Friday, April 19, 2024

बिरादारीवाद और नौकरशाही से ग्रस्त योगी सरकार में अपराध हुए बेलगाम, जनता में भय और आक्रोश

उत्तर प्रदेश में सब ठीक नहीं है। कानून व्यवस्था ध्वस्त है। जनता योगी सरकार से बहुत नाराज है। यह अवस्था ठीक वैसी ही है जैसी अखिलेश यादव की सरकार के आखिरी दिनों में थी। बल्कि उससे भी ज्यादा जनाक्रोश इस समय है। अपराध और खासकर बलात्कार की ताबड़तोड़ घटनाओं ने लोगों को खौफ में डाल दिया है। चोरी, लूट, हत्या और बलात्कार की हो रही वारदातों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

जाहिर है प्रदेश की कानून व्यवस्था संभालने वाली मशीनरी या तो सुस्त है या अपराध पर काबू पाना उसके बस की बात नहीं। प्रदेश के गृह विभाग में अवश्य कोई गंभीर गड़बड़ी है। बात केवल अपराध तक ही सीमित नहीं है। प्रदेश के हालात को इस बात से भी समझा जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री के अपने शहर के अखबारों के संपादक अब उनसे मिलना ही नहीं चाहते। ऐसा दीपावली में हो चुका है, जब मुख्यमंत्री की तरफ से गोरखपुर के संपादकों को उनके मंदिर स्थित कार्यालय में आमंत्रित किया गया, लेकिन कोई संपादक नहीं गया। बताया जा रहा है कि केवल एक अखबार के प्रबंधक पहुंचे जरूर, लेकिन वहां किसी संपादक को न देख कर वह भी असहज हो गए। 

जो लोग जानते हैं उनको मालूम है कि मुख्यमंत्री किसी दशा में हर महत्वपूर्ण जगह पर अपनी ही ठाकुर बिरादरी के आदमी देखना पसंद करते हैं। एक जाति से तो उनको इतनी दिक्कत है कि उनके छात्रावास में यदि उस जाति से जुड़े विद्यालय का कोई छात्र प्रवेश पाना चाहे तो संभव नहीं है। ऐसे में सूबे के अफसरों को हर तैनाती में मुख्यमंत्री की भावना का ख्याल रखना पड़ता है। जाहिर है कि यह ख्याल सभी थानों की व्यवस्था में भी रखना ही है। 

राजधानी लखनऊ से बिल्कुल मिला हुआ जिला है उन्नाव। पिछले एक साल से कानून व्यवस्था और खासकर बलात्कार जैसी घटनाओं को लेकर काफी चर्चा में है। इस जनपद में वर्ष 2019 में जनवरी से लेकर नवंबर यानि 11 महीनों में रेप के कुल 86 मामले सामने आए हैं।

इसमें से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और बीते गुरुवार को एक लड़की को जिंदा जलाने इत्यादि मामले शामिल हैं। जनपद में हुए जघन्य अपराधों के जितने भी मामले पुलिस ने जरूर किए हैं, उनमें से अधिकतर मामलों में या तो उन्हे जमानत पर रिहा कर दिया गया या फिर वो फरार चल रहे हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि इन जघन्य अपराधों के पीछे कहीं न कहीं पुलिस की लापरवाही है। वहीं उन्नाव के कुछ लोगों का कहना है कि जनपद की पुलिस पूर्ण रूप से नेताओं के अधीन है।

उन्नाव तो महज बानगी है। प्रदेश की हालत और भी बुरी है। लखनऊ में राजनीतिक गलियारों में दखल रखने और सरकारी सुविधाए लेने वाले किसी पत्रकार या मीडिया समूह की तो हैसियत भी नहीं है कि प्रदेश की स्थिति पर ठीक से टिप्पणी भी कर सके। मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार तुरंत संबंधित अखबार के संपादक या चैनल के चीफ को ही हटवा देते हैं। ऐसा हो चुका है। अमर उजाला, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक बदले गए और खासकर ठाकुर संपादक लाए गए। ऐसा ही चैनलों में भी किया गया। यही कारण है कि उतर प्रदेश की वास्तविक खबर अब कहीं नहीं मिलती।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पिछले तीन वर्षों में विकास के नाम पर दो सेरिमनी की हैं। पहली सेरिमनी की ही रिपोर्ट मांग ली जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।

इस सरकार की अलोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के गृह नगर में होने वाले कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने की अलग से व्यवस्था करनी पड़ती है। अभी हाल ही में उनके महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक समारोह के लिए उनकी सभी संस्थाओं में बच्चों को इकट्ठा कर ताकत दिखानी पड़ी।

विकास का दूसरा नमूना है प्रधानमंत्री के शहर से मुख्यमंत्री के शहर को जोड़ने वाली सड़क। यह सड़क 200 किमी की दूरी 8 से 10 घंटे में पूरी कराती है। याद कीजिए कि जब योगी मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने केवल तीन महीने में प्रदेश की सड़कों को गड्ढामुक्त करने का एलान किया था। विकास के नाम पर अखिलेश सरकार की योजनाओं का फीता ही अभी तक काटा जा रहा है। हालांकि उस समय की कई परियोजनाएं अब बंद भी हैं। नई कोई बड़ी परियोजना तो दिख नहीं रही। 

बताया जा रहा है कि इस सरकार की इतनी बड़ी विफलता के पीछे प्रदेश की नौकरशाही का भी बड़ा रोल है। दरअसल मुख्यमंत्री ने गृह से लेकर सूचना, संस्कृति, यूपीडा जैसे अनेक विभाग सिर्फ एक ही नौकरशाह को सौंप दिया है। इसको लेकर शेष नौकरशाही बहुत नाराज है।

अभी हाल ही में मुख्यमंत्री के एक चहेते अफसर की बेटी की शादी में मुख्य सचिव से लेकर कई मंत्रियों तक को लाइन में लग कर भोजन की प्लेट उठाए बहुतों ने देखा। हालांकि उस अधिकारी की पद्मश्री पत्नी के कारण भीड़ ज्यादा हुई, लेकिन उस मजमे को लेकर राजधानी में कई दिनों तक कानाफूसी होती रही। यह अलग बात है कि जिस दिन यह उत्सव था, उसी दिन अदालत से राम मंदिर का फैसला भी आना था। सारा देश बेहद तनाव में था, लेकिन तमाम मौकरशाह शादी में शामिल रहे।

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