Friday, March 29, 2024

प्रतापगढ़ स्पेशल: ईंट भट्ठे से मुक्त कराए गए 12 बंधुआ मज़दूर, प्रशासन ने नहीं दिया रिहाई सर्टिफिकेट

प्रतापगढ़/विलासपुर। “भट्टा मालिक द्वारा ईंट बनाने के लिए मिट्टी दिखाई गई तो हम मजदूरों ने स्प्ष्ट रूप से कह दिया कि यह ईंट बनाने वाली मिट्टी की ज़मीन पथरीली और कंकड़ वाली है,यहां इस मिट्टी से ईंट बनाया जाना मुश्किल होगा,समय और श्रम अधिक लगेगा,इसलिए हम लोग यहाँ काम नहीं कर पाएंगे,हमें कहीं और काम पर लगाया जाए,क्योंकि यहां काम करके हम न के बराबर ईंट का निर्माण कर पाएंगे और हम मजदूरों को चूंकि ईंट की संख्या के आधार पर ही पैसा दिया जायेगा,हम लोगों के श्रम का हमें कोई फायदा नहीं हो पायेगा। हम मज़दूरों की सीधी सपाट बात को सुनकर भट्टा मालिक गुस्से से लाल पीले होते हुए गालियां देने लगा और बोला हमने रजवा को पैसा दे दिया है, तुम लोगों को कोई पैसा भी नहीं दूँगा और जब तक चाहूंगा यहीं काम करवाऊँगा,अब तुम लोगों को यहीं काम करना होगा।”

मजदूरों ने कहा, “हमें कोई पैसा नहीं मिला है,हम यहां काम नहीं करेंगे” इस पर भट्टा मालिक ने कहा, “तुम कहीं नहीं जा सकते हो।” मजदूरों ने कहा हम, “अपने ऊपर हो रहे जुल्म ज्यादती की शिक़ायत उच्च अधिकारियों से करेंगे”।तब भट्टा मालिक ने बोला कि सब जगह हमारे लोग हैं तुम कहीं शिक़ायत नहीं कर पाओगे। अब तुम लोग यहीं रहोगे और यहीं काम करोगेऔर सभी मजदूरों को बंधुआ मजदूर बना लिया और ज़ोर ज़बरदस्ती काम करवाने लगा।

लखन सुबोध के साथ छुड़ाए गए सभी बंधुआ मजदूर

यह किसी साहित्यिक कहानी की पंक्तियां नहीं बल्कि ग़ुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराये गये बंधुआ मजदूरों के जीवन का यथार्थ है जिसे राम कैलाश कोसले ने जनचौक से साझा किया है।

दरअसल छत्तीसगढ़ में विलासपुर जिले के भकचौड़ा गांव के प्रवासी मजदूरों को लेकर लेबर दलाल रजवा अपने एक स्थानीय साथी श्याम लाल के साथ 29 दिसम्बर 2021 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में दादूपुर गांव में स्थित राज ईंट मार्का के भट्टा मालिक रमेश गुप्ता के यहां पहुंचा। जिन मजदूरों को रजवा और उसके साथी छत्तीसगढ़ से प्रतापगढ़ ईंट भट्ठा पर काम करने के लिये लेकर आये थे उनमें विष्णु प्रसाद पुत्र गोपाल (60वर्ष),राम कैलाश कोसले पुत्र विष्णु प्रसाद (28वर्ष),राम देव पुत्र विष्णु प्रसाद (26वर्ष),रानी कोसले पुत्री विष्णु प्रसाद (20वर्ष), भानुराम पुत्र पकला (30वर्ष), लूदरी बाई पत्नी भानुराम (27वर्ष),सत्य नारायण पुत्र मुकुंद (27वर्ष), गनेशिया बाई पत्नी सत्यनारायण (24वर्ष),पप्पू पुत्र दशरथ (25वर्ष),कविता पत्नी पप्पू (22वर्ष) शामिल थे।

रजवा और श्याम लाल इन मजदूरों को यह कह कर प्रतापगढ़ लाये थे कि ईंट भट्टे पर ईंट बनाने का काम करना होगा। विष्णु प्रसाद कोसले बताते हैं कि “हम लोग 30 दिसम्बर, 2021 को ईट भट्टे पर पहुंचे थे। हमें ईंट भट्टे पर पहुँचा कर श्याम लाल फ़रार हो गया। और हम ईंट भट्टा मालिक के चंगुल में फंस गये। भट्टा मालिक दबंग आदमी है और उसके रखे हुए लठैतों के डर से हम मज़दूर काम करने को मजबूर थे”।

कैसे आज़ाद कराये गये बँधुआ मज़दूर

बंधुआ मज़दूरों की रिहाई की आगे की कड़ी लोक सिरजनहार (LSU)अध्यक्ष लखन सुबोध से जुड़ती है। वो बताते हैं कि ईंट भट्ठे से भागकर विलासपुर पहुंचे साठ वर्षीय विष्णु प्रसाद कोसले अपने दो रिश्तादारों के साथ हमारे दफ़्तर आए। और उन्होंने अपने परिवार व अन्य साथियों के उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में ईंट भट्ठे पर बंधुआ मज़दूर बनाये जानी की बात बताते हुये मदद की गुहार लगाई। उक्त व्यक्ति को आपके बारे में जानकारी कहां से मिली इस सवाल के जवाब में लखन सुबोध बताते हैं कि हम लोग बंधुआ मज़दूरों की समस्या पर विगत 40 वर्षों से काम कर रहे हैं। उन मज़दूरों का गांव घर विलासपुर से लगा हुआ है। जो कि हमारा कार्यक्षेत्र है। और वो मजदूर हमारे संगठन लोक सिरजनहार की गतिविधियों से पहले से ही वाकिफ़ थे। इसके अलावा हमारे सामाजिक संगठन गुरघासी दास सेवा संगठन (GSS) से भी उनके तालुल्क़ात रहे हैं और उन लोगों का परिचय और संपर्क रहा है।

इसके बाद लखन सुबोध ने छत्तीसगढ़ एक्टू राज्य सचिव बृजेन्द्र तिवारी से सम्पर्क किया और बृजेंद्र तिवारी ने बिना देर किये उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद में एक्टू के राष्ट्रीय सचिव डॉ. कमल उसरी से सम्पर्क किया। इसके आगे के घटनाक्रम को सूत्रधार डॉ. कमल उसरी बयां करते हैं। वो बताते हैं, छत्तीसगढ़ से जैसे ही हमारे पास फोन आया और हमें जानकारी मिली। हम ग्राहक बनकर ईंट भट्ठे पर गये और वहां जाकर हमने मजदूरों की व्यथा अपनी आंखों से देखी। डॉ कमल उसरी आगे बताते हैं कि जब हम लोगों ने किसी तरह उन मज़दूरों को भरोसा दिलाया कि हम उनकी मदद करने आये हैं उसके बाद वो साहस करके हमसे संपर्क में बने रहने के लिए तैयार हो गए। इसके साथ ही हम लोगों ने इलाहाबाद श्रम आयुक्त से बात की।

बंधुआ मजदूरी से छुड़ाए गए विष्णु प्रकास कोसले

प्रशासन से बात की। लिखा-पढ़ी की गयी। छत्तीसगढ़ वालों से भी कहा कि आप लोग भी लिखिए तो लखन सुबोध ने प्रशासन को लिखा। और लगातार अधिकारियों के यहां जाना और दबाव बनाना जारी रहा। साथ ही यह ध्यान रखा गया कि दबंग भट्टा मालिक मजदूरों को और अधिक नुकसान न पहुंचा पाए। उसके बाद श्रम विभाग से लोग गये,पुलिस गयी और वहां उन लोगों ने मज़दूरों से बात किया तो मज़दूरों ने ज़ुल्म की सारी कहानी बताई। आखिर में मजदूरों को उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा 22मार्च, 2022 को ईंट भट्टा मालिक से मुक्त कराने के बाद प्रतापगढ़ से एक विशेष वाहन में बैठाकर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ले जाया गया। फिर लखन सुबोध के सहयोग से उन सभी को उनके निजी आवास पर 23 मार्च 2022 को देर शाम तक पहुँचा दिया गया ।

इतनी एहतियात की कोई खास वजह?

इतना एहतियात बरते जाने की कोई खास वजह के सवाल पर डॉ कमल उसरी इलाहाबाद के हंडिया की एक घटना का जिक़्र करते हैं। वो बताते हैं कि आज से छह-सात साल पहले हंडिया में भी 22 मजदूरों को बंधुआ बनाये जाने की एक घटना सामने आई थी। हम लोगों को पता चला तो हमने इलाहाबाद कमिश्नर के यहां शिक़ायत की। कमिश्नर ने अपने श्रम प्रवर्तन अधिकारी को भेज दिया। और उसने लौटकर रिपोर्ट लगा दिया कि वहां कोई नहीं है। मैं और मेरे एक साथी रुस्तम कुरैशी वहां गये और देखा तो वहां मजदूर थे। फिर वहां से आकर मैंने डीएलसी से कहा। डीएलसी हमारे ऊपर भड़क गया और बोला कि आप लोगों को कोई काम नहीं है और फालतू में नेतागीरी करते रहते हैं आप लोग। फिर हम लोगों ने उस मामले में पीआईएल दायर की और मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी इन लोगों ने रिपोर्ट दे दी थी कि श्रम प्रवर्तन अधिकारी गया था लेकिन वहां कोई मज़दूर नहीं मिला। ये लोग फालतू की नेतागिरी करते हैं।

कैलाश कोसले

तब हमारे वकील ने जज को भरोसा दिलाया कि ये लोग सारा जीवन मज़दूरों के हक़ के लिये लगा रहे हैं इन्हें कौन सा चुनाव लड़ना है जो आप इन्हें ऐसा कह रहे हैं। जज ने हमें कहा कि आप एक बार कलेक्टर से जाकर मिलिए। अगर वो आपकी बात नहीं सुनता है तब आप लोग हमारे पास आइएगा। फिर हम लोग रिस्क लेकर दो मज़दूरों को बीमारी के बहाने से लेकर आये और इलाहबाद कलेक्टर के सामने पेश किया। कलेक्टर ने कहा कि वहां तो कोई मज़दूर ही नहीं है श्रम अधिकारी की रिपोर्ट कह रही है। फिर हमने उन दोनों मज़दूरों को आगे कर दिया। जब उन्होंने अपनी व्यथा कथा कलेक्टर को सुनाई तो कलेक्टर ने नाराज़ होकर कमिश्नर को फोन करके डाटा। अनिल सिंह एसडीएम हंडिया ने सीओ वगैरह को साथ लेकर वहां छापा मारा। हम लोग भी गये और 22 मज़दूर वहां से बरामद हुये। उनका कहना था कि वह बहुत ही तीखा अनुभव था मेरे लिये। इसलिये प्रतापगढ़ वाले केस में हमने बहुत एहतियात बरतते हुये प्रशासन को भरोसे में लेकर क़दम उठाया।

सत्यप्रकाश कोसले

बंधुआ मज़दूर नहीं घोषित करते

एलएसयू अध्यक्ष लखन सुबोध प्रशासन के गैरजिम्मेदाराना रवैये पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि LSU ने प्रशासन को बंधुआ मज़दूरों के बारे में अवगत कराया। प्रशासन टाल मटोल करता रहा। लेकिन LSU प्रशासन पर लगातार दबाव बनाता रहा। तब प्रशासन ने मुक्त कार्यवाही तो किया लेकिन बंधुआ प्रमाण पत्र एवं बकाया मजदूरी का भुगतान अभी तक नहीं हुआ है। मुक्त होकर मजदूर कहीं उत्तर प्रदेश में किसी तरह से अपनी दुखद व्यथा को सार्वजनिक न कर सकें,इसलिए प्रशासन ने उन्हें सीधे प्रतापगढ़ से एक विशेष गाड़ी में बैठाकर बिलासपुर भेज दिया। 23 मार्च को बिलासपुर पहुँचकर सभी मज़दूर LSU की ऑफिस आये अपनी आपबीती सुनाई।

डॉ. कमल उसरी

वहीं डॉ कमल उसरी प्रशासन की भूमिका पर कहते हैं कि “श्रम विभाग के अधिकारी बँधुआ मज़दूरों को बँधुआ मज़दूर घोषित नहीं करते। वो बस मज़दूरी दिलवा कर छोड़ देते हैं। और बकाया दिलवाकर मज़दूरों से अंगूठा या दस्तख़त लेकर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता है। क्योंकि बंधुआ मज़दूर घोषित करने पर आपको उनके पुनर्वास और घर तक पहुंचाने का ख़र्च देना पड़ता है। इसके अलावा प्रशासन पर भी सवाल उठता है कि उसकी नाक के नीचे इतने लोग बंधुआ कैसे बने रहे। उनको जिलाधिकारी व एसडीएम द्वारा प्रमाणपत्र ज़ारी करना पड़ता है। इन सबसे बचने के लिये बंधुआ मज़दूरों को बंधुआ मज़दूर का सर्टिफिकेट प्रशासन नहीं देता”।

रानी कोसले

लेबर दलाल ने बंधुआ मज़दूरों को बताया बेईमान कामचोर

गांव बुंदेला,थाना-ब्लाक-बिल्हा,जिला-बिलासपुर निवासी लेबर दलाल रजवा बताता है कि सारे आरोप फर्जी हैं। भट्ठा मालिक बहुत संत और नेक आदमी है। उसके भट्ठे पर मेरा बड़ा साला कई सालों से काम कर रहा है। उसी के माध्यम से उन लोगों को वहां भेजा था। वहाँ एक हजार ईंट बनाने का 600 रुपये मिलता है। ये लोग बहानेबाजी करके बराबर काम भी नहीं किये। और बुड्ढा (विष्णु प्रसाद कोसले) बहानाबाजी करके घर आ गया और भट्ठा मालिक के ख़िलाफ़ केस कर दिया। भट्ठा मालिक सीधा सादा है। यही लोग बेईमान हैं। कामचोर हैं। इन लोगों ने मालिक से पैसा ले लिया और काम नहीं किया। फर्जी काम किया। हम लोगों ने पहले ही इनसे बोला था कि काम नहीं करना है तो अपने घर चले जाओ। मैं गुप्ता जी (भट्ठा मालिक)को 13 साल से जानता हूँ।

(प्रयागराज से जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles