Friday, April 26, 2024

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जोहरा सहगल: जिंदगी की प्रतिबद्धता की बेबाक किताब

शख्सियतें जिंदगी की प्रतिबद्धता की वह खुली किताब होती हैं जिनके जिए का एक-एक लफ्ज़ धड़कता है और अपना होना दर्ज करता है। गुजर जाने के बाद भी। साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान उर्फ जोहरा सहगल ऐसी ही एक...

इरफ़ान भाई फिर कहें, ‘मन का सब हो जायेगा क्या बे’

(बॉलीवुड और हॉलीवुड के जाने-पहचाने अभिनेता इरफ़ान (7 जनवरी-1967-29 अप्रैल 2020) के निधन ने फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों को ही नहीं बल्कि हर किसी संवेदनशील इंसान को शोक में डुबो दिया है। उनके निधन पर बौद्धिक जगत में जैसी...

आखिर इरफ़ान हार गए कैंसर से जंग, नहीं रहा चेहरे और आँखों से अभिनय का जादूगर

नई दिल्ली। अभिनेता इरफ़ान खान कान निधन हो गया है। उन्होंने बुधवार को मुंबई स्थित कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। इरफ़ान कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। हालाँकि अभी वह यूरोप से इलाज करा के लौटे थे।...

प्रोफ़ेसर तेलतुंबडे और उनके छात्रों पर बिल्कुल फ़िट बैठती है स्पैनिश फ़िल्म ‘तितली की जीभ’

एक स्पैनिश फ़िल्म La lengua de las mariposas (यानि तितली की जीभ) का आख़िरी दृश्य याद आ रहा है। स्पेन के गृहयुद्ध में बांदो नासिओनल की निर्णायक जीत हो चुकी है और सीगंदा रिपब्लिका इस्पान्योला के समर्थक समूह बांदो...

बलराज साहनी की पुण्यतिथि पर विशेष: बामकसद और खूबसूरती से जी गई, बेहतरीन जिंदगी

बलराज साहनी एक जनप्रतिबद्ध कलाकार, हिन्दी-पंजाबी के महत्वपूर्ण लेखक और संस्कृतिकर्मी थे। जिन्होंने अपने कामों से भारतीय लेखन, कला और सिनेमा को एक साथ समृद्ध किया। उनके जैसे कलाकार बिरले ही पैदा होते हैं। अविभाजित भारत के रावलपिंडी में...

‘थप्पड़’ के बहानेः महिला हिंसा के खिलाफ मुहिम की जरूरत

मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूं, लेकिन फिल्म 'थप्पड़' को लेकर मेरे मन के भीतर कुछ उमड़ घुमड़ रहा है। डायरेक्टर साहब ये क्यों भूल गए कि फिल्म 2020 में रिलीज कर रहे हैं। कुछ कमियां जो मुझे खटकीं, अमृता...

उपभोक्तावादी सौंदर्य दृष्टि को दरकिनार करती है ‘छपाक’

‘छपाक’ इस मायने में साहसिक फिल्म है कि यह हिंदी फिल्मों और समाज में दूर तक छाई हुई उपभोक्तावादी सौंदर्य दृष्टि को किनारे करती है। एक हस्तक्षेपकारी मनुष्य-दृष्टि से काम लेते हुए यह सुन्दरता के प्रति मौजूद रूढ़ समझ...

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!

कला मनुष्य को एक ऐसी दुनिया से साक्षात्कार कराती है,जिसमें वह सबकुछ दिखता है,जो अमूमन दिखायी पड़ने वाली दुनिया में दिखायी नहीं पड़ता।ऐसा शायद इसलिए,क्योंकि कला को जो कोई अंजाम दे रहा होता है,वह उस कला की बारीरिकयों में...

हमने कभी नहीं कहा था कि हम सबको सरकारी नौकरी देंगे। हम ये अभी भी नहीं कह रहे हैं: रविशंकर प्रसाद

धीरज रखें। इस पंक्ति को पढ़ते ही अधीर न हों। यह मेरे लेख के सबसे कम महत्वपूर्ण बातों में से एक है। मगर मंत्री जी प्रभाव को देखते हुए मैंने इसे हेडलाइन में जगह दी है। मैं अपने इस अपराध के...

पत्रकार प्रभात शुंगलू का प्रसून जोशी को खुला ख़त

(मॉब लिंचिंग के मसले पर 49 बुद्धिजीवियों, फिल्मकारों और समाज शास्त्रियों के लिखे खत के जवाब में 60 दूसरे लोगों ने पत्र लिखा है। इसमें प्रसून जोशी, मधुर भंडारकर और कंगना राणावत जैसे फिल्म उद्योग से जुड़े तमाम लोग...

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गैर-बराबरी के मुद्दे पर गुमराह करने में जुटे मोदी

इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धन के पुनर्वितरण की सोच को निशाने पर लिया है। वे तथ्यों का...