Saturday, April 20, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट-ग्राहकों के ही इंतजार में बीत रहे हैं दिन: ताजमहल के पास का एक दुकानदार

ताजमहल पूरे विश्व में भारत की शान है। जिसे विदेशों से लोग देखने के लिए आते हैं। मैं भी आगरा की यात्रा के दौरान यहां गई। ताजमहल के पूर्वी दरवाजे की तरफ जैसे ही ऑटो रुका, एक टूरिस्ट गाइड मेरे सामने आया और बड़े सहज भाव से कहने लगा, मैडम ताजमहल घूमना है। इतनी देर में आशीष वहां पर आ गए। आशीष भी ताजमहल में एक टूरिस्ट गाइड हैं। जो विदेशों से और दक्षिण भारत से आऩे वाले सैलानियों को ताजमहल के इतिहास से रूबरू कराते हैं। आशीष और मैं दोनों ही आगे ताजमहल की तरफ बढ़ते हैं। वीकेंड था इसलिए थोड़े बहुत लोग यहां दिख रहे थे।

मैं और संदीप दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि तभी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि जब मैं दस साल पहले आई थी तो यहां यह दुकानें नहीं थीं। ये शायद नई बनी हैं। सड़क के दोनों किनारों पर खाने-पीने की दुकानों से लेकर कलाकृतियों की दुकानें हैं। भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी। आशीष ने एक टूरिस्ट गाइड के नजरिये से मुझे चीजें समझाने की कोशिश। चूंकि कोरोना के कारण ताजमहल काफी लंबे समय तक बंद रहा उसके बाद बार-बार लगते लॉकडाउन के कारण भी उसे बंद किया जाता रहा है।

बातों-बातों में वह बताते हैं कि आप जिस सड़क पर खड़ी हैं। किसी समय में वीकेंड वाले दिन यहां पैर रखने की जगह नहीं होती थी। लगभग दो हजार लोग ताजमहल का दीदार करने आते थे। अब तो कुछ इंडियन ही आते हैं। यहां नवंबर से फरवरी के महीने तक टूरिस्ट भरे रहते थे। जिसके कारण सबकी आमदनी अच्छी चलती थी।

दुकानों की ओर इशारा करते हुए वह बताते हैं कि अब हर कोई इंतजार करता है कि कोई ग्राहक आए और हमारा सामान लेकर जाए। सबके धंधे मंदे पड़े हुए हैं। इसी बीच वह मुझे हैदर खान नाम के एक दुकानदार से मिलवाते हैं। जिनकी यहां मार्बल कॉटेज एंड टेक्सटाइल नाम की दुकान है। हैदर कहते हैं कि कोरोना की सबसे ज्यादा मार टूरिस्ट लाइन वालों को ही पड़ी है। बाकी सारी चीजें खुल रही हैं। लेकिन टूरिस्ट तो अभी इतने आ नहीं रहे हैं। वह बताते हैं कि हमारा सारा बिजनेस ही विदेशी टूरिस्ट पर निर्भर था। अब वह नहीं आ रहे हैं तो हमारी कमाई तो बस 10 प्रतिशत रह गई है। पहले लगभग छह महीने काम चल जाता था। लेकिन कोरोना के बाद तो कभी-कभी ऐसा भी दिन होता है जब कोई ग्राहक दुकान पर नहीं आता है।

हैदर खान की दुकान।

उनसे जब मैंने पूछा कि कोई और भी बिजनेस है उनका तो, उन्होंने बड़े सहज भाव से जवाब देते हुए कहा अभी तक तो नहीं है। लेकिन अब एहसास होता है कि कोई लोकल बिजनेस भी होना चाहिए। जिससे कुछ कमाई हो सके। सरकार से किसी तरह की सहयोग की बात पर वह कहते हैं कि सरकार ने तो कह दिया है कब्रों के लिए हमारे पास कुछ नहीं है।

इसी बीच हम पास स्थित एक हैंड क्राफ्ट की दुकान पर पहुंचे। जहां इकरार अहमद भी वही बात करते हैं। वह बताते हैं कि पहले लॉकडाउन की दौरान तो हम सबको यह लगा था कि यह जल्दी खत्म हो जाएगा और हम लोग सब दोबारा से काम पर लौट जाएंगे। इस दौरान तो स्थिति ऐसी थी कि हम लोग खुद लोगों की सहायता कर रहे थे। लेकिन सेकेंड वेव के बाद हमारी कंडीशन ऐसी हो गई कि बस रोजी-रोटी ही चल पा रही है। अब जब विदेशी टूरिस्ट नहीं आते तब तक कुछ कह पाना मुश्किल है।

इकरार अहमद की दुकान।

इन्हीं की दुकान पर सजे कपड़ों में एक टूरिस्ट गाइड उमाकांत सेंगर बैठे होते हैं। इसी इंतजार में कि कोई मिल जाए। उमाकांत बताते हैं कि वह पिछले 13 सालों से इस प्रोफेशन से जुड़े हैं। वह मिनिस्ट्री ऑफ टूरिज्म के अप्रूव्ड गाइड हैं। वह बताते हैं कि विदेशियों को ताज की सैर कराते थे। लेकिन पिछले दो साल से कोई विदेशी उन्हें मिल ही नहीं रहा है। वह कहते हैं कि स्थिति ऐसी है कि हम सभी सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं। कोरोना के बाद से ही स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि मेरा एक साइड बिजनेस भी है जिससे हमारा घर चल जाता है।

ताजमहल के पास की दुकान।

अब ताज सिर्फ इंडियन ही देखने आते हैं। वह भी गाइड में इतनी रुचि लेते नहीं हैं। जिसका नतीजा यह है कि सिर्फ वीकेंड वाले दिन ही जब थोड़ी भीड़ होती है तो एकाध कोई मिल जाता है। वरना पूरा सप्ताह ऐसे ही टाइम पार हो जाता है।

उमाकांत इस साल के बजट का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सरकार इस साल के बजट को अमृत बजट कह रही है। लेकिन यह पूरी तरह थर्ड क्लास बजट है। उसमें टूरिज्म को लेकर किसी तरह का प्रमोशन नहीं किया गया है। यहां तक की गाइड के बारे में भी किसी तरह का ध्यान नहीं दिया गया है। वह बताते हैं कि ऐसी स्थिति में हम सिर्फ गाइड ही परेशान नहीं हैं। बल्कि यहां जितने भी दुकान वाले छोटे-छोटे खोमचे वाले हैं सभी परेशान हैं। किसी की आर्थिक स्थिति इस वक्त ठीक नहीं है। वह बताते हैं कि आगरा के लगभग पांच लाख लोग परोक्ष और अपरोक्ष रूप से टूरिज्म से जुड़े हुए हैं।

टूरिस्ट गाइड राजिंदर।

हम दोनों एक बार फिर आगे की ओर बढ़ते हैं। जहां एक और गाइड बस यूं ही घूमते हुए मिले। चूंकि इनके पास ज्यादा काम नहीं है। इसीलिए खाली वक्त में बस इधर-उधर घूमते हैं। राजिंदर भी हमें घूमते हुए ऐसे ही मिले। जो बताते हैं कि पिछले दो साल कोरोना और लॉकडाउन के कारण इतना ज्यादा परेशान हुए कि सिर्फ वही जानते हैं।

बंद कैफे की शॉप।

वह बताते हैं कि किसी ने उनकी मदद नहीं की है। कोरोना से पहले के दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं कि पहले स्थिति ऐसी थी खुल कर जी रहे थे। अब तो हाल ऐसा हो गया है कि ब्याज पर पैसे लेने पड़े हैं। सरकार ने कहा कि एक लाख रुपया टूरिस्ट गाइड को मिलेगा। लेकिन अभी तक नहीं मिला है। हम बैंकों का चक्कर लगाते हैं। अधिकारी कह देते हैं जब आएगा तो मिलेगा। राजीव कहते हैं सरकार अपने किए हुए वायदे को पूरा करे ताकि हमें ब्याज के पैसों से निजात मिल जाए।

टूरिस्ट गाइड उमाकांत।

टूरिस्ट गाइड उमाकांत की बात सुनने के बाद हम आगे की ओर बढ़े तो आशीष ने मुझे एक कैफ़े की ओर इशारा करते हुए बताया कि सीसीडी कोरोना के बाद से ही बंद हैं। पता नहीं कब खुलेगा।

अब तक शाम हो चुकी थी। अब लोग भी अपने घरों की तरफ वापस जाना शुरू कर चुके थे। ताजमहल बंद हो चुका था। हम लोग भी जाने की तैयारी में थे। तभी सामने में पंछी पेठे की दुकान देखी। दुकान में एक स्टाफ था। जिससे बात हुई तो उन्होंने पंछी पेठे के डायरेक्टर सुभाषचंद गोयल का फ़ोन नंबर दिया।

पेठे की दुकान।

हमने फ़ोन पर बात करके आगरा में पेठे की स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की। सुभाषचंद गोयल बताते हैं कि पहले पहल जब लॉकडाउन लगा तो हमें शुरुआत के दिनों में ही लगभग 12 से 15 लाख का नुकसान हुआ। इसके पीछे का कारण पूछे जाने पर वह बताते हैं कि पेठे को पहले से ही तैयार करके रखना पड़ता है। हमने भी पहले से ही तैयार करके रखा था। अचानक लॉक डाउन लग जाने के कारण सारे पेठे खराब हो जाते। इससे बचने के लिए हमने सारे पेठे रास्ते में चल रहे मजदूरों को बांट दिए। उसके बाद टूरिस्ट आना बंद हो गए। जिससे पेठे का कारोबार पूरी तरह ठप हो गया। पूरे आगरा में लगभग एक हजार पेठा के कारखाने हैं। जहां लगभग 100 करोड़ का नुकसान हुआ है।

उन्होंने पेठे के कारोबार के गिरने क दूसरा सबसे बड़ा कारण बताया इस पर लगने वाला टैक्स। सुभाष चंद बताते हैं सरकार ने पेठे को मिठाई के टैक्स के दायरे में शामिल किया है। मिठाई 400 से 500 रुपये किलो मिलती है। जबकि पेठा तो सब्जी के भाव में 100 रुपये किलो बिकता है। अब इसमें टैक्स के कारण खर्च ज्यादा होता है। और कमाई कम हो रही है। इसलिए आगरा की यह पहचान भी मंदी के दौर से गुजर रही है।

(आगरा से प्रीति आज़ाद की रिपोर्ट।)

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