Wednesday, April 24, 2024

अमरोहा से ग्राउंड रिपोर्ट: गौशालाओं से गोवंश नदारद

अमरोहा। पिछले विधानसभा चुनाव में जो गोवंश योगी आदित्यनाथ के लिए वोट की दुधारू गायें साबित हुए थे वही इस बार उनके ऊपर बोझ बन गए हैं। सूबे में बेरोजगारी और महंगाई के बाद चुनाव का तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा आवारा पशुओं का है। आलम यह है कि इन पशुओं से खेतों की रखवाली के लिए किसानों को अपनी रातों की नींद खराब करनी पड़ रही है। थोड़ी सी लापरवाही का मतलब है सालों की मेहनत पर पानी फिर जाना। हालांकि इससे निजात पाने के लिए सरकार ने किसानों को गौशालाओं का विकल्प जरूर दिया है लेकिन वो समाधान से ज्यादा समस्या बन गयी हैं। इस पूरे मामले की जमीनी सच्चाई क्या है उसकी पड़ताल करने के लिए जनचौक ने अमरोहा की कुछ गौशालाओं का दौरा किया। आपको बता दें कि अमरोहा जिले में 18 गौशालाएं हैं। इनमें दो कान्हा, दो वृहद गौशालाएं और एक काजी हाउस, दस अस्थाई व तीन पंजीकृत गौशालाएं शामिल हैं। इनमें कुल पशुओं की संख्या 1809 है। 

खाली गौसंरक्षण केन्द्र, बेलगाम आवारा पशु

शिवरात्रि का दिन था। हम अमरोहा से काफुरपर रोड गुलड़िया की ओर से आ रहे थे तो देखा कि, सड़क से सटे लोहे के एक टिन का शेड बना हुआ है‌। लम्बी-लम्बी घास फूंस होने से वह एकदम दिखाई नहीं पड़ रहा था। शेड की एक तरफ 4 फिट की गहरी खन्ती बनी थी।

हम शेड के अन्दर जाना चाह रहे थे लेकिन खन्ती काफ़ी चौड़ी थी, रिस्क नहीं लिया और सड़क की तरफ से शेड के अन्दर गए। करीब डेढ़ बीघे में फैले इस शेड में एक भी गाय नहीं दिखी। गाय तो छोड़िए गाय का बछड़ा या बछिया का साया भी यहां पर नहीं था। गौ संरक्षण के नाम पर केवल टिन का एक शेड बना हुआ था। इसके अलावा गाय को बांधने के लिए खूंटे और चारे के लिए नांद या खुल्ली तक नहीं थी। एक समय था जब आवारा गायों या अनुत्पादक पशुओं को क़साइयों से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने साल 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन का आरंभ किया था। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में गायों के लिए शेड बनाने का काम भी शामिल था लेकिन शेड बनवाकर आवारा पशुओं की समस्या से कितनी निजात मिल पायी है यह अट्टा गांव में सड़क किनारे बनी शेड की तस्वीर बयां करती है। योगी सरकार के गठन के बाद यह प्रकोप और बढ़ गया है।

ग्राम अट्टा में गौसंरक्षण के लिए बना हुआ टिन शेड

पास के ही गेहूं के खेत में मनोज पानी चला रहे थे। उन्होंने बताया कि “यह गौसंरक्षण केन्द्र काफी टाइम से बन्द है।” शेड में पहले कभी गाय रहती थी या नहीं इसके बारे में मनोज को जानकारी नहीं है। थोड़ी सी दूर चलकर परचून की दुकान पर एक दो लोगों से जब हमने इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, “यह शेड अट्टा के ग्राम प्रधान नारायण सिंह के द्वारा बनाया गया था और हमने कभी यहां पर गाय नहीं देखी।” सरकारी योजनाओं के पैसे की बंदरबांट यह नायाब केस है।

आपको बता दें कि यूपी में सरकार एक गाय पर प्रतिदिन 30 रुपए देती है, जिसमें उसका चारा, रहने के लिए टिन शेड, पीने के पानी की व्यवस्था और मज़दूरी भी शामिल है। यूपी के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा के आदेशानुसार हर ग्राम पंचायत को 10 गोवंश के संरक्षण का टारगेट दिया गया है। साथ ही सभी मंडलायुक्तों और डीएम को कहा गया है कि वे पंचायतों से यह सुनिश्चित कराएं कि उनका कार्यक्षेत्र निराश्रित गोवंश मुक्त हो गया है। प्रदेश में अब भी चार लाख निराश्रित गोवंश हैं जिनका संरक्षण किया जाना बाकी है। अब तक 7.8 लाख को संरक्षित किया जा चुका है। मतलब साफ है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही चार लाख गोवंश सड़कों पर बेसहारा घूम रहे हैं। कार्यभार संभालते ही गोवंश को लेकर मुख्य सचिव के ये सख्त आदेश बताते हैं कि यह मुद्दा कितना अहम है।

जमीन पर गौशाला का बोर्ड, गेट पर ताले

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 545 पंजीकृत गौशालाएं हैं लेकिन इनमें से अधिकतर की हालत बेहद खराब है। आवारा पशुओं के बारे में स्थानीय लोगों से हालचाल पूछते-पूछते हम आगे बढ़े और चोटीपुरा गांव से गुजरते हुए सूदनपुर गांव में बनी गौशाला के गेट पर जा पहुंचे। लेकिन यह क्या यहां तो कोई गौशाला ही नहीं दिखी। बहुत ध्यान देने पर जमीन को चाटती एक नेमप्लेट जरूर दिखी। जो उसके अवशेष की निशानी बना हुआ था।

ज़मींदोज़ हो गई गौशाला की नेमप्लेट

विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए 10 मार्च के बाद आवारा पशुओं की समस्या का समाधान निकालने की बात कही लेकिन सवाल है कि क्या इस प्रकार गौशाला बना दिए जाने मात्र से इस संकट का सामना किया जा सकता है? साल 2017 के बाद आवारा पशुओं के लिए प्रदेश सरकार ने गौशालाएं, काजी हाउस, गौसंरक्षण केंद्रों का निर्माण जैसे कई कदम उठाए। इसके लिए 2018-19 में छुट्टा गोवंश के रखरखाव के मद पर सहायता अनुदान के तौर पर 17.52 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया‌‌। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार पिछले तीन साल में लगभग 355 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इसके बावजूद गौशालाओं पर ताले जड़े हुए हैं। दो मंजिला बिल्डिंग बनी हुई है, लेकिन समस्या जस की तस है। करीब 10 मिनट तक गेट खटखटाने के बावजूद भी गेट नहीं खुल सका। गेट पर किसी डॉक्टर का नम्बर लिखा है।

5 साल से बंद पड़ी गौशाला

हमने उस फोन नंबर पर सम्पर्क किया, तो उधर से डाक्टर साहब की आवाज़ आई, हैलो। आवाज ठीक से जा नहीं पा रही थी इसलिए हमने सीधा उनसे गौशाला के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि, “यह गौशाला आज से 5 साल पहले बन्द हो चुकी है अब इसमें एक भी गाय नहीं रहती।” स्थानीय लोगों का कहना था कि, “क्षेत्र में कुछ गौशालाएं इनमें ऐसी हैं जिन्होंने सरकार से गौशाला के लिए रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है लेकिन उनमें गाय नहीं या फिर कम संख्या में हैं लेकिन पैसा पूरा वसूल किया जाता है।”

गौशाला पर बोझ बन गए हैं आवारा पशु

रजबपुर थाने के पास नाईपुरा गांव में भी गौशाला बनी हुई है, यह सुनकर हम नाईपुरा की वृन्दावन गौशाला जा पहुंचे। गेट पर दोनों ओर सीसीटीवी कैमरों की निगरानी है। खटखटाने पर गेट खुला और एक बुजुर्ग मालकिन या गौशाला की संरक्षक चश्मा लगाकर दोमंजिले की छत पर आयीं। बात करने पर पता चला कि इसकी स्थापना 2000 में हुई थी। और 250 आवारा पशु भी दिखे लेकिन उनमें कोई सबूत नहीं था। किसी की टांग टूटी हुई थी, किसी की आंख फूटी थी। कुछ पशुओं के शरीर से तो बेतरतीब खून बह रहा था।

थाना रजबपुर के नाईपुरा का वृन्दावन गौशाला

मालकिन ने बताया, ” क़साई से जो गाय, बछड़े कटने से बच जाते हैं वही यहां लाए जाते हैं। गौशाला रजिस्टर्ड है, सरकारी नहीं।” इस बात की पुष्टि रजबपुर के चिकित्सक वैभव शर्मा ने भी की। हमने गौशाला में गायों के लेन-देन के बारे में जब पूछा तो वैभव शर्मा ने बताया कि, “श्री वृन्दावन गौशाला में क्षमता से अधिक गायें हैं इसलिए अभी गाय दान नहीं की जा सकती।”

वृंदावन गौशाला में भारी संख्या में आवारा पशु रह रहे हैं। एक वाकया ये भी कि प्रदेश सरकार ने आवारा मवेशियों की समस्या बूचड़खानों के बंद होने के चलते पैदा हुई है ये कहकर समस्या का राजनीतिकरण तो कर दिया गया है लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला। प्रदेश में जो गौशालाएं बनी हुई हैं या तो उनमें गायें नहीं हैं या फिर गाय अधमरी हालत में हैं। 20वीं पशुधन गणना से पता चलता है कि देश में 50.21 लाख आवारा गोवंश सड़कों पर घूम रहे हैं। इसमें उत्तर प्रदेश की संख्या 11.84 लाख है।

नगरपालिका के दम पर पल रही है कान्हा गौशाला

गौशालाओं की अंदरूनी तस्वीर को जानने के लिए जनचौक ने अगले दिन गजरौला क्षेत्र का दौरा किया। नेशनल हाईवे से सटी औद्योगिक नगरी गजरौला में आवारा पशुओं से बचाव इतना है कि ये हाईवे पर सीधे नहीं आ पाते लेकिन खादर क्षेत्र में भारी नुक़सान करते हैं। फाजलपुर फाटक से थोड़ी सा दूर टेवा एपीआई कम्पनी के गेट के सामने दो पैट्रोल पंप हैं, पंप की करवट से एक कच्चा रास्ता गुजरता है जो कान्हा गौशाला की तरफ जाता है। हम भी इस रास्ते से गजरौला की कान्हा गौशाला जा पहुंचे। दो महिलाएं गेट के बाहर गौसेवक से बातचीत कर रही थीं, इस बीच गौसेवक को हमने अपना परिचय दिया।

गजरौला में फाजलपुर फाटक की तरफ स्थित कान्हा गौशाला

गौसेवक ने कहा, “आज यहां डीएम महोदय आने वाले हैं, इसलिए किसी और दिन आना।” खैर बाद में उन्होंने हमको अन्दर जाने की इजाजत दे दी। गायें अपनी सीमा से बाहर ना आएं इसके लिए वहां बल्ली लगी हुई थीं। हम गायों के बीच पहुंचे ही थे कि गौशाला के चिकित्सक डॉ संदीप सिंह और डॉ ओमवीर सिंह भी वहां आ पहुंचे। 

 बायीं ओर चिकित्सक संदीप सिंह और बीच में ओमवीर सिंह

गौशाला में 224 गायें थीं। गायों की स्थिति अन्य गौशालाओं की अपेक्षा ठीक थी हमने इसका कारण पूछा तो संदीप ने बताया कि, ” यह गौशाला नगर पालिका की है इसलिए नगरपालिका प्रतिदिन 3 हजार रोटियां देती है।” ओमवीर ने बताया कि, “नगरपालिका गायों को प्रतिदिन 80 किलो खल देती है वो भी अपनी तरफ से। सरकार तो 30 रूपया देती है, जबकि आज एक अगोला भी 50-60 रूपये का मिलता है, इसलिए यह गौशाला पालिका की तरफ से ही चल रही है सरकार की तरफ से नहीं।”

नगरपालिका की तरफ से गौशाला के लिए आतीं हैं प्रतिदिन 3 हजार रोटियां

गौशाला में गोबर गैस प्लांट भी है। हमने प्लांट की उपयोगिता के बारे में जब पूछा तो संदीप ने बताया कि इससे गौशाला में बिजली उत्पादन किया जाता है, क्योंकि खरसे के दिनों में बिजली ना होने से गायें मच्छरों से परेशान हो जाती हैं। यहां दूध वाली गाय नहीं आती, आवारा पशु ही आते हैं।

इस दौरान दो महिलाएं अतरपुरा से गौशाला से गाय लेने के लिए आई थीं, उनमें एक का नाम मुतियांजी था। मुतियांजी की एक शादीशुदा बेटी भी उनके साथ गाय लेने के लिए आयी थी। मुंतिया जी को गर्भधारित गाय की जरूरत है लेकिन संदीप सिंह के अनुसार गौशाला में कोई भी गाय गर्भावस्था में नहीं है इसलिए गौसेवक ने उन्हें अगले महीने आने को कहा।

गायें भी हैं मुनाफे का स्रोत

मुतियां जी हमारा परिचय जानकर हमसे किसी गौशाला से गाय दिलाने की बात कर रही थीं, हमने गांव से गाय दिलाने की बात की तो मुतियां जी कहने लगीं, “हमै गांव से गैया नहीं चैये हमै तो गोसाला स ही दिलाय देओ” हमने कहा कि गाय तो आखिर गाय है गौशाला से लो या घर से तो कहने लगीं, “नाय यू बात नाय, गोसाला से गैया मिलैगी तो 900 रूपे तो आते रहेंगे ना महीने के।” बता दें कि राज्य सरकार ‘मुख्यमंत्री निराश्रित बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ के तहत निराश्रित गोवंश को गोशालाओं में रखने के साथ ही वहां से लोगों को पालने के लिए गाय दी जाती है। गाय के साथ गोपालक को सरकार 900 रुपया महीना देती है। मुतियां जी के गाय के साथ-साथ 900 रूपए के प्रेम को देखते हुए, गोदान के होरी की याद आ गई। बहरहाल मुतियांजी हमारा फोन नंबर लेकर अपने गांव अतरपुरा वापस चली गईं।

गौवंश की आवाजाही पर रोकथाम से खड़ा हुआ संकट

मवेशियों की आवाजाही पर मंडराते हिंसा के बादल, कड़े गाय व्यापार विरोधी कानूनों को देखते हुए लोगों ने मवेशी पालन छोड़ना शुरू कर दिया है। जून 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने गोवध निवारण संशोधन अध्यादेश पारित किया, जिसके बाद से गौवंश के आवाजाही की समस्या बढ़ गई। ढकिया निवासी पशु व्यापारी मुनाजिर बताते हैं कि, “आज से 5 साल पहले गाय और भैंस दोनों का अबाध रूप से खुला व्यापार करते थे लेकिन कानून लागू होने के बाद से गाय के व्यापार को कम करना पड़ा”।

इसका कारण बताते हुए मुनाजिर कहते हैं, “5 साल पहले हम क्षेत्र में हापुड़, गजरौला, अमरोहा और कुआं खेड़ा का पशु बाजार करते थे तो गाय पर कोई रोक-टोक नहीं होती थी लेकिन जब कानून लागू हुआ तो समाज के कुछ लोग कानून हाथ में लेने लगे‌ और आए दिन परेशान करते थे इससे व्यापारी वर्ग के भीतर गाय का डर बैठ गया और बाजार हल्का करना पड़ा। अब खाली गाय को कोई व्यापारी लेने को तैयार नहीं होता। किसान भी बिचारा कब तक बोझ ढोवै इसलिए बीस हज़ार में बिकने वाला बछड़ा या बछिया आज छुट्टे घूम रहे हैं।”

चौपट हो गयी एमएसएमई वर्ग की डेयरी

आवारा पशुओं का प्रभाव डेयरी उद्योग पर भी पड़ा है। एमएसएमई वर्ग की मिल्क डेयरी या प्लांट अब गांव के परिदृश्य से गायब हो चुके हैं। संग्राहक दूध उत्पादन में गिरावट की बात करते हैं। लोगों के पास अब गायों की संख्या कम है। पशुपालन लगातार घाटे में चल रहा है।

खादगुजर निवासी जितेन्द्र सिंह ने एक दशक पहले अपने क्षेत्र में एक डेयरी खोली थी। ग्रामीण क्षेत्रों में दूध इकठ्ठा करने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था इसलिए जितेंद्र ने डेयरी के लिए पशुपालन भी किया। करीब 15-20 बीघे जमीन पर बंद पड़ी डेयरी और पशुपालन की रखवाली के लिए हुजमना अपनी पत्नी के साथ यहां रहते हैं। बंद पड़ी गौशाला के संरक्षक हुजमना बताते हैं कि एक समय उनकी डेयरी में 250 गायें थीं लेकिन आज एक भी गाय नहीं है। उनका कहना था, “डेयरी में सिर्फ वही गायें रखी जाती हैं जो मुनाफा कमा कर देती हैं, जो घाटा देती हैं वो बोझ बन जाती हैं।”

खादगुजर में बंद पड़ी डेयरी में संरक्षक हुजमना के साथ रिपोर्टर प्रत्यक्ष

एक और डेयरी मालिक आगापुर निवासी दयाराम सिंह का कहना है कि, “डेयरी पैसा कमाने के लिए चलाई जाती है और इसका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक दूध उत्पादन कर लाभ कामना होता है लेकिन यदि ऐसा न हो तो डेयरी मालिक घाटे के चलते उसे बंद कर देते हैं।”

पशुपालन विभाग गौशाला में भ्रष्टाचार हद से ज्यादा

आज वैश्वीकरण के युग में दमदार ट्रैक्टरों के आने के बाद से बैलों की उपयोगिता खत्म हो चुकी है, किसान लोग डीजल की महंगाई के कारण ही बैल का खेती-बाड़ी में थोड़ा-बहुत उपयोग कर रहे हैं। चारागाहों का लगातार संकुचन हो रहा है। मवेशियों के लिए अभ्यारण्य या पार्क आदि की कोई व्यवस्था नहीं है। गायों और बैलों की एक सीमित उम्र होती है उसके बाद बूढ़े हो चुके पशुओं की देखभाल करने के बजाय लोग उसे छुट्टा छोड़ देते हैं जिससे वो किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

खादगुजर के ही पास का एक गांव है, नगला माफ़ी। बागों की छांव में यहां पर एक गौशाला है। टीकम सिंह पशु सेवा समिति नामक इस गौशाला में करीब 200 पशु हैं। इसकी स्थापना साल 2012 में हुई थी। जब हम गौशाला के गेट पर पहुंचे तो एक ट्रैक्टर ट्राली के साथ वहां खड़ा था। ट्राली में जड़ समेत ईख थी, जो गौशाला में पशुओं के चारे के लिए लायी गयी थी। इंडियन ग्रासलैंड एंड फॉडर इंस्टीट्यूट के मुताबिक भारत में हरे चारे की कमी 64 फीसदी है और सूखे चारे की कमी 24 फीसदी है।

चारे की कमी की मार

गौसेवक ने बताया कि इस समय पशुओं के लिए चारे की समस्या खड़ी हो गई है क्या करें! 350 प्रति/कुतंल का गन्ना खिलाना पड़ रहा है, भूखे तो मार नहीं सकते। गौसेवक हमें अन्दर गौशाला की तरफ ले गए। उन्होंने बताया कि यहां दुधारू पशुओं को एक तरफ बांधा जाता है और जो छोटे-मोटे बछड़े हैं या जो गाय दूध नहीं देती उन्हें दूसरी ओर बांधा जाता है।

गौसेवक

जब हमने गौसेवक से आवारा पशुओं के लिए गौसंरक्षण केन्द्रों के बारे पूछा तो इस मामले में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “देखो हम तो आयोग से लेकर लखनऊ तक हो आए हमै तो इसमें कुछ फायदा मिला ना,और जेब से चले गए। गवर्मेंट को ये लाभ है कि आवारा पशु डालना पड़े तो हमारी गौशाला में ही छोड़ेंगे, अगर हमनें मना किया तो मारकर किसी खड्डे में डालकर हम पर ही मुकदमा ठोकेंगे।”

गौशाला में आवारा पशु ऊंट

अभी कुछ दिन पहले गौशाला में चार बछड़े गजरौला पुलिस डाल गयी थी, एक ऊंट भी यहां पर है। हमने जब उनसे पूछा कि गौशाला में ऊंट का क्या काम! तो गौसेवक बोले कि “आस-पास के किसान बेचारे इससे परेशान थे तो मैंने कहा दिया कि लाओ इसे भी एक साइड में डाल दो, पलता रहगा यो भी। ये है कि, हम तो स्कीम से जुड़े हुए हैं बस। आज ना कल कुछ मिल ही जा। हमारा छोटा वाला लौंडा भी कह रिया, ‘पापा क्यूं चक्कर में पड़ रहे हो बंद करो इसे’। तो मैन्नै कहया के यार, कोई ना इस नाते गौसेवा हो जा और कोई गरीब-गुरबा भी आ जाए गाय लेने।”

गौशाला में पशुओं की देखभाल करते गौसेवक

गौसेवक ने बताया कि “हमने यो गौशाला सरकार कू अपनी 5 बीघे ज़मीन देके 2012 में शुरू की थी। जब हम एसडीएम के पास गए रजिस्ट्रेशन कराने तो हमसे बोले, ‘तुम जिम्मेदार हो या मंत्री हो’? मैं बोला, जिम्मेदार भी मैं ही और मंत्री भी मैं ही हूं, बोलो क्या काम! बोलना क्या 15 हजार ले लिए साब।गौसेवक आगे बताते हैं, “फिर हम कागज लेकर मोहर लगवाने आयोग के पास गए तो 1.5 लाख आयोग ने ले लिए मोहर लगाने के.. समाजवादी की सरकार थी उस समय तो भैया रे 50 हजार महबूब को दिए और फिर 20 हजार डीएम को दिए तब जाके रजिस्ट्रेशन हुआ। लखनऊ तक भाग गए बेकार हो गए। 6 महीने पर पैसे आते हैं वो भी 10 हजार रिश्वत दोगे तब…और दो दिन लगेंगे, अर ना जाओगे तो फाइल ऐसे ही पड़ी रहगी।”

हमने जब उनसे गोवंश के कानों पर लगने वाले बिल्ले के लाभ के बारे में पूछा तो गौसेवक ने कहा कि “इनसे कोई लाभ नहीं मिलता, ये सब गवर्मेंट का बहकावा है। ये तो इस मारे लगावै कि कल कू कोई पशु छोड़े तो थाने में रिपोर्ट लिखाय देंगे के फलां किसान के लगाया यू बिल्ला। आज तक किसी किसान कू दस रूपए दिये हो तो हमै बताय दो। बस किसान पर एक तरह का घड़ा लटकाय दिया गर पशु छोड़ दिया तो फिर खैर नहीं…!!”

क्या हो सकता है आवारा पशुओं का स्थायी समाधान ?

आवारा पशुओं को ढाल बनाकर हर सरकार वोट बैंक बटोरना चाहती है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सरकार में आने के बाद सांड़ के हमले में मरने वालों के परिजनों के लिए 5 लाख क्षतिपूर्ति की व्यवस्था का ऐलान तो कर दिया था लेकिन स्थायी समाधान निकालने का उन्होंने भी कोई सुझाव नहीं दिया। आवारा पशुओं की संख्या कम करने को लेकर पशु विशेषज्ञों का मानना है कि डेरियों में गायों के प्रजनन पर रोक लगाने के लिए मजबूत नियम बनाने जाएं। उनका कहना है कि यह डेयरी उद्योग की ही देन है जो किसान सड़कों पर बछड़े और सांड़ों को छोड़ रहे हैं।

पशु विशेषज्ञ ‘एब्रियो ट्रांसप्लांट’ तकनीक को अपनाने की सलाह दे रहे हैं उनका कहना है इसकी विशेषता यह है कि इससे 92 प्रतिशत बछिया पैदा होंगी, बाराबंकी जिले में इसका प्रयोग किया जा चुका है इसके अच्छे परिणाम मिले हैं। इससे बछड़े काफी कम संख्या में पैदा होंगे। चूंकि आधुनिक खेती में बैलों की भूमिका कम होती जा रही है इसलिए इससे किसान को आवारा जानवरों की समस्या से निजात मिल सकेगी। दूसरी बात जो गाय दूध नहीं दे रही है उनसे वर्मी कम्पोस्ट बनाकर हजारों रुपए कमाएं जा सकते हैं। वहीं यदि सरकार डीएपी-यूरिया के तरह ही वर्मी कम्पोस्ट पर भी सब्सिडी देना शुरू कर दे तो किसान जानवरों को छोड़ना बंद कर सकते हैं। आवारा पशुओं से निजात पाने के लिए विशेषज्ञ नस्ल सुधार कार्यक्रम की पैरवी करते हुए बैलों की संख्या कम करने की भी सलाह देते हैं।

(अमरोहा से स्वतंत्र पत्रकार प्रत्यक्ष मिश्रा की रिपोर्ट।)

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