Friday, April 19, 2024

पदयात्रा के बाद आंदोलनकारियों ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करवाने को लेकर राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन

रांची। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करवाने संबंधी अपनी मांग को लेकर केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति लातेहार-गुमला द्वारा 21 से 25 अप्रैल 2022 तक जारी पदयात्रा के बाद 25 अप्रैल को रांची पहुंच कर राज्यपाल को एक ज्ञापन दिया गया। ज्ञापन देने के लिए बने आठ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में बगोदर से माले विधायक विनोद सिंह, मनिका विधायक रामचंद्र सिंह, केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के जेरोम जेराल्ड कुजूर, हेनरी तिर्की, मगतली टोप्पो, रोस खाखा, सामाजिक कार्यकर्त्ता दयामनी बारला और रत्न तिर्की शामिल थे।

राज्यपाल से मुलाकात से पहले राजभवन के पास लोगों ने अपनी बातें रखीं। इस अवसर पर केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के केन्द्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा कि पिछले 30 सालों से हम मानवाधिकार से पूरी तरह वंचित हैं। हमने सेना के कई अमानवीय व्यवहार को 30 साल झेला है, अब हम आगे इसे झेलने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना था कि हम जान देंगे जमीन नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि हमने प्रशासन से तीन तीन बार वार्ता की और हमें हर बार प्रशासन से आश्वासन मिला कि इसे लेकर सरकार के पास इसकी अनुशंसा की जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, हर बार सरकार द्वारा अधिसूचना जारी की जाती रही।

मौके पर माले विधायक विनोद सिंह ने कहा कि सरकार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को तुरंत रद्द करे। इसे लेकर क्षेत्र के लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 21 अप्रैल को टुटुवापानी गुमला (नेतरहाट के नजदीक) से रांची राजभवन तक पदयात्रा का आयोजन किया था। यह जानकरी देते हुए केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार- गुमला के केन्द्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने बताया था कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करवाने के लिए 21 अप्रैल से पदयात्रा आरंभ होगी, जो 25 अप्रैल को राजभवन के समक्ष धरना के बाद महामहिम राज्यपाल को ज्ञापन दिया जायेगा।

पदयात्रियों को आन्दोलन के सबसे बुजुर्ग व आन्दोलन के साथी बाबा एमान्वेल (उम्र -95 साल), मां मगदली कुजूर, मां दोमनिका मिंज, मो. खाजोमुद्दीन खान, बलराम प्रसाद साहू , रामेश्वर प्रसाद जायसवाल झंडा दिखा कर रवाना किया। पदयात्रा में प्रभावित क्षेत्र के करीब 200 से अधिक महिला व पुरुष – साथी शामिल हुए थे। पदयात्रा टुटुवापानी, बनारी, विशुनपुर, आदर, घाघरा, टोटाम्बी, गुमला, सिसई, भरनो, बेड़ो, गुटुवा तालाब, कटहल मोड़, पिस्का मोड़ व रातू रोड होते हुए 25 अप्रैल को राजभवन पहुंची।

आपको बताते दें कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट, 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था। 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की। जिसमें उन्होंने अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी। इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गांव से बढ़ाकर 245 गांव को भी अधिसूचित किया गया।   

आन्दोलनकारियों को People’s Union for Democratic Rights (दिल्ली, अक्टूबर 1994) की रिपोर्ट से मालूम हुआ था कि सरकार की मंशा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थाई विस्थापन एवं भूमि-अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था। 

लिहाजा क्षेत्र की महिलाओं की अगुवाई में 22 मार्च, 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर किया गया। तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपाभ्यास के लिए नहीं आई है।

आन्दोलन के साथ-साथ समिति ने हमेशा ही बातचीत का रास्ता खुला रखा है। ऐसे में जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन गुमला और पलामू के पहल पर प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी व केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के साथ तीन बार वार्ता हुई। वार्ता के दौरान जनसंघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है। लिहाजा समिति बिहार सरकार के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है।

जोरदार विरोध और प्रशासनिक अधिकारियों के आग्रह पर समिति ने सोचा कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि जो मई 2002 तक है, समाप्त हो जाएगी। परन्तु ऐसा सोचना समिति के लिए घातक साबित हुआ। 1991 व 1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर 1991-92 की अधिसूचना की अवधि का विस्तार कर दिया, जिसके आधार पर ये क्षेत्र 11 मई 2022 तक प्रभावित है।

अतः आज भी डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का विस्तार न कर दे। क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिग रेंज को रद्द करने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है।

यह पूरा इलाका भारतीय संविधान के पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहां पेसा एक्ट 1996 भी लागू है। जिस कारण ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्र के सामुदायिक संसाधन जंगल, ज़मीन, नदी-नाले और अपने विकास के बारे में हर तरह के निर्णय लेने का अधिकार है।

बता दें कि प्रभावित क्षेत्र की ग्रामसभा ने ग्रामसभा कर अपनी ज़मीन नहीं देने का जो निर्णय लिया है उसकी कॉपी 25 अप्रैल को पदयात्रा के बाद रांची में राज्यपाल को सौंपा गया। जिसमें राज्यपाल से यह मांग की गई कि वे पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें और उनके निर्णय का सम्मान करते हुए उचित कार्यवाही करने की कृपा करें।

उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति पिछले 28 सालों से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, टूडरमा डैम व 2017 से पलामू व्याघ्र परियोजना से संभावित विस्थापन के खिलाफ चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है। इसके साथ ही इन परियोजनाओं के प्रभावित इलाकों में मानवाधिकार से सम्बन्धित मामलों, सामाजिक मुद्दों, देश व राज्य की ज्वलन्त समस्याओं पर आंदोलनरत समिति प्रभावी क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर अहिंसात्मक आन्दोलन के साथ जनसवालों को उठाती रही है।

बताना जरूरी होगा कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट, 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था। जिसके तहत चोरमुंडा, हुसमु, हरमुंडाटोली, नावाटोली, नैना, अराहंस और गुरदारी गांव में सेना तोपाभ्यास करती आ रही है। 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की,  जिसमें उन्होंने अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी। इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गांव से बढ़ाकर 245 गांव को भी अधिसूचित किया गया। इस मामले में सरकारों ने जनता के साथ कभी कोई जानकारी साझा नहीं की और छुप-छुपाकर अधिसूचनाएं जारी करती रहीं।

इस बातचीत के पूर्व समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 (30 वर्षों) तक फायरिंग अभ्यास के दौरान हुई कई घटनाओं और फायरिंग अभ्यास से प्रभावित लोगों के अनुभवों को जानने के लिए सर्वे कराया।

इस सर्वे से जो तथ्य सामने आए वो दिल दहलाने वाले थे।

●सैनिकों के सामूहिक बलात्कार से मृत महिलाओं की संख्या – 2

●सैनिकों द्वारा महिलाओं का बलात्कार –  28

●तोपाभ्यास के दौरान गोला विस्फोट से मृत लोगों की संख्या – 30

 ●गोला विस्फोट से अपंग लोगों की संख्या – 3

विगत 30 वर्षों में गोलाबारी अभ्यास के दौरान पीड़ित भुक्त-भोगियों ने प्रशासन और सेना अधिकारियों के समक्ष अपनी मर्मस्पर्शी व्यथा कह सुनाई। उनकी आपबीती सुन एवं देख आयुक्त महोदय ने माना कि समस्या बेहद गंभीर है। सेना फायरिंग अभ्यास का नैतिक अधिकार खो चुकी है। पर चूंकि इसका निराकरण स्थानीय प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इस लिए प्रशासन सरकार के पास इसकी अनुशंसा करेगी।

बता दें कि 11 मई 2022 को 1999 की अधिसूचना की अवधि समाप्त होने वाली है। इस संदर्भ में झारखण्ड सरकार के गृहमंत्रालय को सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की वास्तविक स्थिति व आगे के अवधि विस्तार को जानने की कोशिश की गई। इसके लिए समिति ने प्रभावित इलाके के हर गांव से 10-10 सूचना अधिकार के तहत सूचना मांगने का प्रयास किया,  परन्तु गृह मंत्रलाय हमें सूचना देने के बजाय इधर-उधर घुमाता रहा। वहां से निराश होने के बाद वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, झारखण्ड सरकार से इस मामले को जानने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम से कोशिश की गई,  परन्तु यहां भी निराशा ही हाथ लगी।

वन, पर्यावरण मंत्रालय से सूचना मांगने के पीछे का मकसद था कि पलामू व्याघ्र परियोजना के तहत नेतरहाट का पठार क्षेत्र इको-सेंसिटिव जोन के अंतर्गत आता है? क्या इको-सेंसिटिव जोन में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 लागू हो सकती है या नहीं?

सरकार द्वारा जब कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला तो आंदोलनकारियों ने विधायकों से इस संदर्भ में झारखण्ड विधान सभा में सवाल उठाने का आग्रह किया गया। विधायक का. विनोद कुमार सिंह (बगोदर विधानसभा) ने इन समस्याओं को विधानसभा के पटल पर रखा था, परन्तु यहां भी सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करने व अवधि विस्तार पर रोक लगाने के संदर्भ में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।