Friday, March 29, 2024

केंद्र सुनिश्चित करे कि भूख से कोई न मरे, सुप्रीम कोर्ट ने 3 हफ्ते में प्लान बनाने का दिया आदेश

उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा है कि लोक कल्याणकारी राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि भूख से कोई न मरे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आखिरी मौका देते हुए कहा है कि वह तीन हफ्ते में कम्युनिटी किचन की योजना पर पैन इंडिया स्कीम बनाए। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में दाखिल किए गए हलफनामे पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि जिम्मेदार अधिकारी द्वारा हलफनामा दायर किया जाए।

देशभर में सामुदायिक रसोई योजना लागू करने को लेकर केंद्र के जवाबी हलफनामे से पीठ नाराज हो गई, क्योंकि यह हलफनामा यह एक अवर सचिव के स्तर के एक अधिकारी ने दायर किया था। इसमें प्रस्तावित योजना और उसे लागू करने को लेकर कोई ब्योरा नहीं था। पीठ ने कड़ी नाराजगी प्रकट करते हुए कहा कि यह हलफनामा इस बात का कोई संकेत नहीं देता कि केंद्र सरकार एक नीति बनाने पर विचार कर रही है। केंद्र सिर्फ सूचनाएं दे रहा है। इसमें यह नहीं बताया गया है कि केंद्र ने कितना फंड जुटाया है और क्या कदम उठाए जा रहे हैं। हम केंद्र से योजना का एक आर्दश मॉडल चाहते हैं। केंद्र राज्यों से पूछे, पुलिस की तरह मात्र सूचनाएं न जुटाए।

पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को यह भी कहा कि आप वो सूचनाएं नहीं मांग सकते, जो पहले से मौजूद हैं। क्या आप अपने हलफनामे के अंत में यह कह सकते हैं कि आप अब योजना पर विचार करेंगे। 17 पेज के हलफनामे में ऐसी कोई बात नहीं है। पीठ ने केंद्रीय उपभोक्ता, खाद्य व लोक प्रशासन मामलों के मंत्रालय के एक अंडर सेक्रेटरी द्वारा हलफनामा दायर करने पर नाराजगी प्रकट की। पीठ ने कहा कि केंद्र को यह अंतिम चेतावनी है। अंडर सेक्रेटरी ने जवाब दायर किया है, सचिव स्तर का अधिकारी जवाब दाखिल क्यों नहीं कर सकता? आपको संस्थानों का सम्मान करना होगा। हम कहते क्या हैं और आप जवाब क्या देते हैं? यह पहले भी कई बार चेताया जा चुका है।

पीठ ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह कम्युनिटी किचन के लिए पैन इंडिया स्कीम बनाने के लिए आखिरी मौका दे रहे हैं और तीन हफ्ते का वक्त दिया है ताकि इस दौरान राज्यों से उनका व्यू लेकर पैन इंडिया स्कीम तय करें। पीठ ने हलफनामा के कंटेंट पर भी नाराजगी जताई और कहा कि हलफनामा में सिर्फ यह बताया गया है कि राज्यों में क्या स्कीम चल रही है इस तरह की जानकारी पहले ही राज्यों द्वारा दी जा चुकी है।

पीठ के सामने केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल माधवी दिवान ने कहा कि 27 अक्टूबर के आदेश के बाद केंद्र ने राज्यों के साथ मीटिंग की और उनके व्यू आने के बाद हलफनामा दायर किया गया। चीफ जस्टिस ने कहा कि इस हलफनामे में यह कहीं नहीं लिखा है कि आप स्कीम बनाने पर विचार कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार एक यूनिफर्म मॉडल बनाए। आप पुलिस की तरह जानकारी न मांगें। आप वैसी जानकारी राज्यों से न मांगें जो पहले से कोर्ट को बताया जा चुका है। एक समग्र स्कीम हो और आप पता लगाएं कि कहां इसकी ज्यादा जरूरत है।

पीठ ने कहा कि एक यूनिफर्म स्कीम हो जो लागू किया जाए। आप अगर भूखे को खाना देना चाहते हैं तो इसके लिए किसी कानून में मनाही नहीं है। आप दो हफ्ते में मीटिंग करें। वेलफेयर स्टेट की ड्यूटी है कि कोई भूख से न मरे। 17 पेज के हलफनामे में स्कीम लागू करने के बारे में कोई बात नहीं है। हम आपको आखिरी मौका दे रहे है और चेता रहे हैं कि जिम्मेदार अधिकारी हलफनामा दायर करें। कई बार पहले भी इस बारे में हम कह चुके हैं। आपके भीतर उच्चतम न्यायालय  के प्रति आदर का भाव होना चाहिए। हम कहते कुछ हैं आप लिखते कुछ हैं। अटॉर्नी जनरल से पीठ ने पूछा कि आप बताएं क्या हो सकता है।

सुनवाई के आरंभ में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान द्वारा इस मामले पर बहस की जा रही थी। बाद में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मोर्चा संभाला। उन्होंने पीठ को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार द्वारा एक बैठक बुलाई जाएगी और इस मुद्दे पर निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने इसके लिए पीठ से चार सप्ताह का समय मांगा। वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के ढांचे के भीतर कुछ काम किया जा सकता है।

इस पर चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि प्रश्न सरल है, पिछली बार हमने स्पष्ट किया था कि जब तक राज्यों को शामिल नहीं किया जाता है तब तक केंद्र कुछ नहीं कर सकता है। इसलिए हमने केंद्र को बैठक बुलाने और नीति तैयार करने का निर्देश दिया था। अब मुद्दा यह है कि एक व्यापक योजना बनाएं, जिन क्षेत्रों में तत्काल इसे लागू करने की आवश्यकता है उनकी पहचान करें। अगर आप भूख से निपटना चाहते हैं तो कोई संविधान या कानून नहीं कहेगा। हर कल्याणकारी राज्य की पहली जिम्मेदारी भूख से मरने वाले लोगों को भोजन मुहैया कराना है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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