Friday, March 29, 2024

गुरमीत राम-रहीम का पैरोल बना भाजपा में कलह की वजह,सुनील जाखड़ ने खोला मोर्चा                                   

डेरा सच्चा सौदा का मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह एक साल के भीतर चौथी बार 40 दिन की पैरोल पर बाहर है और इसके लिए पूरी प्रक्रिया में हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली भाजपा सरकार की खूब आलोचना हो रही है।

डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह की बाबत चर्चा हरियाणा की बनिस्बत पंजाब में ज्यादा होती है क्योंकि पंजाब में उसके अनुयायियों की तादाद हरियाणा से कुछ ज्यादा ही बताई जाती है। पंजाब में हिंदुओं की अनदेखी और खुद की उपेक्षा के बाद भाजपा में चले गए पूर्व पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य के दिग्गज नेता सुनील कुमार जाखड़ ने भाजपा की चंडीगढ़ में हुई कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में हरियाणा सरकार और भाजपा को बाकायदा ‘सचेत’ किया कि डेरा सच्चा सौदा मुखिया को बार-बार पैरोल देना पार्टी को पंजाब में नुकसान देगा।

सूबे के रेशे-रेशे से वाकिफ सुनील कुमार जाखड़ की डेरेदार गुरमीत के प्रति भाजपा की ‘नरमी’ पर खिलाफत की ‘गर्मी’ को अतिरिक्त गंभीरता से लिया जा रहा है। पंजाब भाजपा ही नहीं बल्कि हरियाणा भाजपा के कुछ नेताओं ने भी सुनील कुमार जाखड़ के रुख का समर्थन किया है। उनके विरोध को हल्के में नहीं लिया गया लेकिन पार्टी के भीतर यह सुगबुगाहट भी शुरू हो गई कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए कतिपय नेता चाहते हैं कि पार्टी में उनका वर्चस्व हो और जिन मामलों का अच्छा या बुरा प्रभाव पंजाब में पड़ता हो, उनकी बाबत पहल के आधार पर उनकी राय ली जाए।

पंजाब के बहुतेरे कांग्रेस के बड़े नेताओं ने राज्य विधानसभा चुनाव से पहले अथवा बाद में अपनी परंपरागत पार्टी को अलविदा कहकर भाजपा का फूल पकड़ लिया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील कुमार जाखड़ अपने समर्थकों सहित भाजपा में चले गए तथा और भी अन्य कई बड़े नेता। पंजाब भाजपा का एक तरह से ‘कांग्रेसीकरण’ हो चुका है।

यह निर्देश ‘ऊपर’ से भी है कि पार्टी की पंजाब सहित हरियाणा, चंडीगढ़, जम्मू, कश्मीर और हिमाचल इकाइयां कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को हल्के में न लें। इसलिए भी कि पंजाब का भाजपा मिशन इन्हीं कांग्रेसी दलबदलूओं की बदौलत सिरे चढ़ेगा या अपना न्यूनतम या अधिकतम असर छोड़ेगा।

भाजपा की गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हुई कार्यकारिणी की अहम बैठक में सुनील कुमार जाखड़ ने विस्तार से गुरमीत राम रहीम सिंह का मुद्दा उठाया और कहा कि बेशक हत्या और बलात्कार के संगीन मामलों में उम्र कैद की सजा काट रहे डेरेदार को नियमानुसार बार-बार पैरोल मिल रही है लेकिन अवाम को जवाब पार्टी और भाजपा सरकार को ही देना होगा।

जाखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि पंजाब में गुरमीत राम रहीम सिंह की पैरोल एवं फरलो पर बार-बार रिहाई का नागवार असर पंजाब में पड़ रहा है। चुनाव में पार्टी को इसका बड़ा नुकसान होगा। जाखड़ ने दो टूक कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात को अतिरिक्त गंभीरता से लें क्योंकि पंजाब के लोग इस प्रकरण को कभी भूलेंगे नहीं और आज भी हरियाणा से ज्यादा चर्चा पंजाब में हो रही है की भाजपा सरकार गुरमीत राम रहीम सिंह पर इतनी ज्यादा मेहरबान है ।

खासकर राज्य के मालवा जिले में लोग खुलकर ताजा पैरोल का विरोध कर रहे हैं और पंथक सियासत भी। खुद जाखड़ मालवा के अबोहर से हैं और उनका बेटा यहां से कांग्रेस विधायक है। जाखड़ ने यहां तक कहा कि कुछ भाजपा नेताओं को यह मामला गंभीर न लगता हो और उनकी बात पर यकीन न हो तो वे सुखबीर सिंह बादल से पूछें जो यही कहते मिलेंगे की, “हमें सिरसा वाला बाबा ही ले डूबा!” सुनील कुमार जाखड़ का समर्थन कुछ अन्य भाजपा नेताओं ने भी किया और सलाह दी कि अब आगे से डेरामुखी के प्रति नरम नहीं बल्कि गर्म रुख अख्तियार किया जाना चाहिए।

दरअसल, सुनील कुमार जाखड़ और डेरामुखी पर भाजपा की मेहरबानी के बाद पंजाब में बनने वाले हालात से बखूबी वाकिफ हैं। वह वक्त बीत गया है, जब डेरा सच्चा सौदा का बाकायदा एक बड़ा वोट बैंक होता था और पंजाब के मालवा इलाके में वह हार जीत में निर्णायक भूमिका अदा करता था। सच्चाई यह है कि अब संगीन मामलों में जेल जाने के बाद बहुत से अनुयायी डेरे से टूट गए हैं और उनका मोहभंग हो चुका है।

2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में यह साफ हो गया था। वहां आम आदमी पार्टी ने बाकी तमाम पार्टियों को कड़ी टक्कर और शिकस्त दी तथा उन सीटों पर भी विजय हासिल की, जहां डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव माना जाता था। इसका साफ मतलब था कि अब डेरे का प्रभाव सीमित हो गया है और वोट बैंक लगभग टूट गया है। हरियाणा के भी सिरसा सहित साथ लगते कुछ विधानसभा हलकों में ही डेरा सच्चा सौदा राजनीति के लिहाज से थोड़ा-बहुत ही प्रभावी है।

कभी पंजाब और हरियाणा में सरकारें बनाने और गिराने के लिए डेरे का कथित वोट बैंक बड़ी भूमिका निभाता था। अब वह आलम नहीं रहा। गुरमीत राम रहीम सिंह को उम्र कैद की सजा होने के बाद बहुत कुछ बदल गया है। कहने को वही मुखिया है लेकिन व्यवहारिक तौर पर कमान हनीप्रीत कौर इंसा के हाथों में है।

पिछले पैरोल पर डेरामुखी ने बकायदा वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए घोषणा की थी कि असली गुरु तो वही है लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था अब हनीप्रीत कौर संभालेंगी। हनीप्रीत डेरेदार के बहुत ज्यादा करीब है और उसे वह अपनी बेटी कहता है और असली वारिस मानता है। डेरे की संचालन कमेटी के ज्यादातर लोगों को, जो दशकों से डेरे से जुड़े हुए हैं, यह भीतर ही भीतर नामंजूर है। खुद गुरमीत राम रहीम सिंह का परिवार भी हनीप्रीत कौर की वजह से उससे दूर होता चला गया और अंत में सदा के लिए विदेश जाकर बस गया। हनीप्रीत कौर हरियाणा के फतेहाबाद जिले की रहने वाली है जो सिरसा से सटा हुआ है। उसका परिवार डेरे का पुराना अनुयायी है।

हनीप्रीत के अभिभावकों ने गुरमीत राम रहीम सिंह के गुरु शाह सतनाम सिंह मस्ताना से ‘नामदान’ लिया था। हनीप्रीत ने गुरमीत से दीक्षा ली। गुरमीत ने उसे अपनी बेटी बनाकर शाही अंदाज में उसकी शादी की थी और खुद ही तुड़वा भी दी थी। इलाके के तमाम लोग इस पूरे प्रकरण से वाकिफ हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि ‘बाप-बेटी का रिश्ता’ एक दिखावा है।

हनीप्रीत के ससुरालियों ने कुछ साल पहले यह दोष लगाया था और अब वे इतने खौफजदा हैं कि मीडिया से दूरी बनाकर रखते हैं। वे हरियाणा के फतेहाबाद में ही रहते हैं और स्थानीय लोगों के मुताबिक, उन्हें लगता है कि गुरमीत का दबदबा और दबंगई आज भी कायम है तथा सरकार से उसके गहरे रिश्ते हैं। वे अगर बोले तो उनका नुकसान हो सकता है।

हनीप्रीत कौर पहले गुरमीत राम रहीम सिंह की फिल्मों और वीडियो गीतों में अभिनेत्री के तौर पर काम करती रही है। उसकी नज़दीकियां डेरे के भीतर बहुत पहले से चर्चा में रही हैं। गुरमीत की पत्नी और परिवार डेरे में ही बनी आलीशान कोठियों में रहता था लेकिन गुरमीत उनसे अलग अपनी अति आलीशान ‘गुफा’ में, जो कि कहने भर को गुफा थी।

गुरमीत की पत्नी और बच्चे हनीप्रीत के सच्चा सौदा मुख्यालय में पक्का डेरा जमाने के बाद यदा-कदा ही डेरेदार से मिलते थे जबकि हनीप्रीत को सदा उसके इर्द-गिर्द ही देखा गया। यहां तक कि जब पंचकूला की विशेष अदालत ने डेरामुखी के खिलाफ आरोपों को सही ठहराते हुए फैसला सुनाया तो हनीप्रीत साए की तरह उसके साथ थी।

दोषी ठहराने के फौरन बाद गुरमीत राम रहीम सिंह को रोहतक की सुनारिया जेल ले जाया गया तो हेलीकॉप्टर में हनीप्रीत उसके साथ रोहतक तक गई थी। तब कहा गया था कि हनीप्रीत डेरेदार की शारीरिक तथा जेहनी सेहत की बाबत सब कुछ जानती है और उनका ख्याल रखती है इसलिए वहां तक साथ गई।

पीछे से पंचकूला में हुई हिंसा के लिए गुरमीत के साथ-साथ उसके जिन करीबियों को गुनहगार ठहराया गया था, उनमें हनीप्रीत का नाम भी था। रोहतक से ही वह फरार हो गई थी और कुछ महीनों के बाद उसने आत्मसमर्पण किया था। पहले डेरे के आम अनुयायी यही मानकर चलते थे कि हनीप्रीत डॉक्टर भी है और इसीलिए हर वक्त डेरामुखी के साथ रहती है लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि वह महज बारहवीं कक्षा तक पढ़ी है और चिकित्सा जगत से उसका कोई लेना-देना नहीं।

खैर, हनीप्रीत अब डेरे के प्रबंधतंत्र की मुखिया है। सिरसा के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि, “जब गुरमीत राम रहीम सिंह ने पिछली बार सारी व्यवस्था उसे सौंपने की घोषणा की तो बहुत सारे पुराने अनुयायी डेरे से दूर हो गए और यह सिलसिला अभी भी जारी है। बचे हुए लोगों में से भी ज्यादातर वे हैं जिनकी आस्था डेरे के पुराने गुरुओं के प्रति है, गुरमीत राम रहीम सिंह के प्रति कम।

बेशक गुरमीत राम रहीम को मानने वाले अभी भी बड़ी तादाद में हैं। ये वे लोग हैं जो गुरमीत से दीक्षित हुए हैं या उससे नामदान लिया है। उनके लिए यह हत्यारा और कातिल बाबा ही असली गुरु है।”

उधर, सुनील कुमार जाखड़ की तल्ख़ टिप्पणियों के बाद भाजपा में भी गुरमीत राम रहीम सिंह के मामले में खलबली का आलम है। पंजाब भाजपा के ज्यादातर नेता जाखड़ की बातों से सहमत हैं और कुछ हरियाणवी नेता असहमत। खुद जाखड़ कहते हैं, “मैंने जो कहना था कार्यकारिणी की मीटिंग में कह दिया। फिलहाल इस मुद्दे पर में इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता।”

शिरोमणि अकाली दल मालवा में अपना जन-प्रभाव पुनः हासिल करने के लिए अब गुरमीत राम रहीम सिंह का खुला विरोध कर रहा है। अकाली दल के पंथक सलाहकार बोर्ड की तरफ से आधिकारिक बयान दिया गया कि हरियाणा सरकार ने दुराचार और हत्या के दोषी डेरामुखी को राज्यस्तरीय समारोह में शामिल होने का निमंत्रण देकर न्यायिक प्रक्रिया को खुली चुनौती दी है।

पंथक सलाहकार बोर्ड का कहना है कि जिस तरह से हरियाणा सरकार के शीर्ष पदाधिकारी गुरमीत राम रहीम का सम्मान कर रहे हैं, उससे समाज में गलत संदेश गया है। जो कुछ गुरमीत को लेकर हरियाणा की भाजपा सरकार कर रही है वह सीधे तौर पर अदालत की अवमानना के बराबर है।

जो भी हो, पैरोल पर 40 दिन की रिहाई पर बाहर आए गुरमीत राम रहीम सिंह को कतई कोई शर्मिंदगी नहीं है कि वह सजायाफ्ता मुजरिम है। रिहाई के तीसरे दिन उसने यूपी के अपने बवाना डेरे में तलवार के साथ केक काटा और जारी वीडियो क्लिप में यह दिखाया गया कि वह एक बोतल फेंक रहा है, जिस पर कथित तौर पर तिरंगा बना हुआ है।

मौके पर जो पोशाक उसने पहनी हुई थी, वह भी पूरी लकदक वाली थी। यह सब क्या बताता है? पोशाक और तलवार का मेल पंजाब में बहुत सारे लोगों को चिढ़ा गया है। पूछा जा रहा है कि गुरमीत राम रहीम सिंह पर यह पाबंदी क्यों नहीं लगाई जाती कि वह डेरे में एकांत की अपनी जिंदगी को कैमरे के जरिए सार्वजनिक न करे और खामोश रहे। यह सरकार को सुनिश्चित करना है।

फौरी आलम यह है कि वीडियो के जरिए डेरेदार के सत्संग जारी हैं और हरियाणा में उन्हें देखने वालों में भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता भी हैं जो यह मानते हैं कि कानून अपनी जगह है तथा ‘रूहानियत’ अपनी जगह! जन्मदिन पर पोशाक और तलवार पर एक भाजपा नेता का कहना था कि वह अब भी एक ‘अध्यात्मिक गुरु’ हैं और ऐसा करना उनकी ‘मौज’ तथा अधिकार है!

जबकि पंजाब में इसे लेकर धीरे-धीरे रोष बढ़ता जा रहा है और उसके मद्देनजर सुनील कुमार जाखड़ की तल्ख टिप्पणियां सही लगती हैं। (अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं पंजाब में रहते हैं)                             

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