जम्मू और पैंगांग का यूपी से क्या है रिश्ता?

कल दो खबरें आयीं और दोनों सीमाई क्षेत्रों से। ब्लूमबर्ग की खबर के मुताबिक लद्दाख से सटे पैंगांग इलाके में जहां चीन के साथ पिछले दिनों संघर्ष चला और फिर वार्ता का दौर चल रहा था, सेना ने अपने 50 हजार और सैनिकों को भेजा है। दूसरी खबर पाकिस्तान से सटे जम्मू वाले इलाके में वायुसेना क्षेत्र में लगातार दो दिनों तक हुए ड्रोन हमले की है। पहले दिन के हमले में वायुसेना के दो जवान घायल हो गए जबकि दूसरे दिन दो ड्रोन एक साथ आए लेकिन कोई क्षति नहीं हुई। अब चलते हैं पहली खबर पर।

अभी जबकि पैंगांग संघर्ष की घटना के बाद भारत और चीन के बीच वार्ता चल रही थी। और अभी एक हफ्ते पहले यह खबर आयी थी कि आगे की वार्ता के लिए दोनों देशों की सरकारें अपने प्रतिनिधियों के नामों और स्थान पर विचार कर रही हैं। लेकिन इस बीच सीमा पर अचानक रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा और उसके बाद 50 हजार सैनिकों की तैनाती का फैसला कुछ दूसरे ही संकेत दे रहा है। आखिर इसके पीछे प्रमुख वजह क्या हो सकती है? यह बात किसी से छुपी नहीं है कि सैन्य क्षेत्र में चीन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।

और उसके साथ किसी लड़ाई में जाने से घाटे के सिवा और कुछ नहीं मिलना है। लिहाजा ऐसी स्थिति में किसी भी देश की रणनीति शांति बनाए रखने की होगी और उन्हीं स्थितियों में कैसे ज्यादा से ज्यादा चीजों को अपने पक्ष में कर लिया जाए यह उसकी रणनीति का प्रमुख हिस्सा होगा। लेकिन यहां कम से कम यह देखा जा सकता है कि भारत सरकार उस रणनीति पर काम करते नहीं दिख रही है। सीमा पर नए सैन्य जमावड़े को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है। फिर सवाल उठता है कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है?

इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं। लेकिन सबसे बड़ी कुछ वजहों में से एक है मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को मोदी सरकार के करीब लाना। दरअसल बाइडेन और मोदी के बीच रिश्ते अभी भी ‘सामान्य’ नहीं हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बाइडेन ने अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसमें मोदी के साथ उनकी कोई नजदीकी दिखी हो या उनकी तरफ से भविष्य में उसे बनाने की कोशिश हो। लेकिन एक रास्ता है जिसके जरिये मोदी बाइडेन के करीब जा सकते हैं।

वह है चीन के साथ भारत की दुश्मनी। दरअसल सामरिक स्तर पर अमेरिका चीन को दुनिया में अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहा है। न केवल आर्थिक बल्कि सैन्य और दूसरे तरीके से कहें तो वैचारिक स्तर पर भी दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं। और जिस तरह से चीन दुनिया के बाजारों पर कब्जा करता जा रहा है उससे अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है तो वह अमेरिका है। ऐसे में चीन को उसके घर में घेरना और उसको तरक्की के रास्ते से हटाकर सैन्य क्षेत्र में सीमित कर देने की रणनीति में भारत उसका सबसे कारगर मोहरा साबित हो सकता है। भारत की मौजूदा सरकार भी कुछ अपनी वैचारिक स्थितियों और उसका भारत के भीतर जरूरी लाभ हासिल करने के नजरिये से इस काम को खुशी-खुशी कर सकती है। लिहाजा बाइडेन के नजदीक जाने का मोदी के लिए यह आसान रास्ता हो सकता है।

क्योंकि इसमें मोदी अमेरिका और बाइडेन के बड़े हितों को पूरा करते दिख सकते हैं। इसका दूसरा पहलू भारत की अंदरूनी राजनीति से जुड़ता है। जिसमें इसको चुनावी लाभ से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में जबकि 2022 के यूपी चुनाव के लिए बीजेपी और संघ ने अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। सूबे में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को शक्ल देने के लिए उसने अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं। ऐसे में अगर बार्डर गर्म होता है और यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि पिछले दिनों चीनी सैनिकों के साथ हुई लड़ाई में मिली मात का मोदी जवाब दे रहे हैं। तो वह न केवल अपने कैडरों बल्कि आम जनता को उत्साहित कर अपने प्रति एक नया प्रेम पैदा करने में सफल हो सकता है। 

जम्मू में हुई दूसरी घटना को भी कुछ इसी नजरिये से देखा जा सकता है। इस देश में अभी तक किसी ड्रोन से न तो पाकिस्तान ने और न ही आतंकियों ने कोई कार्रवाई की है। यह अपने किस्म की पहली घटना है। और उसका सीधा सैन्य क्षेत्र में इस्तेमाल हुआ है। अभी तक घाटी ही आंतकी घटनाओं का केंद्र हुआ करती थी। लेकिन यह घटना जम्मू में घटी है। और वायु सेना का यह क्षेत्र पाकिस्तान बॉर्डर से तकरीबन 14-15 किमी दूर स्थित है। हालांकि इस मामले में अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। लेकिन गहराई से निगाह डालने पर कम से कम कुछ संकेत और इशारे तो मिल ही सकते हैं। जहां तक रही पाकिस्तान सरकार के इसमें शामिल होने की बात तो उसकी सच्चाई यह है कि नीतियों के स्तर पर इमरान सरकार अभी इस तरह के किसी पचड़े में नहीं फंसना चाहती है।

यहां तक कि अफगानिस्तान जिसके साथ उसका सामरिक हित जुड़ा हुआ है, हाल के दिनों में अमेरिका ने उस पर निगरानी रखने के लिए पाकिस्तान में एकाध ठिकाने की मांग की तो उसने उसे सिरे से खारिज कर दिया। इमरान ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखा कि इस आतंकवाद ने उसके 70 हजार नागरिकों की जान ले ली। साथ ही आर्थिक स्तर पर उसे फायदा 20 बिलियन डालर का हुआ और नुकसान 150 बिलियन डालर का। लिहाजा वह अब और जान-माल का नुकसान सहने के लिए तैयार नहीं है। शायद यही वजह है कि न केवल भारत-पाक सीमा पर शांति है बल्कि पाकिस्तान की तरफ से होने वाली आतंकी गतिविधियां भी नाम-मात्र ही रह गयी हैं। तब ऐसी स्थिति में जम्मू में होने वाली यह घटना एक रहस्य बन कर उभरती है। वैसे सवाल तो पूरे सुरक्षा बंदोबस्त पर ही खड़ा होता है। एक बार नहीं बल्कि दो बार ड्रोन आते हैं और वायुसेना को उनके स्रोतों के बारे में पता नहीं चल पाता है। इससे बड़े आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है?

पहला ड्रोन तो बाकायदा विस्फोटक लेकर आया था और उसने अपने मंसूबों को अंजाम देकर वापस भी लौट गया। यह रविवार की घटना थी। और फिर सोमवार को दो और ड्रोन आए और फिर चले गए। हालांकि अभी तक जो आधिकारिक बयान आए हैं उनमें उनके आंतरिक क्षेत्र से पैदा होने की आशंका से इंकार नहीं किया गया है। यह पूरा घटनाक्रम पुलवामा की याद को भी ताजा कर देता है। जिसमें बिल्कुल प्रायोजित तरीके से चीजों को अंजाम दिया गया था और उसके बाद पाकिस्तान के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक कर 2019 के पूरे चुनावी माहौल को बदल दिया गया था। बहरहाल देखना होगा कि इस मामले की क्या सच्चाई सामने आती है। यह कितना जम्मू-कश्मीर के अपने आंतरिक विवादों का नतीजा है। कितना इसमें पाकिस्तान का हाथ है या फिर इसके पीछे कोई साजिश है। जिसके अपने दूरगामी राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं।

इन सारी स्थितियों में एक बात बिल्कुल तय है कि बॉर्डर गरम हो रहा है। दोनों सीमाओं पर होने वाली ये गतिविधियां सिर्फ वहीं तक सीमित नहीं रहेंगी। भारत के भीतर भी वह असर डालेंगी। और उसका असर न केवल जनता के मानस पर होगा बल्कि उसके राजनीतिक फैसले को भी वो प्रभावित करेंगी। तात्कालिक तौर पर यूपी में होने वाले 2022 के चुनाव के इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है। संघ परिवार ने  इस चुनाव की तैयारी के लिए जिस तरह की चौतरफा रणनीति बनायी है उसमें इस कोण के भी शामिल होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि यह कैसे विकसित होगा और कहां तक जाएगा और फिर इसका कैसे राजनीतिक लाभ हासिल किया जाएगा यह सब कुछ अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि संघ-बीजेपी 2022 को अपने हाथों से कत्तई जाने नहीं देना चाहते। लिहाजा साम-दाम-दंड-या फिर भेद से उस चुनाव को जीतने की कोशिश करेंगे।

जिसका ट्रेलर इस समय यूपी में चल रहे जिला पंचायत के चुनावों में देखा जा सकता है। जहां विपक्षी दलों के प्रत्याशियों को न जीतने देने के लिए हर वह धतकरम किया जा रहा है जिसकी कि अभी तक कोई मिसाल नहीं मिलती है। कहीं प्रत्याशी का अपहरण कर लिया गया। तो कहीं उसे खरीद लिया गया। जहां प्रत्याशी बिकने या फिर अपहरण से बच गए तो उनके प्रस्तावकों की घेरेबंदी की गयी। और इससे भी बात नहीं बनी तो फिर एफआईआर करने से लेकर उन्हें जेल में डाल देने की धमकी दी गयी। पूरी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में बीजेपी का कैडर बना कर उतार दिया गया। और कुछ प्रत्याशी अगर नामांकन स्थल तक पहुंचने में कामयाब हो गए तो उन्हें न केवल ताकत के बल पर रोक दिया गया बल्कि खुलेआम उनकी पिटायी की गयी और इस पूरे दौरान साथ में खड़ी पुलिस मौन साधे रही। जैसा कि योगी के गृह क्षेत्र गोरखपुर में हुआ और जिसका वीडियो पूरी दुनिया में वायरल हो चुका है। यही कहानी वाराणसी और सहारनपुर में भी दोहरायी गयी। और अगर कुछ प्रत्याशी नामांकन करने में कामयाब भी हो गए तो उनके पर्चे खारिज कर सत्ता ने अपने मंसूबों को पूरा कर लिया। मतदान 3 जुलाई को है लिहाजा इस बीच और क्या-क्या गुल खिलाया जाता है यह देखने की बात होगी।

लोकतंत्र को यूपी की सड़कों पर नंगा कर दिया गया। गुंडागर्दी और तानाशाही के बल पर पंचायत अध्यक्षों की कुर्सियों पर कब्जे कर लिए गए। लेकिन चुनाव आयोग धृतराष्ट्र बना रहा। इस दौरान गांधी के तीनों बंदरों की आत्मा उसके भीतर समायी रही। बंगाल में चुनाव के बाद घटी कुछ हिंसक घटनाओं पर बीजेपी ने पूरे आसमान को अपने सिर पर उठा लिया था। और फिर एक महीने तक उसने मीडिया के अपने शिकारी कुत्तों को बंगाल में उतार दिया था। सुबह से लेकर शाम तक बंगाल ही बंगाल होता था। लेकिन अब जबकि यूपी में दिनदहाड़े लोकतंत्र का अपहरण कर लिया गया है और लोग चुनाव लड़ने के अपने बुनियादी हक से भी वंचित हो गए। तब न यह बात गोदी मीडिया को दिखी और न ही बीजेपी-संघ समर्थकों को इसमें कुछ गुरेज नजर आया। लेकिन वह नहीं जानते कि ऐसे मौके पर चुप्पी साधकर वो अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

उन्हें नहीं पता कि जिस दिन इस देश से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। नागरिक के तौर पर उनका अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है राज गुंडों और माफियाओं का होगा। एक नागरिक के तौर पर न तो वह उनके और न ही उनके अपनों के हित में होगा। यूपी को देखकर 80 के दशक का बिहार याद आ गया। जब वहां मतपत्रों की खुलेआम लूट होती थी और बूथों पर कब्जे किये जाते थे। लेकिन माना जा रहा था कि हम उस बीमारी से बाहर आ गए हैं। और लोकतंत्र अब स्वस्थ हो गया है। और किसी भी नागरिक को वोट डालने के उसके बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं होना पड़ेगा। लेकिन यह क्या 21 वीं सदी में हमारे सामने वह तस्वीर पेश की जा रही है जिसको हमने बहुत पीछे छोड़ दिया था। उस समय तो वह कमजोर तबकों पर आजमाया जाता था। लेकिन यहां तो विपक्ष के धुरंधर लोगों को ही नाथ दिया जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि संघ कितना मजबूत हो गया है और उसने किस स्तर पर जाकर लोगों को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)

महेंद्र मिश्र
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