उत्तराखंड: मामूली बारिश में ही ऑलवेदर रोड बंद

देहरादून। मानसून आने के एक हफ्ते बाद भी उत्तराखंड में बारिश की गतिविधियां सामान्य से कम हैं। राज्य के कुछ जिलों को छोड़ दें तो भरे-पूरे मानसून के बीच जुलाई के महीने में अब तक ज्यादातर जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। मार्च के बाद राज्य में बारिश की यही स्थिति है। अल्मोड़ा, चम्पावत, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, पिथौरागढ़ और ऊधम सिंह नगर जिलों में अभी ठीक-ठीक बारिश नहीं हुई है। राज्य के कुछ जिलों में सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश होने के बावजूद 8 जुलाई सुबह तक राज्य में बारिश का औसत सामान्य से करीब 2 प्रतिशत तक कम हो गया है।

हालांकि मौसम विभाग ने 8 और 9 जुलाई को कई जिलों में बहुत भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है और अन्य जिलों में सामान्य बारिश होने की संभावना जताई है। लेकिन, फिलहाल किसी भी जिले में बारिश के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि अगले कुछ दिन तक अच्छी बारिश नहीं होती तो बारिश की स्तर सामान्य से काफी नीचे जाने की पूरी संभावना है। इसके बावजूद इस सीजन में बारिश से  6 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों बार सड़कें बंद हो चुकी हैं। आलवेदर रोड कही जाने वाली सड़कें अब तक 20 बार बंद हुई हैं। कुछ जगहों पर तो लगातार तीन दिन तक आलवेदर रोड ने बंद रहने का रिकॉर्ड बनाया है। 

मानसून आने के बाद उत्तराखंड में मुश्किल से तीन दिन ठीक-ठाक बारिश हुई है। कुल 87.1 मिमी बारिश अब तक दर्ज की गई है। यानी बहुत मामूली बारिश। लेकिन इस बारिश से हुए नुकसान पर नजर डालें तो स्थितियां बेहद गंभीर नजर आती हैं। खासकर राज्य के चारधाम यात्रा मार्ग पर सबसे ज्यादा नुकसान दर्ज किया गया है। चारधाम यात्रा मार्ग को ऑलवेदर रोड भी कहा जा रहा है। यह नाम 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले देहरादून में जनसभा करने आये नरेन्द्र मोदी ने दिया था। चुनावी भाषण में उन्होंने दावा किया था कि यह सड़क आॅलवेदर रोड होगी और किसी भी मौसम में बंद नहीं होगी।

इस तथाकथित ऑलवेदर रोड पर काम शुरू हुआ तो वह चौंकाने वाला था। सड़कों को चौड़ा करने के नाम पर बड़ी-बड़ी पोकलैंड मशीनें लगाकर पहाड़ों को बेतरतीब तरीके से काटा जाने लगा है। मलबा बेहिचक नदियों में डाला गया। डंपिंग जोन बने, लेकिन उनकी निकासी भरी सीधे नदी में थी। कई-कई महीनों तक सड़कों को बंद रखा गया है और इन सड़कों से लगते जिलों के लोगों को वैकल्पिक मार्गों से अधिक धन और समय खर्च करके यात्रा करनी पड़ी। परियोजना को लेकर पर्यावरणीय सवाल उठे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कमेटी गठित की गई। लेकिन बाद में ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं कि परियोजना को पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक बताने वाले कमेटी के अध्यक्ष को ही अलग होना पड़ा। चीन बॉर्डर का तर्क दिया गया। इस तर्क को मजबूत तर्क मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खुशी-खुशी सड़क इतनी चौड़ी बनाने की अनुमति दे दी, जितनी मांगी भी नहीं गई थी।

बीते अप्रैल में तथाकथित ऑलेवदर रोड के एक हिस्से का उद्घाटन करने की औपचारिकता की गई। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपने ट्विटर हैंडल पर बदरीनाथ रोड के तोताघाटी का एक शानदार तरीके से एडिट किया हुआ फोटो साझा किया। फोटो में दो पहाड़ियों के बीच काली सर्पीली सड़क, सड़क पर दौड़ती लाल रंग की एक चमचमाती कार और पहाड़ियों के बीच सड़क के ठीक ऊपर बादलों के धब्बों वाला साफ नीला आसमान नजर आ रहा था। इस फोटो में चालाकी से सड़क के ठीक ऊपर पहाड़ पर अटके मलबे और बड़े-बड़े बोल्डर नहीं दिखाए गये। कुछ दिन बाद इन पंक्तियों के लेखक ने लगभग उसी जगह पहुंचकर रोड का मुआयना किया, जहां से नितिन गडकरी वाला फोटो क्लिक किया गया था, तो स्थितियां बेहद खतरनाक नजर आईं। सड़क के ठीक ऊपर बोल्डर के रूप में बड़ा खतरा नीचे उतरने के लिए बारिश का इंतजार कर रहा था। इस तरह का खतरा ऋषिकेश से बदरीनाथ- केदारनाथ तक या फिर गंगोत्री यमुनोत्री तक हर जगह देखा जा सकता है।

इस बात का पहले से अंदाजा था कि कथित ऑलवेदर रोड पर पहाड़ियों पर अटके बड़े-बड़े बोल्डर और मलबे के खतरे को नजरअंदाज किया गया है और बारिश होते ही यह जानलेवा हो सकता है। यही हुआ भी। बारिश बेशक अब तक कम हुई हो, लेकिन ऑलवेदर रोड पर मलबा आने से हुई पांच घटनाओं में 6 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें तीन घटनाएं केदारनाथ मार्ग पर और दो बदरीनाथ मार्ग पर हुई हैं। केदारनाथ मार्ग पर दो घटनाओं में पहाड़ी का मलबा वाहनों पर गिरने से एक-एक तीर्थयात्री की मौत हुई, जबकि एक घटना में मलबा पैदल चल रहे व्यक्ति के ऊपर गिर गया, जिससे उसकी भी मौत हो गई। बदरीनाथ मार्ग पर हुई दोनों घटनाओं में मलबा वाहनों पर गिरा। एक घटना में एक तीर्थयात्री महिला की मौत हुई, जबकि एक स्थानीय दंपति की भी कार मलबे में दबने से मौत हो गई।

बारिश शुरू होने के साथ ही तथाकथित ऑलवेदर रोड की स्थिति क्या है, इसका उदाहरण वह सरकारी आंकड़ा है, जिसमें कहा गया है कि अब तक राज्य में नेशनल हाई वे विभिन्न जगहों पर 20 बार बंद हुए हैं। सबसे बुरी स्थिति बदरीनाथ मार्ग पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच सिरोबगड़ में बनी हुई है। यहां पहली बारिश के साथ मलबा आना शुरू हुआ तो तीन दिन तक आता ही रहा और इन तीन दिनों तक ऑलवेदर रोड बंद रही, लोगों को एकमात्र वैकल्पिक मार्ग का सहारा लेना पड़ा। लेकिन, वैकल्पिक मार्ग पर इतना लंबा जाम लग गया कि लोग दिनभर जाम में फंसे रहे। बाद में सिरोबगड़ एक पूरे दिन फिर बंद रहा। अब भी खुलने और फिर से मलबा आने का सिलसिला बना हुआ है। बदरीनाथ मार्ग पर जोशीमठ के आगे भी खचडू नाले पर बार-बार मलबा आ रहा है और हाईवे बंद हो रहा है। यमुनोत्री और गंगोत्री हाईवे (ऑलवेदर रोड) की भी यही स्थिति है।

कुछ और आंकड़ों पर नजर डालें। सामान्य से कम बारिश में उत्तराखंड में अब तक 919 सड़कें बंद हुई हैं (इसमें कुछ जगहों बार-बार सड़कें बंद होना भी शामिल हैं)। इनमें 724 सड़कें खोली जा चुकी हैं और 195 अब भी बंद हैं। जो सड़कें अब तक बंद हुई हैं, उनमें नेशनल हाईवे की संख्या 20 (बार) है। इसके अलावा पीएमजीएसवाई की सड़कें 290 बार और लोक निर्माण विभाग की सड़कें 609 बार बंद हो चुकी हैं। इन सड़कों को खोलने पर 489 लाख रुपये खर्च हुए हैं। लेकिन, सड़कों को पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए 1257 लाख रुपये की जरूरत होगी। यह लोक निर्माण विभाग का अनुमान है।

इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि सामान्य से कम बारिश में ही राज्य में यह स्थिति है तो आने वाले दिनों में यदि बारिश का स्तर सामान्य अथवा सामान्य से ज्यादा होगा तब क्या स्थितियां होंगी। 

ऑलवेदर रोड के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि चौड़ी सड़कों से दुर्घटनाएं कम होंगी। लेकिन हाल के वर्षों में यह तर्क भी बेमानी साबित हुआ है। पिछले 5 वर्षों में राज्य में 7 हजार से ज्यादा दुर्घटनाएं हुई हैं। इनमें 5 हजार से ज्यादा लेागों की मौत हुई है और इतने ही घायल हुए हैं। डामटा में पिछले महीने हुई बड़ी दुर्घटना में 26 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। इसके अलावा भी ऑलवेदर रोड पर लगातार सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। जानकारों का कहना है कि चौड़ी सड़कों पर वाहनों की रफ्तार बढ़ गई है और ये दुर्घटनाएं इसीलिए हो रही हैं। 

इसके साथ ही चारों धामों में इस बार हार्ट अटैक से हुई 200 से ज्यादा मौतों के पीछे भी कहीं न कहीं या कुछ हद तक चौड़ी सड़कों को जिम्मेदार माना जा रहा है। जानकारों का कहना है कि दिल्ली-गाजियाबाद के 45 डिग्री तापमान से चलकर तीर्थयात्री एक ही दिन में 3 किमी ऊंचाई पर 1 या 2 डिग्री तापमान तक पहुंच रहे हैं। शरीर के लिए यह स्थिति सदमे जैसी है और हार्ट अटैक का कारण बन रही हैं।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

त्रिलोचन भट्ट
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