Tuesday, April 16, 2024

सुप्रीम कोर्ट का ट्रैक्टर रैली पर रोक से इंकार, कहा-मामले को तय करे पुलिस

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली में प्रवेश का सवाल कानून-व्यवस्था का विषय है और दिल्ली में कौन आएगा या नहीं, इसे दिल्ली पुलिस को तय करना है। न्यायालय ने कहा कि प्रशासन को क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह कोर्ट नहीं तय करेगा। ट्रैक्टर मार्च को लेकर सुनवाई टल गई है। अब 20 जनवरी को मामले पर अगली सुनवाई होगी।

उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने सोमवार को दिल्ली पुलिस से कहा कि यह तय करके लिए वही ‘पहला प्राधिकरण है कि प्रदर्शनकारी किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश दिया जा सकता है या नहीं। दिल्ली पुलिस द्वारा गणतंत्र दिवस पर किसानों द्वारा विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग के लिए दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा ये अवलोकन किया गया।

दिल्ली में प्रवेश का सवाल कानून और व्यवस्था की स्थिति है जिसे पुलिस द्वारा निर्धारित किया जाना है। हमने पहले एजी और एसजी को बताया है कि किसे अनुमति दी जानी चाहिए और किसे नहीं दी जानी चाहिए और कितने लोग प्रवेश कर सकते हैं वे सभी कानून और व्यवस्था पुलिस द्वारा निपटाए जाने के मामले हैं। हम पहले प्राधिकारी नहीं हैं।

सीजेआई एसए बोबडे ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि आप कानून के तहत सभी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं।

इस बिंदु पर, अटॉर्नी जनरल ने पीठ से अनुरोध किया कि वह इस आशय का एक आदेश पारित करे। इससे हमारे हाथ मजबूत होंगे।

सीजेआई ने एजी से कहा कि क्या भारत सरकार चाहती है कि अदालत कहे कि आपके पास कानून के तहत शक्तियां हैं? एजी ने जवाब दिया कि हम एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहे हैं।

एजी ने यह भी बताया कि कोर्ट इस तरह का आदेश पारित कर सकता है क्योंकि पूरे मामले को कोर्ट ने उठाया है। जवाब में, सीजेआई ने स्पष्ट किया कि न्यायालय ने पूरे मामले को नहीं उठाया है और वह केवल विरोध के पहलू से निपट रहा है। सीजेआई ने कहा कि अदालत के हस्तक्षेप को गलत समझा गया है।

दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि यह सुरक्षा एजेंसियों के संज्ञान में आया है कि “विरोध करने वाले व्यक्तियों / संगठनों के एक छोटे समूह ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर / ट्रॉली / वाहन मार्च करने की योजना बनाई है” और यह मार्च परेड को परेशान करने और बाधित करने के साथ-साथ कानून और व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए तैयार किया गया है , जिससे राष्ट्र को शर्मिंदा होना पड़े। यह कहते हुए कि विरोध करने का अधिकार सार्वजनिक लोक व्यवस्था और जनहित के अधीन है, दिल्ली पुलिस ने कहा है कि इस अधिकार में राष्ट्र को विश्व स्तर पर कलंकित करना शामिल नहीं हो सकता।

यह देखते हुए कि उच्चतम न्यायालय कृषि अधिनियमों और किसानों के विरोधों की संवैधानिकता से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई कर रहा है, उच्चतम न्यायालय से गणतंत्र दिवस पर निर्धारित इस तरह के विरोध मार्च को रोकने के लिए एक निषेधाज्ञा पारित करने के लिए निर्देश मांगे गए हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 12 जनवरी को याचिका पर नोटिस जारी किया था। आज सुनवाई के दौरान सीजेआई ने टिप्पणी की कि उसे भारत संघ को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि स्थिति से निपटने के लिए उसके पास अधिकार हैं। सीजेआई ने कहा कि इस मामले की सुनवाई बुधवार को होगी क्योंकि आज एक अलग बेंच सुनवाई कर रही है।

चीफ जस्टिस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ में न्यायाधीश थे, जिन्होंने 12 जनवरी को विरोध प्रदर्शनों को लेकर आदेश पारित किया था। यह मामला 20 जनवरी तक स्थगित कर दिया गया है।

सीजेआई ने आज यह भी पूछा कि क्या किसान यूनियन पेश हुई हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जवाब दिया कि वह यूनियनों के लिए उपस्थित हैं। 12 जनवरी को, उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी, यह देखने के बाद कि केंद्र अपनी वार्ताओं में विफल नहीं हुआ है। अदालत ने बातचीत के लिए एक समिति का भी गठन किया। समिति को 2 महीने के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि सभी किसान यूनियन समिति के समक्ष उपस्थित होंगी, यह स्पष्ट करते हुए कि यूनियनों को वार्ता में भाग लेना अनिवार्य है। हालांकि, प्रदर्शनकारी संगठनों ने कहा कि वे समिति के सामने पेश नहीं होंगे।

आदेश में कहा गया था कि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक से किसानों की जख्मी भावनाएं शांत होगी और ये उन्हें वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

समिति में शमिल सभी चार सदस्यों- बीएस मान, अशोक गुलाटी, डॉ प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घनवंत ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन के समर्थन में खुले विचार व्यक्त किए हैं। प्रदर्शनकारी यूनियनों ने कहा कि वे एक ऐसी समिति के सामने पेश नहीं होंगे, जिसमें केवल एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य हों। हंगामे के बाद, बीएस मान ने बाद में घोषणा की कि वह अदालत द्वारा नियुक्त समिति से हट रहे हैं।

इस बीच एक किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति ने अर्जी दाखिल कर बातचीत के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के पूर्ण पुनर्गठन की मांग की है।

पहले इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बोबडे,जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने की थी लेकिन इस बीच पूर्व जज जस्टिस मारकंडे काटजू ने आरोप लगा दिया कि चीफ जस्टिस पीठ में अपने साथ बैठे अन्य जजों को बोलने ही नहीं देते ऐसा उन्हें एक वरिष्ठ वर्तमान जज ने बताया है। आज पीठ में चीफ जस्टिस के साथ दो नए जज बैठे थे। चर्चा है कि यह जस्टिस काटजू के आरोपों का साइड इफेक्ट है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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