Friday, March 29, 2024

मेहनकशों के लिए नये संकल्प का दिन है मजदूर दिवस

“हमारी मौत दीवार पर लिखी इबारत बन जायेगी”। अल्बर्ट पार्किंसंस शिकागो के 8 शहीद मजदूर नेताओं में से एक हैं जिन्हें पूंजीपतियों के दबाव में फर्जी हत्या के मुकदमे में फांसी दे गई दी गई थी।

8 साथियों के साथ फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद अलबर्ट पार्किंसंस ने अपनी पत्नी लूसी पार्किंसंस को लिखा था कि आज दुनिया के लुटेरे पूंजीपति  खुशी में शराब के नशे में डूबे होंगे और प्रसन्नता में झूम झूम कर नाच रहे होंगे।

कितना साफ था वर्ग दृष्टिकोण अलबर्ट का। जिन्होंने अपनी पत्नी को आखरी पत्र में कहा कि दुनिया के लुटेरे पूंजीपतियों को खुशियां मनाने दो। लेकिन एक दिन मजदूरों की विजय सुनिश्चित होगी। हमारी मौत दीवार पर लिखी हुई इबारत बन जाएगी। अलबर्ट पार्किंसंस की लिखी यह पंक्ति अमर हो गई है ।

एक मजदूर नेता की दूरदृष्टि वर्ग समाज की  चेतना और वर्ग शत्रु की पहचान इससे ज्यादा स्पष्ट और क्या हो सकती है। इसी का परिणाम था कि शिकागो के मजदूर दुनिया के मेहनतकश वर्ग के नेता और अविस्मरणीय योद्धा के साथ मजदूर वर्ग के पूर्वजों की अग्रिम कतार में आ गए।

मई दिवस पर दुनिया का हर एक मेहनतकश जो अपनी मजदूर वर्गीय चेतना और दृष्टि से संपन्न है, आज शिकागो के शहीदों की याद में शहीद दिवस मना रहा है। यही नहीं उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों और सवालों को लेकर आज भी उसी तरह से संघर्षरत है जैसा 18वीं सदी के अंतिम समय में अमेरिकी मजदूरों ने लड़ा था।

इसी संघर्ष का परिणाम था कि बाद के समय में पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकारों को बाध्य होकर काम का समय 8 घंटे निर्धारित करना पड़ा और मजदूरों के वेतन और मजदूरी की कानूनी गारंटी देनी पड़ी। साथ ही मजदूरों के एक मनुष्य के बतौर उसकी नैसर्गिक जरूरतों को मान्यता देनी पड़ी।

उस समय पूंजीवाद विकास के साम्राज्यवादी चरण में था। पूंजी विजय रथ पर सवार होकर विश्व साम्राज्य कायम करने के लिए आक्रामक अभियान में निकल पड़ी थी। इसलिए उसे अपने-अपने देशों के मजदूरों के साथ युद्धविराम की जरूरत थी। क्योंकि वर्ग सचेत संगठित मजदूर विद्रोह की दिशा में आगे बढ़ता जैसा कि 1870 -71के पेरिस कम्यून में हुआ था तो पूंजीवाद के अस्तित्व के लिए संकट खड़ा हो जाता।

इसलिए पूंजीपति वर्ग को एक कदम पीछे हटना पड़ा और उसे मजदूरों के काम के समय को आठ घंटे‌ करने से लेकर वेतन, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे सवालों को कानूनी मान्यता देनी पड़ी।

मजदूरों की जुझारू वर्गीय एकता और उन्नत होती हुई राजनीतिक चेतना के कारण पूंजीपति वर्ग को श्रम कानूनों से लेकर कंपनी कानून और सेवा शर्तों के लिए कानून बनाने पड़े। 1886 में 8 घंटे के काम की मांग को लेकर आंदोलनरत मजदूरों पर “हे मार्केट शिकागो” में गोली वर्षा कर अनेक लोगों को शहीद कर दिया गया। मजदूरों पर गोली चलने से उनके कपड़े रक्त में डूब गए और वही कपड़ा दुनिया में मजदूरों का लाल झंडा बना। जो अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग का आज झंडा हो गया है।

तभी से 1 मई मजदूरों का अपना त्यौहार है। इस दिन वे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का शपथ लेते हैं। शायद मेहनतकश वर्ग का यह अकेला त्यौहार है। जिससे पूंजीपति वर्ग घृणा करता है और इस दिन मजदूर वर्ग उत्साह से झूम उठता है। मजदूर वर्ग की जिजीविषा संकल्प और संघर्ष का अप्रतिम त्योहार मई दिवस है। 21वीं सदी के प्रथम चौथाई में हम देख रहे हैं कि मजदूर वर्ग पर 18वीं सदी के वही जुल्मो सितम और कानून फिर से लागू किए जा रहे हैं। भारत में मजदूर पक्षीय कानूनों को समाप्त कर चार श्रम संहिता लाद दी गई है। पुनः काम के घंटे अनिश्चित कर दिए गए। वेतन को उत्पादकता से जोड़ते हुए न्यूनतम वेतन की कानूनी गारंटी खत्म हो गयी है।

मजदूरों की अन्य सामाजिक सुविधाएं लगातार बंद की जा रही हैं। संगठित क्षेत्र को कमजोर करते हुए असंगठित को प्रश्रय और विस्तार दिया जा रहा है। जिससे असंगठित मजदूरों की संख्या में तेज गति से बढ़ोत्तरी जारी है। जहां मजदूर मध्ययुगीन अमाननीय शोषण के लिए बाध्य कर दिया गया है। पिछले 8 वर्षों से हिंदुत्व कारपोरेट गठजोड़ की मोदी सरकार मजदूरों के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है। वह किसी न किसी बहाने श्रमिकों के उपलब्ध अधिकारों को समाप्त कर कानूनी गारंटी से वंचित करते हुए उनके लोकतांत्रिक संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने में जुटी है।

वहीं कारपोरेट जगत को स्वच्छंद होकर मजदूरों के श्रम की लूट और मुनाफा कमाने की छूट दी जा रही है। महामारी की आड़ लेकर मोदी सरकार सैकड़ों वर्षों में लाखों मजदूरों के कुर्बानी से हासिल अधिकारों को समाप्त कर मजदूरों के संगठित प्रतिरोध को कुचल देने पर आमादा है।

इसलिए जब हम 2022 का मई दिवस मना रहे हैं तो हमारे समक्ष फासीवाद का खतरा वास्तविक हो चुका है। संविधान और कानून के राज को धता बताते हुए सांप्रदायिक जातिवादी और अवैज्ञानिक चेतना को सरकारी संस्थाओं और मीडिया द्वारा बढ़ावा देकर सामाजिक विभाजन को तेज किया जा रहा है।

मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, नस्ल, रंग और लिंग के विभेद का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा। जिस कारण मजदूरों की वर्गीय चेतना और एकता निर्मित करना आज का सबसे बड़ा सवाल है।

मजदूरों के काम के घंटे बढ़ा दिए गए हैं और  पेंशन सहित अन्य सुविधाएंसे छीन ली गई है ।उन्हें वापस लाने की लड़ाई तेज करना होगा। करोड़ों मजदूर नोटबंदी जीएसटी और लॉक डाउन जैसे सरकार के क्रूर फैसलों से बेरोजगार हो चुके हैं। सबसे बुरी हालत महिला श्रमिकों की है। उनके ऊपर अमानवीय जुल्म न्यूनतम वेतन की जगह पर भत्ता और कठिन सेवा शर्तें थोप दी गई हैं।

जिससे करोड़ों महिला मजदूर रोजगार से बाहर हो गईं हैं उनके अंदर रोजगार पाने की इच्छा ही समाप्त होती जा रही है। कार्यरत श्रमिकों की संख्या का 90% से ज्यादा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में नियोजित हो रहा है। जैसे स्कीम वर्कर्स पैरा शिक्षक आगनबाड़ी रसोईंया आशा और दैनिक वेतन भोगी मजदूर। यह क्षेत्र आंदोलन का सघन क्षेत्र बन रहा है। जिनको संगठित करना और उनके अधिकार के लिए संघर्ष को उन्नत करना समय की मांग है।

एक मोटे आंकड़े के अनुसार भारत में 9.30 करोड़ मज़दूर इस दौर में बेरोजगार हुए हैं। प्रति वर्ष ढाई करोड़ से ज्यादा मजदूर रोजगार बाजार में पेश हो रहे हैं । वहीं रोजगार सृजन की गति कम होती जा रही है। मोदी के कारपोरेट परस्त नीतियों के कारण संगठित क्षेत्र का सवा दो करोड़ रोजगार पांच वर्षों में समाप्त हो चुका है।

भारत में कुल श्रम शक्ति का 56% से अधिक रोजगार हीनता के स्थिति में जी रहे हैं। बेरोजगारी ने दरिद्रीकरण और भुखमरी की स्थिति पैदा कर दी। 84 करोड़ आबादी को मुफ्त राशन देने के लिए सरकार को बाध्य होना पड़ा है। बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब प्रधानमंत्री खुद ही इसे उपलब्धि बता रहे हैं।

एक आंकड़े के अनुसार कई करोड़ मजदूर कृषि क्षेत्र में लौट गए हैं। जिस कारण से सामाजिक तनाव और खेती पर बोझ बढ़ गया है। 75 वर्षों में बनाए गए सरकारी उद्योगों के निजीकरण से सामाजिक जीवन में अशांति का विस्तार हुआ है और संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को संघर्ष के लिए मजबूर होना पड़ा है। हालिया राष्ट्रीय हड़तालों को देखकर आप इसका आकलन कर सकते हैं।

कारपोरेट लूट की हवस ने 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से उजाड़ने का काम किया। जो मूलतः ग्रामीण मजदूरों की श्रेणी में आते हैं। आज मई दिवस के अवसर पर हमें निम्न सवालों को लेकर संघर्ष का संकल्प लेना होगा।

हमें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के वेतन, काम की समय सीमा और सरकारी संस्थानों की बिक्री, श्रम कानूनों का खात्मा, संवैधानिक अधिकारों को कुचला जाना, हजारों करोड़ों बेरोजगार नौजवानों का द- दर सड़क पर भटकना, शिक्षित बेरोजगारों की आत्महत्या और किसानों और कृषि मजदूरों के दरिद्रीकरण तथा घटते उपभोग की स्थितियों को देखते हुए स्वास्थ्य शिक्षा जैसे संस्थानों की दुर्दशा के खिलाफ लड़ाई को केंद्रित करना होगा।

भारत के 90 प्रतिशत जनगण की लड़ाई सीधे फासीवाद के हमले के खिलाफ केंद्रित होती जा रही है। जहां हमें संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण, सांप्रदायिक उन्माद और घृणा अभियान, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग और मित्र पूजी पतियों के लूट के लिए सारे सरकारी संस्थानों के मुंह खोल देने के खिलाफ लोकतांत्रिक मंच पर संघर्ष को आगे बढ़ाना है।

भारत में एक तरफ समृद्धि के पहाड़ पर बैठे हुए चंद कारपोरेट घराने हैं वहीं दूसरी तरफ करोड़ों की तादाद में दरिद्रीकरण की तरफ ठेले जा रहे नागरिकों से बना जटिल संकटग्रस्त समाज है। यह सामाजिक सौहार्द और भाईचारे के लिए खतरनाक संकेत है।

संघ भाजपा की कारपोरेट परस्त नीतियों ने भारत के संवैधानिक गणतांत्रिक चरित्र को लगभग समाप्त कर दिया है। इसलिए मजदूर दिवस पर हमारा मुख्य कार्यभार संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने के संघर्ष को आगे बढ़ाना है।

हमारे पास किसान संगठनों की 13 महीने के संघर्ष की शानदार विरासत है वहीं छात्रों नौजवानों का रोजगार के लिए चल रहा संघर्ष हमारे लिए रोशनी की तरह है। यह दौर कारपोरेट हिंदुत्व गठजोड़ से पीड़ित सभी वर्गों के संयुक्त संघर्ष का दौर है। मजदूर संगठनों को इस संघर्ष की केंद्रीय धुरी बनना होगा।

वर्ग सचेत मजदूर वर्ग को व्यापक मेहनत समाज को संगठित कर वृहत्तर फासीवाद विरोधी मोर्चे के निर्माण का कार्यभार अपने कंधे पर लेना होगा। मजदूर वर्ग के संगठनों और नेताओं को किसानों मजदूरों दलितों महिलाओं अल्पसंख्यकों आदिवासियों का संघर्षशील मंच बनाने की पहल लेनी चाहिए जो आज की राजनीतिक जरूरत है। तभी फासीवाद विरोधी लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सकता है।

करोड़ों मजदूरों छात्रों नौजवानों किसानों की लोकतंत्र और बराबरी के लिए चले संघर्ष में हुई कुर्बानी को हमेशा याद रखना चाहिए। मई दिवस के शहीदों की शहादत का हमारे लिए आज यही संदेश है।

 मजदूर एकता जिंदाबाद। साम्राज्यवाद मुर्दाबाद।

 मई दिवस जिंदाबाद ।।

(जयप्रकाश नारायण किसान नेता हैं और आजकल आजमगढ़ में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles