Thursday, April 25, 2024

मरांग बुरु बचाओ अभियान: भारत यात्रा जारी, 11 फरवरी से चक्का जाम

आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और सुमित्रा मुर्मू के नेतृत्व में 17 जनवरी को जमशेदपुर से शुरू हुई ‘मरांग बुरु (पारसनाथ पर्वत) बचाओ भारत यात्रा’ राज्य के विभिन्न जिलों का दौरा करते हुए 11 फरवरी से अनिश्चितकालीन रेल व चक्का जाम में तब्दील हो जाएगी।

यह यात्रा 2023 में हर हाल में सरना धर्म कोड की मान्यता लेने, कुर्मी को एसटी बनाने वालों का विरोध करने, असम-अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को एसटी में शामिल करने, झारखंड में प्रखंडवार नियोजन नीति लागू करने, देश के सभी पहाड़ पर्वतों को आदिवासियों को सौंपने, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार लाने के मुद्दों को लेकर चल रही है।

आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने बताया कि 14 जनवरी 2023 को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र प्रेषित कर इन विषयों की जानकारी दी गई है। उन्होंने कहा है कि सेंगेल का दृढ़ संकल्प है कि ‘मरांग बुरु (पारसनाथ पर्वत) को हर हाल में जैनों के कब्जे से छुड़ाना है। उन्होंने कहा कि ‘मरांग बुरु पर पहला अधिकार हम आदिवासियों का है। यह हमारे लिए राम मंदिर, स्वर्ण मंदिर, मक्का मदीना और वेटिकन सिटी से कम नहीं है।

वे आगे कहते हैं कि हम आदिवासियों का दुर्भाग्य है एक आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासियों के ईश्वर, मरांग बुरु को 5 जनवरी 2023 को नोटिफिकेशन द्वारा जैनों को सौंपने या बेचने का काम किया है। पहले दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने 1993 में झारखंड को बेचा। अब गोड्डा जिले के तालझारी के आदिवासी ग्रामीणों की जमीन को 19 जनवरी 2023 से बुलडोजर लगाकर जबरदस्त छीना जा रहा है। ग्रामीणों को पीटा जा रहा है, डराया जा रहा है, बेवजह फर्जी मुकदमों में घसीटा जा रहा है और वहां के स्थानीय जेएमएम विधायक लोबिन हेम्ब्रम, सांसद विजय हंसदा और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुप हैं।

उन्होंने कहा कि यह सभी परिदृश्य दर्शाता है कि झामुमो के नेता आदिवासी विरोधी हैं। वे ख़ातियानी जोहार यात्रा के नाम से जनता को ठगने का काम कर रहे हैं। उनके सहयोगी संगठन की तरह कार्यरत आसेका, मांझी परगना महाल, संताली लेखक संघ आदि भी चुप रहकर मरांग बुरु को लुटाने-मिटाने में योगदान कर रहे हैं।

Marang Buru
Marang Buru

उन्होंने कहा कि कुर्मी को आदिवासी बनाने का षड्यंत्र भी जेएमएम ने रचा है। जो हम असली आदिवासियों के लिए फांसी का फंदा है। आदिवासी सेंगेल अभियान, जेएमएम और उनके सभी सहयोगियों को बेपर्दा करेगा। क्योंकि किसी भी पार्टी, संगठन और नेता से बड़ा है, आदिवासी समाज और मरांग बुरु। जिसके साथ धोखेबाजी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

30 जनवरी 2023 को झारखंड, पं. बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम के लगभग 50 जिला मुख्यालयों में मरांग बुरु को बचाने के लिए और सरना धर्म कोड को 2023 में हर हाल में लेने के लिए मशाल जुलूस निकाले जा रहे हैं। साथ ही महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन पत्र प्रेषित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार और झारखंड सरकार के द्वारा मरांग बुरु पर आदिवासिओं की वैधानिक वापसी और सरना धर्म कोड की मान्यता संबंधी कोई सकारात्मक पहल नहीं होने के खिलाफ तिलका मांझी की जयंती 11 फरवरी 2023 से राष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितकालीन रेल-रोड चक्का जाम किया जाएगा।

भारत यात्रा 28 फरवरी 2023 तक चलेगी। भारत यात्रा देश के विभिन्न राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में जिलेवार जनसभा करेगी, जनता को जागरूक करेगी। भारत यात्रा के दौरान मरांग बुरु बचाने के साथ-साथ सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए भी हर संभव प्रयास किया जाएगा।

Marang Buru
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आदिवासी सेंगेल अभियान देश की आदिवासी जनता और संगठनों से शांतिपूर्ण सहयोग की अपील की है। साथ ही सेंगेल देश और दुनिया के सभी प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों और भारतीय संविधान में आस्था रखने वालों से पूछना चाहता है- कि क्या आदिवासियों को उनके ईश्वर, उनकी प्रकृति पूजा धर्म और धार्मिक आस्था विश्वास का अधिकार नहीं है?

क्या देश के लिए केवल हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध ही धर्म है? और बाकी हम प्रकृति पूजा में विश्वास करने वाले आदिवासियों का कोई ईश्वर, कोई धर्म, कोई धार्मिक आस्था विश्वास नहीं है? यदि है, और भारत का संविधान इसकी इजाजत देता है, तो पारसनाथ पहाड़ में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग आदि का आदिवासी विरोधी सोच, मानसिकता और रवैया कहां तक उचित और जायज है?

सेंगेल अभियान ने कहा कि आदिवासियों को उजाड़ कर जैनों को कब्जा दिलाना कहां तक जायज है? जबकि मरांग बुरु अर्थात पारसनाथ पहाड़ पर तथ्यगत- रिकॉर्ड ऑफ़ राइट्स के तहत आदिवासियों का पहला हक है तथा सीएनटी/एसपीटी कानून और अन्य वन संरक्षण कानून के तहत मारंग बुरु में जिस प्रकार का भूमि अतिक्रमण आदि जैनों द्वारा किया गया है, उसकी जांच भी अविलंब जरूरी है।

सेंगेल अभियान ने सवाल उठाया कि आखिर जैनों को वहां किस कानून के तहत कब और किसने बसाया है?  आदिवासियों की धार्मिक आस्था, विश्वास और तथ्यों को दरकिनार कर चोट करना आदिवासियों का धार्मिक नरसंहार (रिलीजियस जेनोसाइड) से कम नहीं है। अविलंब इस पर बहुपक्षीय बातचीत शुरू की जाए, एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाय और भारत तथा दुनिया के आदिवासियों को उनका नैसर्गिक धार्मिक-प्राकृतिक अधिकार प्रदान किया जाए।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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