Tuesday, April 16, 2024

जालंधर लोकसभा उपचुनाव: किसमें कितना है दम

अकाली दल, बसपा और भाजपा के आम-जनाधार की एक बार और परीक्षा होने जा रही है। दोआबा के गढ़ जालंधर में। यहां से कांग्रेस सांसद संतोख सिंह चौधरी के 14 जनवरी को हुए आकस्मिक निधन के बाद अब चुनाव आयोग कभी भी इस सीट पर उपचुनाव की घोषणा कर सकता है।

संभावना है कि 31 जनवरी के बाद घोषणा कर दी जाएगी। इस दिन से लोकसभा सत्र शुरू होने जा रहा है और माना जा रहा है कि दिवंगत संतोख सिंह चौधरी को श्रद्धांजलि देने के बाद इस सीट पर उपचुनाव का लिए निर्णय ले लिया जाएगा।

चौधरी यहां से लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो कर्नाटक चुनाव के साथ जालंधर लोकसभा उपचुनाव हो सकता है। अगर उपचुनाव कर्नाटक चुनाव के साथ कराए गए तो सूबे सियासी दलों को तैयारियों के लिए मई तक का समय मिल जाएगा, जो कि काफी है।

फरवरी में पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय और नगालैंड में चुनाव हो रहे हैं लेकिन उनके साथ (इतनी जल्दी) जालंधर लोकसभा चुनाव कराना संभव नहीं है। मौजूदा लोकसभा का गठन मई 2019 में हुआ था और इस हिसाब से सदन का कार्यकाल अभी 16 महीने शेष है। अवधि अगर एक साल से कम की होती तो उपचुनाव टाला जा सकता था लेकिन संवैधानिक नियमानुसार कोई भी लोकसभा क्षेत्र एक साल से ज्यादा वक्त के लिए रिक्त नहीं रखा जा सकता।

31 जनवरी को ही जालंधर लोकसभा सीट को रिक्त घोषित किया जाएगा। उसके बाद उपचुनाव की तारीख घोषित हो जाएगी। इंतजार पटियाला लोकसभा सीट के भविष्य का भी हो रहा है। कहने को यहां से कांग्रेस की परनीत कौर सांसद हैं लेकिन अनौपचारिक तौर पर वह भाजपा के साथ हैं। माना जा रहा है कि फरवरी के प्रथम सप्ताह में वह इस सीट से इस्तीफा दे सकती हैं। उस आलम में पटियाला में भी उपचुनाव करवाना होगा। लेकिन फिलवक्त तमाम राजनीतिक दल जालंधर उपचुनाव पर फोकस किए हुए हैं।

आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन के बाद यह दूसरा लोकसभा उपचुनाव होगा। इससे पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर चुनाव हुआ था। वहां तमाम पार्टियों और अटकलों को धत्ता बताकर गरमख्याली अकाली नेता सिमरनजीत सिंह मान ने जीत हासिल की थी। कम से कम ‘आप’ के लिए तो जालंधर उपचुनाव दूसरी अग्निपरीक्षा की मानिंद हैं।

कुछ दिन पहले आप के वरिष्ठ नेता संदीप पाठक ने दिल्ली में बैठक बुलाकर प्रस्तावित जालंधर उपचुनाव की बाबत विस्तार से विचार-विमर्श किया था। जालंधर के हालात संगरूर से अलहदा हैं। संगरूर मालवा में है और जब वहां उपचुनाव हुआ तो सिद्धू मूसेवाला का कत्ल हुए चंद हफ्ते ही हुए थे और दूसरे वहां बेअदबी का मामला एक बहुत बड़ा मुद्दा है। तीसरा आम आदमी पार्टी और खासतौर से मुख्यमंत्री भगवंत मान का अतिरिक्त आत्मविश्वास और सिमरनजीत सिंह मान को हल्के में लेना हार की बड़ी वजह बना।

पार्टी जालंधर लोकसभा उपचुनाव के लिए पूरे दमखम के साथ उतरना चाहती है। इस सिलसिले में शुक्रवार को भी आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच लंबी चर्चा हुई। माना जा रहा है कि संगरूर सीट हारने के बाद जालंधर उपचुनाव; आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री भगवंत मान के इकबाल का सवाल है।

जातिगत समीकरणों के लिहाज से देखें तो आरक्षित जालंधर लोकसभा क्षेत्र में 42 फ़ीसदी मत दलित समाज के हैं। उनमें भी बहुसंख्यक वोट रविदासिया समाज के हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा के हल्के आते हैं। इनमें चार विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। चारों सीटों पर हार-जीत का फैसला रविदासिया वोट बैंक करता है। रविदासिया समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल डेरा सचखंड बल्लां जालंधर में ही है और इसके श्रद्धालुओं की तादाद लाखों में है। रविदासिया समुदाय के निर्णायक मतों ने संतोख सिंह चौधरी को लगातार दो बार सांसद बनाया।

तय माना जा रहा है कि कांग्रेस यहां से मरहूम सांसद संतोख सिंह चौधरी परिवार के किसी सदस्य को ही टिकट देगी। संतोख सिंह चौधरी के बेटे विक्रमजीत सिंह चौधरी फिल्लौर से कांग्रेस विधायक हैं। 27 जनवरी को दिवंगत सांसद की अंतिम अरदास के वक्त सरगोशियां थीं कि संतोख सिंह चौधरी की पत्नी कर्मजीत कौर को टिकट दिया जाएगा। वह प्रिंसिपल पद से रिटायर हुईं हैं।

करमजीत कौर चौधरी

जालंधर लोकसभा क्षेत्र में महिलाओं का वोट प्रतिशत लगभग 50 प्रतिशत है। कर्मजीत कौर चौधरी को टिकट मिलती है तो बाकी पार्टियों के लिए बहुत मुश्किल होगी। कर्मजीत कौर के इनकार करने की सूरत में (जिसकी संभावना न के बराबर है) कांग्रेस सुखविंदर कोटली को टिकट दे सकती है। वह पहले बहुजन समाज पार्टी में थे लेकिन कांग्रेस में आ गए।

दोआबा कि दलित राजनीति में युवा कोटली का अच्छा असर है। बसपा के यहां कम से कम दो लाख वोट हैं। सुखविंदर कोटली इतनी सामर्थ्य रखते हैं कि इन वोटों में खासी सेंध लगा सकते हैं। फिर दलित समाज भी उन्हें काफी पसंद करता है। वैसे राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे चौधरी के घर जाकर डॉ. कर्मजीत कौर के सिर पर हाथ रख चुके हैं। इसलिए भी यकीनी है कि कांग्रेस उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाएगी।

शीतल अंगुराल

आम आदमी पार्टी जालंधर से अपने विधायक शीतल अंगुराल या उनकी पत्नी नीतू अंगुराल पर भी दांव खेल सकती है। इस सीट पर टिकट के लिए अरविंद केजरीवाल एक सर्वे करवा रहे हैं। सर्वे रिपोर्ट पर ही निर्णय लिया जाएगा कि किसे आप का टिकट दिया जाए। बताया जाता है कि पांच अन्य आप नेता यहां से उपचुनाव लड़ने के ख्वाहिशमंद हैं।

पंजाब में फिलहाल तक शिरोमणि अकाली दल और बसपा का गठबंधन कायम है। सूत्रों के अनुसार मायावती जालंधर उपचुनाव के लिए बसपा को टिकट देने की बाबत सुखबीर सिंह बादल को साफ इशारा कर चुकी हैं। लेकिन यह साफ नहीं है कि वह किसके लिए टिकट चाहेंगीं? बसपा का अपना वोट बैंक तो यहां है ही।

पवन टीनू

शिरोमणि अकाली दल के पास भी पूर्व विधायक पवन टीनू (जो कभी बसपा में थे) के रूप में सशक्त दलित चेहरा है। 2019 में जालंधर लोकसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल की ओर से पूर्व स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल ने लड़ा था और संतोख सिंह चौधरी से मात खाने के बाद वह जालंधर में दोबारा सक्रिय नहीं हुए।

बड़ी मुश्किल भाजपा के लिए होगी। उसका ‘मिशन 2024’  कहीं न कहीं जालंधर लोकसभा सीट पर आकर अटक-सा जाता है। यहां उसके पास उम्मीदवार बनाने के लिए फिलवक्त कोई दमदार चेहरा नहीं है। कयास लग रहे हैं कि जालंधर उपचुनाव में भाजपा अविनाश चंद्र या राजेश बाघा को उम्मीदवार बना सकती है। जो जीत के करीब शायद ही पहुंचें। पंजाब के दलितों में भाजपा की पैठ नहीं के बराबर है। खासतौर पर जालंधर लोकसभा क्षेत्र में।

जो हो जालंधर उपचुनाव में मुकाबला चौतरफा होगा। यानी कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन और भाजपा के बीच। तमाम पार्टियां अपने-अपने तौर पर तैयारियों में जुट गईं हैं।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं पंजाब में रहते हैं)

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