नागरिकता कानूनों में संशोधन के खिलाफ आंदोलन को कन्हैया कुमार रोजगार मांगने के अभियान में बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी चरम पर है, इसने पिछले सत्तर साल के रिकार्ड को तोड़ दिया है। पर सरकार ने नागरिकता कानूनों में संशोधन करके संविधान को ही संकट में डाल दिया है। इसके विरोध में उठ रही आवाजों को दबाने के लिए हिंसा भड़काने की कोशिशें हो रही हैं। कन्हैया अपनी जन-गण-यात्रा के समापन पर आज पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में हुई रैली में बोल रहे थे।
रैली में तीन सूत्री प्रस्ताव पारित कर सरकार से सीएए कानून, एनपीआर और एनआरसी योजनाओं को वापस लेने की मांग की गई। और बिहार सरकार का आहवान किया गया कि एनआरपी के बारे में जारी गजट अधिसूचना को वापस ले। मालूम हो कि बिहार विधानसभा ने कल बिहार में एनआरसी लागू नहीं करने और एनपीआर में 2010 के प्रारुप में फेरबदल को स्वीकार नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया था।
रैली को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने 12 मार्च से दांडी यात्रा शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सीएए-एनपीआर के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन तब तक चलेगा, जब तक देश में जहर बोने वाले खत्म नहीं हो जाते। कश्मीर के लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर लगा पाबंदी के खिलाफ भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर आंदोलनकारी जमात में शामिल कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि सरकार लोगों को भ्रम में रखकर मनमानी कर रही है। वह कहती है कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं। पर जब आप धर्म के आधार पर नागरिकता दे सकते हैं तो धर्म के आधार पर नागरिकता ले भी तो सकते हैं, इसे छिपा लेती है। कश्मीर से धारा-370 को हटा तो दिया पर अब कश्मीर का क्या करना है, उसे नहीं मालूम।
जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि देश में नफरत फैलाने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। आपको एनपीआर, एनआरसी, सीएए पूरी तरह वापस लेना होगा, जब तक ऐसा नहीं होता, आंदोलन जारी रहेगा। अभी देश में पांच-छह सौ जगह महिलाएं धरना दे रही हैं। वे अपने बच्चों के भविष्य के लिए घरों से बाहर निकली हैं, उन्हें जीतने से कोई नहीं रोक सकता।
जन-गण यात्रा पर नौ जगह हुए हमलों का उल्लेख करते हुए कन्हैया कुमार ने कहा कि आज देश में जो हालत पैदा की गई है, उसे ठीक से समझने की जरूरत है। उन्होंने किसी पार्टी का नाम लिए बिना सवाल किया कि जब सीएए कानून बन गया है तब उसके पक्ष में रैली निकालने की जरूरत क्या है। हम इस साजिश का पर्दाफाश करना चाहते हैं। हम किसी को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं हैं, पर नागरिकता देने के नाम पर नागरिकता छीनने की साजिश के खिलाफ हैं।
उन्होंने कहा कि देश में रोजगार जनित कारणों से देश में हर घंटे एक नौजवान आत्महत्या कर रहा है। उन्होंने कहा कि आत्महत्या के बजाए उनसे लड़ने की जरूरत है जो हमारा हक छीनकर, हमें गेर जरूरी मसलों में उलझाकर अपने बच्चों को अमीर बना रहे हैं। कानून ऐसे बदले जा रहे हैं कि दिन भर वर्दी पहन कर डियूटी करने वाले पुलिसकर्मी को रिटयर करने के बाद पेंशन नहीं मिलेगी, पर मंत्री, विधायक और सांसदों के पेंशन मिलती रहेगी। यह बेइमानी नहीं है तो क्या है।
दिल्ली में भड़की हिंसा के लिए राजनीतिक दलों को जिम्मेवार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि मारे गए हिन्दु और मुसलमान दोनों में प्रवासी मजदूर ज्यादा है। अगर यहां रोजगार की सुविधा होती तो वे लोग दिल्ली नहीं गए होते। हालत यह है कि बिहार की पचास प्रतिशत आबादी को पढने या रोजगार करने बाहर जाना पड़ता है। उन्होंने राजनीतिक नेताओं से अपील किया कि राजनीतिक स्टंटबाजी से बाहर निकलें और कुछ ठोस करने की सोचें। आज हालत यह है कि हम नागरिकता और संविधान पर आए संकट में उलझे हैं और उन्होंने एलआईसी बेच दिया। अनेक कंपनिया निजी हाथों में दे दी गई। अब बैंको को बेचने की बात हो रही है। बैंकों का एक लाख 76 हजार करोड़ डूब गया, उसे वसूलने के बजाए बैंकों ही अक्षम बताया जा रहा है।
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया अपने भाषण की शुरुआत राष्ट्रगान और दिल्ली दंगों के मृतकों के प्रति शोक जताते हुए मौन रखकर की। सभा में जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइसी घोष, दिल्ली कांग्रेस की नेता अलका लांबा, विधायक और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शकील अहमद खान आदि के अलावा बिहार कांग्रेस और वाम पार्टियों के नेता भी आए थे। सभा में अच्छी भीड़ थी जिसमें महिलाओं की उल्लेखनीय भागीदारी थी।
(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं।)
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