिंग मिला। हिंदू पक्ष की अपील पर वाराणसी कोर्ट ने डीएम को आदेश दिया था कि जिस जगह शिवलिंग मिला है, उसे तत्काल सील कर दें। वहां पर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित किया जाए। कोर्ट ने डीएम, पुलिस कमिश्नर और सीआरपीएफ कमांडेंट को जगहों को संरक्षित और सुरक्षित रखने की व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदारी दी है। प्रशासन की टीम वहां पहुंची और 9 ताले लगाकर साक्ष्य को सील किया।

इस बीच ज्ञानवापी मामले में मंगलवार को वाराणसी कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को उनके पद से हटा दिया है। उन पर स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने आरोप लगाया था कि वे कमीशन की कार्यवाही में असहयोग कर रहे हैं, साथ ही उन्होंने प्राइवेट कैमरामैन रखा और लगातार मीडिया को बाइट देते रहे। यह कानूनन गलत है।

अदालत ने कहा कि कोर्ट कमिश्नर की जिम्मेदारी अहम होती है। अदालत ने स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह के प्रार्थना पत्र पर ही एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा को हटाया है। अब विशाल सिंह कोर्ट कमिश्नर रहेंगे। उधर, अदालत ने कोर्ट में कमीशन की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 2 दिन का वक्त दिया है। अब रिपोर्ट 19 मई को दाखिल हो सकती है।

अंजुमन इंतेज़ामिया मास्जिद प्रबंधन समिति ने कुछ हिंदू भक्तों की याचिका पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वाराणसी की एक अदालत द्वारा दिए गए सर्वेक्षण आदेश को चुनौती देते हुए इसे “सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को बिगाड़ने का प्रयास और उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन” बताया है। ज्ञानवापी मस्जिद- काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में सर्वेक्षण कार्य जारी रखने के वाराणसी कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट यह नोट करने में विफल रहा है कि परिसर के स्थानीय निरीक्षण की मांग करने वाले प्रतिवादियों के आवेदन को हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ द्वारा कार्यवाही पर रोक के रास्ते से बचने के लिए दायर किया गया था। इसके अलावा, यह सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का एक प्रयास है और उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के उल्लंघन में है।

याचिकाकर्ता ने इंगित किया है कि 1991 के एएसआई निरीक्षण के निर्देश में पारित आदेश दिनांक 08अप्रैल 2021 को चुनौती पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने 9 सितंबर 2021 को निरीक्षण आदेश और 1991 में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों द्वारा वाद पर रोक लगाई है: यह तर्क देते हुए कि दायर किया गया नाद उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों द्वारा वर्जित है, यह तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर इस मामले में आगे बढ़ने से पहले अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के चलते वादी की प्रार्थना खारिज करने की मांग को अदालत द्वारा सुना जाना चाहिए था।

इसलिए सिविल जज सीनियर डिवीजन, वाराणसी द्वारा 18 अप्रैल 2021 और 5 और 8 अप्रैल 2022 को निरीक्षण के संबंध में पारित तीनों आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर और उपासना स्थल अधिनियम की योजना के खिलाफ हैं। यह ध्यान दिया जा सकता है कि 18 अगस्त 2021 का आदेश एक पक्षीय आदेश था जिसमें संपत्ति का स्थानीय निरीक्षण करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन की अनुमति दी गई थी, 5 अप्रैल के आदेश में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए मस्जिद प्रबंधन की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था और 8 अप्रैल को आदेश में एडवोकेट मिश्रा को एडवोकेट कमिश्नर के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था। इन तीनों आदेशों को वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा एक विविध याचिका द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी, जहां हाईकोर्ट आक्षेपित आदेश पारित किया गया था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।

Related Articles

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।