नई दिल्ली। राहुल गांधी शुक्रवार को महाराष्ट्र के नांदेड़ में किसानों के बीच पहुंचे और मोदी सरकार पर जमकर हमला किया। उन्होंने कहा कि आज देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। पिछले तीन साल में महाराष्ट्र के 9 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। राहुल ने कहा कि देश को उद्योगपतियों की जरूरत है, लेकिन देश को किसानों की भी जरूरत है। सिर्फ उद्योपतियों के सहारे देश नहीं चल सकता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी किसानों को लेकर नांदेड़ में पहली दफा चिंतित दिखाई दिए। लगभग हर मंच से राहुल किसानों की समस्या को उठाते रहे हैं और मोदी सरकार पर हमला करते रहे हैं। माना जा रहा है कि राहुल अगली चुनावी लड़ाई किसान मसले को ही केंद्र में रखकर लड़ेंगे। लेकिन लाख टके का सवाल यही कि क्या किसान भी उसी तरह से राहुल का साथ देंगे।
हर जगह बीजेपी मौजूद
दरअसल, बीजेपी की विस्तारवादी राजनीति के सामने राहुल गांधी बेबस और लाचार दिख रहे हैं। देश का कोई कोना नहीं बचा है जहां बीजेपी का साया मौजूद न हो। ऐसे में अब कांग्रेस को हर जगह अपनी लड़ाई बीजेपी से ही दिख रही है। पहले कांग्रेस को कई राज्यों में केवल क्षेत्रीय पार्टियों से ही लड़ना पड़ता था लेकिन अब हर जगह बीजेपी का भगवा झंडा कांग्रेस को डराता भी है और साथ हीच ललकारता भी है। राहुल हतप्रभ हैं। राहुल को कोई ऐसा मुद्दा भी नहीं मिल रहा है जिसके जरिये जनजागरण कर जनता को एकजुट किया जा सके। हारकर राहुल की नजर किसानों और मजदूरों पर ही टिकी है। किसानों के मसले पर राहुल गांधी पहले भी लड़ाई लड़ते रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि किसानों की समस्या को ही केंद्र में रखकर मोदी के खेल को बिगाड़ा जा सकता है। इसलिए अब राहुल गांधी की पूरी राजनीति किसान समस्या पर आ टिकी है।
गौरतलब है कि देश की राजनीति की जिस दिशा में बह रही है ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल के पास सिर्फ किसान वोट बैंक एक ऐसा सेफ पॉकेट है, जिसके जरिए राहुल मोदी के सामने खड़े हो सकते हैं। राहुल मोदी सरकार को सूटबूट वाली सरकार बताते रहे हैं और उन्हें कॉरपोरेट के हितैशी का तमगा देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। बता दें कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार के दौरान किसानों की कर्जमाफी हुई थी। राहुल इसी आधार पर समय-समय पर मोदी सरकार से सामूहिक किसानों की कर्जमाफी की बात उठाते रहते हैं। उनका कहना है कि जब सरकार उद्योगपतियों के कर्ज माफ कर सकती है तो किसानों की कर्ज क्यों नहीं? दरअसल, राहुल किसानों के बीच लगातार जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के दौरान भट्टा परसौल का मुद्दा उठा था। जहां जमीन अधिग्रहण के विरोध में किसानों का आंदोलन चल रहा था। वहां राहुल गांधी मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहुंचे थे। जबकि पुलिस ने भट्टा परसौल गांव की चारों तरफ नाकाबंदी कर रखी थी। इसके बाद भी राहुल किसानों के बीच पहुंचने में कामयाब हो गए थे।
राहुल लगातार किसानों के बीच सक्रिय
राहुल गांधी ने पिछले साल भी किसानों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिहाज से कई राज्यों का दौरा किया था। उन्होंने देश भर में चिलचिलाती धूप में उत्तर से लेकर दक्षिण के राज्यों में पदयात्राएं की थी। राहुल ने पंजाब से पैदल यात्रा शुरू की और फिर महाराष्ट्र के विदर्भ और तेलंगाना में, केरल में मछुआरों की समस्या को लेकर पदयात्रा की थी। जंतर-मंतर पर बैठे तमिलनाडु के किसानों के बीच भी राहुल गांधी पहुंचे थे। मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल में जब संशोधन करने जा रही थी, तब भी राहुल सड़क पर उतर आए थे।
यूपी में निकाली थी किसान यात्रा
राहुल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के टप्पल गांव भी गए थे, जहां किसान जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। इसके बाद मोदी सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। राहुल ने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 2500 किमी की किसान यात्रा की थी। किसानों के बीच जाकर वह खाट सभा करते थे। देश भर के किसानों पर एक रिपोर्ट भी राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी थी और कहा था कि किसानों के कर्ज माफ करें। राहुल अपनी अभिजात छवि को तोड़ते हुए आम आदमी से सीधा रिश्ता बनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी किसानों और मजदूरों की लड़ाई के जरिए कांग्रेस पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने में जुटे हैं।
उम्मीद की जा सकती है कि राहुल की यह लड़ाई उसकी राजनीति को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो सकें। लेकिन अभी जिस तरह से मोदी की भक्ति में पूरा देश मग्न है ऐसे में राहुल का कोई भी आंदोलन तूफ़ान खड़ा करता नजर नहीं आ रहा। चुनाव के वक्त यही किसान राहुल की राजनीति को कितना तरजीह देंगे यह देखने की बात होगी।