Saturday, April 27, 2024

उत्तराखण्ड में भाजपा की हार का महंगाई होगा सबसे बड़ा कारण

उत्तराखण्ड में अगर इस विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता है तो इसके लिये सबसे अधिक जिम्मेदार महंगाई ही होगी। यद्यपि चुनाव में किसी भी पार्टी की हार या जीत के लिये कई कारण जिम्मेदार होते हैं, लेकिन अगर आप भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी थोक मूल्य सूचकांक पर मुद्रास्फीति की दर पर  जारी रिपोर्ट पर गौर करें तो महंगाई की सबसे बड़ी मार उत्तराखण्ड वासियों पर पड़ी नजर आ रही है। इस रिपोर्ट में उत्तराखण्ड न केवल 10 सबसे महंगे राज्यों में शामिल है, अपितु शहरी महंगाई में इस राज्य को सर्वोच्च स्थान मिला है। इस चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से कहीं अधिक होना भी महंगाई की ओर संकेत करता है, क्योंकि रसोई गैस आदि की महंगाई की सबसे बड़ी मार महिलाओं के किचन पर ही पड़ती है।

उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने जनवरी 2022  और नवम्बर 2021 के लिये भारत में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति रिपोर्ट जारी कर दी है। जिसमें नवम्बर 2021 के 14.87 प्रतिशत के मुकाबले जनवरी 2022 में सभी जिन्सों की मुद्रास्फीति दर 12.96 बताई गयी है। लेकिन इसी रिपोर्ट में नगरीय क्षेत्रों में उत्तराखण्ड की मुद्रास्फीति दर भारत में सबसे अधिक 7.62 बताई गयी है जो कि चौंकाने वाली बात है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत की शहरी मुद्रास्फीति की दर आलोच्य अवधि में केवल 5.91 ही रही। हालांकि प्रदेश की सम्मिलित नगरीय और ग्रामीण मुद्रास्फीति दर 6.38 ही है, फिर भी यह राज्य इस लिहाज से भी देश के सर्वाधिक 10 महंगाई वाले राज्यों में शामिल है। नगरीय मुद्रास्फीति के लिहाज से उत्तराखण्ड के बाद कर्नाटक की 6.81, तेलंगाना की 6.75, पश्चिम बंगाल की 6.60, झारखण्ड की 6.51, महाराष्ट्र की 6.42, बिहार और दिल्ली की 6.21 तथा हरियाणा की 6.3 प्रतिशत रही। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि आलोच्य अवधि में हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के नगरीय क्षेत्र देश में सर्वाधिक महंगे रहे।

इस रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण और शहरी सम्मिलित मुद्रास्फीति के मामले में उत्तराखण्ड देश के 10 सबसे अधिक मुद्रास्फीति वाले राज्यों में शामिल रहा। इन 10 राज्यों की सम्मिलित महंगाई दर में हरियाणा सबसे ऊपर 7.23 प्रतिशत पर रहा। उसके बाद पश्चिम बंगाल की सम्मिलित दर 7.11, जम्मू-कश्मीर की 6.74, तेलंगाना/हिमाचल प्रदेश की 6.72, उत्तर प्रदेश की 6.71, मध्य प्रदेश की 6.52 महाराष्ट्र की 6.47 और उत्तराखण्ड की 6.36 प्रतिशत रही। ग्रामीण और नगरीय सम्मिलित महंगाई के मामले में भी उत्तराखण्ड ने देश के 27 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पीछे छोड़ दिया।

पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग सभी गावों में रसोई गैस पहुंच चुकी है। लोग परम्परागत चूल्हों के दमघोटू धुएं से निजात पाने के लिये अधिकाधिक गैस का उपयोग करने लगे थे। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत प्रदेश में चार लाख दो हजार 909 बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन बांटे गए हैं। इसके बाद से प्रदेश में अमीर-गरीब सभी रसोई गैस का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन विभिन्न कंपनियों की गैस वितरक ऐजेंसियां केवल नगरीय क्षेत्रों में ही हैं जो कि महीने में रूटीन के हिसाब से गावों के निकट मोटर मार्ग के चिन्हित स्थान पर ग्रामीणों को बुला कर गैस रिफिल कर देते हैं।

लेकिन ऐसा वितरण तभी संभव है जबकि क्षेत्र विशेष में सड़क भूस्खलन आदि से अवरुद्ध न हो। इस पर भी प्रदेश के लगभग 5 हजार गावों तक अभी वाहन योग्य सड़कें नहीं पहुंची हैं। बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र का डुमक और कलगोठ, उत्तरकाशी के कलाप और मुखवा, टिहरी के गंगी जैसे सुदूर क्षेत्रों में लोग खच्चरों से रसोई गैस के सिलेंडर मंगाते हैं जो कि 100 से लेकर 200 रुपये तक का भाड़ा लगा कर 1200 रुपये तक पहुंच जाता है। रसोई गैस की महंगाई की यह मार विशेष तौर पर महिलाओं पर पड़ती है।  यही वजह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में एक बार फिर से रसोई के लिए लकड़ी का सहारा लेना पड़ रहा है।

गत 14 फरवरी को राज्य में हुये मतदान के आंकड़े तीन दिन बाद तब स्पष्ट हुए जबकि सुदूर क्षेत्रों से मतपेटियां जिला मुख्यालयों तक पहुंच पायी। मत पेटियों के पंहुचने के बाद निर्वाचन विभाग द्वारा जारी मतदान के आंकड़ों के अनुसार इस बार उत्तराखण्ड के सभी पहाड़ी जिलों में मतदान का प्रतिशत 0.1 से लेकर 2.36 तक बढ़ा है। इस बार महिला मतदाताओं में से कुल 67.20 प्रतिशत और पुरुष मतदाताओं में से 62.60 प्रतिशत ने  मतदान में भाग लिया। केदारनाथ, रुद्रप्रयाग, धारचुला, डीडीहाट, पिथौरागढ़ और द्वाराहाट जैसे कई विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा जिस पर महंगाई का असर हो सकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत का लेख।)

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