Thursday, April 18, 2024

झारखंड: क्या मोतीलाल बास्के के परिजनों को मिलेगा इंसाफ ?

29 दिसंबर को हेमंत सरकार का गठन होने जा रहा है। शायद झारखंड  की जनता ने पिछली सरकार से आजिज आकर महागठबंधन को बहुमत दिया है। देखना यह है कि हेमंत सरकार जनता की अपेक्षाओं पर कितनी खरा उतरती है? जिसमें जनता की कई अपेक्षाएं शामिल है। जिसमें डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की माओवादी बताकर पुलिस द्वारा की गई हत्या भी शामिल है। क्या मोतीलाल बास्के के परिवार वालों को इंसाफ मिल सकता है? वहीं मोतीलाल बास्के की मौत को लेकर किए गए जनआंदोलनों के कारण प्रतिबंधित किए गए ‘मजदूर संगठन समिति’ से भी प्रतिबंधित हटाया जा सकता है? रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए तमाम तरह की अलोकतांत्रिक व गैर-संवैधानिक घोषणाओं को वापस लिया जा सकता है?
9 जून 2017 शाम को गिरिडीह पुलिस ने नक्सल उन्मूलन अभियान के तहत एक बड़ी सफलता हासिल करने का प्रेस बयान सहित एक फोटो जारी कर बताया था कि ढोलकट्टा के जंगल में पुलिस के साथ मुठभेड़ में एक दुर्दांत नक्सली मारा गया है, जिसके पास से एसएलआर रायफल एवं कई प्रतिबंधित सामान बरामद हुए हैं। दूसरे दिन 10 जून झारखंड के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय मधुबन आए और गिरिडीह पुलिस को 15 लाख रुपये का इनाम सहित एक लाख रुपये श्न मनाने के लिए दिया। वहीं सीआरपीएफ को 11 लाख रुपये इनाम की राशि दी गई।मगर 10 जून शाम होते ही पुलिस की खुशी पर मानो ग्रहण लग गया, क्योंकि क्षेत्र का मजदूर संगठन समिति और मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी ने पुलिस के दावे को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि नक्सल के नाम पर जिसे पुलिस ने मारा है वह एक आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के था।
वह दोनों संगठनों का सदस्य था, उसकी मसंस की सदस्यता संख्या जहां 2065 है, वहीं सुसार बैसी की सदस्यता संख्या 70 है। इस खबर के प्रचारित होते ही पुलिस की आलोचना शुरू हो गई, मगर सफाई में पुलिस ने कोई बयान नहीं दिया। मोतीलाल का नक्सली नहीं होने के कई प्रमाण इन संगठनों द्वारा दिए गए। वहीं पुलिस उसके नक्सली होने का कोई भी प्रमाण नहीं दे सकी। नतिजा यह रहा कि 14 जून को मसंस, सांवता सुसार बैसी, झामुमो, जेवीएम, भाकपा माले सहित क्षेत्र के कई पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा 14 जून को महापंचायत बुलाई गई जिसमें लगभग 5 हजार की भीड़ जमा हो गई। इसी दिन एक रैली हुई और मृतक की पत्नी पार्वती देवी द्वारा मधुबन थाना में पुलिस के खिलाफ अपने पति की हत्या का मामला दर्ज कराया गया। मोतीलाल की इस हत्या पर मधुबन के व्यवसायी वर्ग भी भौचक था। उसके नक्सली होने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी।

पारसनाथ पहाड़ के दूसरी छोर में अवस्थित ढोलकट्टा गांव में घटना के बाद सन्नाटा पसरा हुआ था। कई लोग गांव छोड़ कर अपने अपने रिश्तेदारों के यहां भाग गये थे। मृतक की पत्नी पावर्ती ने बताया था कि उसके पति रोज प्रातः तीन बजे शिखर पर जाते थे और 11 बजे के करीब लौटते थे। क्योंकि ऊपर एक छोटी सी दुकान है जहां वे नींबू पानी व चाय वगैरह बेचते थे। कभी-कभी डोली भी ले जाते थे। मगर उस दिन गये तो देर शाम तक नहीं लौटे। शाम को गांव वालों से पता चला कि पुलिस ने उसे गोली मार दी है। मृतक के तीन बच्चे हैं, बड़ा बेटा निर्मल बास्के उस वक्त आठवीं में पढ़ता था, वहीं राम बास्के व लखन बास्के जो जुड़वा हैं, दूसरी कक्षा में पढ़ते थे। मोतीलाल ससुराल में रहता था, तथा वहीं बगल की जमीन पर उसे इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने का सरकारी पैसा मिला था। वह पहली किस्त से नींव से ऊपर तक की जुड़ाई कर चुका था। उल्लेखनीय है कि कोई भी सरकारी योजना के लाभुक का चयन किसी भी अपराधिक व्यक्ति का नहीं होता है। पुलिस की गोली का शिकार मोतीलाल बास्के की मौत को लेकर जनाक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा था।
राज्य के कई राजनीतिक दलों सहित सामाजिक व मजदूर संगठनों द्वारा मोतीलाल  की मौत की न्यायायिक जांच की मांग को लेकर लगातार जनांदोलन चलाया जाता रहा। मामले पर राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन तथा हेमंत सोरेन क्षेत्र का दौरा करके उक्त घटना की केवल निंदा ही नहीं की, बल्कि घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की थी। कई मानवाधिकार संगठनों की जांच टीम द्वारा भी क्षेत्र का दौरा किया गया और अपनी जांच रिपोर्ट में पुलिस को साफ तौर पर दोषी पाया गया। 13 सितंबर 2017 को एक विशाल जनसभा क्षेत्र के पीरटांड़ सिद्धु—कांहु हाई स्कूल के प्रांगण में की गई जिसमें राज्य के सभी दलों के आला नेताओं ने शिरकत की थी। दमन विरोधी मोर्चा द्वारा आयोजित जनसभा में झामुमो के तत्कालीन विधायक जय प्रकाश भाई पटेल, तत्कालीन विधायक स्टीफन मरांडी, तत्कालीन सांसद विजय हांसदा, पूर्व मंत्री मथुरा महतो, जेवीएम के केंद्रीय सचिव सुरेश साव, महासचिव रोमेश राही, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व उनके भाई नुनुलाल मरांडी, मासस के तत्कालीन विधायक अरूप चटर्जी सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोगों ने भाग लिया।
लगभग 10 हजार की भीड़ को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने स्पष्ट कहा था कि पुलिस की गोली का शिकार मृतक मोतीलाल बास्के के नक्सली होने का काई भी प्रमाण नहीं है, जबकि उसका डोली मजदूर होने का पुख्ता प्रमाण है।उन्होंने कहा था कि राज्य में आदिवासी—मूलवासी अब सुरक्षित नहीं हैं। नक्सल के नाम पर उनकी हत्याएं हो रहीं हैं। राज्य में अराजकता का माहौल बना हुआ है। पुलिसिया आतंक से आदिवासी भयभीत हैं। जेवीएम सुप्रीमो ने कहा था कि अगर निर्धारित समय तक मोतीलाल की हत्या की निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो हम जांच की मांग को लेकर राजभवन के सामने अनिश्चितकालीन धरना देने को बाध्य हो जाएंगे।
सभा को संबोधित करते हुए निरसा विधायक अरूप चटर्जी ने मंच से ही कि मृतक मोतीलाल के परिवार को अपना एक माह का वेतन देने की घोषणा की थी।झामुमो सांसद विजय हांसदा ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि यह सरकार आदिवासियों को डराकर उनकी जमीन दखल करके पूंजीपतियों को देना चाहती है।सभी वक्ताओं ने पुलिस जुल्म के खिलाफ जनता को एकजूट होने का अह्वान किया था।
बताते चले कि मोतीलाल बास्के पुलिस गोली से हुई मौत के बाद 14 जून के महापंचायत में  सभी संगठनों एंव राजनीतिक दलों का एक मोर्चा ‘दमन विरोधी मोर्चा ’बनाया गया। उसी दिन मोतीलाल की पत्नी पार्वती देवी ने पुलिस को अपने पति की मौत का जिम्मेवार मानते हुए पुलिस पर मधुबन थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसे पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। विरोध में 17 जून को मधुबन बंद रहा। 21 जून गिरिडीह डीसी कार्यालय के समक्ष ‘दमन विरोधी मोर्चा’ द्वारा धरना देकर मोतीलाल की मौत के जिम्मेवार पुलिसकर्मियों पर कानूनी कार्यवाई की मांग की गई। एक जुलाई को मानवाधिकार संगठन से संबंधित सी.डी.आर.ओ (काओर्डिनेशन आफ डेमोक्रेटिक राईट आर्गनाइजेशन) की जांच टीम ढोलकट्टा गांव गयी। चार-पांच घंटे की जांच के बाद सी.डी.आर.ओ. की टीम यह निष्कर्ष पर पहुंची कि मोतीलाल बास्के की मौत पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में हुई है। पुलिस अपनी गलती छुपाने के लिए मजदूर मोतीलाल को नक्सली बता रही थी। टीम के साथ क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधि भी थे।
15 जून को मोतीलाल की पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री एंव प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन से भेंट की। हेमंत सोरेन ने मामले की उच्चस्तरीय जांच, मृतक की पत्नी को नौकरी व मुआवजा की मांग सरकार से की थी। उसके बाद ढोलकट्टा गांव जाकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा झामुमो सुप्रीमों शिबू सोरेन 21 जून को मृतक की पत्नी से भेंट की तथा मामले को संसद के सदन में उठाने का आश्वासन दिया। पूर्व मुख्यमंत्री झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने न्यायायिक जांच की मांग की। वहीं सरकार का सहयोगी दल आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की।
2 जुलाई को गिरिडीह जिले में मशाल जुलूस निकाला गया तथा 3 जुलाई को पूरा गिरिडीह बंद रहा। मामले पर 10 जुलाई को विधानसभा मार्च किया गया। लगातार जनआंदोलन जारी रहा। बावजूद पुलिस प्रशासन व तत्कालीन रघुवर सरकार कुंभकर्णी नींद सोती रही। मोतीलाल की मौत के कारणों को लेकर न तो कोई जांच की जा रही थी और न ही जनता द्वारा किये जा रहे सवालों पर कोई प्रतिवाद हो रहा था।
बताते चलें कि मोतीलाल बास्के की मौत को लेकर हो रहे जनआंदोलनों के सूत्रधार के रूप में चिन्हित करते हुए ‘मजदूर संगठन समिति’ को प्रतिबंधित कर दिया गया। 20 दिसंबर 2017 को झारखंड के पुलिस मुख्यालय द्वारा ‘मजदूर संगठन समिति’ को प्रतिबंधित करने के लिए राज्य के गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे को प्रस्ताव भेजा गया। प्रस्ताव में बताया गया कि ‘मजदूर संगठन समिति’ प्रतिबंधित संगठन माओवादियों के इशारे पर काम कर रही है तथा इसका संबंध माओवादियों से है। 22 दिसंबर 2017 को गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे ने भाकपा माओवादी का फ्रंटल आर्गनाइजेशन बता कर ‘मजदूर संगठन समिति’ को प्रतिबंधित कर दिया। इस तरह 28 साल पुराने पंजीकृत ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को बिना किसी नोटिस दिये भाकपा (माओवादी) का अग्र संगठन बताते हुए प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी गई।
झारखंड सरकार के इस अप्रत्याशित अलोकतांत्रिक व गैर-संवैधानिक घोषणा के पीछे मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में व्यापक पैमाने पर चल रहे जनांदोलन ही एकमात्र कारण के रूप में नजर आता दिखा। जिसके मूल में मोतीलाल बास्के की मौत को लेकर हो रहे जनआंदोलनों को माना जा सकता है।अब यह देखना होगा कि 29 दिसंबर को हेमंत सरकार के गठन के बाद क्या मोतीलाल बास्के के परिवार वालों को इंसाफ मिल सकता है? वहीं मोतीलाल बास्के की मौत को लेकर किए गए  जनआंदोलनों के कारण प्रतिबंधित किए गए ‘मजदूर संगठन समिति’ से प्रतिबंधित हटाया जा सकता है? रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए अलोकतांत्रिक व गैर-संवैधानिक घोषणाओं को वापस लिया जा सकता है? झारखंडी जनता को नई सरकार से बहुत सारी अपेक्षाए हैं, जिसे हेमंत किस स्तर से पूरा करते हैं, देखना होगा।

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