Friday, March 29, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: बलात्कार और मौत से बचने के लिए बेचापाल में ग्रामीण कर रहे हैं कैंप का विरोध

बेचापाल (बीजापुर)। सिलगेर, सारकेगुड़ा, एडसमेटा जैसे बड़े आंदोलन के बाद अब बेचापाल कैंप और सड़क निर्माण को लेकर हजारों ग्रामीण सड़कों पर उतर आए हैं। ये ग्रामीण लगातार 16 दिनों से आंदोलन कर कल हुर्रेपाल से लम्बी रैली निकालकर मिरतुर जाना चाहते थे लेकिन सुरक्षा बल के जवानों ने उन्हें बेचापाल कैम्प में ही रोक दिया। आंदोलन कर रहे ग्रामीणों की सुरक्षा बल के जवानों के साथ तीखी बहस भी हुई। करीब दो से तीन हज़ार ग्रामीण अपने पारम्परिक देवी देवताओं के साथ यह रैली निकाले हुए थे।

बीजापुर जिले में ग्रामीण पुलिस कैंप का लगातार विरोध कर रहे हैं

एक तरफ जहां सिलगेर में पिछले सात महीने से चल रहे पुलिस कैंप का विरोध थम नहीं रहा है वहीं अब मिरतुर थाने के ग्राम बेचापाल और हुर्रेपाल में लगभग 31 गांव के ग्रामीण सुरक्षा बलों के कैंप और सड़क के विरोध में लामबंद हो गए हैं।

बीते पिछले तीन सालों से देखा जाए तो बस्तर के अलग-अलग क्षेत्रों में ज्यादातर अंदरुनी क्षेत्रों में सरकार और सुरक्षा बल और उनके कैम्प के विरोध में कई बड़े – बड़े आंदोलन बस्तर के आदिवासी कर रहे हैं।

CRPF कैम्प और सड़क के विरोध में मिरतुर इलाके के बेचापाल गांव में 30 नवंबर से करीब 3000 ग्रामीण सरकार के खिलाफ़ आंदोलन में जुटे हुए हैं। आंदोलन कर रहे ग्रामीणों में महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं। ग्रामीणों से पूछने पर उन्होंने बताया कि हमें अपने इलाके में न तो सुरक्षा कैम्प चाहिए और न ही सड़क चाहिए।

सड़क और सुरक्षा कैम्प बनते ही सुरक्षा बल के ज़वान हमारे गांवों में घुसकर बेकसूर ग्रामीणों को फर्जी नक्सल प्रकरण जैसे तमाम मामलों में फंसाकार निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों को बेवजह गिरफ्तार करेंगे और हमारे गांव की महिलाओं पर पुलिस के जवान अत्याचार करेंगे। साथ ही निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों को नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ों में मार दिया जाएगा।

ग्रामीण सड़क, सुरक्षा कैम्प के विरोध के साथ – साथ स्थानीय पुलिस के द्वारा किए जा रहे प्रताड़नाओं का भी विरोध कर रहे हैं।

उनका कहना है कि जब DRG के ज़वान सर्चिंग में अंदरूनी गावों में आते हैं तो गांव में हो रहे कुछ भी कार्यक्रम मेला या मुर्गा बाज़ार जैसे उत्सव में नाच गा रहे ग्रामीणों के साथ मार-पीट करते हैं और उनको अपने साथ उठाकर ले जाते हैं और जेलों में बंद कर देते हैं। तो कई ग्रामीणों को रास्ते में माओवादी बताकर फर्जी एनकाउंटर में मार देते हैं। या फिर लकड़ी के लिए जंगल गई औरतों और लड़कियों को जंगल में पकड़कर उनके साथ अनाचार करते हैं। इस कारण हम सुरक्षा कैम्प और सड़क का विरोध कर रहे हैं और अपने गांव में पुलिस कैम्प लगने नहीं देंगे।

एक आंदोलनकारी ग्रामीण ने बताया कि मैं और मेरे साथ गांव के कम से कम 35 ग्रामीण एक साथ पिछली अक्टूबर के महीने में मुर्गा बाज़ार जा रहे थे तभी रास्ते में कूड़मेर गांव में पुलिस ने हमें घेर लिया और उसमें से तीन लोगों को नक्सली बताकर बंधक बना लिया और बाकी लोगों को छोड़ दिया। उसके बाद तीनों निर्दोष निहत्थे ग्रामीणों को पास की पहाड़ी में ले जाकर मार दिया गया जिसका हम सरकार से न्याय चाहते है, और इस कारण हम यहां कैंप विरोध के साथ इन सब मामलों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।

एक बुजुर्ग व्यक्ति आसाराम ने बताया कि पुलिस के ज़वान हम ग्रामीण आदिवासियों को सन् 2005 से ही नक्सल मामलों से जोड़कर प्रताड़ित कर रहे हैं और उस वक्त भी 2005 में बीजापुर ज़िले के भैरमगढ़ पुलिस ने मेरे घर को जला दिया था और गांव वालों के साथ मार पीट की थी।

आसाराम का कहना है कि पुलिस को गांवों में घुसकर ऐसे नहीं करना चाहिए। हम आदिवासी अपने तरीक़े से रहते हैं और जीवन-यापन करते हैं।

आंदोलन में शामिल राम सिंह कड़ती ने बताया कि 15 जुलाई को हम अपने खेत की जुताई करने के लिए तामोड़ी गांव से अपने रिश्तेदारों के यहां बैल लेने के लिए दंतेवाड़ा के निलावाया गांव गए हुए थे। बैल को लेकर आ रहे थे तभी दोपहर के तीन बजे DRG के जवान वहां आ गए और हमारे तीन लोगों को उन्होंने पकड़ लिया और एक को वहीं नक्सली बताकर मार दिया। और कहने लगे कि बाकी दोनों को भी शूट कर देंगे। तभी उनमें से दो-तीन ज़वानों का कहना था कि इन्हें छोड़ देना चाहिए ये नक्सली नहीं हैं। लेकिन दूसरे जवानों ने उनकी बातें नहीं मानीं। और बचे दो ग्रामीण साथियों को भी रस्सी से बांधकर दूर ले जाकर उन्होंने मार दिया। और उन्हें माओवादी करार दे दिया।  

इसी बीच एक महिला जानकी (बदला हुआ नाम) आगे आई और उसने बताया कि DRG के जवान एक दिन गांव में आए और मुझे पकड़कर सवाल-जवाब करने लगे और नक्सली कहां छुपे हैं ऐसा कहते हुए रास्ता दिखाने की बात कही। और फिर जंगल-जंगल दो दिनों तक उन्होंने मुझको घुमाया और इस बीच मेरे साथ कई बार बलात्कार किया गया और फिर आखिर में जंगल में छोड़कर चले गए।

नीलावाया घटना में पीड़ित रामसिंह कड़ती और उनके साथ में पीड़ित महिला।

इन सब घटनाओं के चलते ग्रामीण पहले से ही डरे हुए हैं और उसी का नतीजा है कि सड़क और कैंप के विरोध में आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतर गए हैं।

(बीजापुर के बेचापाल कैंप से रिकेश्वर राना का रिपोर्ट।)

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