Friday, April 26, 2024

गणतंत्र या बुल्डोजर तंत्र: दिल्ली के निवासियों का सवाल?

नए साल की कड़कड़ाती ठण्ड में दिल्ली के तुगलकाबाद के निवासियों को पुरातत्व विभाग (ASI) द्वारा 11 जनवरी को एक नोटिस मिला। नोटिस के अनुसार किले के आस-पास 100 मीटर के क्षेत्र को संरक्षित घोषित करते हुए वहां के सारे निर्माण को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस नोटिस में घर और दुकानों को अवैध घोषित करते हुए 15 दिन के भीतर ध्वस्तीकरण/बेदखली की बात कही गई। यही नहीं ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में अड़चन आने पर निवासियों पर ही खर्च का बोझ डालने की बात कही गई है। 15 दिन का यह समय 26 जनवरी को ख़त्म हो रहा है। अब सवाल है कि जनता के लिए ये कैसा गणतंत्र है?

26 जनवरी को देश के सभी सत्ताधारी नेता, नौकरशाही ढांचा, बड़े पूंजीपति और उनकी मीडिया दिल्ली के बीचों बीच देश की सेना के बल का प्रचंड प्रदर्शन कर रहे हैं। बतौर विदेशी मेहमान इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्देल-फत्तेह अल-सिसी को बुलाया गया है। G-20 सम्मलेन की मेज़बानी के लिए चल रही तैयारियों में क्रम में शहर के सौंदर्यीकरण को बढ़ावा देने और जनांदोलनों को रोकने के प्रबंध जोर-शोर से हो रहे हैं। इसी समय दिल्ली के निवासी दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA), पुरातत्व विभाग (ASI), राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) या कोर्ट ऑर्डर के खौफ में हैं। शहर के अलग-अलग इलाकों में लोग बुल्डोजर का सामना करने की तैयारी कर रहें हैं।

पिछले साल से दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) राजधानी के अलग-अलग इलाकों में घरों और दुकानों को अवैध कब्ज़े के नाम पर लगातार तोड़ रहा है। अप्रैल 2022 में जहांगीरपुरी में ध्वस्तीकरण सांप्रदायिक तनाव के चलते हुआ। मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों में लगातार ध्वस्तीकरण का दौर चलता आ रहा है। बाबरपुर, मौजपुर, मदनपुर खादर, शाहीन बाग जैसे इलाकों में बुल्डोजर पहुंचा तो था लेकिन कुछ जगहों में जाति-धर्म के विभाजन को खारिज करते हुए एकताबद्ध तरीके से बुल्डोजर का सामना किया गया। लेकिन बुल्डोजर का विरोध करने वाले कालिंदी कुंज के लोगों पर पुलिस ने दंगे करवाने का आरोप लगाकर केस भी डाला जो आज तक चल रहा है।

2021 की गर्मी और लू के समय दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित ख़ोरी गांव के हज़ारों घरों को रौंदतें हुए बुल्डोजर चले। इसपर अंतर्राष्ट्रीय हलचल मचने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण को रोके बिना पुनर्वास की बात शुरू तो की लेकिन आज तक सभी को छोड़िए आधी जनता को भी राहत नहीं मिली। इसी तरह 2022 के मई महीने में यमुना नदी के तट पर बसे ग्यासपुर बस्ती को भी तोड़ा गया। लेकिन जहांगीरपुरी, ख़ोरी या ग्यासपुर के बाशिंदों को आज तक राहत नहीं मिली।

अगर थोड़ा और पीछे मुड़कर देखते हैं तो 2016 में बेदखल हुए कठपुतली निवासी आज भी ट्रांजिट कैंप में रहने को बेबस और लाचार हैं जो कि घरों के लिए पैसे तक दे चुके हैं लेकिन आज तक उन्हें वादों के सिवा कुछ नहीं मिला। और तो और आज यहां लोग दारू, नशा, धोखाधड़ी, सूदखोरी के जंजाल में बुरी तरह फंस चुके हैं।

वहीं पानी, बिजली और साफ़-सफाई जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे हैं। किसी भी तरह के सवाल उठाने पर कैंप की बिजली दो-चार दिन तक के लिए काट दी जाती है जो सीधे तौर पर सामंती व्यवस्था को दिखाता है। पुनर्वास के वादे पर आश्रित यह लोग आज इज्जत और अधिकार को भूल बेबसी और लाचारी में जी रहे हैं।

बरसात के पहले अगस्त महीने में पूर्वी दिल्ली की एक कॉलोनी में रातों-रात खंभे पर एक नोटिस लगा मिला। नोटिस में 60-70 सालों की रिहाइश को अवैध घोषित कर तोड़ने की बात कही गई थी। इस इलाके का नाम कस्तूरबा नगर है। इस इलाके के लोग एकजुट होकर 15 अगस्त के दिन “हर घर तिरंगा” नारे पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि जब घर ही नहीं होगा तो झंडा कहां लगेगा।

दिसंबर के महीने में हुए MCD इलेक्शन में वोट देने से इनकार करते हुए कस्तूरबा नगर के लोगों ने अपने हक़ की बात की। आज भी जुझारूपन और हिम्मत के साथ यहां की शोषित जाति की मेहनतकश जनता की लड़ाई DDA के खिलाफ जारी है।

लोकतंत्र का खौफनाक चेहरा खड़क गांव में देखा गया जहां बिना किसी नोटिस और कोर्ट ऑर्डर के बुल्डोजर चला दिया गया। पिछले साल त्यौहारों के बीच 21 अक्टूबर को अचानक छतरपुर इलाके के खड़क सतबरी गांव को छावनी में तब्दील कर DDA अफसरों की मौजूदगी में विरोध कर रही जनता को नजरबन्द कर घरों को तोड़ दिया गया। मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में दोनों मुस्लिम और हिंदुओं के 25 से 30 घरों को तोड़कर सरकार ने अपनी तानाशाही का परिचय दिया।

नई शिक्षा नीति 2020 में सुधार के नाम पर आये बदलावों ने ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर मजदूर वर्ग को शिक्षा से दूर करने का काम किया है। कोरोना में भुखमरी की मार झेल रहे मेहनतकशों पर ऑनलाइन शिक्षा का खर्च वहन करने की ताकत नहीं थी उस वक़्त मयूर विहार फ्लाईओवर के पास निशुल्क खुले स्कूल ने वो जिम्मेदारी निभाई जो सरकार की होनी चाहिए थी। लेकिन मयूर विहार फ्लाईओवर के पास स्थित स्कूल पर बुल्डोजर चलाकर उसका नामो-निशान का ख़त्म कर दिया गया। इस तरह मजदूर वर्ग के करीब 200 बच्चों को शिक्षा से वंचित कर दिया गया।

सर्द रातों में मेहरौली के निवासी एक बार फिर ध्वस्तीकरण/बेदखली का सामना कर रहे हैं। 12 दिसम्बर 2022 को एक नोटिस के ज़रिये DDA ने अतिक्रमण का कोर्ट ऑर्डर दिया था। मेहरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क को संरक्षित करने के नाम पर दशकों से रह रहे निवासियों को बेदखल किया जा रहा है। लोगों को लंबे और महंगे क़ानूनी दाव-पेंच मे फंसाकर रखना एक पुरानी चाल है। इसी तरह ASI द्वारा मिले नोटिस तुग़लकाबाद के निवासियों की नींद उड़ा रहे हैं।

बीते साल “आवास की बात” MCD चुनाव प्रचार का एक अहम् मुद्दा रहा है। चुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री ने कालकाजी में बनाये गए सीटू रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था। भूमिहीन कैंप के 575 निवासियों को 25 जनवरी तक इन फ्लैटों में शिफ्ट करना था, जबकि प्रयोग के पहले ही फ्लैट खस्ता हाल में हैं। पाई-पाई जोड़कर 1 लाख 47,000 रुपये देकर भी फ्लैटों में प्रवेश करने के पहले ही दीवार, टाइल, पाइप आदि टूट चुके हैं। कोई भी घर रहने लायक स्थिति में नहीं हैं। गौर-तलब है कि शहर में जिनके भी घर टूटे हैं उनको कालकाजी के इन्हीं फ्लैटों की चमकती तस्वीरें और खोखले वादे दिए जा रहे हैं।

अरावली के जंगल और पहाड़ी राजधानी दिल्ली के पर्यावरण, मौसम और पानी के स्तर को बनाये रखते हैं। सदियों से बसे शहर के लोगों ने अरावली के साथ अटूट रिश्ता बनाया है। लोगों और प्रकृति का तालमेल जीवन के लिए ज़रूरी है। अरावली बचाने के नाम पर एक तरफ गरीब जनता को खदेड़ा जा रहा है तो दूसरी तरफ फॉर्म हाउसेस, का निर्माण बिना रुके किया जा रहा है।

ग्यासपुर बस्ती को हटाने का कारण जहरीले पानी में खेती को रोकने के लिए किया था। बस्ती हटाने के बाद DDA ने उसी जगह पर पेड़ पौधे लगाए थे। आज वहां पौधों के नाम पर सूखी टहनियां रह गईं हैं। इस व्यवस्था की पर्यावरण नीति जनता के लिए सूखी टहनियों की तरह काम करती है वहीं बड़े जमींदारों और कंपनियों के लिए ईधन की तरह।

विकास के नाम पर दरकती दीवारों को जोशीमठ और झरोटा के घरों में देखा जा सकता है। टूरिज्म को बढ़ावा देने के नाम पर और हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर के लिए जो पहाड़ी सुरंगे बनाई जा रही है, इनके निशां पहाड़ों पर बसे निवासियों पर दिखाई दे रहा है। इसी तरह की बेदखली के खिलाफ इन्हीं पहाड़ों पर बसे हल्द्वानी की 50,000 जनता ने एकजुटता दिखाई जिससे कोर्ट ने अस्थाई तौर पर स्टे तो लगा दिया लेकिन लोग अभी भी डर में हैं।

ध्वस्तीकरण/बेदखली के इस दौर को चिन्हित करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि ध्वस्तीकरण सत्ता के हाथ का एक हथियार बन चुका है। मध्य प्रदेश के पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने खुलेआम धमकी दी कि BJP में आओ नहीं तो बुल्डोज़र तैयार है। लॉ एंड आर्डर को मेन्टेन करने के नाम पर लोगों के घरों को ढहाने को लोकतंत्र कहा जा रहा है। इस तानाशाही व्यवस्था का सबसे खुला रूप बुल्डोजर राज़ है।

आज चाहे वृंदावन हो या अयोध्या, दोनों धार्मिक क्षेत्रों में बुल्डोज़र का दौर है। अयोध्या में तीर्थ यात्रियों के बड़े मंदिर तक आवागमन को सुलभ बनाने के नाम पर आस पास के घर, दुकान और छोटे मंदिर तक तोड़ दिए गए हैं। बृंदावन में यही आलम पसरा हुआ है जहां छोटे कारोबारी, पुजारी और सदियों से बसे निवासी मुख्यमंत्री योगी को खून से खत लिख रहे हैं। महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रही जनता को खायी में धकेलना यह दर्शाता है कि यह बुल्डोजर राज गरीब जनता की आर्थिक कमर तोड़ रही है और बड़े पूंजीपति और धन्नासेठों की झोली भर रही है।

चर्चित G-20 सम्मेलन की मेज़बानी विदेशी कंपनियों के निवेश के लिए एक खुला न्यौता है। ज़मीन जब्ती और झुग्गी झोपड़ियों का अतिक्रमण सौन्दर्यीकरण के नाम पर हो रही है। इस सौंदर्यीकरण के लिए कंपनियों को लाया जा रहा है और फिर ये ज़मीन उनको कौड़ियों के दाम पर बेचीं जायेगी। यह सौदे इस देश के तानाशाही को बनाये रखने के लिए ज़रूरी है।

हाल ही में प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार से ग्रस्त पश्चिम बंगाल सरकार की खबर दिखाती है कि चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य, निजी हित और निजी संपत्ति जुटाने के लिए संसदीय दल और सत्ताधारी सरकारें मौजूदा संस्थाओं का भरपूर इस्तेमाल करते है। इन्ही संस्थाओं के माध्यम से लोगों के घर, दुकान, कारोबार, संसाधन आदि लूटकर कंपनियों को सौंपते हैं। इन शहरों के बच्चों को स्कूलों में गणतंत्र का मतलब देशभक्ति से जोड़कर दिखाया जाता है। बेदखली और अतिक्रमण के सामने इन्हीं शहरवासियों के बच्चे तानाशाही-तंत्र का मुंह देख रहे हैं और एक नयी सीख पा रहे हैं-लड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं है।

(संगीता गीत सोशल एक्टिविस्ट हैं)

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