Saturday, April 20, 2024

बदायूं: मानवाधिकार आयोग ने पुलिस हिरासत में हुई अब्दुल बशीर की मौत की मांगी मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट

बदायूँ । यूपी के बदायूं जिले के भन्द्रा गांव में राज मिस्त्री अब्दुल बशीर की पुलिस हिरासत में उत्पीड़न से मौत के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कड़ा रुख अपना लिया है। आयोग ने मामले में डीएम और एसएसपी से जवाब तलब किया है। साथ ही मजिस्ट्रेटी जांच और कार्यवाही रिपोर्ट मांगी है।

लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव की शिकायत पर अब्दुल बशीर की पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले पर 01 जुलाई को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने सुनवाई कर उक्त आदेश पारित किया है। उन्होंने 14 मई को एनएचआरसी में  शिकायत दर्ज कराई थी। जिसके आधार पर आयोग ने 15/05/2020 को मुकदमा दर्ज किया था जिसका नंबर 8466/20/7/2020-AD है। आज जारी बयान में उक्त जानकारी देते हुए लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव ने कहा कि अब्दुल बशीर की मौत नहीं, हत्या हुई है और उनकी हत्या के दोषी पुलिस कर्मियों व अधिकारियों  को सजा दिलाने तक संघर्ष जारी रहेगा।

उन्होंने कहा कि अब्दुल बशीर के मौत के मामले में पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए  जनपद के आला अधिकारियों ने पुलिस हिरासत में मौत के विषय में दी गई मानवाधिकार आयोग की गाइड लाइन का उल्लंघन किया है ।अभी तक मजिस्ट्रियल जांच भी नहीं करवाई गई है।

 लोकमोर्चा संयोजक ने कहा कि संघ -भाजपा की योगी सरकार में पूरे सूबे में गोकशी को रोकने के नाम पर बेगुनाहों का बड़े पैमाने पर उत्पीड़न किया जा रहा है। पुलिस को अवैध धन उगाही का नया सेक्टर मिल गया है। निर्दोषों का अवैध पुलिस हिरासत में उत्पीड़न व फर्जी मुकदमे लगाकर जेल भेजना आम बात हो गई है ।

यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज चल रहा है। सत्ता का संरक्षण मिलने से अपराधियों- माफियाओं का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वे अब पुलिसकर्मियों को निशाना बना रहे हैं। जैसा कानपुर की घटना में दिखा। योगी सरकार आंदोलनकारियों निर्दोषों पर फर्जी मुकदमा लगाकर जेल भेजने और उनकी संपत्ति जब्त करने के असंवैधानिक कार्य कर रही है।

घटना कुछ इस तरह की है 9 मई की रात को उसहैत थाना पुलिस ने गोकशों की तलाश में छापा मारा और गांव के सात घरों में तोड़फोड़ व अवैध वसूली की। उसके बाद पुलिस ने गांव के ही राजमिस्त्री अब्दुल बशीर के घर दबिश दी और उनके बेटे अतीक उर्फ नन्हें के बारे में पूछा। उसके रिश्तेदारी में जाने की बात कहने पर पुलिस ने घर की महिलाओं के साथ बदसलूकी की और पचास हजार रुपयों की मांग की ।

विरोध करने पर घर के मुखिया 65 वर्षीय अब्दुल बशीर को पीटते हुए घर से खींचकर गैरकानूनी हिरासत में लेकर गांव के बाहर ले गई। पिटाई से अब्दुल बशीर की मौत हो जाने पर पुलिस मृतक को छोड़कर भाग गई। विरोध में गांव वालों ने मृतक अब्दुल बशीर की लाश को लेकर सड़क पर जाम लगा दिया। तब प्रशासनिक अधिकारियों ने न्याय दिलाने का आश्वासन देकर शव का पोस्टमार्टम करा दिया। लेकिन बाद में डॉक्टरों पर दबाव डालकर फेफड़ों की बीमारी से मौत की रिपोर्ट बनवा दी गई। मृतक अब्दुल बशीर के परिजनों की शिकायत पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। 

शिकायत में कहा गया है कि पूरे सूबे और बदायूँ जनपद में गोकशी के शक के बहाने अक्सर पुलिस बेगुनाहों का उत्पीड़न और दमन के साथ ही धन उगाही करती रहती है।कई को फर्जी मुकदमे लगाकर जेल भेज देती है। इनमें ज्यादातर मुसलमान और दलित पिछड़े समाज के गरीब -गुरबे  होते हैं। भन्द्रा गांव की यह घटना योगी राज में पुलिस द्वारा बेगुनाहों पर जुल्म का एक नया उदाहरण है।

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